मोदी जी को बदनाम किया इसलिए जेल जाइए (समर्पण कीजिये), इतनी जल्दी क्यों है, आसमान गिर जाएगा?

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


 

गारंटी लेते – देते पीएम और सुंदर तस्वीर दिखाते अलग-अलग अखबार

चौंकाने वाली तस्वीर द टेलीग्राफ ने पीआईबी की फोटो और असम के मुख्यमंत्री के बयान से दिखाई! 

 

आज के अखबारों में महाराष्ट्र में बस दुर्घटना में 25 यात्रियों के जलकर मर जाने की खबर प्रमुखता से है तो ज्यादातर खबरें सरकारी प्रचार ही हैं। ऐसी खबरों में आज का एक शीर्षक है, “यह वादा नहीं मोदी की गारंटी है : प्रधानमंत्री” (नवोदय टाइम्स)। मतलब 15 लाख वादा था जो जुमला हो गया। अब मोदी की गारंटी नई है …. शायद अगले पांच-दस साल कुर्सी पर कब्जे के लिए। कहने की जरूरत नहीं है कि यह मतदाताओं को बेवकूफ समझने के अलावा कुछ और नहीं है तथा इसपर रोक लगनी चाहिए। नवोदय टाइम्स की लीड फ्रांस की हिंसा है जो मेरे दूसरे अखबारों में लीड नहीं है। अमर उजाला में जीएसटी संग्रह जून में 12 फीसदी बढ़कर 1.61 लाख करोड़ हो जाने की खबर टॉप पर लगभग सात कॉलम के बराबर में छह कॉलम में तान दी गई है। लीड भी प्रचार ही है, कांग्रेस पर पीएम मोदी का कटाक्ष …. गारंटी बांटने वालों की नीयत में खोट …. रहें सतर्क – फ्लैग शीर्षक के साथ मुख्य शीर्षक है, किसानों पर हर वर्ष 6.5 लाख करोड़ खर्च …. यह मोदी की गारंटी : पीएम। 

सरकारी खबरों के प्रचार के इस मौसम में हिन्दुस्तान टाइम्स में बस दुर्घटना की खबर लीड है जबकि मध्य प्रदेश में प्रधानमंत्री की गारंटी की खबर टॉप पर है, फोटो के साथ। शीर्षक हिन्दी में कुछ इस तरह होता, ‘कोई झूठा वादा नहीं’ : प्रधानमंत्री ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस पर निशाना साधा। आपको यह सरकारी प्रचार का साधारण मामला लग सकता है। हो सकता है कुछ लोग कहें कि प्रधानमंत्री ने कहा है तो खबर है ही। मैं इससे पूरी तरह सहमत हूं। पर मुद्दा यह है कि प्रधानमंत्री को ही रेवड़ी बांटने से एतराज होता है और उन्हीं के बनाए दिल्ली के उपराज्यपाल ने अभी हाल में कहा था कि, दिल्ली के लोगों को मुफ्त की चीजों की आदत पड़ गई है। यह अलग बात है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल इसके लिए उनकी खबर ले चुके हैं पर प्रधानमंत्री जब किसानों पर हर वर्ष 6.5 लाख करोड़ खर्च करने की बात करते हैं और मोदी की गारंटी बताते हैं तो सवाल भी उठने चाहिए। 

आपको पता होगा कि कांग्रेस पार्टी ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान ‘गारंटी’ दी थी कि सत्ता में आने पर बीपीएल परिवार के प्रत्येक सदस्य को 10 किलो चावल मुफ्त दिया जाएगा। पांच गारंटी में शामिल ‘अन्न भाग्य’ योजना को एक जुलाई से शुरू किया जाना था। लेकिन कर्नाटक सरकार चावल नहीं खरीद पाई और रास्ते में रोड़े अटकाए गए तो सरकार ने चावल की खरीद और आपूर्ति होने तक प्रत्येक किलोग्राम चावल के लिए लाभार्थियों को 34 रुपये देने का फैसला किया है। ऐसे में प्रधानमंत्री कांग्रेस पर तंज कस रहे हैं और वह खबर बन रही है तो रेखांकित किया जाना चाहिए। खासतौर से इसलिए भी कि प्रधानमंत्री 2014 से पहले के अपने वादे भूल गए लगते हैं, प्रेस कांफ्रेंस नहीं करते, मन की बात करते हैं और दूसरी सरकार को जनसेवा या गारंटी पूरी करने में मदद नहीं करके उसपर तंज कसते हैं। 

ऐसे समय में और ऐसी खबरों के बीच, एक खबर है, गुजरात हाईकोर्ट ने तीस्ता को बेल देने से मना किया, दो जजों की सुप्रीम कोर्ट की बेंच बंट गई तो तीन जजों की बेंच ने राहत दी (टाइम्स ऑफ इंडिया)। कहने की जरूरत नहीं है कि शीर्षक से ही यह ‘खबर’ लगती है। हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है, द हिन्दू में अंदर होने की सूचना है पर इंडियन एक्सप्रेस में लीड है। द टेलीग्राफ ने इसे अपने अलग अंदाज में दो और खबरों के साथ लीड का हिस्सा बनाया है। हिन्दी के मेरे दोनों अखबारों में भी यह खबर पहले पन्ने पर है। नवोदय टाइम्स में दो कॉलम में और अमर उजाला में चार कॉलम में। 

