प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चार बड़े और अनूठे कामों में एक समानाता है। पहली समानता तो सबको मालूम है कि इनसे देश को या जनता को कोई फायदा नहीं हुआ और जनता ने इनका विरोध भी किया। पर एक नई समानता यह दिखाई दे रही है कि प्रधानमंत्री ने हर बार कहा है कि विपक्ष लोगों को (उनके नेक काम के खिलाफ) भ्रमित कर देता है। यह हर बार होता है और प्रधानमंत्री उससे निपट नहीं पाते हैं पर उनकी योग्यता, कार्यक्षमता या निर्णय पर कोई सवाल नहीं उठता। एक बार गलती या चूक तो संभव है लेकिन हर बार ऐसा कैसे होता है कि वे कोई विवादास्पद निर्णय करते हैं, जिसका लाभ किसी को समझ में नहीं आता है और विरोध करने वालों को विपक्ष भड़का देता है वे जनता को बताते हैं और बस देशभक्ति हो जाती है। नए कृषि विधेयक के साथ ऐसा ही है, नोटबंदी और जीएसटी के साथ भी ऐसा ही हुआ था।
द हिन्दू की 18 सितंबर 2020 की एक खबर का शीर्षक है, कृषि विधेयक पर किसानों को भ्रमित किया जा रहा है। यह पटना डेटलाइन से अमरनाथ तिवारी की खबर है। इसमें वे बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों के क्रम में कोसी रेल मेगा ब्रिज के डिजिटल उद्घाटन के बाद बोल रहे थे। हो सकता है चुनाव के मौके पर बिहार में उनके इस भरोसे या आरोप का असर हुआ हो और अगर आप भी मानते हैं कि बिहार यूपी के किसान पंजाब के किसानों के साथ क्यों नहीं हैं तो इसका एक कारण यह भी हो सकता है। वैसे फूट डालो और राज करो- पुराना नुस्खा है और इस मुख्य खबर के बाद यह खबर भी आई थी कि प्रधानमंत्री ने भाजपा कार्यकर्ताओं से कहा कि वे किसानों को कृषि विधेयक के बारे में बताएं। यह खबर 25 सितंबर की थी।
अब इसके बाद भी किसानों का विरोध नवंबर के आखिरी दिनों में चल रहा है और उसमें बिहार यूपी के किसान अनुपस्थित बताए जा रहे हैं तो आप समझ सकते हैं कि समझाने का काम पंजाब में हुआ ही नहीं होगा। प्रचार से राज करने में इस बात का कोई मतलब नहीं है कि खेती के मामले में बिहार और पंजाब के किसानों में वही अंतर है जो प्रति व्यक्ति साक्षरता के मामले में बिहार और केरल के लोगों में है। पर अभी वह मुद्दा नहीं है। मैं सच नहीं बता रहा मैं यह बताना चाह रहा हूं कि प्रधानमंत्री कितने लाचार हैं। वे जो करना चाहते हैं उसका लोग सफलतापूर्वक विरोध करते हैं फिर भी कुछ नहीं होता है और विरोधी बदनाम होता है। प्रधानमंत्री की लाचारी कहीं मुद्दा ही नहीं है। वे जो करते हैं उसकी अच्छाई भी वैसे ही गायब रहती है जैसे गधे के सिर से सींग।
यह मैं ऐसे ही नहीं कह रहा हूं। मेरा पक्का मानना है कि यह ओढ़ी या खरीदी हुई लोकप्रियता का राज है। और यह एक डिजाइन है। विपक्ष पर आरोप लगाना आसान है। विपक्ष का काम भी यही है। लेकिन विपक्ष सिर्फ आरोप लगाने के लिए नहीं होता है और लोकतंत्र में बहुमत मिल जाने का यह मतलब बिल्कुल नहीं होता है कि विपक्ष की सुनी ही नहीं जाए। पर सबकी अपनी नीति और राजनीति होती है। एंटायर पॉलिटिकल साइंस वाली हम देख रहे हैं और जो खास लग रहा है वही बताना मेरा मकसद है। इस रणनीति या डिजाइन की शुरुआत जीएसटी लागू करने से ही हो गई थी। आप जानते हैं कि सत्ता में आने से पहले नरेन्द्र मोदी इसका विरोध कर रहे थे पर सत्ता में आते ही उन्होंने लगभग किसी तैयारी के बिना जीएसटी लागू कर दिया। इसका लाभ किसे मिला आज तक बताया तो नहीं ही गया है, मेरी समझ में भी नहीं आया।
