अगर सरकारों ने प्रभावी क़दम न उठाये तो इस कोरोना काल में पांच साल से कम उम्र के छह हज़ार बच्चे रोज़ाना मौत के मुँह में जा सकते हैं। यह हालात अगले छह महीने तक रह सकते हैं। ये मौतें ऐसी वजहों से होंगी जिन्हें रोका जा सकता है। कोविड 19 महामारी की वजह से चिकित्सा सुविधाएं कमजोर होने और नियमित सेवाएं बाधित होने की वजह से ये मृत्यु होंगी। यूनिसेफ ने बताया कि ये संभावित मृत्यु उन 2.5 मिलियन (25 लाख) बच्चों की मृत्यु से अलग होंगी जो 118 देशों में अपने पांच वर्ष पूरे होने से पहले हर 6 महीने में होती हैं। लगभग एक दशक बाद मृत्यु दरों में ऐसी बढ़ोतरी होने की आशंका है। ये चेतावनी किसी आम बुद्धिजीवी या शोधकर्ता ने नहीं, संयुक्त राष्ट्र संघ की बच्चों के हितों लिए काम करने वाली सबसे बड़ी संस्था यूनिसेफ़ ने दी है।
यूनिसेफ ने ये रिपोर्ट द लैंसेंट ग्लोबल हेल्थ जनरल में प्रकाशित शोध के आधार पर पेश की है। जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी ने इस शोध को किया है। यूनिसेफ ने ये भी बताया ही कि कोरोना से बड़े स्तर पर निपटने के चलते पूरी दुनिया में ही स्वास्थ्य सुविधाओं पर असर पड़ा है। जिसके कारण माँ और शिशु के स्वास्थ्य पर भी इस संकट का प्रभाव पड़ रहा है। कई देशों में पहले से ही स्वास्थ्य सिस्टम कमजोर है और अब अधिकतर स्वास्थ्य सेवाएं कोरोना महामारी से निपटने में ही सीमित रह गयी हैं। जिस वजह से ये समस्याएं देखने को मिलेंगी।
प्रसव दौरान माताओं की भी मृत्यु दर बढ़ने की संभावना है
यूनिसेफ ने ये भी बताया है कि बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं न मिलने की वजह से करीब 56,700 माताओं की भी मृत्यु की आशंका है। ये 56 मौतें लगभग इसी 6 महीने में उन देशों में होने वाली 1 लाख 44 हज़ार मौतों से अलग होंगी। रिसर्च में बताया गया ही कि कोरोना से लड़ाई के दौरान सामान्य उपचार और टीके से भी स्वास्थ्य सेवाएं हट गयी हैं जो इन संभावित मृत्यु दरों के बढ़ने में बड़ी वजह के रूप में भूमिका निभाएंगी। यूनिसेफ ने ये भी बताया है कि निम्न और मध्यम आय वर्ग वाले देशों के ऊपर अत्यधिक असर देखने को मिलेगा। हमें कोरोना महामारी से लड़ने के साथ ही अन्य बीमारियों को नज़र-अंदाज़ नहीं करना है। यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फोरे ने इस रिपोर्ट के बारे में बताया कि वैश्विक स्तर पर पांच साल से कम बच्चों की मृत्यु इस दशक में पहली बार बढ़ सकती है। हम कोरोना वायरस से लड़ाई के बीच माँ और बच्चों को नहीं मरने देना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि माँ और शिशु की मृत्यु दर कम होने में दशक लगे हैं। हम इसे ऐसे ही नहीं खो सकते।