खऱीफ की फसल की एमएसपी बढ़ी, प्रधानमंत्री की फोटो के साथ खबर
रेल दुर्घटना और पहलवानों की खबर पहले पन्ने से हटी
अखबारों की खबरों के अनुसार, लखनऊ कोर्ट परिसर में कल (बुधवार, 07 जून 2023) मुख्तार अंसारी के करीबी, संजीव जीवा माहेश्वरी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। वारदात को अंजाम देने के लिए हमलावर वकील की ड्रेस पहनकर अदालत पहुंचा था। संजीव जीवा पर भाजपा नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या का आरोप था। उसपर जेल से गैंग चलाने और आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने के भी मामले थे। वह अपनी पत्नी पायल माहेश्वरी को राजनीति में स्थापित करने की कोशिश कर रहा था। उसने 2017 का विधानसभा चुनाव सदर सीट से रालोद में शामिल होकर लड़ा था। संजीव जीवा लखनऊ जेल में था। उसे कल अदालत में सुनवाई के लिए पेश किया गया था जहां उसकी हत्या हो गई। संजीव पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई गईं। मौके पर कुछ और लोग घायल हुए हैं। शूटर विजय यादव को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।
खबरों के अनुसार उसने कहा है, “हम जीवा को मारने आए थे और मार दिया।“ उत्तर प्रदेश में डबल इंजन की यानी केंद्र की तरह भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और मुख्यमंत्री राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति दुरुस्त होने तथा अपराधियों के साथ बुलडोजर न्याय करने का दावा करते हैं। इसके बावजूद राज्य में हत्या बलात्कार के मामले कम नहीं हैं। अपराधियों की जान तो दो कौड़ी की हो गई है। पर मामला एक पक्ष के कमजोर होने और दूसरे के मजबूत होने का ज्यादा लगता है। सजा अदालत से नियमों के अनुसार हो रही है, ऐसा नहीं है। इससे पहले प्रयागराज में पुलिस की हिरासत में अस्पताल ले जाये जा रहे अपराधी और राजनीतिज्ञ अतीक अहमद तथा उसके भाई अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी थी। तब अपराधी पत्रकार के भेष में थे और बाइट लेने के नाम पर गोली मार दी। जो भी हो, मेरा मतलब अपराध या उसकी खबर से नहीं उसके छपने या नहीं छपने से है।
कहने की जरूरत नहीं है कि मुख्यमंत्री के दावे के बीच इस तरह दिन दहाड़े अदालत में उस अभियुक्त की हत्या हो जाना जो पुलिस सुरक्षा में पेशी के लिए लाया गया था, हत्या की सामान्य घटना नहीं है। और जब दावा कानून-व्यवस्था की स्थिति ठीक होने का है तब तो बिल्कुल नहीं। ऐसे में यह खबर महत्वपूर्ण है और लखनऊ की वारदात होने के बावजूद दिल्ली में पहले पन्ने पर छपने लायक है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने इसे फोटो के साथ तीन कॉलम में छापा भी है। टाइम्स ऑफ इंडिया में यह टॉप पर सिंगल कॉलम में है। और नवोदय टाइम्स में लीड। लेकिन अमर उजाला में पहले पन्ने पर नहीं है। कोलकाता के द टेलीग्राफ में भी पहले पन्ने पर नहीं है लेकिन वहां होना जरूरी भी नहीं था। दिल्ली के अखबारों में द हिन्दू और इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। हालांकि दोनों में अंदर होने की सूचना है।
