सबसे पहले आज की कुछ प्रमुख खबरें और उसके बावजूद केंद्रीय वित्त मंत्री का आशावाद, “(कोविड-19 के) दूसरे दौर से बड़े सुधार प्रभावित नहीं होंगे”- इंडियन एक्सप्रेस में सेकेंड लीड है। और लीड भी सच से दूर गलतफहमी पैदा करने वाली लेकिन सबसे पहले आज की प्रमुख खबरें :
- बंगाल चुनाव प्रचार पर रोक की घोषणा प्रधानमंत्री ने पहले की, आयोग ने औपचारिक रूप बाद में दिया
- कोविड की बड़ी आंधी के संकेतों को नजरअंदाज किया गया
- राष्ट्रीय आपदा की स्थिति है
- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से उसकी तैयारियों का विवरण मांगा
- बार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, हाई कोर्ट को फैसले करने दीजिए।
- सोनिया गांधी ने टीका नीति पर पुनर्विचार की जरूरत बताई
- ऑक्सीजन की कमी की सूचना गए साल अप्रैल में थी, नवंबर में फिर बताई गई।
- कम से कम नौ देशों ने भारतीय विमान यात्रियों पर प्रतिबंध लगाया है
- नए मामले 3.32 लाख से ज्यादा हुए, 2247 मौतें हुईं, अकेले दिल्ली में 306 मौतें
- दिल्ली एनसीआर में ऑक्सीजन की कमी बनी हुई है, अस्पतालों ने मरीजों से जाने के लिए कहा।
- दूसरे दौर से बड़े सुधार प्रभावित नहीं होंगे
इन खबरों में सबसे महत्वपूर्ण है पश्चिम बंगाल का महीने भर चलने वाला चुनाव और उसपर चुनाव आयोग का कल का आदेश। इस तथ्य के मद्देनजर कि प्रधानमंत्री एक देश एक चुनाव की बात करते हैं। अगर ऐसा हो गया और नरेन्द्र मोदी जैसा प्रधानमंत्री रहा तो देश में एक चुनाव मंत्री का पद प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से ऊपर बनाना होगा जो चुनाव लड़े और जीतता रहे। देश पहले जैसे चल रहा था वैसे ही चलता रहे। आप जानते हैं कि एक राज्य, पश्चिम बंगाल का चुनाव आठ चरणों में हो रहा है और यह कई कारणों से अपने आप में अजूबा है। बाकी राज्यों के चुनाव बंगाल समेत तीन चरणों में खत्म हो गए फिर भी बाकी के पांच चरण एक साथ नहीं कराए जा सके। मांग करने पर भी चीन चरण के चुनाव एक साथ नहीं कराए गए पर अब नया ऐसा आदेश आया है तो उसकी क्रोनोलॉजी दिलचस्प है।
जहां तक मेरी जानकारी है, राहुल गांधी ने सबसे पहले अपनी रैली रद्द करने की घोषणा की। इसके बाद ममता बनर्जी ने अपनी रैली कम करने की घोषणा की। लेकिन भाजपा इस मामले में सबसे पीछे रही। रैली रद्द करने की राहुल गांधी की घोषणा के बाद उनके कोरोना संक्रमित होने की खबर आई तो रैली रद्द किया जाना बहुत महत्वपूर्ण नहीं रहा और पार्टी के दूसरे लोगों ने सभाएं की जिसकी आलोचना भी हुई। लेकिन राहुल गांधी और ममता बनर्जी या कांग्रेस पार्टी के लिए रैली–सभा करने वाले नेता सरकार नहीं हैं। सरकार में उनका कोई काम नहीं है। कोविड के कारण खराब होती स्थिति में ममता बनर्जी से लड़ने की बजाय कोविड से लड़ने के लिए सत्तारूढ़ दल को या प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को अपनी रैलिया पहले रद्द करके देश सेवा में जुट जाना चाहिए था। मैं बंगाल चुनाव लड़ने या जीतने को प्रधानमंत्री के दायित्वों से ऊपर देश सेवा नहीं मानता। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। रैलियां होती रहीं। कल (गुरुवार को) भी प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की रैली हुई। बाद में जो हुआ उसे द टेलीग्राफ ने क्रम से छापा है और इस खबर का शीर्षक है, “चुनाव प्रचार पर प्रतिबंध में चुनाव आयोग ने नेता का अनुसरण किया।”
इस खबर में बताया गया है कि चुनाव आयोग की संबंधित खबर से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को बंगाल के अपने सभी कार्यक्रम रद्द कर दिए। इसके बाद ममता बनर्जी ने अपनी चुनावी सभाएं रद्द कीं तब चुनाव आयोग का आदेश आया। चुनाव आयोग के आदेश से पहले दो दिलचस्प घटनाएं हुईं। यह आदेश हफ्तों चली विशाल रैलियों के बाद आया है जबकि कोविड-19 के दूसरे दौर की सघनता के लिए इन्हें आंशिक तौर पर जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है। कोविड का फैलाव रोकने के लिए तृणमूल कांग्रेस ने अंतिम तीन चरणों का मतदान एक साथ कराने का आग्रह किया था जिसे चुनाव आयोग ने खारिज कर दिया था। अब कल क्या हुआ सो सुनिए। शाम करीब 5:30 बजे प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया कि वे शुक्रवार का अपना बंगाल दौरा रद्द कर रहे हैं। आज उन्हें वहां चार चुनावी रैलियां करनी थीं। उन्होंने कहा कि वे उच्च स्तर की चार सभाओं की अध्यक्षता करेंगे ताकि कोविड-19 की स्थिति की समीक्षा की जा सके।
