जब सबसे बड़ी खबर, नए गठबंधन का नाम ‘इंडिया’ होना हो

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


 

आज के अखबारों में देखिये हेडलाइन मैनेजमेंट का असर, बृजभूषण सिंह को अंतरिम जमानत की खबर तो दब ही गई

प्रधानमंत्री ने न काम गिनाए नायोजनाएं बताईं पर 50% से ज्यादा वोट पाने का दावा किया

 

विपक्षी दलों के एकजुट होने के लिए बैंगलोर में चल रही बैठक की खबर के साथ कल अखबारों में छपवाया गया था कि भाजपा और सहयोगी दलों के एनडीए (राजग) की बैठक में 38 दल हिस्सा लेंगे। बैंगलोर में चल रही बैठक का कल दूसरा दिन था और भाजपा यानी सत्तारूढ़ दल व 38 सहयोगी दलों की बैठक भी कल ही हुई। आज के अखबारों में दोनों की खबरें देखना दिलचस्प है। किसने किस खबर को और किसने किस तथ्य को कितना महत्व दिया यह जानकर आप अपनी राय बना सकते हैं। उदाहरण के लिए द टेलीग्राफ ने विपक्षी मोर्चे के नाम को ही सबसे ज्यादा महत्व दिया है और बाढ़ के पानी से घिरे ताजमहल तथा एक घंटे के साथ शिव मंदिर की तस्वीर छापी है जिसका कैप्शन है, “एक नदी, कई धाराएं : मंगलवार को जब यमुना का पानी कम हुआ तो आगरा से रायटर की यह तस्वीर एक ही फ्रेम में मंदिर और ताजमहल को दिखा रही है”। इसका फ्लैग शीर्षक है, “विपक्षी मोर्चे का नाम ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायसं’ रखा गया”। मुख्य शीर्षक है, “इंडिया के आईडिया को बचाने का संघर्ष”। इस शीर्षक के साथ द टेलीग्राफ का आज का कोट राहुल गांधी का है, “भारत जुड़ेगा, इंडिया जीतेगा”।  

आज के इंडियन एक्सप्रेस और हिन्दुस्तान टाइम्स में दूसरी प्रमुख खबर (टॉप पर दो कॉलम में) है, “महिला पहलवानों का  मामला : बृजभूषण को अंतरिम जमानत, उनकी अपील पर कल सुनवाई होगी”। उपशीर्षक है, “वकील को मीडिया ट्रायल का डर, अदालत ने कहा बंद कमरे में कार्यवाही के लिए आवेदन कर सकते हैं”। आप जानते हैं कि भाजपा सांसद बृजभूषण सिंह पर क्या आरोप हैं और कैसे उनकी गिरफ्तारी नहीं हुई और पॉस्को की गंभीर धाराएं भी थीं तथा किन परिस्थितियों में उसे वापस लिया गया। अदालत के आदेश पर एफआईआर हुई पर अखबारों ने एफआईआर के आरोप छापने की जरूरत भी नहीं समझी आदि आदि। अब उन्हें बिना गिरफ्तारी अग्रिम जमानत भी मिल गई है और संभव है बंद कमरे में सुनवाई हो तो आगे की खबर भी न मिले। कम से कम इसकी कोशिश तो चल ही रही है। जो हो चुका वह सामने है। यह भाजपा सांसद ब्रजभूषण सिंह का मामला है जिनपर पद पर रहते हुए, पद का दुरुपयोग करते हुए यौन शोषण का गंभीर आरोप है। देश की खेल प्रतिभाओं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनके तथा भारत के प्रदर्शन पर इसके असर का अनुमान लगाया जा सकता है और निश्चित रूप से यह देश विरोधी हरकत है जिसे सत्तारूढ़ दल का खुला संरक्षण साफ नजर आ रहा है। फिर भी खबर पहले पन्ने पर नहीं होना, दब जाना ही है।  

रिया चक्रवर्ती का मामला 

दूसरी ओर, आज ही टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के अनुसार, रिया चक्रवर्ती को जमानत का मामला फाइनल है और एनसीबी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह इसके खिलाफ अपील नहीं करेगा। रिया का मामला आपको याद होगा। भले ही इस समय इस आदेश या खबर की जरूरत न हो पर तथ्य यही है कि रिया चक्रवर्ती के मामले में बांबे हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि किसी को नशा खरीदने के लिए पैसे देने का मतलब यह नहीं होगा कि यह नशे की अवैध बिक्री को बढ़ावा देना है। यह अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इसे मिसाल नहीं माना जाएगा और एनसीबी को इस आदेश को चुनौती नहीं देने की मंजूरी दे दी है। इस तरह कानूनी स्थिति चाहे जो हो, हाईकोर्ट का फैसला और उसपर सुप्रीम कोर्ट का ताजा आदेश तकनीकी रूप से, मूल अंग्रेजी में चाहे जो हो, कुल मिलाकर मतलब यही निकला कि रिया चक्रवर्ती को बिलावजह परेशान किया गया या कानून की उचित-अनुचित व्याख्या में परेशान होना पड़ा। 

