कोरोना से मुकाबले के नाम पर 3 मई तक बढ़ाये गये देशव्यापी लॉकडाउन ने सबसे बुरी हालत मज़दूरों की की है. इस सिलसिले में एक स्वैच्छिक समूह स्ट्रैंडेड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क (स्वान) प्रवासी मज़दूरों के संकट की आंख खोलने वाली रिपोर्ट जारी की है. नेटवर्क ने इस हकीकत जानने के लिए कई राज्यों में फंसे करीब 11 हजार मजदूरों से संपर्क किया तो पता चला कि 96 फीसदी मजदूरों को राशन नहीं मिला है और 89 फीसदी मजदूरों को तालाबंदी की वजह से नियोक्ताओं से एक भी पैसा नहीं मिला है.
89% of people interviewed haven’t been paid by their employers up to the third week of lockdown. Even after 10 days of MHA’s directive that employers must pay their employees during lockdown, workers have not received their wages. Read our report https://t.co/IB2zyWSl31 pic.twitter.com/FWIqXBllAJ
— Stranded Workers Action Network(SWAN) (@StrandedWorkers) April 18, 2020
रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से ज्यादातर श्रमिक वे थे जो या तो अपने अपने गृह-राज्य लौट नहीं पाए या उन्होंने जाने की कोशिश भी नहीं की. नेटवर्क ने पाया कि ये लोग जितने संकट में हैं उससे उन्हें निकालने के लिए पर्याप्त राहत नहीं मिल पा रही है. समूह ने पाया कि इनमें से 96 प्रतिशत लोगों को सरकार से राशन नहीं मिला है. सबसे बुरी स्थिति उत्तर प्रदेश में थी जहां से कम से कम 1,611 श्रमिकों ने बताया कि उन्हें जरा भी सरकारी राशन नहीं मिला है.
भोजन केंद्रों पर लंबी कतारें
पका हुआ खाना कई जगह जरूर मिल रहा लेकिन उसमें भी हर राज्य में स्थिति अलग है. कर्नाटक में 80 प्रतिशत लोगों को खाना नहीं मिला, तो पंजाब में 32 प्रतिशत लोगों को. दिल्ली और हरियाणा में स्थिति अलग है. इन राज्यों में रहने वाले श्रमिकों में से लगभग 60 प्रतिशत ने कहा कि उन्हीं खाना मिला लेकिन खाने की कतारें लंबी हैं और कई बार सबको खाना मिलने से पहले ही खत्म हो जाता है.
दो बच्चों के पिता दिल मोहम्मद नाम के एक ड्राइवर ने बताया कि वे एक बार ऐसे ही एक केंद्र पर गए जहां खाना मिल रहा था. दिल मोहम्मद चार घंटों तक कतार में खड़े रहे लेकिन उनकी बारी आने से पहले ही वहां खाना खत्म हो गया और उन्हें चार केले दे दिए गए. समूह का कहना है कि 11 अप्रैल को इसी तरह निराश हुए कुछ श्रमिकों ने तीन ऐसे केंद्रों में आग लगा दी थी और यह दर्शाता है कि भूखे मरने की चिंता को अगर पर्याप्त रूप से दूर ना किया गया तो क्या नतीजा हो सकता है.
समूह के सदस्यों ने यह भी पाया कि श्रमिकों को पैसों की जरूरत है. ये दिहाड़ी पर जीते हैं और रोज जो पैसे कमाते हैं उसी से भोजन, दवाओं और मोबाइल रिचार्ज जैसी जरूरतों का इंतजाम करते हैं. पैसे मिल जाएं तो राशन भी खरीद कर पका सकते हैं. इनमें से लगभग 98 प्रतिशत लोगों को सरकार से नकद या किसी भी किस्म की आर्थिक मदद नहीं मिली है.
एक अजीबोगरीब मामले में, समूह ने पंजाब के लुधियाना में श्रमिक तिलक महतो के बैंक खाते में 800 रुपये डलवाए लेकिन उसमें से लगभग पूरी राशि बैंक ने शुल्क के रूप में काट ली क्योंकि खाते में कई दिनों से मिनिमम बैलेंस नहीं था. सोशल मीडिया पर मामला सामने आने से राशि वापस खाते में भेज दी गई.
89 प्रतिशत को नहीं मिला वेतन
श्रमिकों के हित के लिए गृह मंत्रालय ने 29 मार्च को ही आदेश जारी कर दिया था कि इनके वेतन ना काटे जाएं और इनके मकानमालिक फिलहाल इनसे किराया भी ना लें. लेकिन असलियत इस निर्देश से कोसों दूर है. समूह ने पाया कि इन श्रमिकों में से 89 प्रतिशत को तालाबंदी के दौरान उनके नियोक्ताओं ने एक पैसा भी नहीं दिया है.
समूह का यह भी कहना है कि श्रमिक इस समय जिस संकट का सामना कर रहे हैं वह जानलेवा भी है. रिपोर्ट जारी होने तक देश में कोविड-19 की वजह से 333 लोगों की जान गई थी जबकि तालाबंदी के दौरान आत्महत्या, भूख, हाईवे पर हादसे, पुलिस की मार इत्यादि की वजह से कम से कम 199 लोगों की जान चली गई थी.
समूह का यह भी कहना है कि संकट का स्वरूप धीरे धीरे बदल भी रहा है. जहां उन्हें पहले सिर्फ श्रमिकों के फोन आ रहे थे, अब कई जगहों से संकट में पड़े छात्रों और खाना घर तक पहुंचाने वालों जैसे श्रमिकों से कुछ ज्यादा कमाने वाले लोगों का भी फोन आ रहा है कि वे संकट में हैं और उन्हें मदद चाहिए. इसका मतलब है कि तालाबंदी जैसे जैसे बढ़ती जा रही है वे और अधिक लोगों को संकट में डाल रही है.
उपाय क्या है?
समूह ने इस संकट में बेहतर प्रबंधन के लिए कुछ उपाय सुझाए हैं. इनके अनुसार सबसे पहले तो पीडीएस के तहत मिलने वाले राशन को तीन महीनों के लिए दोगुना कर देना चाहिए और दालें, तेल, नमक, मसाले, साबुन और सेनेटरी पैड के साथ लोगों के घर तक पहुंचाना चाहिए. यह सभी गरीबों को मिलना चाहिए यानी उन्हें भी जिनके पास राशन कार्ड नहीं है. इसके अलावा हर एक लाख की आबादी के लिए कम से कम 70 भोजन के केंद्र होने चाहिए जहां 12 घंटों तक खाना बंटता रहे.
इसके अलावा हर गरीब को दो महीनों के लिए हर महीने 7,000 रुपये नकद दिए जाने का सुझाव भी दिया गया है. साथ ही यह भी कहा गया है कि सभी जन धन खातों में तालाबंदी के दौरान और उसके उठने के दो महीने बाद तक हर महीने 25 दिनों का न्यूनतम वेतन दिया जाए. सभी राज्य सरकारें सुनिश्चित करें कि नियोक्ता ठेकेदार और श्रमिकों को पूरा वेतन दें.