ट्वीटर के मामले में कल मैंने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले की चर्चा की थी और आज अब यह गुजरात हाईकोर्ट का फैसला है जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट की बेंच रात में बैठी। ट्वीटर वाले मामले में कई अन्य बातों के अलावा जुर्माना लगाया जाना भी महत्वपूर्ण है। इस मामले में इंडियन एक्सप्रेस का शीर्षक बताता है कि क्या हुआ है। खबर का फ्लैग शीर्षक है, गुजरात दंगे का मामला। आप जानते हैं कि गुजरात दंगे के मामलों में कई आरोपी बरी हो चुके हैं और मोटे तौर पर ‘अच्छा काम’ करने के लिए मुख्य मंत्री  से प्रधानमंत्री बन गए नरेन्द्र मोदी के राज में दंगे के लिए कोई जिम्मेदार ही नहीं मिल रहा है। या तो पुलिस की जांच में गड़बड़ी है या सरकार की ओर से मामले की पैरवी में या अभियुक्तों को सजा दिलाने की नीयत वरना 2000 लोगों की मौत कोई साधारण मामला नहीं है। होने को लगभग वैसा ही अभी मणिपुर में हुआ और इस बार वहां जो सब हुआ उसके लिए मुख्यमंत्री नहीं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिम्मेदार ठहराए और बनाए गये। वहां के मुख्यमंत्री इस्तीफा देने को तैयार हैं और डबल इंजन की सरकार है जैसे कुछ अंतर जरूर हैं। 

तीस्ता सेतलवाड का मामला 

ऐसे में तीस्ता सेलवाड की जमानत याचिका खारिज हो गई थी और गिरफ्तारी की पूरी स्थिति बन गई थी जबकि वे दंगे की आरोपी नहीं हैं। इंडियन एक्सप्रेस का उपशीर्षक है, हाईकोर्ट ने ऐक्टिविस्ट से तत्काल सरेंडर करने के लिए कहा; सुप्रीम कोर्ट ने देर रात सुनवाई में पूछा : इतनी जल्दी क्यों है, क्या आसमान गिर जाएगे? कहने की जरूरत नहीं है कि मामला बड़ा है पर लीड मेरे सात अखबारों में दो ही में है। द टेलीग्राफ ने फ्लैग शीर्षक में बताया है, “हाईकोर्ट तीस्ता से : सरेंडर कीजिये। आपने मोदी जी की छवि खराब करने की कोशिश की; राहत देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने रात नौ बजे के बाद बैठक की।” मुख्य शीर्षक है, “मुझे लगता है यह गोडसे का भारत है और मुझे यह डराता है : महबूबा  (मुफ्ती)”। मणिपुर में हिंसा शुरू हुए 59 दिन हो चुके हैं। अभी तक कम से कम 133 लोग मारे जा चुके हैं और हजारों विस्थापित हुए हैं। राज्य में हिंसा पर प्रधानमंत्री ने अभी तक सार्वजनिक रूप से कोई बयान नहीं दिया है जबकि वहां उनकी पार्टी सत्ता में है (डबल इंजन की सरकार है।)  बाईं तरफ की तस्वीर एक लड़की है जो शुक्रवार को राहत शिविर में राहुल गांधी के पहुंचने पर अपने आंसू रोकने की कोशिश कर रही थी। 

इसके साथ अखबार ने पांच कॉलम में एक तस्वीर छापी है। इसका कैप्शन इस प्रकार है – प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो द्वारा जारी एक तस्वीर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और अन्य भाजपा नेता शनिवार को नई दिल्ली में आयोजित 17वें भारतीय सहकारी कांग्रेस में एक सांस्कृति कार्यक्रम देख रहे हैं। शनिवार को असम के मुख्यमंत्री और भाजपा नेता हेमंत बिस्व शर्मा ने कहा, “मणिपुर सरकार और केंद्रीय गृहमंत्रालय चुप-चाप काम कर रहे हैं। आप देख सकते हैं कि महीने भर पहले हिंसा का क्या स्तर था और आज यह क्या है।” अखबार ने इसके साथ एक-एक कॉलम में तीन खबरें छापी हैं। इनके शीर्षक हिन्दी में कुछ इस प्रकार होंगे – (1) डर : मणिपुर भविष्य का चेहरा है (2) गुजरात में झटके के बाद हफ्ते भर की राहत और (3) राष्ट्रपति को उनके शपथ की याद दिलाना। इनमें पहला शीर्षक महबूबा मुफ्ती से संकर्षण ठाकुर के इंटरव्यू का है दूसरा पीटीआई और ब्यूरो की खबर है जबकि तीसरा शीर्षक मशहूर पत्रकार एजे फिलिप की खुली चिट्ठी का है। जो उन्होंने राष्ट्रपति को लिखी है।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।