टेरर फंडिंग मामलों में यासिन मलिक को उम्रकैद

कपिल शर्मा कपिल शर्मा
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यासीन मालिक को उम्रकैद
यासीन मालिक को उम्रकैद


जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक को एनआईए की एक अदालत ने टेरर फंडिंग के मामलों में दोषी क़रार देते हुए 25 मई को उम्रकैद की सज़ा सुनाई। हालांकि यासीन मलिक को इससे पहले 19 मई को अदालत ने इन मामलों में दोषी करार दे दिया था, लेकिन सज़ा सुनाने के लिए 25 मई का दिन तय किया गया था। प्रतिबंधित संगठन जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट, जेकेएलएफ के नेता रहे यासीन मलिक के लिए एनआईए ने अदालत से फांसी की सज़ा मांगी थी, एनआईए के वकील का कहना था कि यासीन मलिक को मिलने वाली सज़ा एक सबक की तरह होनी चाहिए जिससे अन्य आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त लोगों के हौसले पस्त हों, लेकिन अदालत ने कहा कि उनका दोष रेयरेस्ट ऑफ रेयर की श्रेणी में नहीं आता है, इसलिए उन्हे फांसी की सज़ा नहीं दी जा सकती।

रैली में
रैली में

अदालत में यासीन मलिक के वकील रहे, उमेश शर्मा ने बताया कि उन्हे दो अलग-अलग मामलों में उम्रक़ैद की सज़ा मिली है, और इसके अलावा दस मामलों में 10-10 साल की सज़ा सुनाई गई है। ये सभी सज़ाएं एक साथ चलेंगी। इसके अलावा यासीन मलिक पर 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। ये सभी सज़ाएं उन्हें अलग-अलग मामलों की 9 धाराओं के अंर्तगत सुनाई गई हैं। एनआईए ने यासीन मलिक पर 2017 में टेरर फंडिंग से संबंधित एफ आई आर दर्ज़ की थी और 2018 में उन पर चार्जशीट दाखिल की गई थी। यासीन मलिक ने अदालत में अपना दोष क़बूल किया था। हालांकि इस फैसले के खिलाफ यासीन मलिक के पास आगे अपील करने का रास्ता खुला है, लेकिन यासीन मलिक का कहना है कि वो इस सज़ा के खिलाफ अपील नहीं करेंगे। यासीन मलिक ने अपने पक्ष में कहा कि वे पिछले 28 सालों से अहिंसा की राजनीति कर रहे हैं, और किसी भी आतंकवादी घटना में या गतिविधि में शामिल नहीं रहे हैं। अपनी सज़ा के बारे में यासीन मलिक ने कहा कि, “सज़ा पर मैं कुछ नहीं बोलूंगा। जब भी मुझे कहा गया मैने आत्मसमर्पण किया। अब आपको जो भी सजा देनी है, दे दीजिए…..मैं कुछ नहीं बोलूंगा, लेकिन ईमानदारी से दीजिएगा।”
मलिक ने अपने राजनैतिक कैरियर की शुरुआत एक राजनीतिक कार्यकर्ता के तौर पर शुरु की थी, लेकिन ये भी माना जाता है कि वे पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद में शामिल हुए और फिर कश्मीर को हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनो से अलग करने को लेकर अभियान शुरु किया, जिसे लेकर उन्हें लगभग दो दशकों बाद सज़ा सुनाई गई है।

