इज़रायल-हमास संघर्ष: शनिवार को डॉग विसिल, रविवार को स्पष्टीकरण, बीच में मीडिया और राजधर्म

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


इजराइल पर हमास के हमले के कुछ ही घंटे बाद शनिवार, 7 अक्तूबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट कर आतंकवादी हमले की निन्दा की और खुलकर इजराइल के साथ होने का संकेत दिया। बाद में उन्होंने इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से फोन पर बात भी की। खबरों के अनुसार इस बात-चीत में प्रधानमंत्री ने दोहराया कि भारत इजराइल के साथ है और आतंकवाद के हर रूप की घोर निन्दा करता है। दूसरी ओर, मध्य-पूर्व के इस्लामिक देश फिलिस्तीन के साथ मजबूती से खड़े हैं और वो फिलिस्तीनियों के लिए अलग राष्ट्र की मांग करते रहे हैं। भारत में भी इस मामले पर सियासी चर्चा रही क्योंकि भारत परंपरागत रूप से फिलीस्तीन का समर्थन करता आ रहा है। दूसरी ओर, मोदी सरकार (नरेन्द्र मोदी के ट्वीट के अनुसार) खुलकर इजरायल के साथ दिख रही थी।  

वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन के अनुसार, इस मामले में भारत की स्थिति बहुत खराब रही। उनका कहना है कि फिलीस्तीन दूतावास में नागरिक समाज के कुछ लोगों को यह कहते सुनकर उन्हें आश्चर्य हुआ कि फिलीस्तीन के मामले में भारत ने अपना रुख बदल लिया है। टंडन ने कहा कि उन्होंने वहां भी कहा था कि नरेन्द्र मोदी के ट्वीट को उनकी निजी और उनकी पार्टी के राजनीतिक नजरिये के रूप में देखा जाना चाहिए। यहां यह उल्लेखनीय है कि मोदी के ट्वीट को प्रधानमंत्री कार्यालय या विदेश मंत्रालय के हैंडल से रीट्वीट भी नहीं किया गया। ऐसे में भारत सरकार या विदेश मंत्रालय का रुख समझना मुश्किल था। आज के अखबारों में इससे संबंधित खबर है और इस लिहाज से यह मामला दिलचस्प है। मैं विदेशी मामलों पर  ध्यान नहीं देता लेकिन भारतीय राजनीति को कैसे छोड़ सकता हूं। 

वैसे भी, मेरी नजर तो अखबारों, शीर्षक और खबरों की प्रस्तुति पर रहती है  और आज शीर्षक का खेल बारीकी का है। इस पर आने से पहले यह बता दूं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राजनीति कम दिलचस्प नहीं है और एक अजीब किस्म का अंतरराष्ट्रीय विवाद खड़ा करके या भारत को विचित्र स्थिति में डालकर पूजा कर रहे हैं और उनके शंख बजाने का प्रचार किया जा रहा है। जाहिर है यह उनका काम नहीं है और यह सब करने के लिए वे प्रधानसेवक नहीं बने हैं। पर उनके समर्थक उनके ट्वीट से मार्गदर्शन लेते हैं और चर्चा है कि येल यूनिवर्सिटी के यूरोपीय मामलों के एक विशेषज्ञ Orel Beilinson @BeilinsonOreal ने लिखा है कि भूमण्डलीकरण का एक मूर्खतापूर्ण स्वरूप यह सामने आया है कि इज़राइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू जब कोई ट्वीट करते हैं तो हिब्रू भाषा में टिप्पणी करने वाले उनका इस्तीफा माँगते हैं जबकि उनके समर्थन के ज़्यादातर कमेंट्स हिंदी में होते हैं। 

