ये वो स्टोरी है, जिसको हम हर रोज़ प्रकाशित करने का फैसला कर के, हर रोज़ अगले दिन के लिए रोक लेते रहे हैं। क्योंकि गुजरात में कोरोना संक्रमण के आंकड़े और वहां जो कुछ घट रहा है, वो हमको रोज़ इसमें कुछ नया जोड़ने के लिए रोक लेता है। हम उन शुरुआती मीडिया प्लेटफॉर्म्स में से थे, जिन्होंने गुजरात में धमन-1 के नाम पर हो रहे वेंटिलेटर्स की ख़बर प्रकाशित की थी और उसके पहले से ही हम गुजरात और ख़ासकर अहमदाबाद की ख़बरों को फॉलो कर रहे थे, वहां के कोरोना आंकड़ों का विश्लेषण कर रहे थे। अब गुजरात हाईकोर्ट की टिप्पणी और फिर सुप्रीम कोर्ट के नोटिस के बाद, इस स्टोरी को प्रकाशित करना, अभी ज़रूरी हो गया है।
हर रोज़ आते नए आंकड़ों के बीच, हम ने गुजरात सरकार द्वारा टेस्टिंग न करने की ख़बर पढ़ी, गुजरात के म्युनिसिपल कमिश्नर की अपील पढ़ी, हमने वेंटिलेटर कह कर, खरीदे गए एम्बु बैग्स की ख़बरों पर सिर धुना और अब सामने मास्क्स की बिक्री में सरकार पर मुनाफ़ाख़ोरी के आरोप हैं। इन सबके बीच में, एक बात जो हम बिल्कुल पुख़्ता तौर पर कह सकते हैं कि गुजरात के आंकड़े, देश के किसी भी और राज्य से ज़्यादा डराने वाले हैं। न केवल ये आंक़ड़े देश के किसी राज्य के मुकाबले अधिक केस प्रति मिलियन हैं, इनके बढ़ने की रफ्तार सबसे अधिक है बल्कि गुजरात की कोरोना मृत्यु दर बाकी देश की दोगुनी है।
अदालत की टिप्पणी पर क्या सरकार को शर्म आएगी?
सबसे पहले बात गुजरात हाईकोर्ट की टिप्पणी की, जो कि शायद हाल के सालों में किसी राज्य की सरकार पर किसी अदालत की सबसे कड़ी टिप्पणी है। अहमदाबाद हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए, सरकार को नोटिस दिया और अहमदाबाद के सिविल हॉस्पिटल को लेकर ऐसी टिप्पणियां की, जिनको सुनकर सरकार को शर्म से ज़मीन में गड़ जाना चाहिए। हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जे बी परदीवाला और न्यायमूर्ति आई जे वोरा की खंडपीठ के मुताबिक, “हमने पहले कहा था कि सिविल अस्पताल मरीजों के उपचार के लिए है, लेकिन इसका हाल देख कर लगता है कि आज मरीज़ों के लिए यह कालकोठरी जैसा है या उससे भी बुरा। बदकिस्मती ये है कि गरीब और बेसहारा मरीजों के पास और कोई विकल्प नहीं है।”हाईकोर्ट ने आगे सरकार से सवाल किया कि क्या सूबे के स्वास्थ्य मंत्री और आला अधिकारियों को इस अस्पताल की हालत के बारे में कुछ पता भी है?
एडवोकेट जनरल ने क्या सोच कर ये बोला होगा?
