कई प्रदेश सरकारों ने कोरोना काल का हावाला देते हुए श्रम कानूनों में बदलाव का ऐलान किया है जिसके ख़िलाफ़ सभी वामपंथी दल और उनके मज़दूर संगठन आंदोलन का ऐलान कर रहे हैं। लेकिन अब बीजेपी की ही तरह आरएसएस से जुड़े मज़दूर संगठन-भारतीय मज़दूर संघ भी मैदान में क़ूद पड़ा है। उसने श्रम कानूनो में बदलाव को मज़दूरों के हक़ में डाका बताया है।
13 मई 2020 को भारतीय मजदूर संघ के पदाधिकारियों की इंटरनेट के माध्यम से हुई एक मीटिंग के बाद आर.एस.एस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ ने गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश (भाजपा सरकार) और राजस्थान (कांग्रेस) में श्रम कानूनों को स्थगित करने की निंदा करते हुए राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन की बात कही है। एक प्रेस रिलीज़ जारी करते हुए भारतीय मजदूर संघ ने ये भी कहा कि महाराष्ट्र, गोवा और ओडिशा में काम के घंटे 8 से 12 बढ़ा दिये गए हैं। साथ ये भी देखा जा रहा है कि अन्य राज्य भी इसी क्रम में अपने यहां तैयारियां कर रहे हैं। ये आज तक इतिहास में नहीं सुना गया है और किसी भी ऐसे देश में जहाँ लोकतंत्र नहीं है वहां भी ऐसा नहीं हुआ है।
भारतीय मजदूर संघ ने आगे लिखा है कि राज्यों को इस संदर्भ में लिखा भी गया और लेकिन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को छोड़कर किसी ने भी बीएमएस के प्रतिनिधि मंडल से मिलने की कोशिश नहीं की। बीएमएस ने आगे लिखा है कि राज्यों में प्रवासी मजदूरों के कानून का घोर उल्लंघन ही प्रवासी मजदूरों की बिगड़ी स्थितियों का ज़िम्मेदार है। अब हमारे पास आन्दोलन ही एकमात्र रास्ता बचा है। इसके पहले भी बीएमएस द्वारा कहा गया था कि राज्य सरकारें ये नहीं बता पा रही हैं कि मौजूदा श्रम कानून किस तरह से आर्थिक परिस्थितियों के मध्य रोड़ा है और ऐसी क्या स्थितियां बनीं, जिसकी वजह से इन श्रम कानूनों को राज्य सरकारों द्वारा स्थगित करना ज़रूरी समझा गया ?
आपको बता दें कि इसके पहले अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने भी कहा था कि श्रम कानूनों में बदलाव तभी करना चाहिए जब सरकार, श्रमिक और नियोक्ता संगठन से जुड़े लोगों की एक साथ बातचीत हो। साथ ही ये कानून वैश्विक स्तर पर तय मानकों पर मान्य हों। कई राज्यों के द्वारा स्थगित किये गए श्रम कानूनों के विरोध में देश भर के कई मजदूर संगठन खड़े हुए हैं। अब आर.एस.एस. से जुड़े मजदूर संगठन ने भी इसके प्रति रोष जताते हुए आन्दोलन की चेतावनी दी है।