आज पांचों अखबारों में दो खबरें पहले पन्ने पर जरूर हैं। बाकी की खबरें भर्ती की हैं और ऐसे मौकों पर यह देखना दिलचस्प होता है किन खबरों को प्राथमिकता दी जाती है। जो खबरें हैं वो तो हैं ही पर कुछ नया, अलग, खोजी अब अखबारों में कम होता है। इस लिहाज से द टेलीग्राफ ने आज 12वीं की परीक्षा के बिना बच्चों को दिए जाने वाले अंक के फार्मूले की चर्चा पहले पन्ने पर विस्तार से की है। सभी अखबारों ने जब कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने फॉर्मूले को मंजूरी दे दी है और शीर्षक में ही बताया है कि 31 जुलाई के पहले परिणाम भी आ जाएंगे (इंडियन एक्सप्रेस, और दोनों टाइम्स) तो द टेलीग्राफ ने लिखा है कि इसे सिद्धांत रूप में स्वीकार किया गया है। अंतिम निर्णय छात्रों का पक्ष सुनने के बाद होगा। अखबार ने पहले पन्ने पर सीबीएसई और आईएससी की योजना की चर्चा दो अलग लंबी खबर के रूप में की है।
इन खबरों के अनुसार सीबीएसई की योजना कुछ और है जबकि आईएससी की योजना में स्कूल के अंकों को भी तरजीह देने की है। मैं खबर के विस्तार में नहीं जाकर सिर्फ यह बताना चाह रहा हूं कि जब पहले पन्ने के लिए जरूरी और निर्विवाद लीड नहीं होती है तो अखबारों ने कैसी या किन खबरों का सहारा लिया है। इस श्रेणी में टेलीग्राफ की तीसरी खबर है, सरकार ने 1994 के केबल टेलीविजन नेटवर्क रूल्स में बदलाव किया है और मोटे तौर पर यह नए आईटी कानूनों की तर्ज पर हैं। यह खबर मुझे किसी और अखबार में नहीं दिखी। मुझे लगता है कि आज उपलब्ध जगह का सबसे अच्छा उपयोग द हिन्दू ने किया है। आज मुझे हिन्दू की जो खबरें पसंद आईं और दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं हैं वे इस प्रकार हैं :
- तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन पद संभालने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पहली बार दिल्ली में मिले और मांग की कि राज्य में बंद पड़ी टीका इकाइयों का परिचालन शुरू कराया जाए। पहली मुलाकात और इस मांग के कारण निश्चित रूप से यह पहले पन्ने की खबर है। राज्य के लिए उन्होंने और भी मांगें रखी हैं।
- पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में चुनाव के बाद हिंसा की घटनाओं से इनकार किया है और कहा है कि राज्यपाल को वापस बुलाने के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री को तीन बार पत्र लिखा है। राज्य में हिंसा की खबरों को जिस ढंग से तूल दिया गया उसके बाद मुख्यमंत्री का पक्ष और राज्यपाल पर आरोप, तीन बार पत्र लिखने का दावा सब महत्वपूर्ण है और पहले पन्ने के लिहाज से अच्छी खबर है।
- राम विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान की अध्यक्षता वाली पार्टी में आंतरिक तख्तापलट के बाद अध्यक्ष बदल जाने की खबर आज के राजनीतिक माहौल में महत्वपूर्ण है। यह खबर इसलिए भी खास है कि बिहार विधान सभा चुनाव में पार्टी की खास भूमिका थी और चिराग की राजनीति पर हर किसी की विशेष राय रही है।
- दिल्ली के पास हरियाणा के फरीदाबाद में अरावली की पहाड़ियों में अवैध निर्माण को रोकने की कोशिशें नाकाम रहीं और सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें गिराते रहने का आदेश दिया है। दिल्ली में पर्यावरण और राजनीति के साथ सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर नजर रखने वालों के लिए यह भी एक महत्वपूर्ण खबर है।
- पांचवीं खबर आज की सामाजिक स्थिति की है। और दिल्ली की है इसलिए भी महत्वपूर्ण है। वैसे भी जब दिल्ली में ऐसा हो रहा है तो बाकी देश की क्या दशा होगी। आपसी सहमति से बच्चा बेचने और खरीदने के बीच भुगतान को लेकर विवाद के बाद अपहरण की शिकायत और छह लोगों की गिरफ्तारी – देश में कानून के राज की हालत बयान करता है। पर अखबारों को इसकी खबर ही नहीं है या हो भी तो प्रमुखता से नहीं छपने का एक मतलब यह भी है कि बहुत सारे लोगों के लिए यह महत्वपूर्ण नहीं है।
टाइम्स ऑफ इंडिया में आज आधा पन्ना विज्ञापन है फिर भी कुम्भ की फर्जी जांच रिपोर्ट के खिलाफ एफआईआर की खबर ट्वीटर पर एफआईर की खबरों के मुकाबले निश्चित रूप से ज्यादा महत्वपूर्ण है। दिल्ली सरकार ने राशन की होम डिलीवरी की योजना को अभी मरने नहीं दिया है और मुख्यमंत्री ने कहा है कि अब इसे अंतिम रूप मिल गया है। आज टीओआई और एचटी के पहले पन्ने की खास खबरों में है।
