आयुष-64 दवा का सरकार चला रही है अभियान पर कोरोना में नहीं है कारगर!

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देश में शुरुआत से ही कोरोना वायरस की दावा को लेकर काफी अफवाहें फैली थी। कभी कोई बाबा कुछ नुस्खा बता रहे थे, तो कभी कोई घरेलू नुस्खा बताता था, तो कभी कोई आयुर्वेदिक दावा बना कर कोरोना पर कारगर बता रहा था। हालांकि अभी भी कोई ऐसी दवा नही है जिसे पूरी तरह कोरोना की ही दावा कहा जा सके, लेकिन सरकार की तरफ से एक दावा आयुष-64 को इस्तेमाल करने को कहा जा रहा है। कोरोना महामारी में हल्के लक्षण वाले मरीजों के लिए देश के हर जिले में आयुष-64 दवा बांटी जा रही है। सरकार इसे लेकर राष्ट्रीय स्तर पर अभियान भी चला रही है। लेकिन इस दावा को लेकर चिकित्सीय अध्ययन का खुलासा हैरान करने वाला है।

स्टडी, मेडिकल जर्नल मेड्रक्सिव में भी प्रकाशित..

दरअसल, जोधपुर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान {All India Institute of Medical Sciences (AIIMS)} और राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान(National Institute of Ayurveda), जयपुर के 16 डॉक्टरों की एक टीम ने इस दवा को अप्रभावी (non-effective) पाया है। यह क्लिनिकल स्टडी मेडिकल जर्नल मेड्रक्सिव में भी प्रकाशित हुई है, जिसके अनुसार दो अलग-अलग मरीजों के समूहों पर किए गए अध्ययन में आयुष-64 का कोई खास फायदा नहीं पाया गया।

2 ग्रुप पर किया गया अध्ययन..

जोधपुर एम्स के फार्माकोलॉजी विभाग के डॉ. जयकरन चरण ने इस क्लिनिकल स्टडी के बारे में जानकारी दी, की आयुष-64 के प्रभाव को जानने के लिए टीम ने 60 मरीजों का चयन किया था। जिसमे से 30-30 लोगो का दो ग्रुप बनाया गया था। एक समूह को आयुष 64 दवा दी गई जबकि दूसरे को प्लेसीबो ( यह एक प्रकार का पाउडर दवा नहीं) दिया गया। कुछ दिनों बाद जब दोनों ग्रुप के मरीजों का आरटीपीसीआर टेस्ट करवाया गया, तो पाया गया की दोनो ग्रुप्स में कोई खास फर्क नहीं है। दोनों ग्रुप में समान लोग निगेटिव हुए थे। इसलिए हमे संक्रमित मरीजों पर आयुष-64 दवा का कोई असर नहीं मिला है।

क्या है आयुष-64..

वर्ष 1980 में मलेरिया के लिए जड़ी-बूटियों से तैयार किए गए आयुष-64 का उपयोग कोरोना वायरस के इलाज में भी किया जा रहा है। आयुष मंत्रालय ने 29 अप्रैल को अपने क्लिनिकल परीक्षण के परिणाम को सार्वजनिक करते हुए कहा था कि यह दवा न केवल वायरस से लड़ने में सक्षम है बल्कि प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System) को भी मजबूत करती है। इसलिए, इस दवा को कोरोना के लक्षण रहित, हल्के और कम गंभीर रोगियों के इलाज में प्रभावी होने का दावा किया जाता है।

पहले भी यह दवाएं हो चुकी है फेल..

कोविड-19 महामारी को लेकर यह पहला मामला नहीं है। जबसे यह महामारी आई है और इसका इलाज शुरू हुआ। तब से ही दवाओं और इलाज के तरीकों को लेकर अलग-अलग वैज्ञानिक दावे सामने आए हैं। अतीत में रेमेडिसविर,हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू), आइवरमेक्टिन, स्टेरॉयड युक्त दवाओं, प्लाज्मा और कोवैक्सिन परीक्षणों से संबंधित कई मामले सामने आए हैं। यह तक की पहले जिन दवाओं से इलाज किया जा रहा था, बाद में कुछ डॉक्टर उसे इस्तेमाल करने की सलाह दे रहे थे, तो कुछ मना कर रहे थे। यहां तक की दूसरी लहर में ज़ोरो – शोरो से प्लाज्मा थैरेपी के जरिए संक्रमितों का इलाज किया जा रहा था, लेकिन बाद में इसे बंद कर दिया गया।


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