मीडिया का काम था कि वह रिया की परेशानी की रिपोर्ट करता लेकिन वह सरकारी कार्रवाई का समर्थन कर रहा था, उसपर चटखारे ले रहा था और सरकार के लिए एक नागरिक की परेशानी कोई मुद्दा ही नहीं था। इस सरकार के समर्थक आम तौर पर धर्म विशेष के लोगों के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई के पक्ष में रहते हैं पर यहां ऐसा भी नहीं था। आज इस खबर की रिपोर्टिंग जैसे होनी चाहिए थी वैसे तो नहीं ही हुई है, टेलीविजन में शायद ही हुई हो। मैं टीवी देखता नहीं पर ऐसी खबरें वहां पहले भी नहीं दिखाई जाती थीं। कहने की जरूरत नहीं है कि इस सरकार ने जितने कानूनी मामले कोर्ट में उलझाए हैं, जितना समय और धन खर्च हुआ है उतना पहले नहीं होता था और इसमें जज लोया की मौत की जांच से लेकर दिल्ली सरकार के अधिकार कम करने तक का मामला शामिल है पर अभी वह मुद्दा नहीं है। मुद्दा यह है कि मीडिया को रिया की यह खबर उतनी ही प्रमुखता से उतनी ही देर तक क्यों नहीं दिखाना चाहिए।   

आज ही खबर है कि मानहानि मामले में राहुल गांधी की अपील पर सुप्रीम कोर्ट में 21 जुलाई को सुनवाई होगी। इस खबर के प्रसंग में कहा जा सकता है कि गुजरात की अदालतों में मोटे तौर पर अपराधियों, बलात्कारियों और दंगाइयों को तो राहत मिलती रही है या वे बच गये हैं लेकिन तीस्ता सीतलवाड के मामले में सुप्रीम कोर्ट को रात नौ बजे बैठना पड़ा और उन्हें जमानत मिली। इसी तरह मानहानि के मामले में राहुल गांधी को अधिकतम सजा हुई है। तीस्ता सीतलवाड के मामले में कहा गया था और राहुल गांधी के मामले में मुझे लगता है कि फैसले व्यक्ति विशेष के लिहाज से हो रहे हैं या होते आये हैं। अभियुक्तों और आरोपियों की जगह कोई दूसरा होता तो मामला कुछ और होता। निश्चित रूप से यह जांच का विषय है और अदालतों पर भरोसा बना रहे, इसलिए जरूरी है।  

इससे याद आया कि प्रधानमंत्री ने कहा था कि उन्हें कितनी गालियां दी गई हैं (पर मुकदमा एक मामले में ही हुआ है)। दूसरी ओर, जवाब में प्रियंका गांधी ने कहा था उनके परिवार को दी गई गालियों की लिस्ट बनाई जाए तो किताबें छापनी पड़ेंगी। इन मामलों में भी मुकदमा नहीं हुआ। ठीक है कि जो मामले अदालत में गये ही नहीं उनपर कार्रवाई कैसे होगी लेकिन जो ले जाये गये और जिनके द्वारा ले जाये गये वह तो मुद्दा है ही और बताता है कि यह सरकार और इसके समर्थक कानून की प्रक्रिया का उपयोग राजनीतिक हित साधने के लिए भी कर रहे हो सकते हैं। मानहानि के मामले में पहली बार अधिकतम सजा होना इस शंका को जन देता है कि फैसला सरकार के लिए किया गया है। जाहिर है इसकी पुष्टि का कोई तरीका नहीं है। इसलिए यह भी अलग जांच और कार्रवाई का मुद्दा हो सकता है। पर समर्थकों को तो समझ में आना ही चाहिए। 

अब मुख्य खबर और उसकी प्रस्तुति की बात। कहने की जरूरत नहीं है कि सत्तारूढ़ गठबंधन से जब उसके कई सहयोगी अलग हो चुके थे और प्रधानमंत्री अकेला सब पर भारी होने का दावा कर रहे थे तब ऐसी खबरें आ रही थीं जिनसे पता चल रहा था कि भाजपा की स्थिति कमजोर होती जा रही है। यह अलग बात है कि मीडिया में इन खबरों की प्रस्तुति का मुकाबला करने के इंतजाम किये गये और मुख्य खबर को कमजोर करने वाले बयान दिये गये  या काम किये गये। इस महीने मैं 10 दिन छुट्टी पर रहा फिर भी ऐसी प्रमुख खबरों की सूची यह रही और ये वो खबरें हैं जिनकी रिपोर्ट मीडिया विजिल में हुई है। कुछ खबरें और उनकी काट इस प्रकार रहे  

1.

