पहला पन्ना: ज्यादातर ख़बरें सरकार की, सरकार के लिए, सरकार द्वारा! 

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


आज के अखबारों की ज्यादातर खबरें सरकार का बयान, सरकार का बचाव या सरकार की नालायकी का परिणाम है। ज्यादातर खबरों का जनहित या राजकाज अथवा देश दुनिया से कोई लेना-देना नहीं है। अधिकांश खबरें, सरकार के लिए, सरकार की और सरकार द्वारा हैं। निश्चित रूप से यह हेडलाइन मैनेजमेंट का असर है। नीचे अंग्रेजी के चार अखबारों के पहले पन्ने की एक कॉलम से ऊपर की सभी खबरों के शीर्षक का हिन्दी अनुवाद है। आप खुद देखिए कि खबरों के नाम पर क्या परोसा गया है। कुछेक खबरों को छोड़ दें तो पूरा पहला पन्ना मैनेज हुआ लग रहा है। हिन्दुस्तान टाइम्स में एक, टाइम्स ऑफ इंडिया में कुछेक तो इंडियन एक्सप्रेस में एक भी नहीं। स्टीफंस के प्रिंसिपल ने जो कहा वह सरकार पर ही टिप्पणी है। इंडियन एक्सप्रेस ने नहीं छापा होता तो पता नहीं चलता। पता नहीं यह जनता की भक्ति की दूसरी लहर का शिखर है या कार्यकाल पूरा होने से पहले अभी और उंचाइयां छूनी है। कहने की जरूरत नहीं है कि इनमें कई खबरें एक से ज्यादा अखबारों में हैं। मैंने जान बूझकर उनका भी शीर्षक भी लिखा है ताकि आप समझ सकें कि पहले पन्ने पर दूसरी खबरें खबरें क्या हैं? इनमें सिंगल कॉलम की खबरें शामिल नहीं हैं। 

द हिन्दू  

  1. सरकार के सलाहकार ने कहा, टीके की कमी के लिए राज्य जिम्मेदार
  2. सरकार ने कहा, ट्वीटर भारत को बदनाम कर रहा है, कानून का उल्लंघन कर रहा है
  3. चोकसी के प्रत्यर्पण को लेकर भारत डोमनिसिया से संपर्क में – (आपको लग सकता है कि सरकार काम कर रही है पर भागता नहीं को इस ‘काम’ की जरूरत ही नहीं थी। )
  4. केंद्र द्वारा वैश्विक निविदा की मांग के लिए राजस्थान सुप्रीम कोर्ट जा सकता है 
  5. जीएसटी बैठक में विपक्षी राज्य कोविड राहत की मांग करेंगे
  6. बंगाल सरकार अब नारदा मामले में पार्टी है 
  7. छात्रा ने आइसोलेशन केंद्र की ‘भयावहता’ का वर्णन किया  

हिन्दुस्तान टाइम्स 

  1. ट्वीटर ने चिन्ताएं उजागर की तो आईटी नियमों पर टकराव (यह बिल्कुल जबरदस्ती का पंगा है और सरकारी पक्ष परम बकवास)। 
  2. सरकार ने टीका योजना पर आलोचना का बचाव किया 
  3. जयशंकर ने अमेरिका में कहा, हिन्दुत्व की नीतियां मनगढ़ंत, काल्पनिक (यह भी सरकार का ही बचाव है)। 
  4. एक खबर अफगानिस्तान से अमेरिकी वायुसेना की वापसी पर विदेश मंत्री की टिप्पणी है। 
  5. वार्षिक वैश्विक औसत तापमान से संबंधित यह अकेली खबर है जो सरकारी प्रचार या बचाव नहीं है या जनता के मतलब की हो सकती है। 