गुजरात हाईकोर्ट की सुनवाई को पढ़ते हुए, हमारे मन में ये ही सवाल था। गुजरात सरकार ने जो टिप्पणी सिविल अस्पताल पर की, उससे भी ज़्यादा शर्मनाक वो जवाब है, जो गुजरात सरकार की ओर से हाईकोर्ट में दिया गया। अहमदाबाद हाईकोर्ट में, गुजरात के गुजरात के एडवोकेट जनरल, कमल त्रिवेदी ने कहा, “यदि सभी का परीक्षण किया जाता है, तो 70% लोगों का COVID-19 टेस्ट पॉज़िटिव आ जाएगा, जिससे भय साइकोसिस भय फैल सकता है।”
ये अपने आप में हैरानी, शर्म और बेशर्मी तीनों की बात है कि गुजरात सरकार अपने इस बयान में सीधे-सीधे मान लेती है कि;
- वह जानबूझ कर टेस्टिंग नहीं कर रही
- अहमदाबाद में कोरोना संक्रमण की स्थिति इतनी बुरी है कि 70 फीसदी तक लोग कोरोना संक्रमित हो सकते हैं
- सरकार आंकड़े छिपा रही है
किसी सरकार की ऐसी धृष्टता क्या हो सकती है कि वह अदालत के सामने मान ले कि वह आंकड़े छिपाने में लगी है और लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया गया है।
शुतुरमुर्ग, ख़तरा, रेत और सिर
कोरोना संक्रमण के शुरुआती दौर में, गुजरात सरकार का रवैया बिना किसी शक़ – शुतुरमुर्ग जैसा था, जो मुश्किल सामने देख कर – सिर को रेत में घुसा लेता है। गुजरात सरकार ने ठीक ये ही किया, टेस्ट्स न के बराबर किए और दावा किया कि वहां कोरोना संक्रमण भी न के बराबर है। आप टेस्ट्स का डेटा देखेंगे तो मार्च में गुजरात में लगभग न के बराबर टेस्ट्स हुए। सरकार बिना टेस्ट किए ही दावा करती रही कि राज्य में कोरोना संक्रमण बाकी देश के मुकाबले नियंत्रित है। 12 अप्रैल तक के आंकड़े कहते हैं कि राज्य में 11,715 टेस्ट हुए थे। यानी कि प्रति मिलियन 170 और मज़े की बात ये है कि लॉकडाउन 1 की शुरुआत के समय ये आंकड़ा और खराब था। लेकिन राज्य सरकार ने कहा कि 20 मार्च को गुजरात में कोरोना संक्रमण के केवल 5 मामले थे। नीचे दिए गए ग्राफ साबित करते हैं कि सच क्या था।
लेकिन अप्रैल के मध्य तक अहमदाबाद की हालत चिंताजनक होने लगी। मामले ऐसी तेज़ी से बढ़े कि अहमदाबाद के म्युनिसिपल कमिश्नर विजय नेहरा ने बयान दे दिया कि मई के अंत तक, अहमदाबाद में कोरोना के 8 लाख मामले हो सकते हैं, लेकिन सरकार को फर्क नहीं पड़ा। इसके बाद पहले म्युनिसिपल कमिश्नर ख़ुद ही सहकर्मी के कोरोना संक्रमित होने के बाद आइसोलेशन में चले गए और फिर उनका तबादला हो गया। कारण यही बताया जा रहा है कि वे लगातार ज़्यादा टेस्ट करने की मांग कर रहे थे। और सरकार थी कि टेस्ट्स करने को ही तैयार नहीं थी। नीचे वो ग्राफ है, जो राज्य सरकार के डेटा के आधार पर विकीपीडिया ने सोर्स किया है;
धमन 1 से ‘मास्क में मुनाफ़े’ तक
इसी बीच राजकोट की एक कंपनी ने दावा कर दिया कि वह 10 दिन के अंदर 1 लाख रुपए से भी कम कीमत के वेंटिलेटर बनाकर सरकार को दे सकती है। कोरोना मरीज़ों के लिए वेंटिलेटर, एक बेहद अहम मशीन है। फिर ख़बर आई कि ज्योति सीएनसी लिमिटेड नाम की इस कंपनी ने सरकार को 1000 वेंटिलेटर्स बनाकर दान देने का एलान किया है। सीएम की ओर से बाक़ायदा इस बारे में प्रेस रिलीज़ जारी कर दी गई।
इन तथाकथित वेंटिलेटर्स का अहमदाबाद सिविल हॉस्पिटल में ज़ोर-शोर से उद्घाटन हुआ लेकिन कुछ ही दिन में इनके ठीक से काम न करने की ख़बर आने लगी। अहमदाबाद मिरर ने इस पर इन्वेस्टीगेशन की और सामने आ गया कि दरअसल ये वेंटिलेटर्स थे ही नहीं बल्कि एम्बु बैग्स थे। यानी कि सरकार ने वेंटिलेटर्स मांगे, कंपनी ने पूरे दयाभाव और अविष्कारी अभिनय के साथ झूठ बोलकर एम्बु बैग्स पकड़ा दिए। सरकार ने जांचने की ज़रूरत भी नहीं समझी और पूरे ज़ोर शोर से प्रचार शुरु कर दिया।
