बिलक़ीस केस में दोषियों की रिहाई पर राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी पर साधा निशाना: देश की महिलाओं को क्या संदेश दे रहे हैं…?”

कपिल शर्मा कपिल शर्मा
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कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुजरात के बिलकिस बानो मामले में बलात्कार एवं हत्या के 11 दोषियों की रिहाई को लेकर बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा. राहुल ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री की कथनी और करनी में अंतर पूरा देश देख रहा है. कांग्रेस नेता ने इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री को उस वक्त निशाने पर लिया, जब सोमवार को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उन्होंने लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा था कि भारत की तरक्की के लिए महिलाओं का सम्मान एक महत्वपूर्ण स्तंभ है. उन्होंने ‘नारी शक्ति’ का समर्थन करने की आवश्यकता पर जोर दिया था!

दरअसल गुजरात में बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में उम्रकैद की सजा पाए सभी 11 दोषी सोमवार को रिहा कर दिया गया. अब इस मामले पर राहुल गांधी ने सरकार पर निशाना साधा है. राहुल ने सोशल मीडिया पर ट्वीट करते हुए लिखा,” 5 महीने की गर्भवती महिला से बलात्कार और उनकी 3 साल की बच्ची की हत्या करने वालों को ‘आज़ादी के अमृत महोत्सव’ के दौरान रिहा किया गया. नारी शक्ति की झूठी बातें करने वाले देश की महिलाओं को क्या संदेश दे रहे हैं? प्रधानमंत्री जी, पूरा देश आपकी कथनी और करनी में अंतर देख रहा है!”

बता दें कि बिलकिस बानो केस में दोषियों की रिहाई होने पर सरकार को खूब आलोचना झेलनी पड़ रही है. तमाम पार्टी इस मसले पर बीजेपी को घेरने में लगी है. इसी कड़ी में राहुल गांधी ने अपने ट्वीट सरकार के फैसले पर सवाल उठाया. आपको बता दें कि बानो केस में दोषियों की रिहाई गुजरात सरकार ने अपनी क्षमा नीति के तहत की. वहीं मुंबई में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की एक विशेष अदालत ने 11 दोषियों को 21 जनवरी 2008 को सामूहिक बलात्कार और बानो के परिवार के सात सदस्यों की हत्या के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी!

हालांकि इसके बाद में बॉम्‍बे हाईकोर्ट ने उनकी इस सजा को बरकरार रखा था इन दोषियों ने 15 साल से अधिक कैद की सजा काट ली, जिसके बाद उनमें से एक दोषी ने समय से पहले रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से सजा पर क्षमा पर गौर करने का निर्देश दिया. इसके बाद सरकार ने एक समिति का गठन किया. समिति के प्रमुख मायत्रा ने कहा क‍ि कुछ माह पहले गठित समिति ने सर्वसम्मति से मामले के सभी 11 दोषियों को क्षमा करने के पक्ष में निर्णय किया. राज्य सरकार को सिफारिश भेजी गई थी और कल हमें उनकी रिहाई के आदेश मिले!

जाने क्या है बिलकिस बानो केस

साल 2002 में तीन मार्च को गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के दौरान दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका के रंधिकपुर गांव में भीड़ ने बिलकिस बानो के परिवार पर हमला किया था. उस वक्त बिलकिस पांच महीने की गर्भवती थीं. बिलकिस के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया. साथ ही उनके परिवार के सात सदस्यों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी!इसके आलावा बिलकिस बानो की तीन साल की बेटी की हत्या भी की गई थी। इस मामले में जिन चौदह लोगों की गई थी उनमे से छः लोगों की लाशें तक नहीं मिली थीं।

इस मामले में सजा पाए लोगों पर ये आरोप सिद्ध हुए थे, जिनका मुकदमा गुजरात से हटा कर महाराष्ट्र में ले जाया गया था। जहाँ साल 2008 में इन ग्यारह मुजरिमों को उम्रकैद की सजा सुना गई थी। इन बलात्कारियों के नाम हैं

राधेश्याम भगवानदास शाह उर्फ़ लाला वकील
केसरभाई खीमभाई वोहानिआ
प्रदीप रमणलाल मोधिया
जसवंतभाई चतुरभाई नाई
शैलेष चिमनलाल भट्ट
बिपिनचंद्र कनैयालाल जोशी उर्फ़ लाला डॉक्टर
राजूभाई बाबूलाल सोनी
बकभाई खीमाभाई वोहानिआ
मितेश चिमनलाल भट्ट
रमेश रूपाभाई चांदना