तीस्ता सीतलवाड को रात नौ बजे विशेष सुनवाई के बाद जमानत मिली

अगले दिन अखबारों में छपा 

(भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई) यह वादा नहीं मोदी की गारंटी है  

02 जुलाई 2023

 

2.

मणिपुर में लंबे समय से जारी हिंसा के बाद तीन मौतें हुईं

उसी दिन मुंबई में भ्रष्टाचार दूर करने का मजाक बना 

अगले दिन अखबारों में 

मणिपुर गोल रहा, मुंबई के मजाक को प्राथमिकता मिली 

03 जुलाई 2023

 

3.

हाईकोर्ट ने राहुल गांधी की सजा कम करने से मना किया 

अगले दिन अखबारों में छपा 

राजनीति में शुद्धता समय की जरूरत

08 जुलाई 2023

 

4.

ईडी प्रमुख संजय कुमार मिश्रा को सेवा विस्तार खारिज

अगले दिन अखबारों में छपा 

जो खुश हो रहे हैं वो भ्रम में हैं, भ्रष्टाचार के खिलाफ ईडी के अधिकार कायम हैं

12 जुलाई 2023

 

5.

बैंगलोर में विपक्षी दलों की बैठक हुई 

अगले दिन अखबारों में छपा 

राजग की बैठक में 38 दल शामिल होंगे

18 जुलाई 2023

 

इसके बाद आज राजग की रैली की खबर है जो सत्तारूढ़ दल के खिलाफ सभी विपक्षी दलों के एकजुट होने की खबर के मुकाबले में आज के अखबारों में छपी हैं। ऊपर मैंने बताया कि द टेलीग्राफ की राय में नए गठबंधन का नाम इंडिया होना ही आज की सबसे बड़ी खबर है लेकिन दूसरे अखबारों ने जो किया है उसे जानना भी महत्वपूर्ण है। सबसे पहले इंडियन एक्सप्रेस की बात करूं। यहां इंडिया की खबर पांच कॉलम में है और राजग की खबर उस के साथ एक कॉलम में। मुख्य खबर का शीर्षक है, “राजग का मुकाबला करने के लिए विपक्ष ने एकजुट होकर इंडिया पेश किया”। जवाब में राजग की खबर का शीर्षक है, “प्रधानमंत्री ने विपक्ष के ‘कट्टर भ्रष्टाचारी सम्मेलन’ पर तंज कसा कहा, राजग ‘योगदान का गठजोड़’ है“।   

द हिन्दू ने चार कॉलम में विपक्ष की खबर छापी है जबकि सत्तारूढ़ राजग की खबर तीन कॉलम में है। इसके साथ दो कॉलम में एक खबर का शीर्षक है, “चिराग पासवान ने एनडीए में वापस आने की घोषणा की“। नवभारत टाइम्स में प्रधानमंत्री की फोटो चिराग के गाल सहलाते हुए छपी है। कैप्शन है, “चिराग पासवान ने पीएम के पैर छुए तो पीएम ने उन्हें गले से लगा लिया“। द हिन्दू में मुख्य खबर का शीर्षक है, “विपक्ष की टीम इंडिया लोकसभा चुनाव में एनडीए का मुकाबला करेगी”। उपशीर्षक है, “संयुक्त प्रस्ताव में कहा गया है कि नया गठजोड़ ‘आईडिया ऑफ इंडिया’ की रक्षा करेगा, जातिवार जनगणना का वादा किया; मुंबई में अगली बैठक में 11 सदस्यों का एक पैनल बनाया जाएगा जो प्रमुख मुद्दों पर सहमति बनाएगा”। राजग की खबर का शीर्षक है, “नकारात्मकता का गठजोड़ कभी सफल नहीं होता है, प्रधानमंत्री ने कहा”।  