आख़िरकार अहमदाबाद में इन तथाकथित वेंटिलेटर्स की वजह से मरीज़ों की मौत के मामले सामने आने लगे और फिर पूरा मामला खुल गया। किसी ने न तो ये सोचा कि 1 लाख से कम कीमत में वेंटिलेटर कैसे बन जाएगा, न ही ये सोचा कि आखिर कोई कंपनी 1000 मुफ्त वेंटिलेटर क्यों दे रही है। फिर जब मामला खुला तो सामने आ गया कि इस कंपनी के मालिक पराक्रम जडेजा, मुख्यमंत्री के करीबी हैं। इस पर कांग्रेस ने गुजरात सरकार और भाजपा को घेरना शुरु किया और करप्शन के आरोप लगाए,
CM @vijayrupanibjp ने अपने मित्र को फ़ायदा पहुँचाने और अपनी वाहावाही के लिए बिना टेस्टिंग और #DGCA के लाइसेंस वेंटिलेटर को #corona के मरीज़ों के इस्तिमाल के लिए दिया। – @AmitChavdaINC#GujaratFakeVentilatorScam #BJP_Failed_GujaratModel_Exposed #BJPFailsGujarat pic.twitter.com/70W4wRRZal
— Gujarat Congress (@INCGujarat) May 19, 2020
तो इसके बाद भाजपा की सफाई बेहद दिलचस्प थी, गुजरात सरकार की ओर से कह दिया गया कि इस मामले में किसी तरह के करप्शन की संभावना इसलिए नहीं हो सकती है, क्योंकि कंपनी ने 1000 वेंटिलेटर दान में दिए हैं। इस में भाजपा और राज्य सरकार ये बात भूल ही गई कि सरकार की कंपनी एचएलएल लाइफकेयर से भी कंपनी को ये ही कथित वेंटिलेटर बनाने का बड़ा ऑर्डर दे दिया गया है।
लेकिन बात सिर्फ इतनी तो थी नहीं, इसके बाद सामने आया मास्क्स में सरकार के मुनाफ़ा कमाने का मामला। कांग्रेस ने गुजरात सरकार पर आरोप लगाया कि वह एक एन95 मास्क, 49.61 रुपए में खरीद कर – जनता को 60 रुपए में बेच रही है। यानी कि सरकार ऐसे समय में मास्क्स की बिक्री से मुनाफ़ा कमा रही है। सरकार को अदालत में भी इस बारे में तमाम तथ्यों को स्वीकारना पड़ा है और उसे फटकार भी पड़ी है। हालांकि राजनैतिक रूप से, अदालत के बाहर अभी भी भाजपा – कांग्रेस पर पलटवार कर रही है। जबकि बेहतर ये था कि सरकार बेहतर काम करना शुरु करती।
इस सब का नतीजा क्या हुआ?
एक बात तय है कि गुजरात सरकार अब अदालत में मान चुकी है कि उसने जानबूझ कर, कम टेस्ट्स किए हैं। सरकार के एडवोकेट जनरल ने ये भी मान लिया है कि कोरोना का असल आंकड़ा, जारी किए गए आंकड़ों से इतना ज़्यादा है कि हम अंदाज़ा लगाने में घबराएंगे ही, सरकार भी उसको जानबूझ कर, जानना नहीं चाह रही है। टेस्टिंग न होने से संक्रमण कैसे और किन इलाकों में बढ़ रहा है, इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिली और अचानक से बहुत ज़्यादा मामले सामने आने लगे। नतीजा हुआ, सर्वाधिक मृत्यु दर और अहमदाबाद की स्थिति में दिन पर दिन गिरावट
लेकिन पर्याप्त टेस्ट्स न होने के बावजूद गुजरात का कोरोना कर्व, नीचे होने की जगह सीधा ऊपर जाने लगा। ऊपर दिया गया ग्राफ ताज़ा कोरोना आंकड़ों पर आधारित है और www.covid19india.org से लिया गया है। इसमें जिन तारीखों में कोरोना कर्व नीचे है, वह तब हैं जब टेस्ट्स न के बराबर थे, लेकिन कम टेस्ट होने के बावजूद आप देख सकते हैं कि कैसे गुजरात में कोरोना की स्थिति बेकाबू होती चली गई है।
सिर्फ ये ही नहीं अहमदाबाद की स्थिति इतनी खराब है कि पूरे गुजरात के 80 फीसदी से अधिक मामले अहमदाबाद से हैं। सरकार ने ख़ुद माना है कि अगर वो टेस्ट्स की संख्या बढ़ा देगी तो 70 फीसदी शहर की कोरोना पॉज़िटिव निकल आएगा।
हम अपनी अगली रिपोर्ट में सीधे अहमदबादा में पीड़ित नागरिकों के ख़ुद के बयान आपके लिए लेकर आने वाले हैं, जिससे साबित होगा कि कैसे कई लोगों को संक्रमण होने के बाद भी प्रशासन उनकी टेस्टिंग में आऩाकानी करता रहा। हालांकि एक दिलचस्प आंकड़ा हम ज़रूर साझा करना चाहेंगे, जो सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट जनरल के स्टेटमेंट पर कोर्ट की इस टिप्पणी की तस्दीक कर सकती है, कि ‘गुजरात सरकार जानबूझ कर कम टेस्टिंग कर रही और आंकड़े छुपाना चाहती है।’
