उम्बर्तो इको ने लिखा है कि जेरूसलम की महिमा भी उसकी एक समस्या है. हजार साल पहले मुकद्दसी ने लिखा कि जेरूसलम सोने का एक जाम है जिसमें बिच्छू भरे पड़े हैं. अमोस ओज कहते हैं कि जेरूसलम बेहद कामुकता से भरी एक स्त्री है जिसके हाथ प्रेमियों को मरोड़ कर मार देते हैं, एक भयानक विधवा है जो अपने यारों को तभी भकोस लेती है, जब वे उसके साथ सहवास कर रहे हों. जीसस ने कहा कि ‘ओ जेरूसलम, जेरूसलम, तुम उन पैगंबरों की हत्या कर देते हो, उन्हें संगसार कर देते हो जिन्हें तुम्हारे लिए भेजा गया था.’ जीसस के सलीब पर लटकाये जाने के साठ साल बाद उनके संदेशों को प्रचारित करनेवाले संत स्टीफेन ने यही बात जेरूसलम के लोगों के सामने कही, ‘ओ अकड़ी गर्दनवाले लोगों, क्या कोई ऐसा भी पैगंबर हुआ जिस पर तुमने अभियोग नहीं लगाया?’ जीसस की मत्यु के सौ साल बाद उनके भाई माने जानेवाले भले आदमी जेम्स को भी पीट-पीट कर मार डाला गया.
जूडिया की पहाड़ियों में बसा जेरूसलम दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है और पांच हजार सालों की निरंतरता ने इसे एक मिथकीय मौजूदगी बना दिया है. कहते हैं कि यह शहर धरती पर भी है और जन्नत में भी. धरती पर है, तो यहां भयावह हिंसा, अय्याशी, लूट और झूठ का कारोबार रहा है; जन्नत में है, तो पयंबरों और पवित्र संदेश देनेवाले जेरूसलम से गुजरते रहे. तीन महान धर्मों की हकीकत, कल्पना और सपनों का केंद्र भी है यह शहर, और उनके बोझ से दबी एक त्रासदी भी. दुनिया के ज्ञात इतिहास में हमेशा अहम रहा जेरूसलम आधुनिक युग के उपनिवेशवाद, युद्ध, समाजवाद, पुरातत्व, प्रोपेगैंडा, लोकतंत्र, मानवतावाद और कूटनीति जैसी बीमारियों का भी शिकार हुआ. बीते हुए कल और घटित हो रहे आज से अगर जेरूसलम को हटा दिया जाए, तो दुनिया के इतिहास में बस कुछ पन्ने और कुछ फुट-नोट्स बचेंगे.
प्रकाश कुमार रे का यह कॉलम पैंतीस एकड़ के उस पवित्रतम इलाके और उसके इर्द-गिर्द बसे शहर जेरूसलम की दास्तान को सिलसिलेवार तरीके से पेश करने की कोशिश है जो कि ईसा मसीह की मृत्यु के सौ बरस बाद शुरू होती है. इससे पहले की जरूरी बातें कहानी के साथ बीच-बीच में आती रहेंगी. इस सीरीज के लिए कुछ अहम किताबों और लेखों का सहारा लिया गया है जिनके बारे में भी गाहे-ब-गाहे जानकारी दी जाती रहेगी. चूंकि यह सीरीज मुख्य घटनाओं और चरित्रों को फोकस करेगी, इसलिए विस्तार से हर मामले पर लिखना संभव नहीं है, और यह जरूरी भी नहीं है. कोशिश यह रहेगी कि जेरूसलम के राजनीतिक और सामाजिक इतिहास से कुछ परिचय हो सके.
साल 66 से 70 के बीच जेरूसलम और आसपास के यहूदियों ने रोमन साम्राज्य की अधीनता के खिलाफ कई विद्रोह किये और जब उन्होंने पवित्र मंदिर, जिसे हेरोड टेंपल या सेकेंड टेंपल के नाम से जाना जाता है, में रोमन सम्राट के नाम पर होनेवाली बलि रोक दी, तब रोमनों और स्थानीय राजा अग्रिप्पा ने निर्णायक युद्ध का इरादा कर लिया. विद्रोहियों ने रोमन, सीरियाई और यूनानी सैनिकों के साथ बहुत बुरा सलूक किया था. इसका कारण यह था कि यहूदी और यहूदी-ईसाई जूडिया में शासन कर रहे गेसियस फ्लोरस के प्रचंड दमन से त्रस्त थे तथा वे अब रोमन साम्राज्य की सुरक्षा पर भरोसा नहीं कर सकते थे. राजा अग्रिप्पा और उसकी बहन राजकुमारी बेरेनिस ने विद्रोहियों को समझाने की कोशिश की कि रोम की ताकत का मुकाबला दुनिया की कोई ताकत नहीं कर सकती है, पर इन बातों का कोई खास असर नहीं हुआ. ऐसे में जो युद्ध होना था, वह बहुत भयानक होना था. इस युद्ध को जेरूसलम के भविष्य को हमेशा के लिए तय कर देना था.
