पहला पन्ना: संसद में बहस के स्तर पर चीफ़ जस्टिस की टिप्पणी पर ख़बर नहीं है!


जस्टिस एन.वी.रमना ने कहा, “अब हम सदनों में जो देख रहे हैं वह दुर्भाग्यपूर्ण है … तब सदनों में बहस बहुत रचनात्मक थी। मैंने कई वित्तीय विधेयकों पर भी बहस देखी हैं जहां बहुत रचनात्मक बिंदु बनाए गए थे। तब कानूनों पर चर्चा की गई और गहन विचार-विमर्श किया गया। तब बहस के बाद उस कानून पर हर किसी के पास स्पष्ट तस्वीर होती थी।”  मुख्य न्यायाधीश ने कहा, संसद में उचित बहस न होना खेदजनक है। एक मुख्य न्यायाधीश को रिटायरमेंट के बाद इनाम देना और एक मुख्य न्यायाधीश का यह कहना कि कानूनों की कोई स्पष्टता नहीं है। हम नहीं जानते कि कानून का उद्देश्य क्या है। यह जनता के लिए एक नुकसान है। यह तब हो रहा है जब वकील और बुद्धिजीवी सदनों में नहीं हैं।”


संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


आज के जयादातर अखबारों में लाल किले से प्रधानमंत्री का भाषण लीड है कुछ में अफगानिस्तान। विपक्ष का आरोप है और कल से ही सोशल मीडिया पर वीडियो भी घूम रहा था कि प्रधानमंत्री तीन साल से एक ही बात कर रहे हैं और जमीन पर कुछ नहीं हो रहा है। दिलचस्प यह है कि 100 करोड़ की उनकी योजना भी तीन साल से 100 करोड़ की ही है। यही नहीं, वे अपने काम बताने से ज्यादा कांग्रेस की आलोचना करते हैं और विपक्ष ने कहा है तथा हम देख रहे हैं कि उससे विकास नहीं होता है। अगर यह मान भी लिया जाए कि विकास हुआ है तो रेलवे प्लैटफॉर्म और पार्किंग का विकास हुआ होगा पर वह इतना महंगा हो गया है कि शायद ही कोई उसका उपयोग कर पाए। 

 

एक और नारा 

इसीलिए द टेलीग्राफ ने आज अपनी मुख्य खबर का शीर्षक लगाया है, “मोदी ने एक और नारा दिया।” कल जादूगर की टोपी से खरगोश निकलने और विभाजन की विभीषिका को याद करने की खबर थी और आज पता चल रहा है कि तीन साल से एक ही बात कर रहे हैं (यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है)। द टेलीग्राफ ने पहले पन्ने पर जरूर बताया है कि प्रधानमंत्री बंगाल से संबंधित एक तथ्य के मामले में फिर चूक गए और स्वतंत्रता सेनानी मतंगिनी हाजरा को असम का बता दिया जबकि वे पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले की हैं। तृणमूल कांग्रेस ने इसे बंगाल का अपमान कहा है। उधर, कांग्रेस मुक्त भारत की बात करने वाले प्रधानमंत्री अब सबका साथ सबका विकास से आगे बढ़कर, “सबका विश्वास और सबका प्रयास” की बात करने लगे हैं।  

 

संसद में बहस 

आज के अखबारों में प्रधानमंत्री का यह भाषण तो होना ही था। आज दूसरी मुख्य खबर है,  मुख्य न्यायाधीश ने संसद में उचित बहस न होने पर खेद जताया। उन्होंने संसद के कामकाज की भी कड़ी आलोचना की है। आज यह खबर तो सभी अखबारों में पहले पन्ने पर है। लेकिन इसपर सरकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं है। कल छुट्टी का दिन था, आज इसपर कोई विशेष लेख पहले पन्ने पर नहीं है। अकेले हिन्दू ने मुख्य न्यायाधीश की खबर के साथ सिंगल कॉलम में खबर छापी है जो बताती है केंद्रीय मंत्रियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के उपाध्यक्ष एम वेंकैया नायडू से मुलाकात कर विपक्ष के कुछ सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। यह दिलचस्प है कि एक तरफ मुख्य न्यायाधीश कह रहे हैं कि कानून (जो बन रहे हैं) उनमें अस्पष्टता रहती है। इसकी वजह से मुकदमेबाजी होती है और नागरिकों को असुविधा होती है। पर सरकार है कि इसपर प्रतिक्रिया तो दूर, उन विपक्षी सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रही है जो सदन में चर्चा की मांग कर रहे हैं। पापड़ी चाट की तरह कानून बनाने का विरोध कर रहे हैं। 

