गुजरात हाईकोर्ट की निजी अस्पतालों को फटकार, कहा, ‘कोरोना के इलाज में मनमानी फीस नहीं ले सकते’

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गुजरात हाईकोर्ट ने कोरोना संक्रमण के इलाज के लिए भारी-भरकम फीस वसूल रहे निजी अस्पतालों को कड़ी फटकार लगाते हुए, ऐसा होते रहने पर गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है। अदालत ने साफ कहा है कि अगर इस तरह के मामले सामने आते रहे, तो उनके लाइसेंस कैंसल करने के लिए अदालत आदेश दे सकती है। इस मामले में अहमदाबाद के निवासी प्रीतेश शाह ने हाईकोर्ट में एक याचिका लगाई थी। इसकी सुनवाई करते हुए, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस आई जे वोरा की पीठ ने ये फैसला सुनाया है।

इस याचिका की सुनवाई में, अदालत ने राज्य सरकार को आदेश देते हुए कहा, “हम राज्य की अथॉरिटीज़ को निर्देश देते हैं कि इस मामले को तत्काल प्रभाव से सुलझाया जाए। अगर निजी अस्पताल इस आदेश को नहीं मानते हैं और इलाज के लिए भारी-भरकम फीस वसूलते रहते हैं, तो अदालत को ऐसे अस्पतालों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई करनी होगी। इस कार्रवाई के परिणाम उनके लाइसेंस निरस्त करने जितने बुरे भी हो सकते हैं।”

दरअसल अहमदाबाद में कोरोना का संक्रमण देश में सबसे ज़्यादा तेज़ी से बढ़ा है। गुजरात फिलहाल कोरोना संक्रमण के मामलों में देश में तीसरे स्थान पर है, जिसमें से 70 फीसदी से अधिक मामले अहमदाबाद से हैं। ऐसे में शहर में तमाम ऐसे लोग भी हैं, जिनको निजी अस्पतालों में भी इलाज के लिए जाना पड़ रहा है। ऐसे में कई अस्पतालों में मनमानी फीस वसूलने की ख़बरें सामने आ रही हैं।

अपने फैसले में हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि अस्पतालों को तार्किक और वहन करने योग्य फीस ही चार्ज करनी चाहिए। गुरुवार को इस याचिका पर अपने आदेश में अदालत ने आगे कहा, “एक युद्ध जैसे समय में, जब मानवता अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है, अतिरेकता में फीस लेना – किसी भी तरह न्यायसंगत नहीं है और इसको बंद करना होगा। ये शहर के अस्पतालों के लिए एक असमानता की स्थिति पैदा कर रहा है। जब इतने सारे लोगों को इलाज की ज़रूरत है, तब इस तरह की भारी-भरकम रकम – अमानवीय प्रतीत होती है।” अदालत ने आगे कहा कि केवल कुछ अमीर और प्रभावशाली लोगों के अलावा, इस तरह के अस्पताल बाकी लोगों की पहुंच से बाहर रहते हैं। अगर इस महामारी काल इलाज, इस मुश्किल वक़्त में किसी निजी अस्पताल में किया भी जाता है – तो वह वहन करने योग्य और तार्किक होना चाहिए।

अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वो निजी अस्पतालों से और ज़्यादा बेड्स की उपलब्धता के बारे में भी बात करे। अदालत ने कहा है कि ये मुश्किल वक्त है, न कि व्यापार करने और लाभ कमाने का समय। मेडिकल सेवाएं, इस समय सबसे अहम सेवाएं हैं। निजी अस्पताल किसी एक मरीज़ से लाखों रुपए की मांग नहीं कर सकते हैं। 

गुजरात हाईकोर्ट का ये आदेश इस मायने में अहम है कि गुजरात में और ख़ासकर अहमदाबाद में कोरोना के बढ़ने मामलों की स्थिति में। अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में 1200 बेड हैं और इसके अलावा सरकारी अस्पतालों में धीरे-धीरे मरीज़ों की संख्या बढ़ते जाने से निजी अस्पतालों को सस्ता इलाज ही नहीं, समय आने पर सरकार के साथ मिलकर मुफ्त इलाज भी देना ही होगा। ऐसे में हाईकोर्ट का ये आदेश, कहीं न कहीं सरकार (अगर सरकार चाहे तो) के लिए भी आने वाले वक़्त में राहत बन सकता है।

 


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