JNU: कयामत की रात चली सामाजिक न्‍याय की बयार, कल होगा आर या पार

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मनदीप पुनिया


तारीख 12 सितंबर, रात के दस बजे। दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के झेलम होस्टल के साथ वाले लॉन में एक स्टेज सजा हुआ था। स्टेज के सामने ही सफेद रंग के बड़े से टेंट में जेएनयू के छात्र ढपली, ढोल और गले में ढेर सारी ताकत लेकर जमा हुए थे। स्टेज के पास बनी मीडिया लॉबी में पत्रकार जाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उन्हें जाने नहीं दिया जा रहा था। पत्रकार रात को छात्रसंघ के चुनाव के प्रत्याशियों के भाषण और वाद-विवाद की कवरेज करने आए थे। स्टेज के बाहर खड़े-खड़े पत्रकारों में आपसी बातचीत के दौरान प्रत्याशियों और उनकी छात्र इकाइयों का मूल्यांकन शुरू हो गया। कोई कहने लगा अबकी बार लेफ्ट(AISA+SFI+AISF) के गढ़ में राइट (ABVP) वाले भगवा लहराएंगे, तो कोई कह रहा था लाल और भगवे को नीले यानी बापसा (बिरसा अंबेडकर फूले स्टूडेंट एसोसिएशन) के आगे घुटने टेकने पड़ेंगे। बीच में एक-दो ने कांग्रेस के छात्रदल NSUI के इस बार नोटा (किसी को न दिया गया वोट) से ज्यादा वोटें लेकर आने का जि़क्र किया। इसी बीच एक ने चुटकी लेते हुए कहा कि इस बार लालू यादव की पार्टी भी पहली बार चुनाव लड़ रही है। देखते हैं दहाई का आंकड़ा छुएंगे या नहीं। इतना सुनते ही सब हंसने लगे।

स्टेज के बाहर खड़े पत्रकारों को स्टेज के सामने सिर्फ इसलिए नहीं जाने दिया जा रहा था क्योंकि ब्लाइंड स्टूडेंट्स जेएनयू स्टूडेंट यूनियन में अपने प्रतिनिधित्व की मांग को लेकर यूनिवर्सिटी प्रशासन और इलेक्शन कमीशन के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। एक पत्रकार ने उनके आंदोलन को मीडिया को कवर न करने देने के खिलाफ आवाज़ भी उठाई। ब्लाइंड स्टूडेंट्स का प्रदर्शन खत्म होने के बाद पत्रकारों को स्टेज के आगे बैठा दिया गया और फिर शुरू हुआ जेएनयू छात्रसंघ के अध्‍यक्ष पद के प्रत्याशियों का भाषण।

बापसा, यूनाइटेड लेफ्ट, ABVP और NSUI के प्रतियाशियों से सभी पत्रकारों को निराशा ही हाथ लगी। पत्रकारों को मज़ा आया तो उसी लालू यादव की पार्टी से चुनाव लड़ने वाले लड़के के भाषण में, जिसका वे शुरुआत में मज़ाक उड़ा रहे थे। लड़के ने हिंदी, इंग्लिश और उर्दू भाषा का गज़ब इस्तेमाल करते हुए थोड़ी ही देर में सभी छात्रों और पत्रकारों को अपने खेमे में कर लिया।

लालू यादव के जितने कद का वह लड़का, ठीक उन्हीं के देसी अंदाज़ की तरह जब बोल रहा था तो विरोधी सुन्न थे और जनता तालियां पीट रही थी। उस छोटे लालू का नाम था जयंत जिज्ञासु

जिज्ञासु ने न लेफ्ट को छोड़ा, न राइट को और न ही सेन्टर को। तीनों को बराबर अपने तर्कों से बेझिझक बेनकाब करता चला गया। सामाजिक न्याय के योद्धाओं को नमन करते हुए जयंत ने अपनी बात आरक्षण खत्म करने की मंशा रखने वालों से की। उन्होंने कहा, “ये लोग चाहते हैं कि पीएचडी करने के बाद कहीं नौकरी के बजाय आप कहीं पर फोटोकॉपी की दुकान खोल लें… प्रोफेसर न बनने पाएं। यूनिवर्सिटी में पहले की आरक्षण व्यवस्था होने के कारण दलित-पिछड़ा वर्ग के लोग भी प्रोफेसर बन जाते थे, लेकिन इस नए सिस्टम में आप प्रोफेसर नहीं बन पाएंगे। जिज्ञासु बीच-बीच में लालू की तरह चुटकी भी ले रहा था। उसने कहा, “हमें डाटा नहीं आटा चाहिए. सस्ता आटा चाहिए।”

