मंगलवार को कांग्रेस ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और यूट्यूब पर राहुल गांधी की संवाद श्रृंखला की दूसरी कड़ी में नोबेल विजेता भारतीय अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी के साथ राहुल गांधी के संवाद का प्रसारण किया। इस में राहुल गांधी से बात करते हुए, अभिजीत बनर्जी ने कहा कि ये अर्थव्यवस्था के लिए मुश्किल समय है, लेकिन सरकार को सबसे पहले जनता के साथ खड़ा होना होगा।
देखिए पूरी बातचीत वीडियो में
राहुल गांधी और अभिजीत बनर्जी इस प्रसारण में भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने खड़ी चुनौतियों और कोरोना के मानवीय संकट से निपटने को लेकर चर्चा करते दिखाई दिए। नोबेल विजेता बनर्जी ने सरकार को सलाह दी कि लोगों के हाथ में नकदी पहुंचाना सबसे ज़रूरी है, क्योंकि उनके पास पैसे होंगे तो ही वो बाज़ार से कुछ खरीदेंगे और बिज़नेस चलेगा। इसलिए सरकार को लोगों की कर्ज माफ़ी के साथ उन तक कैश पहुंचाना होगा।
इस बातचीत में अभिजीत बनर्जी ने यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार की आर्थिक नीतियों की तारीफ़ भी की। वे बोले कि पिछली सरकार की आर्थिक नीतियां बेहतर थी, लोगों तक सुविधाएं पहुंचाने पर भी ज़ोर था लेकिन वर्तमान सरकार के दावे, इस मुश्किल समय में सच नज़र नहीं आ रहे हैं।
इस बीच अभिजीत बनर्जी ने विशेष आर्थिक पैकेज पर ज़ोर दिया, जिसमें इस तिमाही का छोटे व्यापार का लोन माफ़ करने की बात कही। अभिजीत बनर्जी ने राहुल गांधी की इस बात से सहमति जताई कि आर्थिक मदद पहुंचाने में थोड़ी सी भी देर, अर्थव्यवस्था के लिए घातक होगी।
इस बीच राहुल गांधी ने जब बनर्जी से ये पूछा कि क्या उनको नोबेल मिलने की उम्मीद थी, तो उन्होंने मुस्कुरा कर कहा कि उनको बिल्कुल उम्मीद नहीं थी कि पिछले साल नोबेल पुरस्कार के लिए उनके नाम का एलान होगा।
इस संवाद में राहुल गांधी ने कहा कि लॉकडाउन से जल्दी बाहर आने की ज़रूरत है, वरना अर्थव्यवस्था चौपट हो जाएगी तो अभिजीत बनर्जी ने कहा कि लॉकडाउन बढ़ाते जाने से बेहतर ये है कि इस महामारी के बारे में समझ बढ़ाई जाए। उन्होंने ये भी कि 3 महीने के लिए अस्थायी राशन कार्ड सभी को जारी कर देने चाहिए, क्योंकि धीरे-धीरे वो आबादी भी आर्थिक मंदी की चपेट में आएगी, जो अभी इससे बाहर है और सभी को राशन की ज़रूरत है-पड़ेगी भी।
बातचीत के अंत तक आते-आते अभिजीत बनर्जी ने इशारों-इशारों में भारत में केंद्र सरकार और उसके नेतृत्व की ओर – अमेरिका और ब्राज़ील के राष्ट्रप्रमुखों के बहाने इशारा करते हुए कह दिया कि वो देश, जहां पर सरकारों के मुखिया बड़ी-बड़ी बातें करते रहे, सबसे ज़्यादा बुरा हाल, उन ही देशों में दिखाई दे रहा है।
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