टाइम्स ऑफ इंडिया में 26 विपक्षी दलों के इंडिया की खबर पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर लीड है। इसका शीर्षक है, “26 विपक्षी दल एकजुट हुए, कहा यह मोदी बनाम उनका इंडिया है”। टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर चार कॉलम में विज्ञापन है और बाकी के चार कॉलम में राजग की खबर लीड है। इसका शीर्षक है, “लोगों ने एनीडए को एक और टर्म देने का मन बना लिया है : मोदी“। इसके साथ तीन कॉलम की एक खबर का शीर्षक है, “नया मुखौटा चरित्र नहीं बदलता है“। अगर आपने कल टीवी पर खबर देखी हो या सोशल मीडिया पर वीडियो देखा हो तो समझ जाएंगे कि प्रधानमंत्री ने क्या कहा था और यह किस संदर्भ में है। 

हिन्दुस्तान टाइम्स में भी ब्रज भूषण सिंह को अंतरिम जमानत मिलने की खबर पहले पन्ने पर लीड के साथ टॉप पर दो कॉलम में है। मुख्य खबरों का छह कॉलम में एक शीर्षक है, “गठजोड़ के मुकाबले के लिए मंच तैयार”। इसके नीचे फोटो के साथ तीन-तीन कॉलम में दो खबरें हैं। दोनों सिंगल कॉलम में है, दोनों के साथ एक-एक फोटो लगाकर शीर्षक तीन कॉलम में बनाया गया है। पहली खबर का शीर्षक है, “26 विपक्षी दलों का समूह इंडिया के बैनर तले एकजुट हुआ”। दूसरी खबर का शीर्षक है, “39 दलों की बैठक में मोदी ने विपक्ष पर हमला बोला, कहा देश राजग पर भरोसा करता है“। दोनों खबरों के साथ दो कॉलम में एक-एक खबर और हैं। एक का शीर्षक है, “कांग्रेस प्रधानमंत्री के पद की इच्छुक नहीं है : खड़गे”। दूसरी का शीर्षक है, “एनडीए के प्रस्ताव में शासन की यात्रा की प्रशंसा“। 

नवोदय टाइम्स ने दोनों बैठकों की दो तस्वीरें चार-चार यानी कुल आठ कॉलम में छापी हैं। इनके ऊपर लिखा है, “इंडिया 26 बनाम एनडीए 38”। नीचे एकलाइन में शीर्षक है, “विपक्षी मोर्चे की समन्वय समिति बनेगी : खरगे”। दूसरी खबर का शीर्षक है, “एनडीए का वोट प्रतिशत 50 से ज्यादा जाएगा : मोदी”। यहां भी चिराग से गले मिलते प्रधानमंत्री की फोटो है। इसका कैप्शन वही है जो नभाटा में है। साथ ही यहां लिखा है, “राष्ट्रीय लोकजनशक्ति पार्टी के नेता और चिराग पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस भी राजग की बैठक में उपस्थित थे”। यहां याद आता है कि एनसीपी के चाचा भतीजा अलग गठबंधन में हैं और ये चाचा भतीजा उसी गठबंधन में हैं जो परिवारवाद और वंशवाद के खिलाफ है जिसके नेता अकेले सब पर भारी होने का दावा करते हैं। यह उल्लेख संघ परिवार और दूसरे परिवारों में अंतर बताने के लिए। इसका मतलब यह भी हो सकता है कि वहां विचार मिलते हैं। यहां साथ रहने की मजबूरी होती है। पर यह अलग जांच का विषय है जो गोदी मीडिया नहीं करेगा। 

ऊपर चर्चा है कि चिराग पासवान राजग से अलग हो गये थे नवोदय टाइम्स ने उनका स्पष्टीकरण प्रमुखता से प्रचारित किया है, “2024 के लोकसभा चुनावों में राजग बिहार में सभी 40 सीटें जीतेगा। लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बारे में मेरी पार्टी की चिन्तायें विचार-विमर्श का हिस्सा थीं और भाजपा ने उनका सकारात्मक रूप से समाधान किया है। मेरी पार्टी 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी भाजपा नीत राजग का हिस्सा होगी”। ऐसा नहीं है कि नवोदय टाइम्स ने चिराग का यह स्पष्टीकरण ही प्रमुखता से छापा है। इसे संतुलित करने या तथाकथित निष्पक्ष पत्रकारिता के उदाहरण स्वरूप इंडिया के अरविन्द केजरीवाल और ममता बनर्जी का भी कोट इसी प्रमुखता से है। 

