हाल के दिनों में टी.वी. पत्रकारों की सेवा सुरक्षा और अन्य सुविधाओं का सवाल लगातार बीच बहस रहा है। चूँकि टीवी पत्रकार श्रमजीवी पत्रकार एक्ट के तहत कवर नहीं होते, इसलिए उनके बारे में श्रम विभाग भी अक्सर बहाना बना देता है। उन्हें जब चाहे तब बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। पेंशन, पीएफ और ग्रेच्युटी का सवाल तो क़ुफ़्र ही है। सेवा सुरक्षा न होने के कारण कर्मचारी चुनौती देने से भी हिचकते हैं।
बहरहाल, जब इस मामले में कुछ पत्रकार लड़ने को ठान लेते हैं और कभी-कभी कुछ सुखद नतीजे भी आते हैं। जैसे बिहार के कशिश न्यूज़ में काम करने वाले पत्रकार राजीव तिवारी ने ग्रेच्युटी की लड़ाई में हासिल किया। राजीव ने उप श्रमायुक्त के यहाँ चैनल से ग्रेच्युटी न मिलने की शिकायत की थी। सुनवाई के बाद उन्हें एक लाख 44 हज़ार रुपये की ग्रेच्युटी भुगतान का आदेश हुआ है।
अभी ये देखना बाक़ी है कि उप श्रमायुक्त का आदेश का पालन चैनल किस हद तक करता है। लेकिन इतना तो साफ़ है कि टीवी पत्रकार अगर खुद को सत्ता के हिस्से की जगह मज़दूर मानें और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष का फ़ैसला करें तो कुछ सकारात्मक नतीजे निश्चित ही मिल सकते हैं।