 

पापड़ी चाट की तरह कानून 

पापड़ी चाट की तरह कानून बनाने का आरोप यूं ही नहीं है और अब उसका खामियाजा भी सामने है लेकिन सरकार पर कोई असर नहीं है और आज की खास बात यह है कि इसपर कोई चर्चा किसी अखबार में पहले पन्ने पर नहीं है। दिलचस्प यह भी है कि मुख्य न्यायाधीश ने यह सब तब कहा है जब नए आईटी कानून का हाल सबको मालूम है। जो कानून बने हैं उसके अनुपालन में केंद्रीय मंत्री का अकाउंट ही बंद कर दिया गया था और उसे दुरुस्त करने की बजाय सरकार के रहते हुए विपक्ष के नेता का ट्वीटर अकाउंट बंद हो गया और फिर पार्टी का और कई अन्य लोगों का। यह साधारण बात नहीं है और राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि उनका अकाउंट बंद करके देश की राजनीति को प्रभावित किया जा रहा है और मुख्य न्यायाधीश कह रहे हैं कि प्रभावित राजनीति जनहित में नहीं है। यह बड़ी बात है। लेकिन अखबारों में, खबरों में ऐसी गंभीरता नहीं है। इस बीच हाई कोर्ट ने नए आईटी कानून की धाराएं स्थगित कर दी हैं और केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। 

 

ट्वीटर के ज़रिये कार्रवाई 

ऐसी हालत में तमाम अपराध और अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने की खबरों के बीच राहुल गांधी के खिलाफ कार्रवाई हो रही है और ट्वीटर ने की है या उससे करवाई गई है। आप जानते हैं कि राहुल गांधी पर जिस कानून के उल्लंघन का आरोप है उसके लिए उनके खिलाफ सरकारी स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। कल सोशल मीडिया पर खबर थी कि बलात्कार पीड़िता की पहचान उजागर करने का जो आरोप उनपर लगाया गया था उससे परिवार सहमत नहीं है और परिवार को राहुल गांधी के ट्वीट से एतराज नहीं है। ऐसे में, साफ है कि कोई अपराध हुआ ही नहीं है और अगर हुआ है तो ट्वीटर की कार्रवाई के अलावा सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की है। देश का आईटी ऐक्ट ऐसा नहीं हो सकता है कि नागरिकों पर विदेशी कंपनियां कार्रवाई करें और ऐसे अपराध के लिए करें जिसके लिए देश में कोई कार्रवाई नहीं हुई या जिसकी जरूरत ही नहीं है। 

राहुल गांधी का ट्वीटर अकाउंट बंद होना ऐसा ही मामला है। क्या यह आदर्श स्थिति हो सकती है? ऐसा होना चाहिए? अगर राहुल गांधी का अकाउंट अकारण बंद हो सकता है तो आम आदमी की क्या पूछ रहेगी और यह कानून की कमजोरी के कारण है जिसकी चर्चा मुख्य न्यायाधीश भी कर रहे हैं। विपक्ष मांग कर रहा है कि संसद में पर्याप्त चर्चा हो लेकिन उन्हें संसद में पिटवाने और संसद का कार्यकाल समय से पहले खत्म कर दिए जाने का आरोप है। सरकार इसपर कोई जवाब नहीं दे रही है और मंत्री मांग कर रहे हैं कि जनहित में संसद में बहस की मांग करने वालों के खिलाफ कार्रवाई हो। यह विचित्र स्थिति है। लेकिन मीडिया विपक्ष को ही दोषी साबित करने में लगा है और वैसी ही खबरों को प्राथमिकता दे रहा है ताकि कार्रवाई हो तो जनता को गलत नहीं लगे। यह प्रचारकों की राजनीति है। 