विचारों के मामले में सभी प्रत्याशी किसी भी तरह की कोई खास छाप न छोड़ पाए, मगर जयंत यहां भी न चुके। उन्होंने बिहार का लेनिन कहे जाने वालेबाबू जगदेव के विचारों को दोहराते हुए कहा, “पहली पीढ़ी के लोग मारे जाएंगे, दूसरी पीढ़ी के लोग जेल जाएंगे और तीसरी पीढ़ी के लोग राज करेंगे। आज मैं आपकी इसी तीसरी पीढ़ी के नुमाइंदे के रूप में अपनी आवाज बुलंद करने के लिए आया हूं। हम वो लोग नहीं है जिनके पेट पर हजारों साल से लात मारा गया, हम वो लोग भी हैं जिनके दिमाग पर भी लात मारा गया, जिनके कान में सीसा पिघलाया गया। आज जब हमारी पीढ़ी विश्वविद्यालयों की चारदीवारी में दाखिल हुई है तो हमें रोका जा रहा है लेकिन आप हमें हमारी शिक्षा से वंचित नहीं कर सकते।”

जयंत की जो सबसे खास बात थी वो थी उनके बोलने का स्टाइल, मुद्दों को लेकर उनकी समझ और तैयारी। उन्होंने लालू यादव को मज़बूत तर्कों के साथ डिफेंड भी किया और उनकी राजनीति की तारीफ भी की, मगर साथ-साथ साधु यादव की गुंडागर्दी पर उन्होंने माफी भी मांगी और उसका बहिष्कार किया।

भाषण देने और अपने विचार स्पष्ट रूप से रख पाने के मामले में बाकी प्रत्‍याशियों ने निराश किया। उन्होंने इतना निराश किया कि उनके बारे में छापने के लिए नया कुछ भी नहीं है। वैसे सबसे ज्यादा ABVP के प्रत्‍याशी को परेशान होना पड़ा। जब वे बोलने आए तो कैंपस की सभी छात्राएं कठुआ-कठुआ और उन्नाव-उन्नाव चिल्लाने लग गईं। करीब 15 मिनट की हूटिंग झेलने के बाद उन्होंने दोबारा बोलना शुरू किया, लेकिन बात जम नहीं पाई। एक निर्दलीय उम्मीदवार बिलावल ने NSUI के प्रत्‍याशी विकास पर तंज कसते हुए कहा, “कहीं आप वही विकास तो नहीं जिसकी मोदीजी बात करते हैं।”

बापसा के प्रत्‍याशी परवीन तर्क रखने के बजाय चिल्लाकर अपनी बातों का वजन बढ़ाने की कोशिश में नज़र आ रहे थे। वहीं लेफ्ट यूनिटी के प्रत्याशी साईंबाला थोड़े घबराए हुए थे और इसी घबराहट में वे नोटबंदी का ठीकरा अरुण जेटली के बजाय पी. चिदंबरम पर फोड़ गए।

खैर वाद-विवाद करते हुए सुबह हो गई थी। नई रोशनी फूटने तक जयंत ने महफ़िल अपने नाम कर ली थी। जो पत्रकार उन्हें 10-20 वोट लायक मान रहे थे, वे सुबह उन्हें 1000 वोट पर हाथ साफ करने वाला खिलाड़ी घोषित कर रहे थे। जब भाषणबाज़ी खत्म हुई तो छात्रों की भीड़ जयंत को बधाई देने के साथ-साथ फोटो तक खिंचवाने लगी।

बाकी वोटर और भैंस खरीदने वाले को कब क्या पसन्द आ जाए कोई नहीं जानता, मगर जयंत के लिए बज रही तालियों ने उन्‍हें इस दंगल का असली पहलवान जरूर घोषित कर दिया है।


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