संपादकीय आज़ादी का मतलब सरकारी ख़बरों को प्रमुखता देना या PM को हीरो बनाना नहीं

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


 

आज आप खुद देखिये कि कैसी और किन खबरों की मौजूदगी में अखबारों ने 

किन खबरों को कितना महत्व दिया है और सरकार की कैसी सेवा चल रही है

 

आज अंग्रेजी के मेरे पांच में से तीन अखबारों में प्रधानमंत्री के विदेश दौरे से संबंधित खबरें हैं। द हिन्दू में 2000 के नोट बदलने के लिए किसी परिचय पत्र या पर्ची की आवश्यकता नहीं होने से संबंधित एसबीआई के यूटर्न की खबर लीड है। उपशीर्षक से पता चलता है कि नोटबंदी के अपने आदेश में आरबीआई ने नोट बदलने के लिए बदलने वाले से सबूत इकठ्ठा करने के लिए नहीं कहा है। वित्त मंत्रालय ने दखल देकर एसबीआई से अपने निर्देश बदलने के लिए कहा। अखबार को यह जानकारी सूत्रों ने दी है। एसबीआई ने पहले कहा था कि सबको पर्ची भरनी होगी। ऐसे में देश भर में अफरा-तफरी है लेकिन अखबारों में विदेशी खबरों को प्राथमिकता दी गई है वह भी तब जब प्रधानमंत्री अपने साथ संवाददाताओं को नहीं ले जाते हैं और न ही समय पर खबर देने की कोई सरकारी व्यवस्था दिख रही है। 

1.हिन्दुस्तान टाइम्स

वार्ता और कूटनीति (राजनैतिक कौशल) युद्ध खत्म कर सकते हैं : मोदी ने जी7 में कहा। यह खबर बाइलाइन के साथ है लेकिन डेटलाइन नई दिल्ली है। (आप जानते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी के समय कारगिल हुआ था और भारत के राजनैतिक कौशल का आलम यह है कि रोज मंत्री बदल जाते हैं तथा नौकरशाह को रिटायर होते ही विदेशमंत्री बनाया गया है तथा पिछले चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री ने  घुसकर मारूंगा कहा था और पुलवामा के बाद भी पाकिस्तान से संबंध ठीक नहीं हुए हैं। उल्टे इसके बारे में बताने वाले अनुभवी राजनेता को परेशान किया जा रहा है।)  

2.दि इंडियन एक्सप्रेस

फ्लैग शीर्षक है, “मोदी ने शांतिपूर्ण, स्थिर और संपन्न दुनिया के लिए बात की”। मुख्य शीर्षक है, “जी7 में प्रधानमंत्री ने कहा : यथास्थिति में एकतरफा बदलाव के खिलाफ आवाज उठाइए।” उपशीर्षक है, “टिप्पणियों को रूस और चीन के आक्रामक रुख की पृष्ठभूमि में पढ़ा जा रहा है।” यह खबर बाइलाइन के साथ है लेकिन डेटलाइन नई दिल्ली है।   

3.द टाइम्स ऑफ इंडिया

“जी7 में प्रधानमंत्री ने कहा: सबकी क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान कीजिए”। संभावना है कि जी7 इसे मास्को को संदेश के रूप में पढ़े। यह खबर टाइम्स न्यूज नेटवर्क की है और डेटलाइन नहीं है। पहले ही वाक्य में लिखा गया है कि हिरोशिमा में जी7 सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने रविवार को कहा। हिन्दी अखबारों में एजेंसी की खबरें हिरोशिमा डेटलाइन से हैं।

4.द टेलीग्राफ

एक वीडियो के हवाले से मणिपुर की राजधानी इंफाल में एक चर्च पर हमले की कहानी को छापा है और बताया है कि आग लगाने और हमले की यह कहानी किसी जल्दबाजी में नहीं हुई। द टेलीग्राफ का आज का कोट, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गलोत का बयान है। उन्होंने कहा है, भाजपा शासित राज्य सर्वोच्च स्तर के भ्रष्टाचार के लिए चिन्हित हैं। वे भूखे भेड़िये हैं। और जब वे आते हैं जो ज्यादा खाते हैं। पहले पन्ने पर टेकी की मौत की खबर से लेकर नीचे बताई गई खबरों में से कई हैं।    

