भारतीय राजनीति की विडम्बनाओं में से एक है, नेताओं के पास कम से कम 3 चेहरे होना – एक जो उनके परिवार में दिखता होगा, एक वो जो विपक्ष में रहते हुए दिखता है और तीसरा चेहरा सत्ता का है। सत्ता का चेहरा या मुखौटा वही है, जो पिछली सरकार का होता है और भले ही नई पार्टी की नई सरकार, कितना ही आंदोलन कर के सत्ता में आए…वो सत्ता पाने के बाद, पिछली सरकारों की हमशक्ल हो जाती है। छत्तीसगढ़ में विपक्ष में रहते हुए, जो भूपेश बघेल – कभी खनन माफ़िया, पूंजीपति-सरकारी नेक्सस और पत्रकारों-अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमलों के ख़िलाफ़ ख़ुद गिरफ्तार हो जाया करते थे, अब वे मुख्यमंत्री हैं और उनकी सरकार में वही हो रहा है – जिसका वो विपक्ष में रहते हुए विरोध करते रहे।
26 सितंबर की शाम छत्तीसगढ़ के कांकेर में छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार और एक्टिविस्ट कमल शुक्ला पर हुआ स्थानीय दबंगों का भयानक हमला, दरअसल केवल चिंता की ही नहीं शर्म की घटना भी है। एक स्थानीय पत्रकार के ऊपर कांकेर के दबंग नेताओं और माफ़िया द्वारा हुए हमले के मामले में कांकेर के आदर्श पुलिस थाने पर जाकर रिपोर्टिंग कर रहे, कमल शुक्ला पर पुलिस की मौजूदगी में इस गुंडागर्दी को अंजाम दिया गया है। ये पुलिस और अपराधियों की मिलीभगत से पैदा हुआ दुस्साहस ही है कि थाने के सामने उनका गला रेतने की कोशिश की गई और साथ ही थाने के अंदर भी पुलिस अधिकारियों के साथ मिल कर, उनसे जमकर मारपीट की गई।
भूमकाल समाचार के संपादक कमल शुक्ला के साथ मारपीट के समय का ही एक वीडियो भी सामने आया है, जिसमें उनको ये गुंडे घसीट कर ले जा रहे हैं और बेतहाशा अश्लील गालियां बक रहे हैं। हम इस वीडियो के कुछ हिस्से अश्लील भाषा के कारण म्यूट कर के साझा कर रहे हैं।
इस वीडियो में कमल शुक्ला को घसीटता और गालियां देता व्यक्ति स्थानीय विधायक शिशुपाल सोरी का प्रतिनिधि है, जिसका नाम गफ्फार मेमन बताया जा रहा है। हालांकि इस मामले में स्थानीय पार्षद का नाम भी आ रहा है और सरकार ने पल्ला झाड़ते हुए, ये कह दिया है कि इन नेताओं से कांग्रेस का कोई संबंध नहीं है। लेकिन बताया जा रहा है कि कमल शुक्ला के साथ मारपीट करने वालों में एक गणेश तिवारी नाम का व्यक्ति है। गणेश तिवारी के लिए कहा गया कि वह अब कांग्रेस नेता नहीं हैं, लेकिन हमको प्राप्त हुए एक पोस्टर में उनका परिचय कांग्रेस से जुड़ी ट्रेड यूनियन के नेता के तौर पर है। इसके अलावा गणेश तिवारी के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से भी सीधे संपर्क बताए जा रहे हैं।
बताया जा रहा है कि स्थानीय दबंग और खनन माफ़िया, कमल शुक्ला की लगातार की जा रही रिपोर्टिंग से भी नाराज़ थे। कमल शुक्ला कांकेर और आसपास के इलाकों में हो रहे अवैध रेत उत्खनन पर लगातार लिख रहे थे। कुछ दिन पहले कांकेर के एक पूर्व पुलिस वाले ने उनको जान से मारने की धमकी भी दी थी, इस बात का ज़िक्र कमल शुक्ला अपने फेसबुक पर पहले ही किया था। प्रत्यक्षदर्शियों ने ये भी बताया कि कमल शुक्ला से मारपीट करते हुए, ये हमलावर लगातार – पत्रकारों को घर में घुसकर मारने की बात कर रहे थे।
इस घटना के फैलते ही राज्य सरकार तुरंत डैमेज कंट्रोल के मोड में आती दिखी। ये बात प्रचारित की जाने लगी कि कांग्रेस से इन हमलावरों का कोई संबंध नहीं है, लेकिन घंटों तक कमल शुक्ला की एफआईआर दर्ज नहीं की गई। एफआईआर तब दर्ज हुई, जब काउंटर एफआईआर भी दर्ज हो गई और पत्रकार कमल शुक्ला की ओर से दर्ज एफआईआर को पुलिस ने कमज़ोर करने की भरसक कोशिश की है।
इस घटना को लेकर राज्य सरकार और छत्तीसगढ़ कांग्रेस की ओर से कितनी भी सफाई दे दी जाए कि आरोपियों का कांग्रेस से कोई रिश्ता नहीं है – सरकार इस तथ्य को कैसे नकार सकती है कि ये हमला पुलिस थाने के बाहर और पुलिस थाने के अंदर हुआ और पुलिस भी इसमें शामिल रही। राज्य सरकार क्या ये कहना चाहती है कि स्थानीय गुंडों और पुलिस के भ्रष्ट कर्मचारियों पर सरकार का कोई नियंत्रण ही नहीं है? दरअसल ये इस ओर भी इशारा है कि छत्तीसगढ़ की वर्तमान सरकार ने भी एक्टिविस्टों और पत्रकारों के दमन का वही रास्ता अपनाया है, जो पिछली सरकार का था और नई सरकार के लोग – अपने निज़ाम में लूट-खसोट की प्रक्रिया में कोई कमी और देर नहीं करना चाहते हैं।