हाल के दिनों में बड़े पैमाने पर कोरोना और दूसरी समस्याओं से जान गँवाने वाले लोगों की याद में आज शाम से ‘अपनों की याद’ अभियान शुरू किया जा रहा है। इस नागरिक अभियान का लक्ष्यइस कठिन काल में लोगों का दुख साझा करना है। इस संबंध में जारी बयान में कहा गया है कि–
कोविड-19 का देश के नागरिकों ने साझा सामना किया. एक दूसरे का हाथ थामा, जब सरकारों ने हाथ खींच लिया. हमारे लाखों अपने बच नहीं पाए – वायरस से, फंगस से, आक्सीजन, अस्पताल या दवा के अभाव में. जिन्हें कोविड के अलावा कोई जानलेवा बीमारी थी – उनके लिए अस्पतालों में जगह न होने से उनकी जान गई.
जलाने दफ़नाने की जगह कम पड़ गई. गरीबों ने अपने आंसुओं के साथ अपनों को नदी में बहा दिया, या नदी किनारे कफ़न डाल विदा किया. पूरा देश इस साझे दर्द को आज भी झेल रहा है.
इस ग़म को परिवार, समुदाय, धर्म, जाति में बांटना संभव नहीं – ये ग़म हम सबका अपना है, इसे साझा करके हम ग़म को बांट सकते हैं.
सरकारें तो इन मौतों को गिनना, मानना नहीं चाहतीं. दुनिया न गिन पाए इसके लिए वे नदी किनारे दफनाई गई लाशों से कफन तक हटवा दे रही हैं. मौतों की गिनती न करके, सरकारें हमारे प्यारे अपनों को भुला देना चाहती हैं. पर हमारे अपनों को हम भुला नहीं सकते. इनमें से हरेक का नाम है, जिसे याद रखना ज़रूरी है, उनके लिए अपने प्यार को जिंदा रखना ज़रूरी है.
और उनके साथ अन्य हादसों, हिंसा की घटनाओं मे मारे गये लोगों को भी याद रखेंगे हम.
-पिछले साल लॉकडाउन में पैदल घर लौटते हुए मजदूर
– भूख से खत्म हुए बच्चे, बुजुर्ग
– तूफान, बाढ़, सुखाड़ में खत्म हुए लोग
– नफ़रत या झूठ से उकसाये गए भीड़ की हिंसा में मारे गए लोग
– साम्प्रदायिक, जातिगत या पितृसत्तात्मक हिंसा में मारे गए लोग
– पुलिस दमन में मारे गए लोग
– सीवर की सफाई करते हुए मारे गए सफ़ाई कर्मी
आइए, इन सबके लिए एक आवामी यादगार के सिलसिले को अंजाम दें. आपस में संवाद बनाएँ – कि आने वाले दिनों में हमारे अपनों को ऑक्सीजन, सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं, अन्न के अभाव में मरना न पड़े; प्राकृतिक हादसों और महामारी से जीवन और जीविका के बचाव का काम समय पर हो; उत्पीड़न, अन्याय, नफ़रत और हिंसा से किसी की जान न जाए; जो मारे गए उन सब को न्याय मिले –
इसके लिए हम अपनी सरकारों को जवाबदेह कैसे बनाएँ-
हर रविवार (संडे) को हर घर, मुहल्ले, गाँव, क़स्बे और दफ़्तर, कारख़ाने, अस्पताल आदि पर रात 8 बजे ‘अपनों की याद’ में कैंडल/दिया जलाएं.
इसके तहत – याद और दुःख बाँटने के लिए कविता और संगीत, मोमबत्तियों का इजलास, बैनर और पोस्टरों से सजे सामूहिक यादगार स्तम्भ और अन्य सृजनात्मक कदम उठाए जा सकते हैं – हर नागरिक को न्योता दिया जाता है कि वह इस सिलसिले में सृजनात्मक तरीक़े से शामिल हों. याद रहे : ऐसा करने के लिए भीड़ जुटाने और बीमारी को मौक़ा देने की ज़रूरी नहीं – आप जहां हैं वहीं से जुड़ें; बस, आस-पास के लोगों से नाता जोड़ें, उनके घरों में जो शोक और ग़म है, उसे ज़रूर साझा करें!
इस अपील में तमाम सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हस्ताक्षर किया है। आप पूरी अपील यहाँ पढ़ सकते हैं।