 

मुख्य न्यायाधीश ने जो कहा 

आइए, जान लें कि 75वें स्वतंत्रता दिवस पर देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एन.वी रमना ने और क्या कहा। एनडीटीवी की खबर के अनुसार, उन्होंने न केवल संसदीय व्यवधानों पर ध्यान केंद्रित किया, बल्कि सदन के अंदर कानूनों पर बहस के समय में कटौती पर भी ध्यान खींचा। पहले के समय से इसकी तुलना करते हुए उन्होंने कहा कि जब संसद के दोनों सदन “वकीलों से भरे हुए थे” तब उन्होंने कानूनी बिरादरी से भी सार्वजनिक सेवा के लिए अपना समय देने के लिए कहा था। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सुप्रीम कोर्ट में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “अगर हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों को देखें, तो उनमें से कई कानूनी बिरादरी से भी थे। पहली लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य वकीलों के समुदाय से भरे हुए थे।” 

उन्होंने आगे कहा, “अब हम सदनों में जो देख रहे हैं वह दुर्भाग्यपूर्ण है … तब सदनों में बहस बहुत रचनात्मक थी। मैंने कई वित्तीय विधेयकों पर भी बहस देखी हैं जहां बहुत रचनात्मक बिंदु बनाए गए थे। तब कानूनों पर चर्चा की गई और गहन विचार-विमर्श किया गया। तब बहस के बाद उस कानून पर हर किसी के पास स्पष्ट तस्वीर होती थी।”  मुख्य न्यायाधीश ने कहा, संसद में उचित बहस न होना खेदजनक है। एक मुख्य न्यायाधीश को रिटायरमेंट के बाद इनाम देना और एक मुख्य न्यायाधीश का यह कहना कि कानूनों की कोई स्पष्टता नहीं है। हम नहीं जानते कि कानून का उद्देश्य क्या है। यह जनता के लिए एक नुकसान है। यह तब हो रहा है जब वकील और बुद्धिजीवी सदनों में नहीं हैं।”

 

अमृत काल में जादू होगा? 

शायद इसीलिए 70 साल कुछ नहीं हुआ – कहने वाले प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि आजादी से 75 से 100 साल के बीच (अमृत काल) में एक नया भारत बनेगा जहां नागरिकों के जीवन में सरकार की भूमिका कम होगी। यह इंडियन एक्सप्रेस की खबर का इंट्रो है। पर सवाल है कि महामारी फैली हुई है, सरकार ने सारे अधिकार अपने पास रखे हुए हैं, लोगों के पास काम नहीं है, पैसे खत्म हो चुके हैं, इलाज और टीकों की जरूरत है, बेरोजगारी चरम पर है, बाकी को शिक्षा की जरूरत है – सरकार की भूमिका के बिना कैसे चलेगा। जो था उसे खत्म करने के बाद यह कहना कि नागरिक अपना जानें – ऐसे कहा जा रहा है जैसे इस सरकार ने नागरिकों के लिए सब कुछ कर दिया है और अब कुछ करने की जरूरत ही नहीं है। 

वैसे तो ऐसी स्थिति आने में अभी बहुत देर है पर अखबारों को भी इसकी चिन्ता या याद नहीं है। हालांकि, इंडियन एक्सप्रेस ने बताया है कि इस खबर के साथ अंदर के पन्ने पर सोनिया गांधी का आलेख है, “नेशन इन नीड ऑफ रिपेयर।” इंडियन एक्सप्रेस में ही पहले पन्ने पर ही एक खबर भी है, अर्थव्यवस्था भले ही धीरे-धीरे सामान्य हो रही हो पर रोजगार बाजार में तनाव के बढ़े हुए संकेत अब भी दिख रहे हैं। लेकिन प्रधानमंत्री किसी और दुनिया में रह रहे लगते हैं।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।