अगर आप जानते हैं कि नरेन्द्र मोदी की ऑनलाइन सेना है तो समझ सकते हैं कि इसका कारण क्या हो सकता है। बात इतनी ही नहीं है। नरेन्द्र मोदी के ट्वीट का असर यह हुआ कि देश के जो पत्रकार मणिपुर नहीं जा सके, उसकी रिपोर्ट नहीं कर पाये उनलोगों ने आई स्टैंड विद इजराल के साथ ट्वीट और प्राइम टाइम शो की भरमार कर दी। वरिष्ठ पत्रकार, शीतल पी सिंह ने नौ अक्तूबर को फेसबुक पोस्ट में बताया था कि 48 घंटों में इनके ट्वीट और प्राइम टाइम शो की संख्या इस प्रकार थी –

1.रुबिका लियाकत – 24,  2. अमन चोपड़ा – 23,  3. अमीश देवगन – 21,  4. सुधीर चौधरी – 19,  5. चित्रा त्रिपाठी – 17,  6. अदिति त्यागी – 17,

7. सुशांत सिन्हा – 16,  8. स्मिता प्रकाश (एएनआई) – 15  और दीपक चौरसिया – 14

इस पोस्ट के अनुसार पिछले पांच महीनों में आई स्टैंड विद मणिपुर जैसे हैशटैग के साथ इन्हीं पत्रकारों की सक्रियता शून्य रही है। प्रधानमंत्री के ऐसे ट्वीट को समर्थकों के लिए डॉग विसिल के रूप में देखा जाता है। पर वह अलग मुद्दा है और पहले भी ऐसा कहा गया है। इस बार भी यही कहा जा रहा है और बेशक यह निराधार नहीं है।

डॉग विसिल के असर का एक और उदाहरण यह खबर है कि हमास के समर्थन में खड़े होने की अपील की तो नहीं छोड़ेगी साइबर सेल, सोशल मीडिया पर ना करें ये गलती। zeenews की एक खबर के अनुसार, हमास (Hamas) और इजरायल (Israel) युद्ध को लेकर भारत में लोगों को बरगलाने की साजिश रची जा रही है। इसलिए, महाराष्ट्र में अब साइबर कंट्रोल रूम बनाया गया है, जिसके जरिए युद्ध से जुड़े भ्रामक वीडियो और तस्वीरें शेयर करने वालों पर नजर रखी जा रही है। सोशल मीडिया के जरिए युद्ध की ऐसी तस्वीरें वायरल की जा रही हैं जिसे गाजा में इजरायली अत्याचार बताकर पेश किया जा रहा है और लोगों को फिलिस्तीन और हमास के समर्थन में खड़े होने की अपील की जा रही है। महाराष्ट्र में इस तरह की साजिश के लिए साइबर कंट्रोल रूम बनाया गया है। यह बताने की जरूरत नहीं है कि इस तरह के ट्वीट कौन लोग करते हैं और उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं होती है।   

इन परिस्थितियों में जब यह कहा जाने लगा कि इजराइल पर प्रधानमंत्री अलग-थलग पड़ गये हैं। भारत ने अपनी नीति नहीं घोषित की है और इस मामले में भारत की नीति बदल गई है तो विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से कल उनकी साप्ताहिक प्रेस कांफ्रेंस में पूछा गया। उन्होंने जो जवाब दिया वह आज अलग-अलग शीर्षक से छपा है और इससे भी मौजूदा शासन में मीडिया की मुश्किलें या उसे मिल रहे मीडिया के समर्थन का अंदाजा लगा सकते हैं। आप जानते हैं कि इजराइल में फंसे भारतीयों को निकाल लाने के लिए भारत सरकार ने ऑपरेशन अजय शुरू किया है और उसका कैसा प्रचार है। यह वैसे ही है जैसे मणिपुर की रिपोर्ट तो नहीं हुई इजराइल हमास जंग की रिपोर्ट करने लोग पहुंच गए हैं और टेलीविजन पर खबरें आ भी रही हैं। इनमें सरकारी सेठ का नया खरीदा चैनल भी है। 