यहाँ ये बता देना भी ज़रूरी है, कि गुजरात पुलिस 2002 में ही अदालत में इस मामले में क्लोज़र रिपोर्ट लगा चुकी थी, लेकिन कोर्ट ने इसे नहीं माना, पर जब 2003 में दोबारा क्लोज़र रिपोर्ट सबमिट की गई तो कोर्ट ने उसे स्वीकार कर लिया, जबकि 2003 में ही सुप्रीम कोर्ट ने मामले को सी बी आई को ट्रांसफर कर दिया और फिर 2004 में इस मामले को गुजरात से बाहर ट्रांसफर किया गया।मामले को शुरू से देखने पर लगता है कि गुजरात के पूरी प्रशासनिक मशीनरी की मंशा थी कि इस मामले को रफा-दफा किया जाये, और जब सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से बलात्कारियों और हत्यारों को सजा मिली, तो उन्हें नियमों का अटकल पच्चू करके रिहा करवा लिया गया। रिहा होने के बाद उन्हें मिठाई खिलाई गई माला पहनाई गई और जीत का जश्न मानते ये बलात्कारी और हत्यारे शान से अपने घर रवाना हुए।

रिमिशन का फैसला देने वाली कमिटी के आठ सदस्यों में दो निर्वाचित सदस्य, भाजपा के विधायक हैं, जिनमे से एक गोधरा के विधायक सी के रॉलजी और कलोल के विधायक सुमन चौहान हैं, इसके आलावा इस कमिटी में जिला अधिकारी, जेल सुपरिन्टेन्डेन्ट, जिला सेशन जज, सुपरिन्टेन्डेन्ट ऑफ़ पुलिस, जिला सामाजिक कल्याण अफसर होते हैं। इस कमिटी ने मुजरिमों को जेल में अच्छे व्यव्हार, स्वास्थ्य के आधार पर उनकी ज़्यादा उम्र, एवं कुछ अन्य कारकों के आधार पर उन्हें रिहा करने का फैसला किया। जबकि कमिटी के एक सदस्य का कहना है, कि एक गर्भवती महिला के बलात्कारी और एक तीन साल की बच्ची समेत छः लोगों की हत्यारों को रिहा करने का फैसला सर्वसम्मत था।

रिमिशन का ये फैसला 1992 की उस नीति के तहत लिया गया है, जिसमे 2014 वाला ये निषेध नहीं था कि बलात्कार और सामूहिक बलात्कार और हत्या के अपराधियों इसके तहत अपील नहीं कर सकते। रिमिशन का ये फैसला न्यायिक प्रक्रिया का नहीं है, बल्कि कार्यकारी है, जिसमे राज्य सरकार ने ये फैसला लिया कि वर्तमान नीति के बदले वो उस नीति के तहत काम करेगी जिसे बदल दिया गया है। क्या किसी और मामले में ऐसा संभव है? मामले में दूसरा पेंच ये है, की जिस आरोप पर मुकदमा गुजरात में नहीं चला, सिर्फ इसलिए कि वहां उस पर इन्साफ होने की उम्मीद नहीं थी, उस मामले में रिहाई की अपील गुजरात में ही दायर होने दी गई। क्या उस सरकार से जिससे पहली बार ही न्याय की उम्मीद नहीं थी, जो मामले के शुरू से ही बलात्कारियों और हत्यारों के पक्ष में खड़ी दिख रही थी, अब न्याय की उम्मीद की जा सकती है।

हालाँकि कानून के जानकारों का कहना है, कि किसी भी फैसले की तरह इस फैसले को भी चुनौती दी जा सकती है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के पिछले कुछ दिनों के फैसले, जिनमे पीड़ित के लिए न्याय मांगने वालों पर ही जुरमाना और सजा का आदेश दिया गया है, के चलते क्या बिलकिस बानो, या उनका कोई हमदर्द ये हिम्मत कर पायेगा की वो इस देश में न्याय पाने की कोशिश करे। प्रधान मंत्री के लाल किले के भाषण का सार ये समझ आता है, कि नारी शक्ति तब ही तक काम करेगी जब तक बलात्कारी और हत्यारे चाहेंगे, वरना वो जो मर्ज़ी करें पीड़िता को न्याय मिलने की उम्मीद मुश्किल है।


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