पहला पन्ना: ट्वीट ही ख़बर है, फोटो भी ट्वीटर से, दानिश पहले पन्ने से ग़ायब!


अखबार के अनुसार कुछ ट्रोल इतने पतित थे कि जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया, “दानिश सिद्दीक का अफगानिस्तान में अपना काम करते हुए तालिबान के हाथों मारा जाना दुखद है लेकिन यह तथ्य कि यहां कुछ (लोग ……) उसकी मौत का जश्न मना रहे हैं क्योंकि दानिश अपने काम में अच्छा था और इसलिए उन्हें परेशान होना पड़ा, निन्दनीय है। नरक में सड़ो दक्षिणपंथी ट्रोल्स।”


संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


आज पाँच में से चार अखबारों में शरद पवार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मुलाकात की खबर है। तीन में बड़ी-बड़ी तस्वीर के साथ सिर्फ द हिन्दू में फोटो नहीं है, केवल खबर है। इंडियन एक्सप्रेस में फोटो टॉप पर है और कैप्शन का शीर्षक है, सहयोग मुलाकात। इसके साथ बताया गया है, संसद के मानसून सत्र से पहले एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की। एनसीपी ने कहा कि उनलोगों ने सहकारिता क्षेत्र पर बात की। आप जानते हैं कि हाल के मंत्रिमंडल विस्तार के समय एक नया मंत्रालय बना है। इसके लिए अखबारों में विज्ञापन के जरिए बधाई दी जा रही है और आभार जताया जा रहे है। ऐसे में अगर शरद पवार जैसे नेता ने मौजूदा राजनीतिक स्थिति में प्रधानमंत्री से मुलाकात की, खुद ट्वीट करके बताया और मुद्दा सहकारिता था तो उसे सहयोग बताने का खेल आप समझ सकते हैं। दिलचस्प यह कि सहकारिता, सहयोग तो हो गया सहकारिता पर क्या हुआ यह शीर्षक में नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस ने विवरण पेज छह पर होने की जानकारी दी है। यहां इस खबर का शीर्षक है, “सत्र के मौके पर पवार ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की, एनसीपी ने कहा, “सहयोगियों को सूचित कर दिया गया है। आप इस शीर्षक का महत्व और अर्थ समझ सकते हैं। 

इस खबर की शुरुआत, “एक आश्चर्यजनक / चौंकाने वाले कदम से हुई है।” पहले पैराग्राफ में सहकारिता की चर्चा नहीं है। पैराग्राफ का अंत होता है, “राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर चर्चा हुई”, दूसरे पैरे में बताया गया है कि पवार ने बैंकिंग नियमन संशोधन अधिनियम में सहकारी समितियों के संदर्भ में कुछ विसंगतियों (inconsistencies) पर ध्यान खींचा है। अखबार ने यह भी बताया है कि यह संशोधन गए साल संसद में पास हुआ था। इसके बाद नए मंत्रालय की चर्चा है। इसमें यह भी कि एनसीपी समेत कई दलों ने इसे संदेह के नजरिए से देखा है। मुझे लगता है और मैं गलत हो सकता हूं कि मुलाकात का मुख्य कारण यही होगा और यह मिलने का बहाना नहीं हो सकता है क्योंकि इसकी जरूरत नहीं है। ऐसे में मूल मुद्दे को छोड़कर बाकी सब बातें राजनीति है। मुलाकात की खबर तो कल ही मिल गई थी आज बाकी जानकारी मिलती तो अखबारों में दिलचस्पी रहती। यह दिलचस्पी शीर्षक से जगाई जा सकती है। वरना जो चर्चा कल सोशल मीडिया में या टेलीविजन पर हुई उसी को फिर पढ़ने के लिए कोई अखबार क्यों खरीदेगा? और खरीदेगा तो कितने दिन? फिर भी खबर में विसंगतियों की चर्चा नहीं है, यह जरूर बताया गया है कि संशोधन का इरादा नेक है और यह सब ट्वीट से ही लिया गया है। मुझे नहीं पता ट्वीट किए गए पत्र में विसंगतियों का जिक्र है कि नहीं, लेकिन मुझे लगता है कि इस खबर का सबसे जरूरी अंश वही था। बेशक, यह खबर लिखने की शैली है और इसका कोई मानक नहीं है। 

हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर है तो एक्सप्रेस से बड़ी पर फोल्ड के नीचे। इसके कैप्शन में दोनों नेताओं की मुलाकात के अलावा बताया गया है कि एनसीपी ने इस मुलाकात से संबंधित राजनीतिक प्रभावों और इनसे जुड़ी अटकलों को खारिज किया और कहा कि पवार ने राष्ट्रीय हित के कई मुद्दों पर चर्चा की। यह बयान महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ गठजोड़ के बीच दरार की रपटों के समय आया है। यहां अंदर के पन्ने पर शरद पवार की फोटो के साथ बाईलाइन वाली एक खबर ऐसे छापी गई है जैसे उनसे मुलाकात पर आधारित हो। तीसरे पैरे में बताया गया है कि यह खबर पवार के ट्वीट या उस पत्र पर आधारित है जो उन्होंने प्रधानमंत्री को लिखी है। बाईलाइन वाली इस खबर में अखबार ने राजनीतिक विश्लेषक, हेमंत देसाई के हवाले से लिखा है, यह मानना गलत होगा कि इस मुलाकात का कोई राजनीतिक असर नहीं होगा। आज के समय में पवार ने पत्र नहीं भेजकर खुद मिलने का निर्णय किया तो निश्चित रूप से उसका कोई आधार या कारण होगा। राजनीति तो हो ही सकता है। सही कारण वही बता सकते हैं या उनकी पार्टी या महाराष्ट्र सरकार, जिसमें वे शामिल हैं। राजनीतिक विश्लेषक तो राजनीति देखेगा ही और असर न हो तो भी राजनीति ही है। मुद्दा यह है कि शरद पवार क्यों मिले? एक जवाब हो सकता था, सहकारिता मंत्रालय और बैंकिग अधिनियम की विसंगतियों पर बात करने के लिए। इसे छोड़कर मामला शरद पवार का मिलना बना दिया गया है। निश्चित रूप से वह भी महत्वपूर्ण है लेकिन मिलने का निर्णय यह सब सोच समझकर ही लिया गया होगा।  

द टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर फोटो के साथ पहले पन्ने पर है। यहां जो शीर्षक है वह इस खबर लेखन शैली से प्रेरित लगती है, “पवार-मोदी की मुलाकात से हलचल, एनसीबी ने भाजपा के साथ गठजोड़ की संभावना से इनकार किया। द हिन्दू में फोटो के बिना साफ-सीधी खबर है – शरद पवार प्रधानमंत्री से मिले, पत्र सौंपा। मुलाकात 50 मिनट से ऊपर चली। खबर में यह भी बताया गया है कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने (भी) ट्वीट कर  यह सूचना दी। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर इंडियन एक्सप्रेस से बिल्कुल अलग और नई कही जा सकती है। और इस शैली में यह मुद्दा ही नहीं रहा कि पवार प्रधानमंत्री से किसलिए मिले, मिले तो वह मुद्दा बनेगा कि नहीं। यहां जो हुआ वह बताया गया है और नहीं लगता है कि कुछ छिपाया गया या अधूरा है। इसमें जो हुआ उसे बयान कर दिया गया है। वह आपके काम का हो या नहीं नई जिज्ञासा पैदा नहीं करता है। खबर पूरी लगती है। 

अफगानिस्तान में भारतीय पत्रकार की मौत अंतरराष्ट्रीय स्तर की खबर है। लेकिन हमारे यहां इस खबर को लेकर अलग ही तरह के संस्कार सामने आ रहे हैं। श्रद्धांजलि, शोकसभाओं की कोई खबर आज पहले पन्ने पर नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया अपवाद है। आज हिन्दुस्तान टाइम्स और इंडियन एक्सप्रेस में जब कांवड़ यात्रा टाले जाने की खबर लीड है तो टाइम्स ऑफ इंडिया ऑफ इंडिया ने पाकिस्तान में अफगानिस्तान के राजदूत की बेटी का अपहरण और छोड़ दिए जाने की खबर लीड है। इसके साथ टीओआई ने बताया है कि तालिबान ने दानिश की मौत पर अफसोस जताया है। द हिन्दू में भी अफगानिस्तान युद्ध से संबंधित खबर लीड है। 

द टेलीग्राफ हमेशा की तरह आज भी सबसे अलग है। आज यहां लीड का शीर्षक है, शक्तिशाली भारतीय सत्ता स्टेन से क्यों डरती है। यह झारखंड के झरिया स्थित बनकटी कुष्ठ कॉलोनी में फादर स्टेन स्वामी को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित कार्यक्रम की खबर है जो किसी ऑडिटोरियम में आयोजित नहीं हुआ था बल्कि एक पेड़ पर कील ठोककर टांगी गई फादर स्टेन स्वामी की तस्वीर पर फूल चढ़ाने और उन्हें श्रद्धांजलि देने का आयोजन था। अखबार ने लिखा है, वहां मौजूद राहुल शर्मा ने कहा, फादर स्टेन स्वामी कभी यहां आए नहीं थे, हम सुने हैं उनके बारे में। खाना और पैसा तो बहुत लोग देते हैं पर गरीबों के लिए मरना हमने फादर स्वामी से सीखा है। यहां कोई 35 परिवारों के 200 लोग रहते हैं। अखबार ने लिखा है, 35 साल के आस-पास का राहुल पेशे से पेंटर है और इस अखबार को साउंड बाइट नहीं दे रहा था। वह आस-पास के लोगों को मौके के बारे में बता रहा था तभी अखबार का रिपोर्टर वहां पहुंचा और वह खबर आज लीड है। दूसरी तरफ ट्वीट को लीड बनाने की कोशिश आप पढ़ चुके हैं। 

द टेलीग्राफ ने अपनी दूसरी प्रमुख खबर में बताया है कि संपादकों ने दानिश के खिलाफ घृणा अभियान की निन्दा की। अखबार ने लिखा है, दानिश सिद्दीक को दुनिया भर से मिल रही श्रद्धांजलि और भारतीय शहरों में मोमबत्ती जलाने के बीच एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया का एक वाक्य सबसे अलग है। ” …. सोशल मी़डिया के एक हिस्से में उनके खिलाफ चलाए जाए रहे शातिर और बेहद अफसोसनाक नस्लवादी अभियान से गिल्ड बेहद परेशान है…..।” अखबार ने लिखा है, दानिश सिद्दीक को निशाना बनाने वाले कुछ ट्रोल्स ने कहा है कि भारत में कोविड के दूसरे चरण से संबंधित उनकी कुछ तस्वीरों ने देश को बदनाम किया है। अखबार के अनुसार कुछ ट्रोल इतने पतित थे कि जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया, “दानिश सिद्दीक का अफगानिस्तान में अपना काम करते हुए तालिबान के हाथों मारा जाना दुखद है लेकिन यह तथ्य कि यहां कुछ (लोग ……) उसकी मौत का जश्न मना रहे हैं क्योंकि दानिश अपने काम में अच्छा था और इसलिए उन्हें परेशान होना पड़ा, निन्दनीय है। नरक में सड़ो दक्षिणपंथी ट्रोल्स।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।