इंडियन एक्सप्रेस में आज बाईलाइन और इतने महत्व के साथ क्यों?
संभावनाओं, कारणों को टटोलती रिपोर्ट जो खबर से जुड़े राज तलाशती हैं
आज की सबसे दिलचस्प खबर है, ‘धमकी, साजिश और एक करोड़ की रिश्वत की पेशकश’ महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री की पत्नी अमृता फडणवीस ने एक डिजाइनर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है। खास बात यह है कि ये ‘खबर’ उस दिन बनाई गई जिस दिन सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने महाराष्ट्र में सरकार बदलने (और मुख्यमंत्री के उपमुख्यमंत्री बनने) की स्थितियों में राज्यपाल, जो पहले ही पद छोड़कर जा चुके हैं – की भूमिका पर चर्चा हुई और बड़ी खबर बनने वाली थी।
मोटे तौर पर मामला यह बताया जा रहा है कि डिजाइनर के पिता को किसी गलत केस में फंसा दिया गया है और उसने रिश्वत की पेशकश की है। तकनीकी तौर पर सरकारी सेवक को रिश्वत की पेशकश गैर कानूनी है लेकिन पत्नी जो सेलीब्रिटी हैं कि सहेली की पेशकश अगर बहुत सीधी या साफ नहीं हो (मय सबूत) तो उसका महत्व खबर छपने से ज्यादा नहीं है। इस मामले में क्या होगा वह तो समय बताएगा लेकिन एक उप मुख्यमंत्री की पत्नी धमकी और साजिश के ऐसे मामले में एफआईआर लिखानी पड़ी – इसी से लगता है कि कुछ कहानी कुछ और है। मामला इतना सीधा नहीं है।
आज का मीडिया, इसपर आगे क्या करेगा और महाराष्ट्र की पुलिस प्रभावशाली और डंबल इंजन वाले सरकार के मौजूदा उपमुख्यमंत्री और अपने पूर्व मुख्यमंत्री की पत्नी के मामले में क्या कुछ करेगी – अंदाजा लगाना मुश्किल है और इंतजार करना ठीक रहेगा। ऐसे में मेरी चिन्ता यही है कि यह अधपकी खबर आज ही क्यों आई। जो खबर छपी है उसके अनुसार शिकायत यह है कि डिजाइनर, अनिच्छा के पिता को गलत फंसा दिया गया है, उसने बचाने पर एक करोड़ देने का वादा किया है और उसके व्यवहार से धमकी और साजिश की बू आ रही है। लेकिन काम कराने के पैसे देने की पेशकश में अटपटा क्या है? है भी तो एफआईआर क्यों। डांट कर भगा देना पर्याप्त नहीं होता?
तकनीकी दृष्टि से रिश्वत की पेशकश भले गलत हो पर जो हाल है उसमें बिना पैसे के काम की उम्मीद कौन करेगा? नहीं लेना था, नहीं लेते, काम तो करा देते। या बताते कि काम गलत था, फंसाया नहीं है अपराधी है। यह खबर में तो नहीं ही है, शायद एफआईआर में भी नहीं है (मुझे दिखी नहीं) ऐसे में यह खबर जबरदस्ती का प्रचार नहीं लगता है? या रेट बताने-बढ़ाने की कोशिश है। मान लिया आप पैसे नहीं लेते हैं पर प्रचार की क्या जरूरत पड़ी। इसके अलावा अमृता फडनविस लोक सेवक नहीं हैं, उनसे पेशकश रिश्वत नहीं कमीशन होगा। हालांकि वह अलग मुद्दा है।
मुख्य रूप से यह इंडियन एक्सप्रेस की एक्सक्लूसिव खबर है और आज सागर राजपूत की बाईलाइन से पहले पन्ने पर पांच कॉलम में टॉप पर बेहद प्रमुखता से छपी है। इसपर आधारित आजतक (हिन्दी में) की खबर के अनुसार एफआईआर 20 फरवरी की है यानी 23 दिन पुरानी। इससे भी यह मुझे हेडलाइन मैनजमेंट का हिस्सा लगता है। मामला महाराष्ट्र के प्रभावशाली और डबलइंजन वाले उपमुख्यमंत्री की पत्नी को ‘धमकी और साजिश’ का बताया जा रहा है और 23 दिन बाद छप रही है, कार्रवाई की चर्चा के बिना। इसलिए यह असाधारण खबर है।
आजतक की खबर के अनुसार, एफआईआर के बाद आगे की कार्रवाई के बारे में पूछे जाने पर, मुंबई के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि जांच जारी है, लेकिन अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। तो कैसी एफआईआर है और कैसा मामला है – मैं नहीं समझ पा रहा हूं। इतना पढ़ने के बाद मुझे लग रहा है कि मामला इतना कमजोर है तो इंडियन एक्सप्रेस ने इतनी प्रमुखता क्यों दी है। मेरा मतलब सिर्फ इस बात से है कि उपमुख्यमंत्री की पत्नी की 23 दिन पुरानी एफआईआर पर कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है तो इस एफआईआर की खबर आज ही क्यों और इतनी प्रमुखता से क्यों?
