मैं परेशान हूं। एक लगभग सफल दिखने वाला, नौजवान – जिसका जीवन आकांक्षाओं से भरा हुआ था, मृत्यु को चुन लेता है। ज़ाहिर है कि इसके पहले के कुछ पल, दुःख और निराशा से भरे रहे होंगे। एक पिता के तौर पर, ये ख़्याल ही तड़पा देने वाला है।
जैसा कि मैंने कई बार कहा है, मैं टेलीविज़न न्यूज़ नहीं देखता। लेकिन आज अल सुबह, मैंने देखा कि टीवी समाचारों में इस त्रासद घटना की रिपोर्टिंग कैसे की जा रही है। मैंने कुछ समाचार चैनल्स के शोज़ के स्क्रीनशॉट्स देखे और मेरे मन में उन लोगों के लिए कुछ विचार आ रहे हैं – जिन्होंने इन पंक्तियों को लिखा, जिन्होंने इनको चलाने की अनुमति दी और जो इन चैनल्स के मालिकान हैं।
क्या आप रात को ठीक से सो पाए थे? या आप रात के बीच में उठ बैठे थे और अपनी ग़लती पर कांपते हुए – ख़ुद से पूछ रहे ते कि आप कैसे इतने निर्मम, इतने बेदिल, संवेदना और सभ्यता से इतने खाली कैसे हो सकते हैं?
लेकिन आप दरअसल इस तरह के लोग नहीं हैं, कोई भी नहीं हो सकता है। तो फिर क्या है, जो आपको ऐसा करने पर मजबूर कर देता है? क्या है, जिसकी वजह से आप अपने अंदर के सभ्य व्यक्ति को किनारे रख कर, ये मुखौटा – ये बेदिली का चोला पहन लेते हैं? क्या आपका पेशा आपको ऐसा बनाता है? क्या ये है आपके पेशे की मांग?
क्या टीवी इंडस्ट्री के संवेदनशील लोगों को एक साथ, आगे आकर अंदर की इस सड़ांध पर मंथन नहीं करना चाहिए? या फिर सबसे पहले अपनी बात कहने और ख़बर दिखाने की पागल होड़ में, इंडस्ट्री ने इसे ही रवैया बना लिया है?
अगर आप पिछली रात अगर चैन से सो पाए हैं तो कल का भविष्य न जाने कैसा होगा?
मैं इस इंडस्ट्री के अंदर, एक ग़ैर अहम पुर्जा भर हूं, लेकिन ये आप सभी से एक अपील है। प्लीज़, इस तरह की रिपोर्टिंग को अब बंद कर दीजिए।