मणिपुरः खुद पत्रकार रह चुके मुख्यमंत्री ने आखिर क्यों किया इम्फ़ाल फ़्री प्रेस पर मानहानि का केस?



फ़रवरी 1 की सुबह इम्फ़ाल फ़्री प्रेस (IFP) के लिए अपने रोज़मर्रा के काम को करने के बजाय पत्रकार बाबी शिरीन अपने प्रकाशक मयंगबाम सत्यजीत सिंह के साथ अदालत पहुँचीं. वहाँ पहुँचने पर दोनों को गिरफ़्तार कर लिया गया और फिर तीस-तीस हज़ार रुपए (US$420) के मुचलके पर उन्हें ज़मानत दे दी गयी. उनका अपराध था, राज्य के मुख्यमंत्री का एक राष्ट्रीय स्तर पर हुए पोल में रैंकिंग के बारे में लिखना.

IFP अंग्रेज़ी भाषा की एक निजी पत्रिका है जिसका संचालन मणिपुर की राजधानी, इम्फ़ाल से होता है. मणिपुर भारत के उत्तर-पश्चिम में म्यांमार से सटा एक छोटा सा राज्य है. CPJ और स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में मुख्यमंत्री नोंगथोमबाम बिरेन सिंह की लोकप्रियता पर रिपोर्टिंग करने के लिए राज्य सरकार ने पत्रिका के खिलाफ़ आपराधिक मानहानि का मुक़दमा दर्ज कर दिया. पत्रिका के एक वरिष्ठ संपादक पाओजेल चाओबा ने CPJ से फ़ोन पर बातचीत में बताया कि मणिपुर उच्च न्यायालय ने इस मामले में सुनवाई को आगे बढ़ाया है. उन्होंने बताया कि उनके दो साथियों को निचली अदालत में सरैंडर कर ज़मानत लेनी पड़ी. उनके साथ IFP के एक पूर्व-संपादक प्रदीप फ़ानजौबाम का नाम भी शिकायत में लिखा गया है. चाओबा ने यह भी बताया कि मध्य-फ़रवरी में इस मामले पर सुनवाई हुई थी.

CPJ ने सितंबर 2019 में इम्फ़ाल में बिरेन सिंह से इस मामले में बात की. CPJ ने करीब एक दर्जन संपादकों और वरिष्ठ पत्रकारों से भी बात की पर कोई भी रेकॉर्ड पर इस मामले में कुछ भी करने को राज़ी नहीं हुआ. इनमें से कई ने यह माना कि आपराधिक मुक़दमा दर्ज होने के डर से वह सरकार के खिलाफ़ कुछ भी लिखने से बचते हैं. यह डर सिर्फ़ इस राज्य तक सीमित नहीं है. CPJ ने ऐसे कई मामलों के बारे में लिखा है जहाँ मानहानि के मुकदमे के द्वारा, पत्रकारों और मीडियाघरों को डराया और परेशान किया गया है.

मणिपुर ने भारत में सम्मिलित होने के बाद करीब एक दशक तक अलगाववादी आंदोलनों को देखा है, जिनका अंत 2018 में संघर्ष विराम के बाद हुआ. अलगाववादियों और सरकार के बीच फंसे पत्रकारों पर दो-तरफ़ा दबाव बना रहता था; 2013 में अलगाववादियों के दबाव के खिलाफ़ प्रदर्शन में राज्य कि सभी पत्रिकाओं ने 4 दिन के लिए प्रकाशन बंद कर दिया था.

स्थानीय पत्रकारों ने CPJ को बताया कि संघर्ष विराम के बाद से हालात कुछ सुधरे हैं, हालांकि हाल ही में दो मणिपुरी पत्रकारों पर सोशल मीडिया पर अपने राजनीतिक विचार लिखने कि वजह से कानूनी कार्यवाही की गयी है. आउटलुक मैगज़ीन के अनुसार, स्थानीय टीवी पत्रकार किशोर चंद्रा को राष्ट्रद्रोह के मामले में 134 दिन जेल में बिताने पड़े क्योंकि उन्होंने राज्य की भारतीय जनता पार्टी की सरकार के खिलाफ़ सोशल मीडिया पर अपने विचार लिखे थे. उन्हें अप्रैल 2019 में जेल से रिहा कर दिया गया.