नीचे दिए गए पहले ग्राफ को देखिए, जो गुजरात में प्रतिदिन टेस्ट संख्याओं पर आधारित है;
इस ग्राफ को देखने पर आपको ये स्पष्ट हो जाएगा कि गुजरात में कोरोना टेस्ट्स का आंकड़ा लगभग अभी तक प्रतिदिन एक जैसा ही है और उसमें थोड़ा बहुत ही अंतर है। ये आंकड़ा 4,500 से 5,000 टेस्ट्स प्रतिदिन के बीच में कहीं बैठता है। इसमें सिर्फ एक दिन यानी कि 16 मई को गुजरात में 10,548 टेस्ट हुए, जो बाकी दिनों को दोगुने से ज़्यादा थे। लेकिन उसके अलावा सिर्फ एक दिन ही टेस्ट्स का आंकड़ा 6000 के ऊपर गया है।
अब इसके बाद, एक और ग्राफ देखिए – जो प्रतिदिन आने वाले नए कोरोना संक्रमण के मामलों की संख्या पर आधारित है;
अब ऊपर दिए गए इस दूसरे ग्राफ को इसके पहले दिए गए ग्राफ से मिलाकर देखिए। साफ है कि गुजरात में सर्वाधिक कोरोना संक्रमण के नए आंकड़े भी उसी दिन के हैं, जिस दिन सर्वाधिक टेस्ट किए गए। यही नहीं बाकी सभी दिनों के नए संक्रमण के आंकड़े, लगभग उसी अनुपात में हैं – जिस अनुपात में टेस्ट संख्या है। 16 मई को टेस्ट का आंकड़ा 10 हज़ार के ऊपर है, तो नए मामले भी 1,057 हैं यानी कि टेस्ट्स के लगभग 10 फीसदी मामले। बाकी दिनों के आंकड़े भी आपको एक फ्लैट ग्राफ के तौर पर दिखेंगे। यानी कि साफ है कि लगातार कम टेस्ट करो, लगातार कम आंकड़े दिखेंगे।
इस बारे वो सुनिए जो कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने मीडिया विजिल से कहा,
मूंदहु आंख, कतहु कछु नाहीं
दरअसल इन आंकड़ों को हम तो सामने रख ही रहें हैं, गुजरात हाईकोर्ट के सामने – गुजरात के एडवोकेट जनरल के बयान को भी हम इस आंकड़े के हिसाब से तोलने की कोशिश करते हैं। उन्होंने कहा, “अगर हम सभी लोगों के टेस्ट करने लगेंगे, तो 70 फीसदी अहमदाबाद कोरोना पॉज़िटिव निकलेगा।” इस लिहाज से हम देखें तो 2011 की जनगणना के मुताबिक, अहमदाबाद की आबादी 8,059,441 के आसपास है। क्या ऐसे में एडवोकेट जनरल की मानें तो केवल अहमदाबाद में ही 50 लाख से ऊपर लोग कोरोना पॉजॉिटिव हैं? और अगर सरकार का ऐसा मानना है तो ये स्थिति तो कम्युनिटी ट्रांसमिशन से भी कहीं आगे जा सकती है और सरकार फिर केवल टेस्ट न कर के आंकड़े छिपा रही है? ये स्थिति अगर सरकार के ही एडवोकेट जनरल के हिसाब से इतनी भयावह है, तो इसको राज्य सरकार कैसे नियंत्रित कर पाएगी, वो भी टेस्ट न कर के? और अगर राज्य सरकार की ये बात सच मान ली जाए, तो हाईकोर्ट के आदेश के बाद गुजरात में प्रतिदिन टेस्ट्स की संख्या और घटती जा रही है (देखें मंगलवार और बुधवार के आंकड़े) तो क्या सरकार इस ज़िद पर अड़ी है कि भले ही लोग संक्रमित होते रहें, न वो टेस्ट करेगी और न ही लोगों का इलाज हो सकेगा?
दरअसल गुजरात की सरकार ने उस व्यक्ति की तरह बर्ताव करना शुरु किया है, जो कमरे में सांप आ जाने पर सांप को भगाने की जगह, कमरे की बत्ती बुझा देता है। वह व्यक्ति ये भूल जाता है कि सांप, बत्तियां बुझाने से जाएगा नहीं…बस वो दिखना बंद हो जाएगा..तो क्या गुजरात सरकार ये ही कर रही है? और ऊपर के सारे आंकड़े, बयान और तथ्य सही बोल रहे हैं तो गुजरात मॉडल की हवा कोरोना ने निकाल दी है और वह अब वेंटिलेटर पर है…दुर्भाग्य ये है कि उसके मास्क में मुनाफ़ा कमा लिया गया और वेंटिलेटर नकली साबित हो गया है..मरीज़ है गुजरात मॉडल, जो गंभीर अवस्था में है लेकिन जान – हमेशा की तरह जनता की जाएगी।
मयंक सक्सेना, मीडिया विजिल संपादकीय टीम का हिस्सा हैं। टीवी पत्रकारिता के एक दशक के बाद अब मुंबई में फिल्म लेखन करते हैं।
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