इंडियन एक्सप्रेस ने आज सरकार की पूरी कोशिश के बावजूद जेल से रिहा कर दिए गए तीन छात्र–छात्राओं की खबर का शीर्षक लगाया है, “तिहाड़ के बाहर गले लगना खुशी मनाना : अभी भी लगता है कि कोई आएगा, हमें गिरफ्तार कर लेगा …. सड़कें, लोगों को देखकर खुशी हो रही है।” इसके साथ नताशा और देवांगना की बिना मास्क वाली फोटो देखकर तो मुझे भी डर लग रहा है कि कहीं दोनों इस बिना पर फिर गिरफ्तार न कर लिया जाए। सोशल डिस्टेंसिंग के जमाने में गले लगना तो अपराध है ही। “ मुझे लगता है कि यह एक गंभीर खबर को हल्का बनाने वाला शीर्षक है। जेल से छूटने पर गले लगना और खुशी मनाना आम बात है। यह खबर नहीं होती है। खबर तो रिहाई की ही होती है और इस मामले में रिहाई ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि पुलिस ने अपनी हार्दिक इच्छा व्यक्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
इंडियन एक्सप्रेस में एक और खबर है जो बताती है कि कि भारत में ट्वीटर के मुखिया को ढूंढ़ती हुई दिल्ली पुलिस मुंबई पहुंच गई थी और 31 मई को उनसे दफ्तर में दो घंटे पूछताछ करके आई है। पुलिस पहले उन्हें गुड़गांव ऑफिस में तलाश रही थी और 24 मई को कार्यालय बंद मिला था तो वह मुंबई पहुंच गई। 18 दिनों तक यह खबर मीडिया में नहीं आई और आज पहले पन्ने पर छपी है तो इसका अपना महत्व है। हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर आज मुझे कोई भी खबर उल्लेखनीय नहीं लगी। वैसे, राशन की होम डिलीवरी वाली खबर यहां भी है।
एक खबर नया इंडिया की
ब्लू टिक – वक्त को खाता नया नशा। वैसे तो गोदी मीडिया आपको बता रहा है कि सरकार की ट्वीटर से छिड़ी हुई है और उसने सरकार को परेशान कर रखा है। इसका आधार आईटी मंत्री के ट्वीट हैं। लेकिन मेरा मानना है कि सरकार चाहे तो ट्वीटर या किसी भी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म को बोरिया बिस्तर समेटना पड़ेगा। कल यहां मैंने लिखा भी था। ऐसा नहीं हो रहा है तो सिर्फ इसलिए कि सरकार नहीं चाहती है। दरअसल वह चाहती है कि ट्वीटर भी उसके नियंत्रण में रहे। वैसे ही जैसे फलाना अखबार और ढिमकाना चैनल है। इस संबंध में श्रुति व्यास ने नया इंडिया में लिखा है, बूढ़ा या जवान, शहरी या आम आदमी, ग्रामीण या सूट टाई वाला– हर कोई अपने फोन पर (और जियो के सौजन्य से भी) अपने सोशल मीडिया अकाउंट देख रहा है, वर्चुअल विश्व में मशहूर होने का हर आम और खास तरीका आजमा रहा है।… अपने को महान, खास बनाने की यह भूख भी नए नशेड़ी बना लोगों को भटका रही है, खोखला बना रही है। श्रुति ने नहीं लिखा है पर मैं समझता हूं कि सरकार ऐसा चाहती है कि लोग इसी में उलझे रहें।
नए चर्चित आईटी कानून से संबंधित तमाम विशेषताओं में एक है, स्वैच्छिक उपयोगकर्ता सत्यापन तंत्र। इसके तहत कहा गया है, “स्वैच्छिक रूप से अपने खातों का सत्यापन कराने के इच्छुक उपयोगकर्ताओं को अपने खातों के सत्यापन के लिए एक उचित तंत्र उपलब्ध कराया जाएगा और सत्यापन का प्रदर्शन योग्य और दृश्य चिह्न उपलब्ध कराया जाएगा।” सरकारी विज्ञप्ति पढ़ने के बाद से मैं समझ नहीं पा रहा था कि यह सरकार का काम क्यों है या सरकार को इसकी कोशिश क्यों करना चाहिए या नियम भी क्यों बनाना चाहिए। अभी तक मैं समझता था कि यह (ब्लू टिक) सेलीब्रिटीज, नामी–गिरामी या तोप किस्म के लोगों के लिए हैं जिनके लाखों फॉलोअर हो सकते हैं। इस कानून (या सरकारी जरूरत) से मुझे बताया जा रहा है कि बेटा, तुम भी नामी हो गए हो अपना नाम स्थापित करने के लिए निकल लो या कोशिश तो करो। इससे मुझे लाभ हो या न हो सरकार मुझे यह प्रतिष्ठा दिलाने के लिए “कृतसंकल्प” है। जब ऑक्सीजन बिना लोग मर रहे थे तो मेरी जान सूखी हुई थी फिर भी। दिलचस्प यह है कि जांचने के लिए मैंने कल रात (फेसबुक पर) आवेदन किया और जैसा श्रुति ने लिखा है, तुरंत बिना कोई कारण बताए मेरा आवेदन खारिज कर दिया गया। अब सरकार मेरी सहायता के लिए तैयार है। मैं मांग नहीं रहा हूं क्योंकि मैं जानता हूं कि मुझसे कम लिखने वाले, बाद में फेसबुक पर आए और कम मित्र या फॉलोअर वालों को ब्लू टिक मिल चुका है और मुझसे बहुत ज्यादा पढ़े जाने या फॉलोअर वालों को नहीं मिला है। इसलिए यह मुद्दा है ही नहीं और इसे सोशल मीडिया मंच के विवेक पर छोड़ दिया जाना चाहिए पर सरकार का दिल है कि मानता ही नहीं। लिंक पढ़िए और समझिए कि इस सरकार की प्राथमिकता क्या है। इतना समझ जाएंगे तो यह भी समझ जाएंगे कि क्यों है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध पत्रकार हैं।