कश्मीर घाटी में 5 अगस्त के बाद से लगभग 10 लाख मज़दूरों ने बेरोजगार हो चुके हैं,जब से केंद्र की मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35 ए को खत्म कर दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा है, तब से मज़दूरों ने अपनी नौकरी गवा दी है, जिनमे से आधे मज़दूर देश के अन्य राज्यों से आते हैं।
Kashmir Clampdown: Over 10 Lakh Workers Lose Jobs https://t.co/C5mehwc5QE
— Kashmir Observer™ (@kashmirobserver) October 5, 2019
बाहरी लोगों को घाटी छोड़ने का आदेश
राज्य के विशेष दर्जे को खत्म करने से कुछ समय पहले केंद्र सरकार ने पर्यटकों, अमरनाथ यात्रियों और मज़दूरों सहित सभी बाहरी लोगों को घाटी छोड़ने का आदेश दे दिया था।
यहां तक कि एनआईटी श्रीनगर सहित अलग-अलग कॉलेजों के छात्रों को भी निकलने के लिए कहा गया। वहीं दूसरी तरफ बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश , पंजाब और राजस्थान सहित देश के विभिन्न हिस्सों से लगभग चार लाख निर्माण और अन्य श्रमिकों ने भी घाटी छोड़ दी।
हालांकि उनमें से अधिकांश अपने दम पर चले गए, और अन्य लोगों को पुलिस ने सुरक्षा कारणों से छोड़ने के लिए कहा।
पंजाब से सिख समुदाय से जुड़े बढ़ई को बहुत कम समय में ही घाटी छोड़कर वापस आना पड़ा जिसकी वजह से उनको हजारों औद्योगिक इकाइयों को बंद करना पड़ा और उनको इस वजह से अरबों रुपये का नुकसान उठाना पड़ा।
40,000 मज़दूर काम करते थे
औद्योगिक एस्टेट के अध्यक्ष जुबैर अहमद का कहना है कि पुलवामा के दक्षिणी कश्मीर जिले में औद्योगिक एस्टेट खानमोह में 200 से अधिक इकाइयाँ 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 और 35 ए की छंटनी के खिलाफ हड़ताल के कारण पूरी तरह से बंद हैं। हमें इनकी कुल बंदी के कारण रोजाना 3 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो रहा है।
उन्होंने ये भी बताया कि इन इकाअयों में देशभर के अलग-अलग हिस्से लगभग 40,000 मज़दूर काम करते थे,जिन्हें सरकार के आदेश के बाद तुंरत जाना पड़ा। इन इकाइयों में काम करने वाले कुल कार्यबल का 40 प्रतिशत हिस्सा था। उन्होंने कहा कि केंद्र द्वारा 5 अगस्त की घोषणा के बाद एक लाख से अधिक स्थानीय मज़दूरों को भी बेरोजगार होना पड़ा।
5 अगस्त से एक भी इकाई काम नहीं कर रही है, उन्होंने कहा, इन इकाइयों को छोड़ने से लगभग 200 करोड़ का नुकसान हुआ है और कोई नहीं जानता कि ये स्थिति कब सामान्य होगी।
औद्योगिक संपदाओं की इकाइयां भी बंद
अगर स्थिती सामान्य हो भी जाए फिर भी बाहरी मज़दूरों को वापस लाने में महीनों लग जाएंगे। अहमद ये भी कहते है कि सभी यूनिट धारकों ने बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों से ऋण लिया है। ऐसे में जब कोई उत्पादन नहीं हो रहा है तो हम बैंक ऋण की किस्तों को कैसे चुकाएंगे ?
उन्होंने मांग की कि केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद हड़ताल के कारण यूनिट धारकों को हुए नुकसान का आकलन करने के लिए सरकार को एक समिति गठित करनी चाहिए और औद्योगिक समिति को भेजना चाहिए। इसी तरह, घाटी में अन्य प्रमुख औद्योगिक संपदाओं की इकाइयां भी बंद रहीं, जिसके कारण उन्हें अरबों रुपये का नुकसान उठाना पड़ा रहा है।
वर्कर्स यूनिटी से साभार