आज जब ज्यादातर अंग्रेजी अखबारों में प्रधानमंत्री के विदेश दौरे की खबर लीड है तो बाकी अखबारों में पहले पन्ने की कुछ दिलचस्प और प्रमुख खबरों से पता चलेगा कि आपके अखबार ने कौन सी खबरें छोड दी हैं। इससे आप तय कर (और चाहें तो अपने संपादक को बता) पाएंगे कि कौन सी खबरें नहीं हैं, छूट गई हैं या छोड़ दी गई हैं। इसलिए आज मैंने कुछ प्रमुख और खास दिखने वाली खबरों की सूची बनाई है और यह बताने की कोशिश कर रहा हूं कि इतनी सारी खबरों के बावजूद अखबारों की लीड क्या है या अखबार किन अथवा कैसी खबरों को प्राथमिकता दे रहे हैं। इसमें पक्षपात साफ दिख रहा है और यह सेवा भाव है इसमें भी कोई शक नहीं है। यह स्थिति तब है जब नरेन्द्र मोदी या संघ परिवार के नेतृत्व में देश में जो हालात बनें हैं वो अघोषित इमरजेंसी जैसे हैं। अखबारों में विरोध तो छोड़िये जबरदस्त गुन-गान चल रहा है पर हालात बताने वाली कई किताबों में एक किताब मुझे हाल में मिली और इसकी चर्चा कहीं दिखी नहीं। अंग्रेजी की इस किताब का नाम है, “इंडियाज अनडिक्लेयर्ड इमरजेंसी -कांस्टीट्यूशनलिज्म एंड द पॉलिटिक्स ऑऱ रेसिस्टेंस”। अधिवक्ता अरविन्द नारायण की इस किताब का नाम अगर हिन्दी में होता तो कुछ इस तरह होता, “भारत का अघोषित आपातकाल – संवैधानिकता और बाधा खड़ी करने की राजनीति”। इसे वेस्टलैंड पबलिकेशंस के कांटेक्स्ट ने प्रकाशित किया है और मुद्रित कीमत 699 रुपये है। कहने की जरूरत नहीं है कि इमरजेंसी के बाद उसपर किताबें कम छपी थीं और हाल में भी आई हैं। अघोषित इमरजेंसी से संबंधित किताबें लगातार आ रही हैं लेकिन अखबारों की दुनिया इससे बिल्कुल अलग है। आज के अखबार और लीड के शीर्षक की चर्चा करने से पहले कुछ चुने हुए शीर्षक देख लीजिए:

1.भारतीय स्टेट बैंक ने कहा कि 2,000 के नोट बदलने के लिए किसी आईडी या पर्ची की जरूरत नहीं है। (द हिन्दू, लीड)। जनधन खातों में 2000 रुपए  के नोट से बड़ी राशि जब्त की गई तो टैक्स के तहत जांच होगी। सुनार 2000 के नोट से खरीदारी करने वालों के विवरण मांग रहे हैं (हिन्दुस्तान टाइम्स)। पहली खबर और नोट बदलने के घोषित नियमों से साफ है कि सरकार का मकसद काले धन का पता लगाना नहीं है। लेकिन इस आदेश के मद्देनजर जनता को हो रही परेशानी स्पष्ट है। मुख्यधारा की मीडिया में इसपर खबरें लगभग नहीं हैं। वैसे भी, अगर कोई किसी के लिए रोज चार छह बैंकों से दस-दस नोट बदलवाए तो उसपर सरकार क्या कार्रवाई कर लेगी। पिछली बार ही कौन सी बड़ी मछली फंसी थी।

2. हाथी के लिए साथी की समस्या 

भारत के दो अकेले अफ्रीकी जंबो (दिल्ली और मैसूर चिड़ियाघर के हाथी शंकर और रिची क्रम से 27 साल और 20 से ऊपर कुछ वर्ष) के लिए साथी तलाशना है और यह मुश्किल काम है। खबर में बताया गया है कि जंगली अफ्रीकी हाथी 70 साल जी सकते हैं और भरी जवानी में दोनों अकेले हैं और उनके लिए सहेली ढूंढ़ना टेढ़ी खीर है। (इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने की खबर)

3.अंडरपास के पानी में फंसने से मौत 

इसके साथ छपी खबर का शीर्षक है, बेंगलूर में 22 साल की एक टेकी पानी भरे अंडरपास में एसयूवी फंसने से मर गई। इंफोसिस में काम करने वाली आंध्रप्रदेश के विजयवाडा की भानुरेखा अपने परिवार के साथ थी। 

4.ट्रेन वापस आई

केरल के अलफुजा में वेनाड एक्सप्रेस चेरियानंद हाल्ट पर स्टॉपेज के बावजूद रुके बगैर आगे बढ़ गई। यह रविवार सुबह कोई पौने आठ बजे की घटना है। ट्रेन आगे जाकर रुकी और करीब एक किलोमीटर वापस आई। खबर के अनुसार, इस घटना से ट्रेन आठ मिनट लेट हो गई।