स्क्रोल.इन के अनुसार, दिसंबर में एक वीडियो ब्लौगर आर. के. एचानथोईबी को राज्य सरकार और मुख्यमंत्री की आलोचना करने के लिए गिरफ़्तार कर लिया गया. फ़रवरी में एचानथोईबी ने CPJ को बताया कि हालांकि उन्हें ज़मानत पर छोड़ दिया गया है पर मानहानि के मुक़दमे में जाँच अभी भी जारी है. CPJ ने वांगखेम और एचानथोईबी पर लगे आरोपों के बारे में मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार और सचिव से टिप्पणी मांगी जिसका इस लेख के प्रकाशन तक कोई जवाब नहीं आया है.

क़ानूनी कार्यवाही के डर से अपना नाम छिपाते हुए एक मणिपुरी पत्रिका के संपादक ने CPJ को बताया कि विवाद से बचने के लिए वह राज्य सरकार की आलोचना करने से कतराते हैं. उन्होंने कहा कि, “स्थानीय BJP सरकार अतिसंवेदनशील हैं.”

“[इम्फ़ाल] फ़्री प्रेस इस मामले में बहुत बोल्ड रहा है,” उन्होंने CPJ को बताया. “हमने ऐसा नहीं किया.”

CPJ को मिले दस्तावेज़ों के अनुसार, मुख्यमंत्री के सचिव के निर्देशों पर मणिपुर गृह मंत्रालय ने सरकारी वकील को IFP के पत्रकारों के खिलाफ़ मानहानि का मुक़दमा 27 अक्टूबर, 2018 को दर्ज करने का आदेश दिया. इस आदेश के अनुसार, पत्रकारों पर “जातियों के बीच शत्रुता और नफ़रत” मुख्यमंत्री के खिलाफ़ पैदा करने का आरोप है. भारतीय दंड सहिंता के अनुसार मानहानि के मामले में दो साल की जेल और जुर्माना हो सकता है.

नई दिल्ली स्थित प्राइवेट न्यूज़ चैनल इंडिया टुडे द्वारा भारत वर्ष के ‘सबसे अच्छा प्रदर्शन’ करने वाले मुख्यमंत्री की पहचान करने के लिए कराये गए राष्ट्रव्यापी सर्वे के परिणामों का IFP के इस लेख में विश्लेषण किया गया था.

शिरीन ने CPJ को फ़ोन पर बताया कि, “मुझे यह विश्वास नहीं हुआ कि मुख्यमंत्री इस छोटे से मामले को तूल देंगे.” 27 वर्षीय पत्रकार, जिसने IFP के साथ एक वर्ष से भी कम समय के लिए काम किया है, कहा कि यह मामला शुरुआत में उनके लिए एक बड़ा सदमा था. “इसकी वजह से मैं डर गयी थी और अपने काम पर ध्यान नहीं दे पा रही थी.”

सितंबर 2019 में CPJ से एक इंटरव्यू के दौरान मुख्यमंत्री बिरेन सिंह ने पत्रिका पर जानबूझ कर सर्वे की ग़लत व्याख्या कर उनकी छवि ख़राब करने का आरोप लगाया. “आलोचना करना सही है, पर उनमें मर्यादा होनी चाहिए.” मुख्यमंत्री ने कहा. “वह मेरा मज़ाक उड़ा रहे हैं, मैं यह कैसे होने दे सकता हूँ?”