1987 में नया मोड़

जे के एल एफ लीडर यासीन मलिक
जे के एल एफ लीडर यासीन मलिक

1966 में जम्मू – कश्मीर में जन्में यासीन मलिक ने 1980 में ताला पार्टी भी बनाई थी, जिसका काम राजनीतिक पर्चे बांटने से लेकर अराजक गतिविधियों में शामिल रहना था। शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम में होने वाले क्रिकेट मैच में गड़बड़ी फैलाने की कोशिश से लेकर नेशनल कांफ्रेंस की सभाओं में बद्अमनी फैलाने में इनका हाथ रहा। 1986 में ताला पार्टी का नाम बदल कर इस्लामिक स्टूडेंट लीग कर दिया गया, और यासीन उसके महासचिव बने। जम्मू – कश्मीर की राजनीति के लिए 1987 का साल महत्वपूर्ण बदलावों का साल था, जिसमें यासीन मलिक जो मुख्य धारा की राजनीति में सक्रिय थे, बह गए। मलिक की इस्लामिक स्टूडेंट्स लीग के लीडर को मुस्लिम युनाइटेड फ्रंड ”एम यू एफ” का सहयोग प्राप्त था, और उस वक्त ये नेशनल कांफ्रेंस – कांग्रेस के गठजोड़ के खिलाफ चुनाव लड़ रही थी। मलिक उस समय एमयूएफ के उम्मीदवार मोहम्मद युसुफ शाह के पोलिंग एजेंट थे, जो अमिरकदल, श्रीनगर से चुनाव लड़ रहे थे। इस चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस के उम्मीदवार गुलाम मोहियुद्दीन शाह जीते और युसुफ शाह ये चुनाव हार गए। इन चुनावों में भारी गड़बड़ी का आरोप लगा था। बाद में युसुफ शाह ने हथियारबंद आंदोलन की तरफ बढ़ कर हिज्बुल मुजाहिदीन का दामन थाम लिया। वहीं यासीन मलिक जम्मु कश्मीर लिबरेशन फ्रंट, जेकेएलएफ के नेता बन गए, जिसकी स्थापना, 1977 में अमानुल्लाह खान द्वारा युनाइटेड किंगडम में की गई थी। जेकेएलएफ के सदस्य के तौर पर वे पाक नियंत्रित कश्मीर गए और वहां ट्रेनिंग हासिल की।

(स्रोत-साउथ एशिया टेरेरिज्म पोर्टल)

हालांकि कहा ये भी जाता है कि हिज्बुल मुजाहिदीन और जेकेएलएफ के बीच एक टर्फ वार भी चली, जिसमें हिज्बुल मुजाहिदीन कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल करना चाहता था, वहीं जेकेएलएफ चाहता था कि जम्मू कश्मीर हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनो से ही अलग, एक अलग मुल्क हो। उस समय जम्मू कश्मीर की आज़ादी की मांग करने वाले जेकेएलएफ का नेतृत्व यासीन मलिक के हाथ में था, जबकि पाकिस्तान समर्थित हिज्बुल मुजाहिदीन की कमान सैयद सलाहुद्दीन के हाथ में थी जो पकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से इसे चला रहे थे। इस टर्फ वार में जेकेएलएफ को काफी नुक्सान झेलना पड़ा और साल 1994 में उसने आतंकवाद का रास्ता छोड़ दिया और जम्मू-कश्मीर की आज़ादी के लिए शांतिपूर्ण संघर्ष की घोषणा की। हालांकि हिंसा का रास्ता छोड़कर बातचीत का रास्ता अपनाने के बावजूद वे लगातार जम्मू – कश्मीर के लिए भारत और पाकिस्तान दोनो से ही आज़ादी की वकालत करते रहे। कहा ये भी जाता है कि भारत के अलावा पाकिस्तान का विरोध करने के चलते पाकिस्तान से हासिल होने वाली मदद बंद हो गई और इससे यासीन मलिक को नये रास्ते अपनाने की ज़रूरत पड़ी।


साल 2009 में यासीन मलिक ने पाकिस्तानी कलाकार मशाल हुसैन मलिक से शादी की, मशाल अब भी पाकिस्तान में ही रहती हैं। वे अक्सर ट्विटर पर अपने पति की बेगुनाही के बयान देती रहती हैं। अदालत के फैसले के बाद उन्होनें एक ट्वीट में कहा, ”मोदी आप यासीन मलिक को शिकस्त नहीं दे सकते। उनका दूसरा नाम आज़ादी है। अनुचित न्यायिक आतंकवाद के हर क़दम पर भारत पछताएगा”।