अब स्थिति यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह चुके हैं कि इजराइल पर आतंकवादी हमला हुआ है और इस मुश्किल घड़ी में भारत इजराइल के साथ खड़ा है। इसके हफ्तेभर बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने जो कहा उसे अलग-अलग अखबारों ने अलग ढंग से प्रस्तुत किया है। नवोदय टाइम्स का शीर्षक है, “भारत ने हमास के हमले को ‘आतंकी’ हमला करार दिया”। खबर का पहला वाक्य है, …. लेकिन अपने उस दीर्घकालिक रुख की पुष्टि की जिसमें संप्रभु और स्वतंत्र फलस्तीन (अखबार ने यही लिखा है) की स्थापना के लिए वार्ता की वकालत की गई है। दैनिक हिन्दुस्तान ने लिखा है, भारत फलस्तीन नहीं, आतंकी हमले के खिलाफ है। 

नवभारत टाइम्स ने लिखा है, ‘फिलिस्तीन को लेकर भारत की पॉलिसी लंबे समय से एक ही रही है। भारत हमेशा से बातचीत के माध्यम से आजाद और संप्रभु फिलिस्तीन बनाने की वकालत करता रहा है। भारत का स्टैंड अब भी यही है। अरिंदम बागची ने आगे कहा कि हमास की ओर से इजरायल पर किए गए हमले को भारत एक आतंकी हमले की तरह देख रहा है।’ आइये, अब मैं अंग्रेजी के अपने पांच अखबारों में इस खबर की प्रस्तुति बताऊं। 

  1. इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर लीड है। शीर्षक हिन्दी में कुछ इस तरह होगा। ऑपरेशन अजय के तहत इजराइल से पहली उड़ान आज पहुंचेगी (फ्लैग शीर्षक)। राजनयिक मुश्किल : दिल्ली ने आतंकवाद को निशाना बनाया, फिलीस्तीन पर अपना रुख दोहराया। मानवीय कानून के पालन की  अंतररराष्ट्रीय जिम्मेदारी है। 
  2. द हिन्दू में भी यह खबर लीड है। मुख्य शीर्षक हिन्दी में कुछ इस तरह होगा, “भारत ने ‘संप्रभु फिलीस्तीन राज्य’ की मांग दोहराई”। उपशीर्षक इस प्रकार है, विदेश मंत्रालय ने कहा, फिलीस्तीन राज्य पर नई दिल्ली की ‘लंबे समय से चली आ रही और लगातार एक नीति’ यथावत है; ऑपरेशन अजय शुरू; उम्मीद है कि एयर इंडिया की उड़ान आज इजराइल से 230 भारतीयों को लेकर आएगी।       
  3. टाइम्स ऑफ इंडिया में युद्ध पर इजराइल का बयान लीड है। शीर्षक हिन्दी में कुछ इस तरह होगा, “इजराइल ने कहा, बंधकों को मुक्त किये जाने तक गाजा को ना पानी (मिलेगा) ना बिजली”। इंट्रो है, ‘युद्ध के अगले चरण’ : जमीनी हमले की तैयारी”। टाइम्स ने इस मूल खबर के साथ विदेश मंत्रालय का स्पष्टीकरण भी संगल कॉलम में छापा है और बताया है कि अपने बहुत ही बारीक स्टैंड में भारत ने हमास की निन्दा की, फिलीस्तीन का समर्थन किया। 
  4. हिन्दुस्तान टाइम्स की लीड का शीर्षक है, हमलों के छठे दिन अमेरिका इजराइल के साथ खड़ा है। विदेश मंत्रालय का बयान इसके साथ एक अलग, दो कॉलम की खबर के रूप में है। इसका शीर्षक है, भारत ने हमास के आतंकी हमले की निन्दा की, फिलीस्तीन राज्य पर अपना स्टैंड दोहराया। 
  5. द टेलीग्राफ में यह खबर सिंगल कॉलम में है पर शीर्षक पूरी बात स्पष्ट रूप से कहता है और यही इसकी खासियत रही है। आज इस खबर का शीर्षक है, “नई दिल्ली रणनीति सुधारने में”। अनीता जोशुआ की बाईलाइन वाली खबर के अनुसार, विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को फिलिस्तीन पर भारत की स्थिति को  डिफ़ॉल्ट मोड में रीसेट कर दिया। यह दो-देश रूपी समाधान का समर्थन है।  शनिवार के हमास हमले के बाद इज़राइल के साथ एकजुटता की अभिव्यक्ति का सुधार पांच दिन बाद किया गया। …. प्रधान मंत्री की टिप्पणी के बाद इस विषय पर बागची ने पहली बार बात की।   