बिरेन सिंह स्वयं नहारोलगी थौदांग नामक मणिपुरी पत्रिका के संपादक रह चुके हैं. अप्रैल 2000 में एक स्थानीय मानवाधिकार कार्यकर्ता का उस समय की राज्य सरकार की आलोचना करते हुए उन्होंने एक बयान छापा था, जिसके लिए उन्हें हिरासत में लिया गया था. ख़बरों और मानवाधिकार संगठनो के अनुसार उन्होंने 20 दिन हिरासत में बिताए थे. दो साल बाद उन्होंने राजनीति में कदम रखा और कुछ समय बाद राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली.

पूर्व पत्रकार होने के नाते बिरेन सिंह के मीडिया में अच्छे संबंध हैं. CPJ के मणिपुर दौरे के समय, बिरेन सिंह ने ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के 46वें स्थापना दिवस पर भाषण दिया था. उस समय उन्होंने पत्रकारों के लिए अपनी सरकार द्वारा स्वास्थ बीमा योजना का ज़िक्र भी किया था.

हालांकि, मुख्यमंत्री ने यह माना कि अभिव्यक्ति की आज़ादी एक संवैधानिक हक़ है जिसकी रक्षा होनी चाहिए पर इसकी भी एक सीमा है. उन्होंने CPJ को यह भी बताया कि, “जब अनुच्छेद 19 का फ़ायदा उठाते हैं तब कुछ लोग नैतिकता को भूल जाते हैं.”

CPJ ने उनसे पूछा कि वह खुद भी अपनी पत्रकारिता के लिए सज़ा पा चुके हैं. “मैं खुद जेल गया हूँ,” उन्होंने कहा.

“बिरेन सिंह भूल चुके हैं कि वह ख़ुद भी एक पत्रकार थे,” शिरीन ने CPJ से कहा. “लेकिन मैं यह नहीं भूली हूँ और मैं इस केस को लड़ने के साथ-साथ अपना काम भी जारी रखूंगी.”

IFP के पूर्व संपादक फ़ानजौबाम ने CPJ को बताया कि इस मानहानि के मुकदमे से पूरी मीडिया को संदेश दिया गया है कि अगर वह नहीं सुधरेंगे तो उन्हें परिणाम भुगतने होंगे.

चूँकि केस दर्ज हो चुका था, IFP द्वारा क़ानूनी खर्चे और अन्य लागतों में लगभग तीन लाख (US$4,900) रूपये ख़र्च किए जा चुके हैं. पाओजेल छाओबा ने CPJ को बताया कि नई दिल्ली स्थित एक मानवाधिकार वकील ने पत्रिका कि पैरवी करने की पेशकश की लेकिन, पत्रिका उनकी हवाई यात्रा का ख़र्च नहीं उठा सकती थी क्योंकि मामला मुख्यमंत्री से संबन्धित था तो किसी स्थानीय वकील को ढूँढना भी मुश्किल था.

“पिछले डेढ़ साल से हम अपना काम करने के बजाय वकीलों को ढूँढने, उनकी फ़ीस का पैसा इकट्ठा करने और केस लड़ने की योजना बनाने में लगे हुए हैं,” छाओबा ने बताया. “सरकार के खिलाफ़ मुक़दमा लड़ना आसान नहीं हैं,” उन्होंने कहा. “लेकिन हम अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करेंगे.”


कुणाल मजूमदार CPJ के भारतीय संवाददाता हैं जो नई दिल्ली में रहते हैं. अलिया इफ़्तिख़ार CPJ कि उच्च एशिया शोधकर्ता हैं जो न्यूयार्क में रहती हैं

Photo credits: इम्फ़ाल फ़्री प्रेस के दफ़्तर में पत्रकार बाबी शिरीन. मणिपुर के मुख्यमंत्री ने पत्रिका पर शिरीन द्वारा 2018 में लिखे एक लेख को ले कर आपराधिक मानहानि का मुक़दमा किया है. (IFP/तेलहीबा)

Photo credits: सितंबर 2019 में मणिपुर प्रेस क्लब के स्थापना दिवस समारोह में मणिपुर के मुख्यमंत्री नोंगथोमबाम बिरेन सिंह (दायें से दूसरे) (CPJ/ आलिया इफ़्तिख़ार)


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