जीएसटी अपनी तरह का और भाजपा के यू-टर्न लेने का पहला मामला था और तब इस आशय का शीर्षक खूब छपा था कि विपक्ष लोगों को जीएसटी पर भ्रमित कर रहा है। इसके साथ यह भी कि ओबीसी (अन्य पिछड़ी जाति) के मामले में सरकार के स्टैंड पर भी विपक्ष लोगों को भ्रमित कर रहा है। इस खबर में ही यह भी कहा गया था कि उन्होंने भाजपा के सांसदों (बाद में इनमें से ज्यादातर खुशी-खुशी चौकीदार हो गए थे) से कहा कि वे विपक्ष की झूठ की पोल खोलें। आपको याद होगा, राहुल गांधी ने नारा दिया था चौकीदार ही चोर हैं और इसका विरोध करने के लिए सेना के जनरल से लेकर तमाम कार्यकर्ता प्रचारक चौकीदार हो गए थे और 2019 का चुनाव जीतने के बाद यह मान लिया गया कि जनता ने राहुल गांधी के आरोपों को नकार दिया है। इन चौकीदारों के सत्ता में रहते चीन से शुरू हुआ कोरना देश भर में फैल गया पर अभी वह भी मुद्दा नहीं है।
इसके बाद इस सरकार का या उस प्रधानमंत्री का जिसका विकल्प नहीं है, बड़ा कदम था– नोटबंदी की घोषणा। प्रधानमंत्री ने इसे अपनी बहादुरी के रूप में पेश किया और ये भी कहा था कि इंदिरा गांधी नोटबंदी नहीं कर पाई मैंने कर दिया। यह अलग बात है कि उन्होंने 1000 का नोट बंद करके 2000 का नहीं शुरू किया था बल्कि सारे बड़े नोट बंद कर दिए थे और उनकी जगह सिर्फ 100 का नोट ही चला 31 अक्तूबर 1984 को उनकी हत्या होने तक। पूरा मामला आपको जैसे बताया गया है या आप जितना जानना चाहते हैं, जानते हैं। इसलिए मैं सिर्फ याद दिला रहा हूं कि तब भी प्रधानमंत्री ने कहा था कि विपक्ष लोगों को भ्रमित कर रहा है। नोटबंदी को लेकर लोगों को भ्रमित करने की कोशिशों के नरेन्द्र मोदी के आरोप से संबंधित खबर 24 दिसंबर 2016 की है। यह इकनोमिक टाइम्स की खबर है और इस समय तक साफ हो चुका था कि नोटबंदी कितनी बड़ी बेवकूफी थी। लेकिन आरोप दूसरों के सिर मढ़ने का पुराना अभ्यास ही आजमाया गया। जो सीएए के मामले में भी जारी रहा।
नोटबंदी को लेकर लोगों को भ्रमित करने की कोशिशों के नरेन्द्र मोदी के आरोप से संबंधित खबर 24 दिसंबर 2016 की है। यह इकनोमिक टाइम्स की खबर है और इस समय तक साफ हो चुका था कि नोटबंदी कितनी बड़ी बेवकूफी थी। लेकिन आरोप दूसरों के सिर मढ़ने का पुराना अभ्यास ही आजमाया गया। जो सीएए के मामले में भी जारी रहा। 22 दिसंबर 2019 को बिजनेस स्टैंडर्ड (अंग्रेजी) में खबर थी, विपक्ष लोगों में डर फैला रहा है, मुसलमानों को भ्रमित कर रहा है। 13 जनवरी को डेक्कन हेरल्ड में खबर थी, विपक्ष ने सीएए पर लोगों को भ्रमित किया। इस तरह आप देख सकते हैं कि विपक्ष पर आरोप लगाना आम है। सीएए के खिलाफ जो सब हुआ जैसे हुआ उसके बावजूद लोगों को फिर भ्रम फैलाने का मौका दिया गया या लोगों ने लपक लिया और सरकार हमेशा की तरह फिर स्थिति को संभाल नहीं पा रही है। अपने हित में तो बिल्कुल नहीं।
हो सकता है कि यह सब प्रचारक प्रधानमंत्री का असर हो और यह तो तय है कि प्रचार से गोरेपन की क्रीम बिक सकती है तो प्रचार से एक ऐसा नेता भी बन सकता है जिसका विकल्प ही न हो। अब वह देश के लिए कितना उपयोगी है या पार्टी के लिए ही उपयोगी है, यह अभी प्रचार या प्रचारकों का मुद्दा ही नहीं है।
लेखक संजय कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।