D.U में फ़ीस का अनर्थशास्त्र- बी.ए के लिए कहीं 3 हज़ार तो कहीं 38 हज़ार!

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रवींद्र गोयल

दिल्ली विश्वविद्यालय में एक ही पढाई पढने के लिए फीस अलग अलग है. सबसे कम फीस 3046 रुपये सालाना है तो अधिकतम फीस 38105 रुपये सालाना है. बाकि कॉलेज इन दो सीमाओं के भीतर फीस वसूलते हैं.

 

दिल्ली विश्वविद्यालय में इस साल 66 संस्थाओं में BA स्तर पर दाखिले किये  जायेंगे. ( दो विश्वविद्यालय विभाग और 64 कॉलेज ). यह विश्वविद्यालय एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है और यहाँ देश का कोई भी छात्र बिना भेदभाव के दाखिला ले सकता है (बेशक आजकल निहित स्वार्थों द्वारा इसके केंद्रीय चरित्र पर सवाल उठाये जा रहे हैं, पर वो कहानी फिर कभी ) इस समय यह विश्वविद्यालय देश के सबसे अच्छे विश्वविद्यालयों में माना जाता है और हर वो छात्र जो यहाँ पढाई का  खर्चा दे सकता है और दाखिला पा जाता है, वो यहाँ पढ़ सकता है. लेकिन वो पढ़ पायेगा की नहीं वो इस बात पर भी निर्भर करेगा की दाखिले की पात्रता के अलावा उसके पास फीस आदि देने की हैसियत भी है या नहीं.

स्तरीय पढाई केवल पढने वाले के लिए ही गरीबी से मुक्ति की राह नहीं खोलती बल्कि व्यापक समाज के लिए भी हितकारी है, इसीलिए आज के दौर में यह सभी जिम्मेवार व्यक्तियों द्वारा स्वीकार किया जाता है की राज्य द्वारा सब के लिए सस्ती शिक्षा की सुविधाएँ मुहैय्या कराई जानी चाहिए. पिछले कुछ सालों में इस सोच से हुक्मरानों ने पलटी मारी है. तर्क है कि सरकारों को और जरूरी काम करने चाहिए और शिक्षा को गैर सरकारी हाथों में सौंप दिया जाना चाहिए. निजी स्वार्थी तत्व भी, इस तर्क से संभावित मुनाफे के मद्देनज़र शिक्षा के निजीकरण के पक्ष में माहौल बनाने में जुटे रहते हैं.

लेकिन पहले की बनायीं हुई संस्थाओं को रातों रात ख़त्म कर देना संभव नहीं है. ऐसी ही संस्था है दिल्ली विश्वविद्यालय. यहाँ कानूनी तौर पर बहुत कम खर्चे में पढाई की जा सकती है. BA की पढाई के लिए  ट्यूशन फ़ीस है मात्र 15 रुपये महीना या 180 रुपये सालाना. और शेष सभी खर्चा भारत सरकार देने के लिए बाध्य है. बेशक यहाँ भी अपनी जिम्मेवारियों से हटने के लिए सरकार  ने पिछले बीस/ पच्चीस सालों से कोई कॉलेज नहीं खोले हैं पर अब तक ट्यूशन फ़ीस नहीं बढ़ा पाई है. ऐसी स्थिति में और चारों  तरफ निजीकरण के बढ़ते शोर में यूनिवर्सिटी अफसरप्रिंसिपल्स और शिक्षकों के एक हिस्से ने फीस बढ़ोतरी के माध्यम से भ्रष्टाचार और हेरा फेरी का एक चोर दरवाज़ा ढूंढ लिया है. आलम यह है एक ही विश्वविद्यालय में एक ही पढाई पढने के लिए फीस अलग अलग है.  और कितना अंतर है इसका अंदाज़ा निम्न से लगाया जा सकता है. सबसे कम फीस 3046 रुपये सालाना है तो अधिकतम फीस 38105 रुपये सालाना है. बाकि कॉलेज इन दो सीमाओं के भीतर फीस वसूलते हैं.

संस्था का नाम

सालाना फीस
 2018 – 19 के लिए

डिपार्टमेंट ऑफ़ जर्मनिक एंड रोमन्स स्टडीज 

3046 रुपये

सैंट स्टीफेंस कॉलेज

38105 रुपये

स्रोत- DU एडमिशन बुलेटिन 2018- 19

तय है की यह राशि छात्रों से विभिन्न मदों में वसूली जाती है. और कितने गैर जरूरी / मनमाने होंगे ये मद इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि JNU में सालाना फीस आज भी केवल 400 रुपये ही है. यदि वहां फीस इतनी कम है और DU में मनमानी फीस तो इसका एक मात्र कारण है की जहाँ JNU के छात्र और शिक्षक फीस के सवाल के महत्व को समझते हैं वहीँ इस सवाल पर DU में शिक्षकों/ छात्रों की कोई चिंता नहीं है. मध्यम वर्ग से आने वाले ये तत्व आम समाज से कितना कटे हुए हैं इसका यह सबूत है. उम्मीद करनी चाहिए की प्रगतिशील छात्र/शिक्षक/कर्मचारी इस सवाल के महत्व को समझेंगे और इस सवाल को मुस्तैदी से उठाएंगे. और मांग करेंगे की DU में मनमानी फीस का चलन बंद हो नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब मजदूर किसान और मेहनतकश तबकों के बच्चे विश्वविद्यालय की शिक्षा से बिलकुल बाहर खदेड़ दिए जायेंगे. ध्यान रहे की सरकार ने उच्चशिक्षा का 30 फीसदी खर्चा छात्र फीस से वसूल करने की अपनी मंशा का इज़हार कर दिया है. पंजाब विश्वविद्यालय में इसको लागु करने की कोशिश भी कुछ दिन पहले हो चुकी है. ये अलग बात है की वहां के छात्रों के प्रबल विरोध के चलते सरकार को पीछे हटना पड़ा था.

लेखक सत्यवती कॉलेज के पूर्व शिक्षक हैं।




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