इस लोकसभा चुनाव में झारखंड के कोडरमा से भाकपा (माले) के टिकट पर लोकसभा प्रत्याशी राजकुमार यादव का जन्म अक्टूबर 1970 को अविभाजित बिहार के गिरिडीह जिले के गावां इलाके में हुआ। यह इलाका अपराधी गिरोहों की गतिविधियों के लिए बदनाम था। अपराधी गिरोहों ने अपहरण और हत्याओं के जरिये इलाके में आतंक फैला रखा था। इसके खिलाफ जनता का स्वत: स्फूर्त आंदोलन फूट पड़ा। उस समय राजकुमार किशोर थे और अभी दसवीं कक्षा ही पास हुए थे कि इस आंदोलन में शामिल हो गये। 1986 में उन्हें झूठे मुकदमे में गिरफ्तार कर लिया गया और इसके बाद तो उन पर झूठे मुकदमे लादने का सिलसिला ही चल पड़ा।
किशोरवय में गिरिडीह जेल के उनके अनुभव जिंदगी की दिशा बदलने वाले साबित हुए। जेल में उनकी मुलाकात कॉमरेड महेन्द्र सिंह से हुई। महेन्द्र सिंह बगोदर से भाकपा (माले) के लोकप्रिय विधायक और कम्युनिस्ट नेता थे जिनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। महेन्द्र सिंह से उन्होंने भाकपा (माले) और आईपीएफ के इतिहास के बारे में सीखा। बंदियों के खिलाफ जेल अधिकारियों के बुरे बर्ताव के खिलाफ महेन्द्र सिंह के संघर्ष में वे उनके सबसे विश्वसनीय साथी बन गये। महेन्द्र सिंह 1988 में रिहा हो गये लेकिन राजकुमार ने जेल में कम्युनिस्ट साहित्य पढ़ना जारी रखा। मार्च 1993 में जेल से रिहा होने के बाद वे औपचारिक तौर पर भाकपा (माले) में शामिल हो गये।
राजकुमार पहली बार 1995 में राजधनवार से विधानसभा का चुनाव लड़े और उन्हें 7000 वोट मिले। उन्होंने अपराधी गिरोहों के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखा। साथ ही वे मजदूरों और किसानों के अधिकारों के लिए और प्रशासनिक भ्रष्टाचार के खिलाफ भी संघर्ष करते रहे। 1995 में एक बार फिर उन्हें ढाई साल के लिए जेल में डाल दिया गया। साल 2000 में झारखंड विधानसभा का पहला चुनाव हुआ। यह राजकुमार के संघर्षों का ही असर था कि राजधनवार विधानसभा में उनकी हार महज 1700 वोटों के अंतर से हुई।
झारखंड राज्य के शुरुआती वर्ष उथल-पुथल से भरे हुए थे। झारखंड के गठन के पीछे सपना था कि जनता राज्य के संसाधनों को नियंत्रित करेगी लेकिन यह सपना जल्द ही टूट गया और बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने झारखंड को प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट के केन्द्र में तब्दील कर दिया। इस खुली लूट को चुनौती देने वालों को माओवाद के नाम पर चुप कराने और उनकी आवाजों को दबा देने की कोशिश की गयी। राजधनवार में माओवादियों के नाम पर कार्यकर्ताओं को चुन चुन कर फंसाने की मुहिम के खिलाफ चले आंदोलन में राजकुमार अगली कतार में थे। इसी दौर में भाकपा (माले) ने दलितों को वोट देने से रोकने की सामंती धमकियों और बंधुआ मजदूरी के खिलाफ जबर्दस्त आंदोलन चलाया। इस आंदोलन के दौरान 400 बंधुआ मजदूरों को रिहा कराया गया लेकिन इसके कारण सामंती ताकतें राजकुमार के पीछे पड़ गईं।