इंडियन एक्सप्रेस 

  1. सरकार ने कहा, फाइजर की कुछ खुराक जुलाई में आएगी (पहला प्रचार) पर हर्जाने से मुक्त करने के आग्रह पर कोई कार्रवाई नहीं हुई (यह दूसरा प्रचार है)। इसका मतलब तब होता जब बताया जाता कि नुकसान की स्थिति में क्या कंपनी हर्जाना देगी या सरकार दिलवाएगी? इस मुद्दे पर सरकार और प्रचारक दोनों शांत हैं लेकिन खबर लीड है। 
  2. पुलिस का आना धमकाना है, हाल की घटनाएं अभिव्यक्ति की आजादी के लिए खतरा है। 
  3. सबसे बड़े लोकतंत्र से शर्तें मनवाने की कोशिश : सरकार पुलिस (असल में सबसे बड़ा लोकतंत्र अपने बचाव और प्रचार के अधिकार के लिए सत्ता के दुरुपयोग की नीचता की पराकाष्ठा पर उतर आया है पर वह अलग मुद्दा है)। 
  4. ‘निर्वाचित अधिकारियों, नागरिक समाज की जिम्मेदारी है कि जनता के हितों की रक्षा करें’ (यह संभवतः ट्वीटर के प्रवक्ता का बयान है लेकिन पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम की लंबी सी खबर से इसका पता नहीं चलता है)।  
  5. (महाराष्ट्र, मुंबई की वैश्विक मांग पर) बोली लगाने के लिए फर्मों की लाइन लेकिन टीका निर्माताओं का कहना है कि उनके पास एजेंट नहीं हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि भारत पहले खुद टीका विकसित करने, दुनिया में सबसे आगे होने जैसी बातें करता रहा तो यह सब होना ही था और इसीलिए यह खबर पहले पन्ने पर है। 
  6. दिल्ली : जून में कोवैक्सिन सिर्फ उन्हें जिन्हें दूसरी खुराक लगनी है। 
  7. गोवा (सरकार) ने कहा, तेजपाल (पर) फैसला चौंकाने वाला, गलत, अपील की शीघ्र सुनवाई की मांग की। यह भाजपा की राजनीति से जुड़ी पुरानी खबर है और गुजरात में डबल इंजन की सरकार है। इसलिए हाईकोर्ट में अपील होगी वरना भाजपा ही पहले कह देती रही है कि हम चुनौती नहीं देंगे और कई मामलों में चुनौती नहीं दी गई है। पर वह अलग मुद्दा है। 
  8. यह सरकार की आलोचना करने वाली अकेली खबर है, सेंट स्टीफंस (कॉलेज) के प्राचार्य  ने कहा, अंधे नेता उन्मुक्त हैं। 

टाइम्स ऑफ इंडिया 

  1. ट्वीटर ने अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरे का आरोप लगाया; सरकार ने जवाब में कहा, यह भारतीय कानून का उल्लंघन कर रहा है। बेशक इस खबर का शीर्षक ऐसा ही होना चाहिए था। वैसे तो यह शीर्षक पर्याप्त है और लोग जानते हैं कि जिस कानून के उल्लंघन का आरोप है, वही गलत या मनमाना है। पर अखबार जनहित में इस बात को भी लिख देता तो बात सबको समझ में आ जाती। पर …. यही तो रोना है।
  2. ट्वीटर डर फैला रहा है, संदिग्ध सहानुभूति चाहता है, जांच में सहयोग करना चाहिए। यह खबर इस तथ्य के बावजूद है कि दिल्ली पुलिस जो ‘जांच’ कर रही है उसकी मांग कांग्रेस ने वापस ले ली है। वह खबर कहीं सिंगल कॉलम में दिखी थी। कायदे से उस खबर के विस्तार में यह सब बताते हुए एक अच्छी खबर हो सकती थी। यह तथ्य अपनी जगह है कि अपराध हुआ है तो पुलिस जांच करेगी ही शिकायत वापस लेने का कोई मतलब नहीं है। फिर भी जिस देश में तमाम शिकायतों पर कार्रवाई नहीं होती वहां इसपर हो रही है तो कारण बताना बनता है। और शिकायत वापस लेना इसीलिए खबर है। फिर भी। 
  3. कोविड-19 के सेंकेंड्री संक्रमण के आधे मरीजों की मौत हो जाती है : अध्ययन  
  4. कोवैक्सिन पहेली : छह करोड़ टीके तैयार हैं, 2 करोड़ लगाए गए। बाकी कहां हैं? (असल में आज की खबर यही है)। 
  5. टीका दुनिया भर में कम है – केंद्र (अगर इसे मान लिया जाए तो सरकार को यही कह देना चाहिए। और इसी पर विश्वास दिलाने की कोशिश करनी चाहिए। और सरकार का स्टैंड होना चाहिए कि वह कोशिश कर रही है और जैसे-जैसे उपलब्ध होगा, लगता जाएगा। लेकिन व्हाट्सऐप्प पर लोग इसके मुकाबले पोलियो के टीके की बात कर रहे हैं। पर ज्यादातर खबरें राज्यों पर जिम्मेदारी डालने और केंद्र सरकार का बचाव करने वाली हैं।)
  6. कत्थक नृत्यांगना महामारी से निपटने में कलाकारों की सहायता कर रही हैं। 
  7. मरीजों की सहायता करने वाले 18 साल के स्टीफंस के छात्र की कोविड से मौत (यहां खबरों का अनुपात कुछ ठीक है या कह सकते हैं कि थोड़ी विविधता है। हालांकि खबरें यही हैं। बाकी सिंगल कॉलम की ही छोड़ी है)। 

द टेलीग्राफ 

  1. अंदरूनी क्षेत्र के जीवन और मौत का एल्बम ऐसी कहानी कहता है जो हम सुनना नहीं चाहते हैं।  

कोलकाता से छपने वाले इस अखबार में आज पहले पन्ने पर देश के पूर्वी हिस्से में आए समुद्री तूफान और कोविड पीड़ितों पर विशेष खबरें ही नहीं तस्वीरें भी हैं। निश्चित रूप से यह दूसरों से अलग है। वहां सरकारी खबरें पहले पन्ने पर नहीं हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने फाइजर की जिस खबर को लीड बनाया है वह यहां अंदर के पन्ने पर है। शीर्षक है, सरकार द्वारा फाइजर की बाधा दूर करने से उम्मीद।   

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।