आज सभी अखबारों में (द टेलीग्राफ को छोड़कर) ऑक्सीजन की कमी से मौत के मामले में केंद्र सरकार के बयान पर खबर है। मेरा मानना है कि सरकार को सूचना नहीं मिली तो यह भी उसकी नालायकी है और अब उसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार करना कोई खास मायने नहीं रखता। बाकी हम सब लोग उन परिस्थितियों को जानते-समझते हैं, मरने वाले मर गए और इस सरकार के रहते हमें क्या उम्मीद व अपेक्षा करनी चाहिए उसका क्या हश्र होगा यह सब समझना मुश्किल नहीं है। ऐसे में जो कहा गया वह बिना मकसद हो नहीं सकता। अखबारों में खबरें छपने के बावजूद सरकार कह रही है कि सूचना नहीं मिली तो यह तथ्य बयान करने से ज्यादा तकनीकी मामला लगता है। संभव है यह सफेद झूठ भी हो। पर हमारे लिए यह कोई नई बात नहीं है। मैंने अभी तक उसपर कुछ नहीं लिखा। ना उससे संबंधित कुछ पढ़ा। मुझे लगता है कि वह मूल मुद्दे से ध्यान भटकाने की कोशिश है। बेशक, अखबारों का काम है कि सरकार की इस कोशिश का पर्दाफाश करें पर यह तमाम दूसरी खबरों की कीमत पर न हो। लेकिन वही हो रहा है।
दूसरी तरफ राज्यसभा में राष्ट्रीय जनता दल के सदस्य और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर मनोज झा ने संसद में एक माफीनामा पढ़ा जो सरकार को सूचना नही मिलने के लिए भी माफी मांगने की तरह है। उसे नहीं छापा गया। यह खबर आज द टेलीग्राफ में है और इसका वीडियो सोशल मीडिया पर आराम से घूम रहा है। हिन्दी अखबारों में यह भाषण (माफीनामा) कितना छपा मैं नहीं जानता पर द टेलीग्राफ ने उसका अंग्रेजी अनुवाद छापा है। मंगलवार का यह भाषण बुधवार को नहीं, वीरवार को पहले पन्ने पर छपा है। आमतौर पर हिन्दी अखबार ‘पुरानी‘ खबरें पहले पन्ने पर नहीं छापते हैं फिर भी अंग्रेजी अखबार ने अनुवाद करके एक दिन बाद छापा तो संभावना है कि हिन्दी में बहुत ज्यादा नहीं छपा होगा। मैं पहले कह चुका हूं कि टेलीग्राफ में ऑक्सीजन वाला मामला पहले पन्ने पर नहीं है। ऐसे में आप समझ सकते हैं कि ज्यादातर अखबारों के पहले पन्ने की खबरें कैसे तय होती हैं। उनमें जनहित या जनता की भावनाओं का कितना ख्याल रखा जाता है।
आइए, पहले अंग्रेजी के अखबारों की खबरें देखें फिर बताउंगा कि हिन्दी के अखबार ने इस पर क्या छापा और फिर उसके यहां आयकर का छापा पड़ गया। यानी संकेत न समझों और खबरों की सच्चाई बताने में लग जाओ तो आयकर का छापा पड़ जाएगा। पत्रकारों की जासूसी होगी तो खबरें कहां से आएंगी इसकी चिन्ता सरकार क्यों करे। सरकार ने कह दिया है कि से जासूसी नहीं हुई और जो हुई वह नियमानुसार हुई तो आपको मान लेना चाहिए। सरकार यह आश्वासन नहीं देगी कि आप अपना काम निश्चिंत होकर करें, जासूसी सरकार ही करवा रही है और वह आपके हित में आपके पैसे से हो रहा है क्योंकि जरूरी है। ना ही यह कह रही है कि कोई बाहरी एजेंसी आपकी जासूसी कर रही है। हम उसका पता लगा रहे हैं। इस तरह सरकार क्या करेगी और क्या नहीं करेगी यह समझना अब मुश्किल नहीं रहा है। ऐसे में खबरें नहीं छप रही हैं तो सरकारी दबाव को समझना भी मुश्किल नहीं है।
टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर अधपन्ने पर लीड के नीचे है। इसका शीर्षक है, ऑक्सीजन (की कमी से) मौतें : दिल्ली सरकार ने झूठ बोला, भाजपा ने हाईकोर्ट में अपने शपथपत्र का उल्लेख किया। पूर्व सूचना के बावजूद देश की राजधानी दिल्ली में मौतें हुई थीं, अखबारों में खबर छपी थी इसके बावजूद केंद्र सरकार ने जो कहा है वह अपनी जगह, टाइम्स ऑफ इंडिया ने उसे पहले पन्ने पर छापा। वह भी तब जब दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा है, “कई सारे अस्पताल हाईकोर्ट गए और कहा कि ऑक्सीजन खत्म हो गया ….. केंद्र सरकार ऑक्सीजन की कमी से मरने वालों के रिश्तेदारों के जख्मों पर नमक छिड़क रही है।” मुझे नहीं लगता कि इसपर संबित पात्रा जैसे गैर सरकारी प्रचारक ने जो कहा वह पहले पन्ने पर छापने लायक है या इसकी कोई पत्रकारीय, कानूनी अथवा नैतिक आवश्यकता थी फिर भी टाइम्स ऑफ इंडिया ने छापा है तो मैं जासूसी पर चुप रहने वाली पत्रकारिता का हाल बता देता हूं। दिल्ली सरकार की समिति ने हाईकोर्ट को बताया था कि उनके पास यह साबित करने का कोई सबूत नहीं है कि जयपुर गोल्डन हॉस्पीटल में हुई 21 मौतें ऑक्सीजन की कमी से हुईं। अगर दिल्ली के किसी अस्पताल में एक साथ 21 मौतें कैसे हुईं इसकी जांच नहीं हुई, इसका कारण नहीं पता है और इसका कोई महत्व नहीं है तो एक नागरिक के रूप में हम मनोज झा की तरह माफीनामा ही जारी कर सकते हैं पर अखबारों ने उसे भी महत्व नहीं दिया।
हिन्दुस्तान टाइम्स में शीर्षक है, “दूसरी लहर में ऑक्सीजन से कमी को लेकर केंद्र और राज्यों में विवाद”। यह शीर्षक सारी जिम्मेदारी राज्यों पर थोप देने की कोशिश का हिस्सा लग रहा है। आपको याद होगा ऑक्सीजन मंगाने के लिए उस समय सरकारी स्तर पर की जा रही तथाकथित कोशिशों का कितना प्रचार हुआ था और ड्रोन से ली गई माल गाड़ी की तस्वीरें सोशल मीडिया पर छाई रहती थीं। हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर आज लीड है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने राज्यों की तरफ से दिल्ली के मनीष सिसोदिया और शिव सेना के संजय राउत का बयान छापा है और सरकार की तरफ से भाजपा प्रवक्ता का बयान है। यानी संसद में गलतबयानी सरकार ने की मीडिया में उसका बचाव भाजपा प्रवक्ता कर रहे हैं या सरकार भाजपा प्रवक्ता से करवा रही है। यहां भी संबित पात्रा यह दावा कर रहे हैं कि राज्यों ने केंद्र सरकार को दी सूचना में यह नहीं बताया कि मौतें ऑक्सीजन की कमी से हुई हैं। अगर इसे सही मान लिया जाए तो सरकार को राज्यों से अखबारों में छपी खबरों के बारे में पूछना चाहिए था। इस बारे में अखबार शांत हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर का शीर्षक है, ऑक्सीजन की कमी से मौत रिकार्ड में क्यों नहीं हैं? दिल्ली (सरकार) ने केंद्र पर आरोप लगाया, विशेषज्ञों ने रिकार्ड की अनुपस्थिति बताई, प्रोटोकोल में अंतर। इसके साथ बेंगलुरू डेटलाइन से एक खबर में बताया गया है कि राज्य में 13 मौतों के लिए कर्नाटक हाईकोर्ट ने 5 लाख रुपए प्रत्येक का आदेश दिया था। फिर भी केंद्र सरकार को पता नहीं है, रिकार्ड में नहीं है तो कितना परेशान होना है यह आप तय कीजिए। इंडियन एक्सप्रेस की इस खबर में दिल्ली के उप मुख्मंत्री मनीष सिसोदिया के हवाले से कहा गया है, दिल्ली सरकार के पास ऐसी मौतों का कोई रिकार्ड नहीं है क्योंकि केंद्र ने मरीज के परिवार और चिकित्सकों के दावों पर विचार करने के लिए समित बनाने की इजाजत नहीं दी। इसमें संबित पात्रा किस समिति की बात कर रहे हैं वह मैं नहीं समझ पाया। इंडियन एक्सप्रेस ने दिल्ली के बत्रा अस्पताल के बाहर एक ऑक्सीजन टैंकर की फाइल फोटो छापी है और इसका कैप्शन है, बत्रा अस्पताल में 12 मौतों को ऑक्सीजन की कमी से जोड़ा गया था।