आज मुझे अंग्रेजी, हिन्दी की खिचड़ी परोसने वाला अखबार एनबीटी यानी नवभारत टाइम्स भी मिल गया है। यहां भी दोनों खबरों का एक शीर्षक है और फिर दोनों खबर अलग-अलग भी हैं। यहां भी इंडिया को पहले और एनडीए को बाद में रखा गया है। पर यहां एक तीसरी खबर भी लीड के साथ या फोल्ड से ऊपर प्रमुखता से है। इसका शीर्षक है, “पीएम बोले – तीसरी बार एनडीए की सरकार“। मुख्य शीर्षक है, “2024 से पहले मोर्चाबंदी”। इसके साथ की दो खबरों का शीर्षक इस प्रकार है, “विपक्षी गठबंधन का नाम होगा इंडिया, 11 लोगों की समन्वय समिति भी बनेगी”। दूसरी खबर का शीर्षक है, “एनडीए का दिल्ली में शक्तिप्रदर्शन, पीएम की अगुआई में हुई मीटिंग में 38 दल आये“। 

हेडलाइन मैनेजमेंट के इस खेल में अभी तक आपने देखना कि सत्तारूढ़ भाजपा ने विपक्षी दलों के एकजुट होने की खबर को काउंटर करने के लिए क्या सब किया और प्रधानमंत्री ने क्या कुछ बोला। फिर भी मोटा-मोटी बड़ी खबर यही है कि सत्तारूढ़ दल के खिलाफ विपक्ष के 26 दल एकजुट हो गये हैं भले मुकाबले के लिए राजग ने अपने 38 दलों की सूची जारी की है और एक अकेला सब पर भारी नेता और उनका दल अब यह बताने की कोशिश कर रहा है कि 38 दलों के साथ वह भारी है। फिर भी अखबारों ने लिखा और कहा या बताया जो हो, प्रमुखता इंडिया की खबर को दी है। मैंने जो अखबार देखे उनमें अमर उजाला अकेला ऐसा अखबार है जिसने राजग की खबर को ज्यादा महत्व दिया है, लीड बनाया है और प्रधानमंत्री मोदी के बयान को शीर्षक बनाया है। दोनों खबरें साथ हैं तो राजग को पहले रखा है। यहां इंडिया की खबर सेकेंड लीड या दूसरी प्रमुख खबर है। भले, शीर्षक टॉप पर चार कॉलम में है। यहां लीड का शीर्षक है, “सत्ता की मजबूरी वाले गठबंधन ने देश का किया नुकसान : मोदी”। इससे पहले फ्लैग शीर्षक है, “बंगलुरु में विपक्ष (यहां पहले है) …. दिल्ली में सत्ताधारी एनडीए ने दिखाई ताकत”। इस ताकत में 38 दल और चाचा भतीजा की पार्टी आदि शामिल है। दूसरी खबर का शीर्षक है, “एनडीए के सामने विपक्ष लाया इंडिया”। उपशीर्षक है, “नया नाम तय, पर नेता नहीं ….. संचालन के लिए बनेगी 11 सदस्यीय समन्वय समिति”। इसके साथ सिंगल कॉलम की एक खबर है, कांग्रेस की सत्ता या पीएम पद में कोई दिलचस्पी नहीं है।   

स्पष्ट है कि विपक्ष के एकजुट होने की खबर के मुकाबले में एक खबर देने के लिए राजग के 38 दलों की बैठक हुई जिसमें 38 दल तो बहुप्रचारित है पर यह नहीं बताया गया है कि इस रैली में क्या खास हुआ या जो बताया गया है उससे साफ है कि प्रधानमंत्री या राजग ने ना अपने काम गिनाये ना यह दावा किया कि इसी तरह काम करते रहेंगे इसलिए उन्हें वोट दिया जाये ना आगे की योजनाएं बताईं कि उसके लिए उनका समर्थन किया जाए। फिर भी अखबारों ने दोनों खबरों को समान महत्व दिया है। कुछ मामलों में ज्यादा भी। सिर्फ इंडियन एक्सप्रेस ने इसे सिंगल कॉलम में छापा है जबकि द टेलीग्राफ ने इसे पहले पन्ने पर रखा ही नहीं है। आग लगाने वालों को कपड़ों से पहचानने का दावा करने के बाद कल यह जरूर कहा गया कि जनता को राजग में भरोसा है। जो भी हो, प्रधानमंत्री ने जो कहा और अखबारों ने उनके समर्थन और प्रचार में जो बताया उसे यहां बोल्ड कर दिया गया है। चाहें तो एक बार पढ़कर देख लीजिये कि प्रधानमंत्री या राजग को क्यों वोट देना चाहिए या क्यों सत्तारूढ़ दल का समर्थन किया जाना चाहिए। 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

 

 

 


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