पहला पन्ना: भारत के संदिग्ध रक्षकों के बीच जासूसी की ख़बरों का हाल


सरकार का जवाब या बचाव। द टेलीग्राफ ने इसे एक शब्द का शीर्षक दिया है, स्नूपिडेमिक। मोटे तौर पर यह अंग्रेजी के स्नूप और एपिडेमिक शब्दों को मिलाकर बनाया गया है। इसका मतलब ‘जासूसी की महामारी’ लगता है। इसके साथ उपशीर्षक महत्वपूर्ण है – “एक पैशाचिक साजिश जो हमारे लोकतंत्र के सभी स्तंभों को निशाना बना रही है।”


संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


आज टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर तीन खबरें हैं। एक से राजधानी दिल्ली का हाल पता चलता है और दूसरे से भाजपा राज में आम नागरिकों का। बीच में सरकार की अपनी प्रशंसा है जो टाइम्स ऑफ इंडिया के मंच से देश भर में पहुंचाई जा रही है।


आज के अखबारों में पहले पन्ने की मुख्य खबरों को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है।

1. संसद सत्र की शुरुआत, नए मंत्रियों का परिचय नहीं हो पाया और सरकार को इससे जो फायदा उठाना था वह रह गया या कम प्रचारित हुआ।

2.
पेगासस से संबंधित नए खुलासे और इनमें यह भी कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर आरोप लगाने वाली महिला और उसके परिवार के 11 फोन पेगासुस से निगरानी किए जाने वाले फोन की सूची में हैं। कुछ केंद्रीय मंत्री भी।

3. सरकार का जवाब या बचाव। द टेलीग्राफ ने इसे एक शब्द का शीर्षक दिया है, स्नूपिडेमिक। मोटे तौर पर यह अंग्रेजी के स्नूप और एपिडेमिक शब्दों को मिलाकर बनाया गया है। इसका मतलब जासूसी की महामारीलगता है। इसके साथ उपशीर्षक महत्वपूर्ण है – “एक पैशाचिक साजिश जो हमारे लोकतंत्र के सभी स्तंभों को निशाना बना रही है।”

इसके साथ तीन खबरें हैं-

1) कांग्रेस ने प्रधानमंत्री की जांच करवाने और अमित शाह के इस्तीफे की मांग की
2) पश्चिम बंगाल चुनाव को भी नहीं बख्शा गया
3) पुष्टि : एलगार मामले में परिवारों की।

एलगार परिषद माओवादियों से संबंध के आरोप में गिरफ्तार लोगों के परिवार वालों और उनके वकीलों में से एक ने कहा है कि नए खुलासों से उनके इस स्टैंड की पुष्टि हुई है कि 15 जिन्दा बचे अभियुक्तों को जेल में रखना अनुचित है। आप जानते हैं कि अमेरिकी डिजिटल फोरेनसिक फर्म आर्सेनल ने पहले ही कहा है कि गिरफ्तार लोगों के खिलाफ सबूत उनके कंप्यूटर में प्लांट किए गए थे। द टेलीग्राफ की यह प्रस्तुति टाइम्स ऑफ इंडिया की प्रस्तुति से पूरी तरह उलट है। इसमें और खबरों के अलावा एक खबर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पेगासुस बनाने वाले इजराइल के उस समय के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेथनयाहु की फोटो के साथ है।