5.भाजपा नेता ने बेटी की शादी टाली 

उत्तराखंड के एक भाजपा नेता, पूर्व विधायक की बेटी की शादी विरोध के कारण टाल दी गई है। लड़की के पिता ने इसका कारण यह बताया कि मौजूदा माहौल ठीक नहीं है। लड़के वाले भी नहीं चाहते हैं कि शादी पुलिस सुरक्षा में हो। दरअसल शादी मुस्लिम युवक से होनी थी और कार्ड वायरल हो गया था। कहने की जरूरत नहीं है कि यह कुछ भी फॉर्वर्ड कर देने का नतीजा है। शादी का कार्ड तभी वायरल होगा जब जिसने भेजा और जिसे भेजा दोनों का उससे कोई संबंध नहीं हो। फिर भी लोग ऐसा करते हैं। क्योंकि वे इससे संबंध या अपनी जिम्मेदारी मानते हैं।

6.घर में घुसकर बलात्कार

उत्तर प्रदेश में बरेली की एक खबर के अनुसार 20 मई 2023 को आधी रात तीन बदमाश एक स्थानीय व्यापारी के घर में जबरन घुस गए। व्यापारी को एक कमरे में बंद किया और उसकी पत्नी (36) तथा बेटी (13) से सामूहिक बलात्कार किया। मामला सैफनी थाना क्षेत्र का है। (टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर)

7.भाजपा मौका परस्त, तानाशाह है

सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले के मद्देनजर द हिन्दू ने महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का इंटरव्यू छापा है। पहले पन्ने पर एक्सक्लूसिव इंटरव्यू की सूचना के शीर्षक के अनुसार ठाकरे ने कहा है कि, भाजपा मौका परस्त, तानाशाह है। इंडियन एक्सप्रेस ने कल रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का इंटरव्यू छापा था।

8.जी-20 मेहमानों का गुलमर्ग दौरा रद्द

कश्मीर में 26/11 जैसे हमले की साजिश, जी-20 मेहमानों का गुलमर्ग दौरा रद्द। इसके साथ ही खबर है, एनआईए ने किया जैश आतंकी को गिरफ्तार।

9.अडानी मामले की जांच 

अडानी के शेयरों में संदिग्ध सौदों के लिए छह इकाइयां जांच के घेरे में (नवोदय टाइम्स)

10. अमर उजाला में ‘दमकता भारत’

पहले पन्ने की इन खबरों से अलग, अमर उजाला ने टॉप पर दो खबरें और लीड – प्रधानमंत्री से संबंधित लगाई हैं। टॉप बॉक्स की खबरें, ‘दमकता भारत’ के तहत है। पहला शीर्षक है, “पापुआ न्यू गिनी पहुंचे मोदी तो पीएम ने पैर छूकर की अगवानी”। उपशीर्षक है, “पहली बार … परंपरा तोड़कर सूर्यास्त के बाद किया स्वागत”। दूसरी खबर है, “बाइडन ने मोदी से कहा, आप बेहद लोकप्रिय …. मुझे ऑटोग्राफ लेना चाहिए”। उपशीर्षक है, “अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा, लोकतंत्र क्यों जरूरी, आप दुनिया को दिखा रहे हैं”। इसके साथ एक सिंगल कॉलम खबर है, “अमेरिका में भी धाक”। लीड की चर्चा से पहले यह बताना जरूरी है कि घर में  घुसकर बलात्कार वाली खबर अमर उजाला में पहले पन्ने पर नहीं है। मैं हिन्दी अखबार नियमित नहीं पढ़ता इसलिए खबरों के इस चयन पर कोई टिप्पणी करने की बजाय बता दूं कि यह खबर शनिवार रात की है और इसलिए संभव है कि कल ही छप चुकी हो। हिन्दी अखबारों में ऐसी खबरें पहले पन्ने पर अमूमन नहीं छपती हैं लेकिन सरकार जब दावा करे कि अपराध खत्म हो गए हैं तो जरूर छपनी चाहिए और प्रमुखता से छपनी चाहिए। पाठक चाहें तो बता सकते हैं कि उत्तर प्रदेश के अखबारों में कानून व्वस्था से संबंधित इस खबर को कितनी प्रमुखता मिली है। 

