सेना और सैनिक के शोर में जवानों के शहीद होने और तेज बहादुर का नामांकन रद्द होने की खबर



वाराणसी से चुनाव लड़ने के लिए दाखिल बीएसएफ के बर्खास्त जवान का नामांकन रद्द कर दिए जाने की खबर मुझे कल शाम मिली। विस्तार जानने के लिए रात में मैंने टेलीविजन भी देख लिया। टेलीविजन पर तीन खबरें मुझे आज के अखबारों के लिहाज से पहले पन्ने की लगीं। मैं अपनी प्राथमिकता बताता हूं आप देखिए कि आपके अखबार में ये खबरें कैसी हैं। इनमें एक खबर अंग्रेजी अखबारों में तो पहले पन्ने पर नहीं है। हो सकता है आपके अखबार में भी पहले पन्ने पर न हो। बाकी दो खबरें आपके अखबार में पहले पन्ने पर तो होगी ही लीड और सेकेंड लीड ही होगी। आइए, मैं बताता हूं कि मेरी प्राथमिकता क्रम का कारण क्या है और इसी से आप समझ जाएंगे कि आपके अखबार वह क्रम क्यों नहीं है।

इसमें यह मान कर चलिए कि प्रधानमंत्री या सत्तारूढ़ दल के अध्यक्ष चुनाव प्रचार में ही सही, कुछ भी बोलें व दिन भर टेलीविजन पर दोहराया जाता रहता है और ऐसे में खबरों की समझ खराब होना स्वाभाविक है। इसलिए हमलोग टेलीविजन नहीं देखते और घर में टेलीविजन पर खबरें देखने का रिवाज लगभग खत्म हो रहा है। फिर भी, जो है सो है और उसका असर भी। आइए, मैं सबसे पहले तीन प्रमुख खबरें बताऊं जिनकी चर्चा आज करूंगा। ये खबरें है, गढ़चिरौली : नक्सलियों ने ब्लास्ट कर उड़ाई पुलिस की गाड़ी 15 कमांडो हुए शहीद, अजहर मसूद वैश्विक आतंकवादी घोषित और बनारस से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ सीमा सुरक्षा बल के बर्खास्त जवान तेज बहादुर यादव का नामांकन रद्द।

कायदे से तो यह खबर भी आज पहले पेज की लीड हो सकती थी पर इसके लिए डीटेल दिल्ली स्थित चुनाव आयोग, सीमा सुरक्षा बल मुख्यालय में कल तेज बहादुर के लिए काम कर रहे लोगों से लेनी पड़ती और इन नए अनजान लोगों तक अखबार वालों की पहुंच नहीं है और इन दिनों ऐसी खबरें करने का रिवाज भी नहीं है कि सरकार या सत्तारूढ़ दल नाराज हो जाए। इस मामले में कल जो सब हुआ वह आपको अखबारों में शायद ही मिले पर फिलहाल सूचना यही है कि तेज बहादुर यादव ने मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का निर्णय किया है और इस आशय की खबर दैनिक भास्कर में पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है। नामांकन रद्द करना और उसका जो कारण बताया गया है उसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है कि नहीं यह सब आज पता चलेगा।

लेकिन, क्या आपको लगता है कि इसके लिए बताया गया कारण संतोषजनक है या नामांकन रद्द कर दिया जाना सामान्य बात है? अगर नहीं तो क्या अखबारों को यह नहीं बताना चाहिए था कि उनकी राय में यह सही है कि नहीं – और क्यों सही अथवा गलत है। मेरे हिसाब से यह बिल्कुल गलत है। एक जवान खराब खाने की शिकायत करता है – उसे पागल बताकर अनुशासनहीनता के आरोप में नौकरी से निकाल दिया जाना अफसरों की मनमानी है। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री सेना की वीरता, उपलब्धियों और उसे बदला लेने की छूट देने के नाम पर वोट मांगते हैं। चुनाव आयोग को यह सब गलत नहीं लगता है। ऐसे में क्या सैनिक को यह बताने का हक नहीं है कि उसके साथ सेना, और नेताओं ने कैसा सलूक किया? वह यह सब बताकर चुनाव जीतना चाहता है तो मेरे ख्याल से यह भी गलत नहीं है। गरीब और पूर्व सैनिक का अधिकार है।