इस खबर का हिन्दी अनुवाद कुछ इस तरह होगा, “गार्जियन अखबार ने खबर दी है कि भारतीय (फोन) नंबर का चुनाव मोटे तौर पर 2017 में मोदी के इजराइल दौरे के समय शुरू हुआ था। किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह इस देश की पहली यात्रा थी तथा यह दिल्ली और इजराइली रक्षा उद्योग के बीच तेजी से बढ़ते सौदों समेत द्विपक्षीय संबंधों की शुरुआत का प्रतीक भी है। ब्रिटिश समाचार पत्र ने लिखा है, मोदी और नेथनयाहु की तस्वीर एक समुद्र तट पर नंगे पाव चलते हुए उतारी गई थी और यह भारतीय निशानों का चुनाव किए जाने से कई दिन पहले की बात है।” अखबार ने बताया है कि उसने जो तस्वीर प्रकाशित की है उसे नेथनयाहु ने जुलाई 2017 में ट्वीट किया था और तब लिखा था, मित्रों के साथ समुद्र तट पर जाने जैसा कुछ नहीं है। इसके साथ अखबार ने यह भी बताया है कि इजराइली कंपनी एनएसओ यह सॉफ्टवेयर बनाती है और उसने कुछ भी गलत करने से इनकार किया है। एनएसओ ने कहा है कि उसका उत्पाद सरकारी खुफिया एजेंसियों के उपयोग के लिए है, सरकारों को ही बेचा जाता है और इसका मकसद आतंकवाद तथा अन्य अपराध से लड़ना है। नए आरोप से इस चिन्ता को बल मिल सकता है कि इजराइल की सरकार ने सरकारी दुरुपयोग को बढ़ावा दिया है और एनएसओ को ऐसे देशों को निर्यात का लाइसेंस दिया है जो इसका उपयोग विरोध को दबाने के लिए करते हैं। गार्जियन ने इस तथ्य को भी रेखांकित किया है कि भारत ने एनएसओ का ग्राहक होना आधिकारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया है और यह अदालत में जासूसी करने वाले इस स्पाईवेयर के उपयोग को चुनौती देने के रास्ते में एक बड़ी बाधा है। यह खबर आज किसी अन्य अखबार में इतनी प्रमुखता से नहीं है। 

दूसरी ओर, आज की अपनी खबरों से टाइम्स ऑफ इंडिया ने सरकार का भरपूर बचाव किया गया। सरकारी पक्ष मुख्य खबर के मुकाबले बहुत ज्यादा है। अकेले इंडियन एक्सप्रेस ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश पर आरोप लगाने वाली महिला के परिवार की निगरानी करने की खबर छापी है। हालांकि, इंडियन एक्सप्रेस ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का पुराना जुमलाआप क्रोनोलॉजी समझिए और मान लीजिए कि यह सब देश को बदनाम करने की साजिश है – को भी इतनी ही प्रमुखता दी है। सरकार के बचाव को सबसे कम जगह द हिन्दू ने दी है। हिन्दुस्तान टाइम्स में जितनी खबर है उससे कुछ ही कम जगह सरकारी सफाई को दी गई है। हालांकि, कांग्रेस ने भाजपा को भारतीय जासूस पार्टी कहा – यह खबर इतनी प्रमुखता से यहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया में पेगासुस के नए आरोप पहले पन्ने पर नहीं हैं, और शीर्षक है, “जासूसी के नए आरोप सामने आए तो सरकार ने कहा, भारत को बदनाम करने की कोशिश। 

कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार ने आरोपों से भले इनकार किया है पर ना तो यह कहा है कि उसके पास पेगासुस नहीं है और न यह कहा है कि किसी की जासूसी नहीं हुई। नए सूचना तकनालाजी मंत्री ने यह जरूर कहा है कि भारत में अवैध जासूसी संभव नहीं है पर यह नहीं कहा है कि जिनके नाम सामने आए उनमें से किसी की वैधजासूसी हुई या कराई गई। दिलचस्प यह भी है कि जिनकी जासूसी हुई उनमें मंत्री महोदय का नाम भी है। बहुत संभावना है कि पिछले आईटीमंत्री इसी पेगासुस के शिकार हो गए हैं। जहां तक भारत को बदनाम करने की बात है, अखबारों ने यह नहीं बताया है कि जिसने भी यह जांच की वह सिर्फ या खासतौर से भारत के लिए नहीं था। यह काम दुनिया भर के 17 जाने-माने और ख्यातिप्राप्त मीडिया संस्थानों ने किया है और इसका विस्तार 45 देशों में है। इसके अलावा चूंकि सरकार ही पेगासुस खरीद सकती है इसलिए उसके पास यह कहने का विकल्प शुरू से है कि उसने खरीदा ही नहीं है। पर ना तो सरकार ने ऐसा कहा है और ना यह स्वीकार किया है। इसलिए अगर बदनामी हो रही है तो उसका कारण सरकार है क्योंकि उसी के रवैये के कारण विदेशी जांच में जो तथ्य पाए जा रहे हैं वो सच लग रहे हैं। 