इंडियन एक्सप्रेस में उसकी एक्सक्लूसिव खबर जरूर है जो बताती है कि पुराने जम्मू और कश्मीर राज्य के आतंकवाद के मामलों में कुछ बदलाव हुआ है और 2021 के बाद से जम्मू क्षेत्र के तीन जिलों – पुंछ, राजौरी और जम्मू में वारदातें कम हुई हैं पर खून ज्यादा बहा है और आतंकवाद के ऐसे हमले हुए हैं जो ज्यादा दिखाई देने वाले हैं। पर गिनती के मामले में घाटी का प्रभुत्व है। कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद वहां की खबरें नहीं के बराबर आती रही हैं। ऐसे में वारदात के आंकड़ों के आधार पर यह एक महत्वपूर्ण खबर है जो दूसरे अखबारों में भी होनी चाहिए।
लखनऊ की खबर के अलावा आज के अखबारों की लीड मुख्य रूप से यही है कि पहलवानों का मामला फिलहाल टल गया है और खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के हस्तक्षेप से भाजपा नेता और कवचधारी सांसद की गिरफ्तारी फिलहाल टल गई है। शीर्षक से इसका खेल समझ में आएगा और खेल की बात चली तो यह बताना जरूरी है कि सरकार ने खरीफ की फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा दिया है और हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर लीड है। इस खबर का राजनीतिक महत्व है और इसीलिये अमर उजाला तथा नवोदय टाइम्स में यह खबर प्रधानमंत्री की फोटो के साथ है। वैसे इनके पाठकों में किसान और कारोबारी भी हो सकते हैं। अमर उजाला में शीर्षक है, खरीफ की कई फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ा। धान की एमएसपी 143 रुपये बढ़ी और अब यह 2183 रुपये प्रति क्विंटल होगी तथा मूंग की कीमत में सबसे ज्यादा, 803 रुपये की वृद्धि हुई है। हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर लीड है, “मंत्रिमंडल ने खरीफ की फसल के लिए ऊंचे एमएसपी को मंजूरी दी”।
सरकारी प्रचार की आज की दूसरी खबर पहलवानों का मामला टल जाने की ही है और इसे कई अखबारों ने लीड बनाया है जबकि खरीफ की फसल का एमएसपी बढ़ने की खबर सेकेंड लीड है। हिन्दुस्तान टाइम्स में पहलवानों की खबर सेकेंड लीड है। शीर्षक है, मंत्री से मिलने के बाद पहलवानों ने आंदोलन टाल दिया। अनुराग ठाकुर ने कहा है, यह बहुत सकारात्मक प्रगति है …. (जैसे अभी तक किसी ने उन्हें बताया ही नहीं था) हम चाहते हैं कि एशियन गेम्स और ओलंपिक के लिए पहलवान फिर से जितनी जल्दी सम्भव हो, मैट पर वापस आएं। जो भी हो, इस खबर और शीर्षक से साफ है कि पहलवानों के मामले में देरी सरकार की तरफ से हुई और नुकसान का अंदाजा सरकार को है।
टाइम्स ऑफ इंडिया के शीर्षक का अनुवाद होगा, पहलवानों ने ठाकुर से मुलाकात की, 15 जून तक आंदोलन टाला। इंट्रो है, सिंह की गिरफ्तारी की मुख्य मांग छह घंटे की बातचीत का भाग नहीं थी। इसके साथ के बॉक्स की खबरों का शीर्षक है, बृज के खिलाफ चार्ज शीट 15 जून तक। कानून व्यवस्था की स्थिति दिल्ली में भी ठीक नहीं है और यहां के अखबारों में भी दिल्ली के ऐसे मामले पहले पन्ने पर नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए, टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर है, पैदल टहल रही छात्राओं से पांच लोगों ने छेड़छाड़ की, दो का अपहरण करने की कोशिश। एक पीएचडी स्कॉलर की भी पिटाई। पुलिस ने एक संदिग्ध को गिरफ्तार किया। राजधानी दिल्ली में जेएनयू के पास अगर ऐसी स्थिति है तो सुरक्षा की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है।