शाम करीब 6:00 बजे एक भाजपा नेता ने ट्वीट कर ‘भरपूर मात्रा में मौजूद लोकतंत्र की अंतश्चेतना के रक्षकों‘ से जानना चाहा कि क्या वे ममता बनर्जी से पूछेंगे कि पश्चिम बंगाल में अपनी रैलियां क्यों कर रही हैं। फिर रात आठ बजे से थोड़ी देर बाद चुनाव आयोग ने चुनावी सभाओं में भीड़ से संबंधित प्रतिबंधों की घोषणा की। इससे पहले सीएए विरोध के दौरान देश को क्रोनोलॉजी बताने की अपनी योग्यता के लिए मशहूर अमित शाह ने तीन रैलियां की थीं और पहले की ही तरह बिना मास्क लगाए देखे गए। कम से कम एक जगह उनका मास्क नीचे ठुड्डी पर था।
ऐसी हालत में हिन्दुस्तान टाइम्स ने आज भी स्थिति की गंभीरता को वही महत्व दिया है जो मिलना चाहिए। आठ कॉलम का इसका शीर्षक है, नेशनल इमरजेंसी (राष्ट्रीय आपदा)। इसके साथ इस आपदा के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से का सच, ऑक्सीजन के लिए चल रही रस्साकशी ने दिल्ली को कगार पर रख–रखा है, छपा है। इंडियन एक्सप्रेस ने मांग और पूर्ति के मामले की तरह छापा है और बताया है कि ऑक्जीसन की मांग आपूर्ति से ज्यादा हो गई और प्रधानमंत्री ने संकट बैठक की। दूसरे अखबारों में खबर है कि प्रधानमंत्री ने आज की पश्चिम बंगाल की अपनी रैलियां रद्द की हैं और आज वे उच्च स्तरीय बैठक की अध्यक्षता करेंगे। बेशक कल भी बैठक हुई होगी जिसकी सूचना दूसरे अखबारों को नहीं मिली या अखबारों ने नहीं दी। पर जब प्रधानमंत्री खुद ट्वीट कर बताएं वह खबर नहीं हो तथा खबर यह हो कि बैठक तो आज ही हो गई (या आज भी हुई) – तो कोई भी यह अपेक्षा करेगा कि कुछ स्पष्टीकरण होगा कि कल क्या हुआ और आज क्या होगा।
लेकिन अखबार शायद यह मानकर चलते हैं कि लोग एक ही अखबार पढ़ते हैं। वैसे स्थिति यह है कि अभी तक हमलोग देश भर के बीमारों को दिल्ली बुला लेते थे और तब दाखिले की सोचते थे। अब दिल्ली और एनसीआर के मरीजों में जो संपन्न हैं उन्हें मेरठ, आगरा की शरण लेनी पड़ रही है या दिल्ली में वैसे ही दम तोड़ रहे हैं। कल दिल्ली में 306 मौतें हुईं। इंडियन एक्सप्रेस ने स्थिति की गंभीरता को कम बताने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का आश्वासन भी छापा है लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया की तरह यह नहीं बताया है कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपदा की स्थिति में उसकी योजनाओं के बारे में पूछा? आज के समय में इस खबर की गंभीरता आप समझ सकते हैं और इसका पहले पन्ने पर नहीं होना (हिन्दुस्तान टाइम्स में यही शीर्षक है) और उसके बदले में वित्त मंत्री का आश्वासन होना निश्चित रूप से जरनलिज्म ऑफ करेज नहीं है। और चाहे जो हो।
टाइम्स ऑफ इंडिया का लीड भले इंडियन एक्सप्रेस की तरह ‘राष्ट्रीय’ नहीं है पर यह दिल्ली और एनसीआर के अस्पतालों का हाल तो बताता ही है। आज दि हिन्दू में भी यही लीड है। हिन्दू का भी शीर्षक है, “ऑक्सीजन, दवाइयों पर हम केंद्र से राष्ट्रीय योजना की उम्मीद करते हैं : सुप्रीम कोर्ट।” हिन्दू में इस खबर के साथ राष्ट्रीय स्थिति बताने वाली एक खबर दो कॉलम में है। इसके अनुसार नए मामले 3.32 लाख से ज्यादा हुए। और कल 2247 मौतें हुईं। इन और ऐसी कई खबरों के बीच द हिन्दू में एक खबर है, राजधानी में ऑक्सीजन की कमी पर सिसोदिया ने केंद्र से मदद मांगी। केजरीवाल ने महामारी से संघर्ष के लिए दूसरे राज्यों से एकीकृत मुकाबले की अपील की। मेरे ख्याल से यह जरूरी भी है क्योंकि इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार ऑक्सीजन की कमी का मामला गए साल अप्रैल में ही बता दिया गया था और नवंबर में दोहराया गया था। और अब सुप्रीम कोर्ट ने कोविड से लड़ने की योजना के बारे में पूछा है तो एक्सप्रेस कैसी खबर कर सकता था वह आप समझ सकते हैं। लेकिन किया नहीं और किया हो तो पहले पन्ने पर नहीं है। क्यों – बताने की जरूरत नहीं है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।