22 जनवरी 2003 को इलाके में बढ़ते अपराधों के खिलाफ राजकुमार यादव मरकाचो पुलिस स्टेशन पर प्रदर्शन कर रहे थे। बाबूलाल मरांडी की पुलिस ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। इस गोलीबारी में चार कम्युनिस्ट कार्यकर्ता शहीद हो गये और राजकुमार बाल-बाल बचे। इस गोलीबारी का असली निशाना राजकुमार ही थे। राजधनवार के तेलाडीह गांव में पुलिस के एक सिपाही की मौत हो गयी। इसी को बहाना बनाकर पुलिस ने भारी दमन शुरू कर दिया। ज्यादातर मुसलमान आबादी वाले इस गांव के लोग पुलिस के आतंक और गिरफ्तारी के डर से गांव छोड़कर चले गये। इस पुलिसिया आतंक के सामने महेन्द्र सिंह के साथ राजकुमार यादव और मुस्तकीम अंसारी डटकर खड़े हुए और गांववासियों की वापसी सुनिश्चित करवाई।
2004 में राजकुमार यादव को फिर जेल भेज दिया गया और उन्हें जेल से ही लोकसभा चुनाव लड़ना पड़ा। इस चुनाव में उन्हें 137,000 वोट मिले। महेन्द्र सिंह की हत्या के बाद राजकुमार 4000 वोटों के अंतर से राजधनवार विधानसभा सीट हार गये। माइका खदान मजदूरों का शोषण इलाके में बड़ा मुद्दा बन चुका था और राजकुमार एक बार फिर आंदोलन की अगली कतार में थे।
2009 के लोकसभा चुनाव में वे कोडरमा लोकसभा सीट पर बाबूलाल मरांडी के खिलाफ 40,000 वोटों से हार गये। मरांडी उस समय जेवीएम के प्रत्याशी थे। 2014 में मोदी लहर के दौर में भी उन्हें कोडरमा लोकसभा सीट पर 2,66,000 से ज्यादा वोट मिले और वे दूसरे नंबर पर रहे। उस समय भाजपा के रविंदर राय चुनाव जीते। उस समय के सांसद बाबूलाल मरांडी ने यहां से चुनाव लड़ने की हिम्मत ही नहीं की और जेवीएम के प्रत्याशी को बहुत ज्यादा वोटों के अंतर से तीसरा स्थान मिला। 2014 के विधानसभा चुनाव में राजकुमार ने मरांडी को 10,000 से ज्यादा वोटों से हराया।
आज वे झारखंड विधानसभा में जनांदोलनों की आवाज हैं। विधानसभा में उन्होंने 450 तथाकथित माओवादियों के झूठे आत्मसमर्पण का भंडाफोड़ किया। बाद में पता चला कि पुलिस ने नौजवानों को पैसा देकर समर्पण की नौटंकी करवाई थी। एसएनपीटी और सीएनपीटी कानूनों को कमजोर करने के खिलाफ राजकुमार विधानसभा में मुखर रहे हैं। साथ ही उन्होंने झारखंड में भुखमरी से होने वाली मौतों और अर्ध-शिक्षकों के सवालों पर लगातार सक्रिय हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव में राजकुमार यादव एक बार फिर से कोडरमा लोकसभा सीट से भाकपा (माले) के प्रत्याशी हैं। उनकी लड़ाई भाजपा की अन्नपूर्णा देवी और बाबूलाल मरांडी से है। यही अन्नपूर्णा देवी एक हफ्ते पहले तक राजद की झारखंड प्रदेश अध्यक्ष थीं और नरेंद्र मोदी की ‘चौकीदारी’ के खिलाफ भाषण दे रही थीं। वहीं बाबूलाल मरांडी को राजकुमार यादव ने पिछले लोकसभा चुनाव में हराया था और मरांडी की पार्टी से जीते 8 में से 6 विधायक पहले ही भाजपा में शामिल हो चुके हैं। भाकपा (माले) के हाथों हार जाने की संभावना से भाजपा इतना डर गई है कि उसने अपने मौजूदा सांसद रविंदर राय का टिकट काट दिया और दूसरी पार्टी से प्रत्याशी आयात करना पड़ा।
कोडरमा में भाकपा (माले) और राजकुमार यादव की जीत भाजपा के लिए बड़ा झटका साबित हो सकती है। यह जीत सामाजिक न्याय और जनता के आंदोलनों के साथ दगाबाजी करने वाले राजनीतिक अवसरवादियों को करारा जवाब साबित होगी।