इंडियन एक्सप्रेस में खरीफ की खबर पहले पन्ने पर नहीं है लेकिन पहलवानों की खबर का फ्लैग शीर्षक है, सार्वजनिक निमंत्रण के बाद छह घंटे की बैठक। मुख्य शीर्षक है, पहलवानों-सरकार के बीच का उलझन टूटा : विरोध प्रदर्शन टला, पुलिस चार्जशीट 15 जून तक। अनुराग ठाकुर ने वार्ता का नेतृत्व किया, पहलवानों को आश्वस्त किया कि डबल्यूएफआईका चुनाव 30 जून तक होगा और एक अलग खबर में कहा गया है कि डब्ल्यूएफआई की सफाई होगी, ब्रजभूषण नहीं रहेंगे, पहलवान अपनी बात रखेंगे। द हिन्दू की खबर का शीर्षक है, पहलवानों ने मंत्री के आश्वासन पर विरोध टाला। उपशीर्षक में यह भी बताया गया है कि साक्षी मलिक के अनुसार 28 मई को पहलवानों के खिलाफ दर्ज दंगा करने की एफआईआर वापस ली जाएगी।
अमर उजाला में यह खबर लीड है, पहलवान 15 तक प्रदर्शन नहीं करने पर राजी, कुश्ती महासंघ के चुनाव 30 तक। उपशीर्षक है, कुश्ती महासंघ में बनेगी आंतरिक शिकायत समिति, महिला होगी अध्यक्ष, खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के साथ छह घंटे तक चली बैठक, नहीं पहुंची विनेश फोगाट। नवोदय टाइम्स में फ्लैग शीर्षक है, “पहल पहलवानों से खेल मंत्री की मैराथन मीटिंग”। “मुख्य शीर्षक है, बृजभूषण पर कार्रवाई हफ्ते में!” द टेलीग्राफ में इस खबर का शीर्षक है, “विरोध प्रदर्शन पॉज पर, खत्म नहीं हुआ है: पहलवान।” इस बीच जाहिर है, रेल दुर्घटना की खबर पहले पन्ने से हट गई, सीबीआई जांच शुरू है और खबर है कि छह रेल कर्मचारियों के फोन जब्त हुए हैं। दिल्ली के शराब घोटाले की जांच भी मनीष सिसोदिया के फोन जब्त कर हो रही है (वहां मंत्री का यहां कर्मचारी का क्योंकि सरकारें अलग पार्टी की हैं?) लेकिन उनपर फोन नष्ट करने का और उनकी तरफ से सीबीआई पर इस मामले में झूठ बोलने का आरोप है। लेकिन मुद्दा तो यही है कि रेल मंत्री कवच का प्रचार कर रहे थे और कवच सभी ट्रेन में नहीं लगा है। अभी भी नहीं बताया गया है कि कब तक लग जाएगा, क्यों नहीं लगा या इसके लिए कौन जिम्मेदार है या जरूरी नहीं था तो प्रचार किस लिए हो रहा था।
कुल मिलाकर, मामला जैसा था वैसा ही है। 50 दिन में सपनों का भारत देना था, अच्छे दिन आने थे पर कुछ हुआ नहीं। अनिवासी भारतीयों के बीच अच्छा प्रचार जरूर लगता था लेकिन आज सोशल मीडिया पर सक्रिय अनिवासी भारतीय आफ डांडिया की चुनौती दिखी, “… सवाल वही है, जितने भी अंधभक्त अमेरिका मे रहते हैं उन्होंने यह कार्ड (प्रवासी भारतीय नागरिक कार्ड) तो बनवा रखा है पर अच्छे दिनो के मज़े लेने के लिये अमेरिका छोड़ कर घर वापसी क्यो नहीं करते, मेरा ऑफर चालू है एक तरफ़ की टिकट मेरी तरफ़ से। सत्य तो यह हैं कोई नहीं जाने वाला। अमेरिका मे रह रहे अंधभक्त देश मे रह रही गोदी मीडिया के साथ जुगलबंदी कर के देश मे रह रहे अंधभक्तों की फ़ौज खड़ा कर चुके है और इनके मज़े ले रहे हैं।” इस बीच इंडियन एक्सप्रेस में आज पहले पन्ने पर प्रकाशित एक खबर के अनुसार, सरकार ने आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा को उनकी योग्यता से बड़ा बंगला दे दिया था। बदलकर छोटा देना चाहते थे तो चड्ढा ने अदालत में चुनौती दी और स्टे ले लिया। यह काम करने वाली ईमानतार सरकार का हाल है! प्रचार करती है ‘कवच’ का और दुर्घटना होती है तो पता चला कि वह लगा है, “प्रचारक (कों)” में।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।