मुसलमानों को दीमक कहने जैसी अमानवीय बयानबाज़ी एक चुनौती है और इस पर भारत सरकार से बात हो रही है
वाशिंगटन,डीसी (30 जून, 2022) – “भारत में मुसलमानों के नरसंहार के लिए किए जा रहे खुले आह्वान से अमेरिका चिंतित है. अमानवीय बयानबाज़ी से भारतीय अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न बढ़ा है जो अमेरिका के लिए एक चुनौती है.” ये बात अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के अमेरिकी राजदूत रशाद हुसैन ने अमेरिका की राजधानी में अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर आयोजित एक तीन-दिवसीय सम्मेलन में कही.
“हमारे सामने भारतीय मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान हो रहा है. उनके घर तोड़े जा रहे हैं. भारत में खुलेआम हो रही बयानबाज़ी लोगों के प्रति अमानवीय हैं,” हुसैन ने सम्मेलन में बुधवार को कहा. “यहाँ तक कि भारत के एक मंत्री ने मुसलमानों को दीमक कह दिया. जब हमारे सामने ये सब घट रहा है तो फिर ज़रूरी है कि हम इस पर ध्यान दें और आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए काम करें.”
हुसैन ने कहा कि वाशिंगटन डीसी-स्थित अमेरिकी हॉलोकॉस्ट म्यूज़ियम की प्रारंभिक चेतावनी परियोजना के मुताबिक “सामूहिक हत्या के ख़तरे वाले देशों में भारत दूसरे नंबर पर आ चुका है.”
रशाद हुसैन ‘भारत में धार्मिक स्वतंत्रता: अमेरिका के लिए चुनौतियाँ’ विषय पर एक पैनल चर्चा में बोल रहे थे. यह सम्मेलन अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता गोलमेज़ (International Religious Freedom Roundtable) के भारतीय कार्यसमूह (India Working Group) द्वारा आयोजित किया गया था. आईआरएफ़ राउंडटेबल धार्मिक स्वतंत्रता की पैरवी करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा नागरिक समाज समूह है.
हालाँकि हुसैन ने उन भारतीय मंत्री का नाम नहीं लिया जिन्होंने मुसलमानों को दीमक कहा था, हुसैन का इशारा साफ़ तौर पर भारत के गृहमंत्री अमित शाह की ओर था जो भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिप्टी हैं. तीन साल पहले एक चुनावी रैली में भाषण देते हुए शाह ने कहा था कि “अवैध अप्रवासी” (मुसलमानों के लिए इस्तेमाल होने वाला एक हिंदू राष्ट्रवादी कोड) “दीमक” हैं. शाह ने कहा था कि वो ऐसे दीमकों को समुद्र में डुबो देंगे.
2019 में भारतीय संसद से पारित भेदभावपूर्ण क़ानून नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) का भी हुसैन ने उल्लेख किया. अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) के अनुसार भारत के 20 करोड़ मुसलमानों को मताधिकार से वंचित करने और उन्हें राज्यविहीन अनागरिकों में बदलने के लिए CAA का दुरुपयोग किया जा सकता है.
ईसाइयों, सिखों, दलितों और मूल निवासियों से अपनी मुलाक़ात का ज़िक्र करते हुए हुए हुसैन ने कहा कि अमेरिका “भारत के तमाम धार्मिक समुदायों को लेकर चिंतित है,” और चुनौतियों से निपटने के लिए भारतीय अधिकारियों के साथ “सीधे बात” कर रहा है… कोई समाज अपनी क्षमता के अनुसार जी सके, इसके लिए हमें सभी लोगों के अधिकारों को सुरक्षित करना होगा.”
हुसैन ने 2 जून को अमेरिकी विदेश विभाग की अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट 2021 जारी करते वक़्त “भारत में पूजा स्थलों और लोगों पर हमलों” के बारे में अमेरिकी विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकन की टिप्पणी का भी उल्लेख किया.
हुसैन ने इस विचार को खारिज कर दिया कि अमेरिका के पास वैश्विक धार्मिक स्वतंत्रता का आकलन करने का कोई अधिकार नहीं है. “कुछ लोग कहते हैं अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के लिए एक राजदूत के रूप में आप कौन हैं? या दुनिया के अन्य देशों के बारे में आकलन करने के लिए अमेरिका कौन होता है? इसका जवाब ये है कि अमेरिका धार्मिक स्वतंत्रता के आधार पर बना था. हमारे कई संस्थापक स्वयं धार्मिक उत्पीड़न का शिकार हुए थे. हमारे संविधान का पहला संशोधन धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करता है.
“अप्रवासियों के देश के रूप में अमेरिका उन लोगों से बना देश है जो ग्रह के हर कोने से यहाँ आते हैं. जब वे यहाँ आते हैं तो माँग करते हैं कि उनके चुने हुए प्रतिनिधि, उनकी सरकार न केवल यहाँ बल्कि पूरी दुनिया में हमारे मूल्यों के पक्ष में खड़ी हो.”
हुसैन ने कहा कि वह एक भारतीय अप्रवासी हैं और “भारत एक ऐसा देश है जिससे मैं प्यार करता हूँ… कई मायने में, भारत मेरा भी देश है.”
IRF गोलमेज के इंडिया वर्किंग ग्रुप में शामिल संगठनों के नाम हैं अमेरिकी धार्मिक स्वतंत्रता संगठन इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल, हिंदूज़ फ़ॉर ह्यूमन राइट्स, न्यूयॉर्क स्टेट काउंसिल ऑफ चर्चेस, फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन अमेरिकन क्रिश्चियन ऑर्गेनाइज़ेशन्स ऑफ़ नॉर्थ अमेरिका, जुबिली कैंपेन, जस्टिस फ़ॉर ऑल, अमेरिकन मुस्लिम इंस्टीट्यूशन, एसोसिएशन ऑफ़ इंडियन मुस्लिम्स, इंटरनेशनल क्रिश्चियन कंसर्न, सेंटर फ़ॉर प्लूरलिज़्म, यूएस कॉन्फ़्रेंस ऑफ़ कैथोलिक बिशप्स और सनशाइन मिनिस्ट्रीज़.