महिला, डिजाइनर, सटोरिये सब मिलाकर – खबर ठीक है लेकिन इंडियन एक्सप्रेस पत्रकारिता का ऐसा कच्चा खिलाड़ी भी नहीं है। यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि जिस मामले में डिजाइनर के पिता को फंसा होना बताया गया है उसमें वे गिरफ्तार नहीं हैं और अनजान नंबर से आए संदेश को उसके पिता के फोन से आया बताया गया है जिसपर इंडियन एक्सप्रेस ने बात करने की कोशिश की तो कामयाबी नहीं मिली यानी पुलिस ने संभवतः अभी तक नंबर की भी पड़ताल नही की है। या कार्रवाई की जरूरत नहीं समझती है। इंडियन एक्सप्रेस ने इस बारे में पूछा या नहीं पूछा – बताया तो नहीं है।
लंबी सी खबर आगे पढ़ने पर समझ में आता है और यह अंदर के पन्ने पर खबर के दूसरे हिस्से में है कि डिजाइनर ने मुख्यमंत्री की पत्नी को पहनने और प्रचार के लिए कुछ कपड़े व गहने दिए हैं जो उन्होंने पहने तो नहीं पर कह दिया कि पहने हैं और लौटाए कि नहीं याद नहीं है क्योंकि ऐसी चीजें दान भी कर दी जाती हैं और मुख्यमंत्री की पत्नी के पास नहीं हैं। मुझे तो डिजाइनर के कपड़े और गहने (भले सस्ते या बेशकीमती हों, डिजाइनर के लिए उनका अपना महत्व होगा) गायब होने और वापस मांगने पर संबंध खराब होने या नाराज होने का मामला लगता है। लेकिन खबर तो यही होनी चाहिए थी।
जो भी हो, खबर में 40 संदेश, वीडियो, ध्वनि संदेश और स्क्रीन शॉट अनजान नंबर से भेजे जाने और प्राप्त होने का जिक्र है। यह भी कि अमृता जी ने डिजाइनर का नंबर ब्लॉक कर दिया था। संदेश में क्या है यह नहीं बताया गया है। खबर में एक जगह लिखा है कि डिजाइनर एक लिफाफा छोड़ गई थी जिसमें हाथ से कुछ लिखा था जिसे वे समझ नहीं पाईं और अलग रख दिया। मुमकिन है धमकी और साजिश की बू इन्हीं सदेशों और वीडियो से आती हो पर इनमें क्या है यह नहीं बताना और पुलिस जांच में कुछ नहीं होना बताता है कि मामला कुछ और है। वरना ये सबूत होते और गिरफ्तारी सामान्य कार्रवाई।
बहुत संभव है कि मामला उपमुख्यमंत्री की पत्नी के खिलाफ है और डिजाइनर को रोकने के लिए लिखवाई गई हो। इसीलिए इतने दिन इसकी चर्चा नहीं हुई वरना एफआईआर होने के बाद खबर रुकने का क्या मतलब? और पुलिस ने जांच (या कार्रवाई) नहीं की है यह दूसरा सकेत है। संभव है कि इंडियन एक्सप्रेस ने ऐसे छापने और सरकार को नाराज करने की बजाय एफआईआर की चर्चा करके सारा मामला उजागर कर दिया है। और जर्नलिज्म ऑफ करेज का मामला हो। मामला सार्वजनिक है जो समझना चाहे समझ सकता है जो नहीं समझना चाहे वह चुप रह सकता है। और फॉलोअप तो होना ही चाहिए जो भविष्य की राजनीति पर निर्भर करेगा।
जिस डिजाइनर के खिलाफ एफआईआर हुई है, उससे भी बात होनी चाहिए थी और उसका भी पक्ष – पत्रकारिता की दृष्टि से जरूरी है। और जब खबर 23 दिन पुरानी है तो इसके लिए एक दो दिन रुका जा सकता था या उनका पक्ष नहीं होने का कारण बताना चाहिए था। वो भी नहीं है। सामान्य स्थितियों में लोग उस महिला को ढूंढ़ ही लेते और उसे अपराधी भी घोषित कर देते। 2014 के पहले की स्थिति में महिला सच बता रही होती लेकिन अब की पत्रकारिता बिल्कुल सात्विक है – बिना लहसुन-प्याज के।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।