इस बार तेज बहादुर का नामांकन रद्द हो गया तो क्या आगे के लिए कायदा ठीक नहीं होना चाहिए? क्या तेज बहादुर को किसी ने ऐसा आश्वासन दिया। क्या आपको लगता है कि सत्ता में बैठे लोग सेना (और सैनिकों) के मामले में गंभीर हैं। क्या उन्हें यह चिन्ता नहीं करनी चाहिए कि तेज बहादुर का नामांकन रद्द होना आपको बुरा न लगे। क्या किसी ने ऐसा कुछ किया? अगर मकसद आपको खुश करके वोट लेना होता तो वो (जो चुनाव लड़ रहे हैं सब) ऐसा करते। पर वो जानते हैं कि इसकी जरूरत नहीं है। आपको जाति-धर्म के नाम पर एक दूसरे से लड़ाना आसान है और आप तब थोक में वोट देंगे। इसलिए ना चुनाव लड़ने वाले और ना उनका प्रचार करने वाले अखबार इन बातों की परवाह करते हैं।

अब आज की पहली खबर पर आता हूं। खबर है, “गढ़चिरौली : नक्सलियों ने ब्लास्ट कर उड़ाई पुलिस की गाड़ी 15 कमांडो हुए शहीद”। हमले में बस ड्राइवर की भी मौत हो गई। इससे पहले मंगलवार देर रात इसी इलाके में नक्सलियों ने रोड निर्माण में लगे 30 वाहनों को आग लगा दी थी। नक्सली हमला कुरखेड़ा से छह किलोमीटर दूर कोरची मार्ग पर हुआ। बताया जा रहा है कि महाराष्ट्र पुलिस के जवान निजी बस से गढ़चिरौली की ओर जा रहे थे। यह इलाका महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ सीमा पर है। नक्सली लोकसभा चुनाव का विरोध कर रहे हैं, हालांकि नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के बावजूद लोकसभा चुनाव के पहले चरण के तहत 11 अप्रैल को गढ़चिरौली-चिमूर सीट के गढ़चिरौली में 72% वोटिंग हुई थी।” यह एक गंभीर खबर है और कानून व्यवस्था के साथ सुरक्षा बलों की नाजुक स्थिति भी मालूम होती है।

एक तरफ सरकार पुलवामा हमले के बाद से पाकिस्तान और पाकिस्तानी आतंकवादियों के पीछे पड़ी होने का दिखावा कर रही है और मजबूत सरकार होने के साथ यह भी दावा कर रही है कि 2014 के बाद से हमले बंद हो गए हैं और एक महीने में दो वारदात। ऐसा नहीं है कि पुलवामा में मरे सैनिक कल गढ़चिरौली में मरे लोगों से अलग तरह के नागरिक हैं। देश और सरकार के लिए सब बराबर हैं। पर सरकार पाकिस्तान और पाकिस्तानी आतंकवादियों को ठीक करने में लगी है पर देश में जो नक्सली हैं उन्हें नियंत्रित करने के मामले में चुप है। कहने की जरूरत नहीं है कि रोक ही नहीं पा रही है। इसके बावजूद अजहर मसूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने पर ऐसे खुशी जताई जा रही है और दावा किया जा रहा है जैसे अब आतंकवाद पूरी तरह रुक जाएगा।