रोमन सम्राट नीरो ने अपने कमाण्डर वेस्पासियनस को विद्रोह को दबाने का जिम्मा दिया. उम्र के पांचवें दशक में चल रहा यह जनरल ब्रिटेन को जीत कर नाम कमा चुका था तथा रोमन सेना को खच्चरों की आपूर्ति कर इसने अकूत धन भी कमाया था. अपने बेटे टाइटस, सीरियाई, अरब तथा अग्रिप्पा की सेना के साथ वह फिलीस्तीनी इलाकों को जीतते हुए जेरूसलम की ओर बढ़ने लगा. इस अभियान के विवरण में जाने का कोई लाभ नहीं है, पर 67 में गैलिली की लड़ाई में उसके हाथ आये विद्रोहियों में एक यहूदी जोसेफस था जिसका उल्लेख जरूरी है. जोसेफस ही वह इतिहासकार है जिसके जरिये हम रोमन साम्राज्य, ईसाईयत और जेरूसलम के इतिहास का बड़ा हिस्सा जान पाते हैं. उस दौर का वह एकमात्र भरोसेमंद स्रोत है. विजित कमांडर ने इन कैदियों को नीरो के पास रोम भेजने का मन बनाया, जहां इन्हें निश्चित रूप से मौत मिलनी थी. लेकिन चतुर जोसेफस ने उन्हें अपने साथ रखने का निवेदन किया और भविष्यवाणी की कि वेस्पासियनस और टाइटस की किस्मत में रोम का सम्राट बनना लिखा है. इस भविष्यवाणी ने उसकी जान बचा ली और जब यह बात सच हुई तो यह इतिहासकार उनका खास चहेता बन गया.
इसी बीच जोसेफस का विरोधी गिस्चला का जॉन जेरूसलम पहुंचा जहां उसने दक्षिण से इदुमियंस नामक योद्धा को बुलाया. इस लड़ाके ने शहर और मंदिर को खूब लूटा और भयानक खून-खराबे को अंजाम दिया. जॉन के हाथ में शहर देने से पहले इदुमियंस ने मंदिर के पुजारियों के अलावा 12 हजार नागरिकों को भी मौत के घाट उतारा था. जेरूसलम के निवासी इस आतातायी से मुक्ति के लिए दूसरे आतातायी को बुलाने का विचार करने लगे थे जिसका नाम था साइमन बेन गियोरा. इन दोनों गुटों के साथ जीलटों का तीसरा गुट भी सक्रिय था जिसमें अमूमन चरमपंथी युवा शामिल थे. ये सभी मंदिर और मंदिर की कमाई पर कब्जे की हिंसक होड़ में लगे रहते थे. पड़ोसी शहर जेरिको पर रोमनों के कब्जे की खबर ने इन तीनों गुटों को आपसी सुलह कर साथ मोर्चा बनाने पर मजबूर कर दिया.
इसी बीच नौ जून, 68 को नीरो की मौत की खबर सुन कर वेस्पासिनियस को रोम कूच करना पड़ा, जहां उसे अपने सम्राट होने का एलान करना था. उसे जूडिया और मिस्र की रोमन पलटनों का पूरा समर्थन था और उन्होंने उसे अपना सम्राट घोषित भी कर दिया था. जोसेफस भी सोच रहा होगा कि उसकी भविष्यवाणी कितनी जल्दी सही साबित हो गयी. ईनाम स्वरूप उसे रिहा कर दिया गया, नागरिकता दी गयी और सलाहकार नियुक्त किया गया. राजकुमारी बेरेनिस ने रोम की गद्दी पाने की कोशिश कर रहे जनरल को अपने गहने दिये. अपने बेटे टाइटस को जेरूसलम की घेराबंदी करने का हुक्म देकर वेस्पासिनियस भूमध्यसागर सागर पार कर गया.
टाइटस को इस बात का बखूबी अंदाजा था कि जेरूसलम की जीत उसके पिता के शासन को मजबूत करने के लिए कितनी जरूरी है. इस कारण उसने यह इरादा कर लिया था कि वह मंदिर को लूट कर शहर को तबाह कर देगा. साठ हजार सैनिकों के साथ टाइटस जेरूसलम की ओर बढ़ रहा था. जेरूसलम में लड़ाके और बाशिंदे चारदीवारी पुख्ता कर रहे थे और पर्याप्त राशन-पानी इकट्ठा करने में लगे हुए थे.
(जारी)
Cover Photo : Rabiul Islam