आज शुरुआत अमर उजाला की लीड से करता हूं। शीर्षक है, “संघर्षों को रोकने में संयुक्त राष्ट्र नाकाम”। उपशीर्षक है, “जी-7 बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ऐसी संस्थाएं 21वीं सदी के अनुरूप नहीं, सुधार जरूरी”। इस लीड के साथ पहले पन्ने पर ही सिंगल कॉलम की एक छोटी खबर का शीर्षक है, “डीआरडीओ ने दी सलाह – अनजान नंबरों के फोन उठाने से बचें कर्मचारी”। यह खबर इसलिए उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों डीआरडीओ के एक वैज्ञानिक के हनीट्रैप होने और खुफिया जानकारी पाकिस्तान को देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। इनका संबंध आरएसएस से रहा है। ऐसे में यह मामला बेहद गंभीर और विशेष किस्म का है। कर्मचारियों को अनजान फोन नहीं उठाने की सलाह से कुछ होना नहीं है और यह इतनी बड़ी खबर भी नहीं है। जब सरकार आम लोगों के फोन टैप करवाती है, पेगासस होने का आरोप है तो इस सलाह का क्या मतलब? साजिश करने वाले हो सकते हैं तो उन्हें जासूसी करने वाले सॉफ्टवेयर से कड़ने की कोशिश क्यों नहीं? इसपर चर्चा होनी चाहिए और उसे लीड बनाया जाता तो लगता कि जो स्थितियां हैं उसपर मीडिया की सतर्क नजर है। लेकिन अखबार सरकार की प्रशंसा में बिछे हुए लग रहे हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि हिरोशिमा डेटलाइन की यह खबर अखबार के संवाददाता की नहीं है। अंत में एजेंसी लिखा हुआ है।  

नवोदय टाइम्स की लीड का शीर्षक है, “ब्रिटेन से होगा मुक्त व्यापार”। उपशीर्षक है, “मोदी, सुनक एफटीए के लिए काम करने पर सहमत”। यहां भी यह खबर एजेंसी की है और पीएम के पैर पीएम ने छुए फोटो के साथ यहां भी है। फोटो क्रेडिट नहीं है। कैप्शन की जगह एजेंसी की खबर है। अखबार में पहले पन्ने पर एजेंसी की विदेशी खबरें भरी हुई हैं और दिलचस्प यह कि एजेंसी का नाम नहीं सिर्फ एजेंसी लिखा जाता है। ये एजेंसियां वहीं हैं जिनकी सेवाएं लेना सरकार ने बंद कर दिया है और संघ से जुड़ी एक एजेंसी की सेवाएं लेनी शुरू की है। इस तरह सरकार किसी एजेंसी के खिलाफ और किसी पर खास तौर से मेहरबान है। किसी के कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन-भत्ता नहीं मिलता और किसी को पेंशन नहीं मिली। उसे देखने वाला कोई नहीं है और एजेंसी का नाम नहीं लिखने से कैसे पता चलेगा कि किसकी खबर है और अखबार जब सरकार की सेवा में जुटे हैं तो सरकार पीआईबी के जरिए ऐसी खबरें देने की व्यवस्था क्यों नहीं करती ताकि हम इन्हें सरकारी प्रचार मान लें। दो चार लोगों को काम मिलेगा, खबरों में भिन्नता और विविधता होगी सो अलग। 

प्रधानमंत्री पत्रकारों को साथ नहीं ले जाते हैं

उल्लेखनीय है कि नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद पत्रकारों को साथ ले जाना बंद कर दिया था और तब उनके समर्थकों ने तारीफ की थी कि उन्हें प्रचार की जरूरत नहीं है और वे कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों से अलग हैं। बाद में पता चला, शक हुआ और आरोप लगे कि वे अपने साथ देश के कारोबारियों को ले जाते रहे हैं उन्हें विदेशी शासकों से मिलवाने तथा उनकी सिफारिश करने के भी आरोप हैं। सरकार ने इनका कोई जवाब नहीं दिया है। राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री के साथ अडानी के विदेश जाने से संबंधित पांच सवाल पूछे – उसका कोई जवाब नहीं आया है। जबकि पत्रकार साथ जा रहे होते तो यह सब सार्वजनिक होता। ऐसे में जाहिर है, पत्रकारों को साथ नहीं ले जाने का उद्देश्य संदिग्ध है। पत्रकारों को विदेश घूमने के मौके और अनुभव हासिल करने से वंचित रखने का मामला तो है ही। ऐसे में विदेश की ऐसी खबर को लीड बनाने का मतलब संपादकीय आजादी और विवेक का दुरुपयोग नहीं तो क्या है? अगर खबर वाकई इतनी महत्वपूर्ण होनी थी तो अखबार को अपना संवाददाता भेजना चाहिए या सरकारी विज्ञप्ति से छापना चाहिए। एजेंसी लिखकर खबरों को जबरन निष्पक्ष बनाने का कोई मतलब नहीं है। 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।