यही नहीं, दुनिया भर के 180 पत्रकारों की जासूसी हो रही थी उनमें 49 भारतीय हैं। बदनामी का एक और कारण यह है कि पेगासुस का उपयोग पत्रकारों, एक्टिविस्ट्स और विपक्षी नेताओं के खिलाफ करने वाले देशों में कोई भी भारत के आस-पास का नहीं है। उल्टे भारत इस मामले में इन देशों की बराबरी में खड़ा कर दिया गया है और सरकार कायदे से बचाव नहीं कर पा रही है। इस मामले में भारत की चर्चा अजरबैजान, बहरीन, कजाखस्तान, मैक्सिको, मोरक्को, रंवांडा, सउदी अरब, हंगरी और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों के साथ हो रही है। रविशंकर प्रसाद ने कहा है और हिन्दुस्तान टाइन्स ने प्रमुखता से छापा है कि यह राजनीति की नई नीचता है पर यह आरोपों की भी नई नीचता है और उसपर अखबार शांत हैं। रविशंकर प्रसाद ने मंत्रिमंडल से निकाले जाने के बावजूद यह सब कहा है जबकि जासूसी का आरोप या इस तरह की नीचता सरकार चलाने वाले लोगों के लिए नया नहीं है। 

ऐसी हालत में टाइम्स ऑफ इंडिया ने पहले पन्ने पर जो नहीं छापा वह तो अपनी जगह है ही, सरकार का पक्ष जिस अंदाज में छापा है वह भी शानदार है। वैसे तो टाइम्स ऑफ इंडिया ने शीर्षक में जो कहा है वह दूसरे अखबारों में भी है लेकिन रेंजरोवर के साथ प्रधानमंत्री की फोटो और उनके तथा अमित शाह के बयान को हाईलाइट कर टाइम्स ने जो दृश्य बनाने की कोशिश की है उससे लग रहा है कि जाति और दूसरे आधार पर मंत्रिमंडल विस्तार का पूरा मकसद ही प्रचारित होने से रह गया और वह देश सेवा को कोई महान एजंडा था। टाइम्स ने उसकी भरपाई करने की कोशिश की है। पेगासुस से संबंधित नए खुलासों के बिना टाइम्स ऑफ इंडिया की आज की लीड का शीर्षक है, “सत्र का धमाकेदार शुरुआत : मोदी नए मंत्रियों का परिचय नहीं करवा पाए।” इस खबर का इंट्रो है, सदन बार-बार स्थगित हुआ; प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर कटाक्ष किया। साथ ही बॉक्स में कटाक्ष भी है, “मैं समझ रहा था कि संसद में उत्साह होगा क्योंकि कई महिलाएं, दलित और आदिवासी मंत्री बन गए हैं। संभवतः कुछ लोग खुश नहीं हैं। इसीलिए उनलोगों ने उनका परिचय भी नहीं करवाने दिया।” 

प्रधानमंत्री ने ऐसा कहा है तो निश्चित रूप से यह खबर है और इसे प्रमुखता दिए जाने में भी कुछ गलत नहीं है। लेकिन सब जानते हैं कि प्रधानमंत्री ने ऐसा उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर जातिय आधार पर लाभ पाने के लिए किया है। भले ही यह संविधान और प्रधानमंत्री ने जो शपथ लिया है उसके लिहाज से गलत है पर इसमें कुछ नया भी नहीं है। जमाने से होता आया है। पर इसे कहना, प्रचारित करना निश्चित रूप से गलत है। पहले सिर्फ गलती की जाती थी। इशारों में संदेश समझा दिया जाता था। अब प्रधानमंत्री उसे खुद प्रचारित करें कि पहले तो मैंने कृपापात्रों को मंत्री बनाया (अब चुनाव सिर पर है और जातियता का लाभ हो सकता है तो) और अब मैंने जातिय संतुलन बैठाया है तो यह प्रधानमंत्री के कहने वाली बात नहीं है। और अगर वे इसे ठीक ही समझते हैं तो तब कहते जब मंत्रिमंडल में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व भी वैसा ही होता। बहुत संभावना है कि यह सब हेडलाइन मैनेजमेंट का हिस्सा हो और इसे नया मुद्दा बनाने की कोशिश की जा रही हो ताकि चुनाव में इसका लाभ लिया जा सके। इसके साथ अमित शाह का कोट है कि बाधा डालने वाले भारत के विकास को रोक नहीं पाएंगे। पर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट ही विकास नहीं है। और विकास तब होगा जब रेंज रोवर पर प्रधान सेवक ही नहीं, सेवक भी चलने लगेंगे।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।