दि हिन्दू में भी यह खबर आज लीड है। शीर्षक है, “ऑक्सीजन की कमी से मौत के मामले में सरकार का दावा डरावना है, विशेषज्ञों ने कहा”। उपशीर्षक है, महामारी विशेषज्ञों ने कहा कि कोविड-19 के मृत्यु प्रमाणपत्रों में ऑक्सीजन की कमी का उल्लेख नहीं है। अखबार में आज इस विषय पर संपादकीय भी है, इनकार से निपटना (जूझना)। इसमें कहा गया है कि भारत को कोविड-19 त्रासदी को कम करके नहीं आंकना चाहिए क्योंकि इससे जनता का भरोसा कम होगा। लेकिन मुझे लग रहा है कि सब चंगा सी से लेकर राज्य में कोई नहीं मरा, लाशें बिहार में मिलीं और लाशें गंगा में प्रवाहित करने की फिर परंपरा है जैसी दलीलों से गोबर पट्टी में यह बताने की कोशिश की जा रही है कि ज्यादा लोग नहीं मरे हैं और यह कोई बड़ी बात नहीं है। बाकी हिन्दी के अखबार इस काम को बखूबी अंजाम दे रहे हैं और हिन्दी में सच छापने वाले दैनिक भास्कर पर कल रात आयकर का छापा पड़ने की खबरें आ रही हैं। इसलिए उसकी दो खबरों की चर्चा भी बनती है।
पेगासस जासूसी वाले खुलासे के बाद अखबार ने एक पुरानी खबर से याद दिलाया था कि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के गुजरात मॉडल में यह पुरानी बात है तब अखबार ने लिखा नहीं था पर यह तथ्य है कि देश ने उसी गुजरात मॉडल को चुना है। और हम सब उसी को झेल रहे हैं या उसी का मजा ले रहे हैं। गुजरात मॉडल में मीडिया का भी वही हाल है जो पहले था। कर्मवीर (karmveer.org) के संपादक ने ट्वीट किया था कि भास्कर ने यह खबर हटा ली या हटवा दी गई। जासूसी नरेन्द्र मोदी अमितशाह जोड़ी की खासियत रही है और उसकी खबर आने पर ऑक्सीजन से मौत की तरफ मामला मोड़ने और दैनिक भास्कर पर छापे के बाद अब अगली कार्रवाई का इंतजार कीजिए। इससे आप समझ सकेंगे कि प्रचारकों की सरकार अखबारों (और सोशल मीडिया के भी) प्रबंध के सहारे अपना प्रचार करने पर कितना भरोसा करती है।
फिलहाल, डबल इंजन वाले मध्य प्रदेश में ऑक्सीजन की कमी से 15 हादसों में 60 लोगों की मौत की खबर दैनिक भास्कर में आज छपी है। पुराने अंकों से तारीखवार ब्यौरा भी दिया है और बताया है कि (डबल इंजन वाली राज्य) सरकार में केंद्र को शून्य मौतों की सूचना दी थी। फिर भी अखबार पर छापा पड़ गया। कायदे से तो अखबार वही कह रहा है कि जो सरकार कह रही है पर तकलीफ यह है कि पुराने अंक किसी ने नहीं पढ़े यह उजागर हो जा रहा है। मीडिया की ऐसी गुस्ताखी कैसे बर्दाश्त होती। छापने को तो इंडिया टुडे ने भी जासूसी पर कवर स्टोरी छापी थी लेकिन हाल में मोदी के खिलाफ ट्वीट करने वाले को नौकरी से निकाल दिया गया है तो इंडिया टुडे चैनल से है। देखत रहिए। गुजरात मॉडल को समझने में समय लगेगा।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।