स्थानीय फायदे के लिए रोड शो, भविष्य के लिए बजरंग बली और छवि बनाने के लिए हेडलाइन मैनेजमेंट! 

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


मणिपुर में आग लगी हुई है और प्रधानमंत्री कर्नाटक में रोड शो कर रहे हैं। आज की सबसे बड़ी खबर यही है और जाहिर है कि द टेलीग्राफ छोड़कर किसी अखबार में यह लीड नहीं है। कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसे में प्रधानमंत्री के रोड शो का प्रचार सरकार या सरकारी पार्टी के लिए सकारात्मक खबर नहीं है। कर्नाटक में रोड शो से जो फायदा होना है होगा स्थानीय अखबार मणिपुर से ज्यादा महत्व रोड शो को देने के लिए मजबूर हैं और इसीलिए रोड शो हुआ है। ऐसे में रोड शो की खबर को महत्व नहीं देना पत्रकारिता नहीं राजनीति है। पर यह मेरी राय है। आज के अखबारों में प्रधानमंत्री के ऐतिहासिक रोड शो को वह महत्व नहीं मिला जो मिलता रहा है या जिसके काबिल वह है। कारण आप तय कीजिये। पर जो है सो है। मैं इसे हेडलाइन मैनेजमेंट तो कहूंगा ही। यह संयोग नहीं हो सकता है और उसका कारण आगे बताउंगा। 

प्रधानमंत्री के रोड शो को लीड नहीं बनाने के कारणों को समझने के लिए मैं आपको आज की लीड बताता हूं। अमर उजाला और नवोदय टाइम्स की लीड है, लाहौर में शरण लिए खालिस्तानी आतंकी परमजीत पंजवड़ की हत्या। नवोदय टाइम्स में दूसरी प्रमुख खबर है, रक्षा मंत्री ने सीमा पर सुरक्षा का जायजा लिया। यहां रोड शो की खबर पहले पन्ने पर नहीं है। मणिपुर की भी नहीं है। अमर उजाला में दूसरी प्रमुख खबर (लीड के ऊपर बॉक्स), ब्रिटेन में 70 साल बाद राज्याभिषेक, किंग चार्ल्स के सिर सजा ताज है और मणिपुर की दो छोटी सिंगल कॉलम की खबरें हैं। अमर उजाला में रोड शो की खबर पहले पन्ने पर चार कॉलम में है लेकिन दो कॉलम में फोटो और दो कॉलम में खबर से दोनों चीजें दब गई हैं। 

खबर के शीर्षक में बताया गया है कि 26 किलोमीटर के रोडशो में भीड़ ने बजरंगबली के नारे लगाये। कर्नाटक में हिन्दी बोलने वाले बहुत कम हैं और 26 किलोमीटर के रोड शो में अगर बजरंग बली के नारे लगते रहे तो कितनी बड़ी बात है आप समझ सकते हैं। खोजी पत्रकारिता ये हो सकती थी कि वो लोग वहीं के थे या दिल्ली अथवा आस-पास के हिन्दी राज्यों से ले जाए गए थे। पर अब ऐसी पत्रकारिता होती नहीं है और हिन्दी के पर्याप्त बड़े अखबार में यह एजेंसी की खबर है और एजेंसियों में एक का हाल यह है (और यह ट्वीटर पर चर्चा में था) कि पांच जनवरी की शाम / रात यह खबर चला दी गई थी कि अमित शाह के कर्नाटक के कार्यक्रम मणिपुर की हिंसा के मद्देनजर रद्द हो गये हैं। यहां यह बता दूं कि रैली में जय बजरंग बली के नारे का फायदा कर्नाटक में नहीं होगा और यह कर्नाटक के बाद मध्य प्रदेश राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ में होने वाले चुनावों के लिए है। 

दूसरी बात यह भी है कि ईवीएम की गड़बड़ी अगर होती होगी या हो पाई तो यह कहा जा सकेगा कि प्रधानमंत्री की मेहनत रंग लाई या बजरंगबली ने कमाल कर दिया। वरना कर्नाटक में लोग कह रहे हैं कि भाजपा की सरकार ने कोई काम नहीं किया है भाषण देकर पका दिया है आदि। ऐसे में बजरंगबली का मुद्दा मिलने से पहले (भाजपा समर्थक कहते हैं कांग्रेस ने दे दिया) कांग्रेस की स्थिति की स्थिति काफी मजबूत थी और भाजपा की हताशा दिख रही थी। अब पैसे खर्च करके रोड शो जैसा फूहड़ प्रदर्शन मणिपुर में आग लगी होने के बावजूद किया जा रहा है तो उसका मकसद होगा है और उसकी खबर दिल्ली में नहीं छपने के मायने हैं। रेखांकित करने वाला तथ्य तो है ही। 