सूचना यह भी है कि द टेलीग्राफ संपादक बदल गये हैं। बदलते रहे हैं पर अखबार नहीं बदला। इन दिनों मैं परिवर्तन देख रहा हूं पर कोई राय बनाने में असमर्थ हूं। इसलिए भी काफी समय से अखबारों पर नहीं लिख रहा हूं क्योंकि ‘शेमगोल’ के बाद से कुछ खास और जोरदार नजर नहीं आया। देखता हूं, बताउंगा।  

कहने की जरूरत नहीं है कि प्रधानमंत्री अंतरराष्ट्रीय मामले और भारत के रुख से संबंधित छवि पर पड़ सकने वाले प्रभावों से मुक्त अपनी राजनीति कर रहे हैं और प्रधानमंत्री होते हुए भी पार्टी के प्रचारक की तरह काम कर रहे हैं। आगे दूसरों को क्या करना है या नहीं करना है इस बारे में निर्देश भले नहीं देते हों पर जो प्रतिक्रिया होती है वह निर्देश के अनुकूल ही होती है। इसीलिए इसे डॉग विसिल कहा जाता है। जो नहीं जानते हैं उन्हें बता दूं कि कैमब्रिज डिक्सनरी के अनुसार यह एक ऐसी सीटी है जिसका उपयोग कुत्तों को प्रशिक्षण देने के लिए किया जाता है। इसकी आवाज बहुत तेज होती है पर मनुष्य इसे नहीं सुन सकते हैं। हिन्दी में इसका प्रयोग नहीं होता है पर इस शब्द के उपयोग से संबंधित डिक्सनरी का उदाहरण बहुत स्षष्ट है। किसी राजनेता द्वारा की गई कोई टिप्पणी, भाषण, विज्ञापन इत्यादि जिसका उद्देश्य किसी विशेष समूह द्वारा समझा जाना है, विशेष रूप से नस्लवाद या घृणा की भावनाओं के साथ, वास्तव में इन भावनाओं को व्यक्त किए बिना।

चुनाव से पहले प्रधानमंत्री और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का पूजा पाठ, गंगा किनारे बैठना, शंख बजाना, ध्यान लगाना, सफाई कर्मियों या चेहरे पर मूतने की भी शिकायत नहीं करने वाले नागरिक के पांव पखारना और इसकी तस्वीर अखबारों में छपना या खुद सार्वजनिक करना और ऐसे तमाम कार्यों कर्तव्यों को इसी श्रेणी में रखा जा सकता है। मां की अर्थी को कंधा देना, बाल नहीं मुड़ाना और तेरहवीं की चर्चा नहीं करना – एक खास किस्म का आधुनिक हिन्दुत्व है और इसमें नीची या पिछड़ी जातियों की परवाह नहीं करना शामिल रखने की कोशिश भी। इसलिये जातिवार जनगणना से परेशानी का कारण भी आप समझ सकते हैं। भले इसके खिलाफ तर्क वही अपनाए जाएं जो हिन्दू-मुसलमान करने के लिए अपनाए जाते हैं या कुछ और।  आप जानते हैं कि पूजा-पाठ से देश या नगरिकों या नागरिकों के एक वर्ग की भलाई होती भी हो तो यह काम प्रधानमंत्री का नहीं है। शंख बजा लेना भी ऐसी योग्यता नहीं है पर सब चल रहा है। यह अलग बात है कि सरकार चाहे और बहुमत का समर्थन हो तो इसके लिए मंत्रालय बन सकता है और प्रधानमंत्री इस विभाग को अपने ही पास रखें तो बात अलग होगी। उसपर फिर कभी। 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।