तीसरी खबर वैसे तो सिंगल कॉलम की है पर प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष ने इसपर ऐसे-ऐसे दावे किए हैं कि यह कई अखबारों में लीड बन गई है। कुख्यात आतंकवादी अजहर मसूद को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित किए जाने से भारत को क्या मिलना है? नागरिकों का क्या भला हुआ – यह मेरी समझ में तो नहीं आया। दैनिक भास्कर ने आज इसे बड़े विस्तार से छापा है। आप भी देखिए मुझे तो कुछ समझ नहीं आया। मैं और अखबारों से समझने की कोशिश करता हूं। पर अभी तक मामला यह है कि पुलवामा हमले की जिम्मेदारी लेने वाले आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के खिलाफ भारत के अभियान के तहत पाकिस्तान पर वायु हमला हुआ। आतंकवादी शिविर को नष्ट करने और 200 से लेकर 400 आतंकी मार डालने की खबर फैलाई गई। फिर अजहर के बीमार होने, हमले में घायल होने और मारे जाने जैसी अपुष्ट खबरें छपती रहीं। इसके बाद उसे वैश्विक आंतकवादी घोषित कराने और इस बहाने भारत की विदेश नीति की प्रशंसा करने और आतंकवाद के खिलाफ सख्त होने की छवि बनाने की कोशिश की गई।

इस मामले में मैंने 14 और 16 मार्च को यहीं लिखा था कि एक तरफ अजहर को हवाई हमले में ‘मार’ दिए जाने की खबर और दूसरी तरफ उसे अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कराने की कोशिशें साथ चलती रहीं। चीन के वीटो का उपयोग किए जाने से इस कोशिश को झटका लगा पर बताया ऐसे गया जैसे भारत ने कोशिशें तो पूरी की थीं पर चीन ने अपने वीटो से ऐसा नहीं होने दिया। अखबारों ने ये नहीं बताया कि चीन क्यों आतंकवादी का साथ दे रहा है। राहुल गांधी ने चुटकी भी ली थी कि, सरकार की कूटनीति गुजरात में जिनपिंग के साथ झूला झूलना, दिल्ली में गले लगना और चीन में घुटने टेक देना रही है। चीन के खिलाफ मोदी एक शब्द भी नहीं बोलते। इसपर मोदी तो नहीं बोले अरुण जेटली ने कहा कि, इस मामले में मूल रूप से जवाहर लाल नेहरू दोषी है जिन्होंने सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए भारत की बजाय चीन का पक्ष लिया था।

तथ्य है कि चीन ने 2009, 2016, 2017 व 2019 में भी मसूद के मामले में बाधा डाली थी। तब चुनाव नहीं थे। 2009 में केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और जाहिर है, इसके बाद भारत ने इसपर जोर नहीं लगाया। और अब लगाया तो हो गया। आखिर चीन भी क्यों किसी आतंकवादी का विरोध नहीं करेगा? यह भी संभव है कि चीन के रुख में बदलाव श्रीलंका की पिछली घटना से आया हो। इस मामले में सच्चाई कैसे मालूम होगी? आपको लगता है आपका अखबार बताएगा? इंडियन एक्सप्रेस, हिन्दुस्तान टाइम्स और आज द टेलीग्राफ ने भी आज अजहर मसूद की खबर को लीड छापा है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने पहले पन्ने की अधपन्ने पर इस खबर को छापा है और मुख्य लीड गढ़चिरौली की खबर है। दैनिक हिन्दुस्तान टाइम्स में भी खबरों की प्राथमिकता यही है।

हिन्दुस्तान ने तेज बहादुर की खबर अंदर होने की सूचना पहले पन्ने पर दी है। नवभारत टाइम्स, नवोदय टाइम्स में यह खबर पहले पन्ने पर छोटी सी है। अमर उजाला में पहले पन्ने पर फोटो के साथ अंदर खबर होने की सूचना है। दैनिक जागरण के पहले पन्ने पर भरपूर विज्ञापन है और खबर एक ही है। यह मसूद अजहर और भारत की बड़ी जीत की है। जागरण के दूसरे पहले पन्ने पर गढ़चिरौली की खबर लीड है। तेज बहादुर की खबर दोनों पन्नों पर नहीं है। अंदर चार कॉलम में यह खबर मिली। राजस्थान पत्रिका में पहले पन्ने पर सूचना है और अंदर आठ कॉलम की खबर – कुछ खबरों का कोलाज बनाने की कोशिश की है। वह भी इसके साथ है।


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