अल्ट न्यूज के जुबैर अहमद ने शनिवार शाम अमित शाह के कर्नाटक के कार्यक्रम रद्द होने की खबर को गलत बताया था और ट्वीट किया था कि अमित शाह की रैली चल रही है। कल शाम ट्वीट के बाद मैंने चेक किया, भाजपा के वेबसाइट पर कार्यक्रम थे और यह सूचना नहीं थी कि वे रद्द हो गये हैं। अगर अमित शाह मणिपुर में होते तो उसकी खबर भी आज कहीं पहले पन्ने पर होती लेकिन वह भी नहीं दिखी। मुझे लगता है कि यह भी हेडलाइन मैनेजमेंट का भाग है और परसों की खबर अखबारों में छप गई होगी, काम हो गया। रैली भी हो गई। और ऐसे में इंडियन एक्सप्रेस ने शीर्षक में बताया है कि मणिपुर में मरने वालों की संख्या 50 पार कर गई है। सेना ने मोर्चा संभाल लिया है। इंडियन एक्सप्रेस में और भी शीर्षक, उपशीर्षक और फ्लैग शीर्षक हैं पर किसी में यह नहीं बताया गया है कि गृहमंत्री मणिपुर के मामले देख रहे थे। केंद्रीय मंत्री रिजिजू के हवाले से यह जरूर कहा गया है कि दिल्ली की निगरानी चल रही है। 

इंडियन एक्सप्रेस में रोड की खबर पहले पन्ने पर है ही नहीं। राजनाथ सिंह के राजौरी जाने की खबर जरूर है। इंडियन एक्सप्रेस में बेशक और भी खबरें हैं लेकिन रोड शो की खबर नहीं होना मायने रखता है। टाइम्स ऑफ इंडिया में दोनों खबर हैं और बराबर में हैं। लीड मणिपुर की खबर है और 30 लोगों के मारे जाने की आधिकारिक सूचना है तथा यह भी बताय गया है कि सैकड़ों भाग चुके हैं। चार कॉलम की इस लीड के बराबर में दो कॉलम की फोटो के साथ तीन कॉलम में रोड शो की खबर है। यहां यह भी बताया गया है कि रोड शो में लोगों ने हनुमान जी का मुखौटा लगा रखा था। 

द हिन्दू में ब्रिटेन के किंग चार्ल्स की खबर लीड है और मणिपुर की खबर बराबर में दो कॉलम में है। इसका शीर्षक है, नाराजगी से निपटने के लिए मुख्यमंत्री ने बहुदलीय बैठक की। जाहिर है, केंद्रीय गृहमंत्री की कोई भूमिका होती तो शीर्षक कुछ और होता। दूसरी ओर, झूठी खबर चलाए जाने का असर यह भी हुआ होगा कि कर्नाटक से अमित शाह की खबर को सही मानने में दिक्कत होगी, कंफर्म करने की जरूरत होगी और ऐसे में छोड़ देना ज्यादा आसान था। या अंदर भी हो सकती है जो मैं नहीं देखता। द हिन्दू में रोड शो की खबर तीन कॉलम में दो कॉलम की फोटो के साथ है। शीर्षक में भाजपा का यह दावा भी है कि 10 लाख लोगों ने हिस्सा लिया। 

हिन्दुस्तान टाइम्स में मणिपुर की खबर लीड है और 55 लोगों के मारे जाने की सूचना है। लीड के बराबर में किंग चार्ल्स की खबर है उसके नीचे रोड शो की खबर है। किग चार्ल्स की खबर और फोटो के नीचे प्रधानमंत्री की खबर छापने के अपने मायने हैं। पर ऐसा ही है। शीर्षक प्रधानमंत्री का यह दावा है कि रोडशो में भाजपा के लिए लोगों का प्यार बेजोड़ था। खबर के साथ फोटो तो नहीं ही है सोनिया गांधी की खबर और फोटो लगाई गई है जो किसी और अखबार में नहीं दिखी। इसे कर्नाटक में सत्ता बदलने और भाजपा के हाथ से बाजी निकलने का संकेत या आहट माना जा सकता है। 

इन सब अखबारों से अलग द टेलीग्राफ ने वह खबर छापी है जो आज खबर है। लीड का शीर्षक है, त्रासदी के समय में / फूहड़ता के मसीहा  / मणिपुर में कई मरे। अंग्रेजी में नरेन्द्र मोदी को ‘किंग ऑफ कित्श’ कहा गया है। इसके लिए मैंने ‘फूहड़ता के मसीहा’ लिखा है। जरूरी नहीं है कि यह सौ फीसदी सटीक हो लेकिन निकटम है। हिन्दी में इसके लिए कोई एक शब्द नहीं मिला। मेरा अनुवाद वैसे ही है जैसे ‘फक ऑफ’ के लिए ‘छोड़ो-हटाओ’ या ‘गोली मारो’ कहा जाए। हम जानते हैं कि यह शाब्दिक अनुवाद का मामला नहीं है और यहां छोड़ो हटाओ या गोली मारो का अंग्रेजी के ‘फक’ से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है। इसी तरह गोली का संबंध न ही बंदूक से या ना कंचे से। लेकिन बात समझ में आती है।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।