16 मई को राहुल गांधी की दिल्ली के सुखदेव विहार में प्रवासी श्रमिकों के साथ हुई मुलाक़ात की तस्वीरें कांग्रेस और उसके नेताओं द्वारा, सोशल मीडिया पर साझा की गई। भाजपा और उसके कार्यकर्ताओं ने इसे स्टेज किया गया ड्रामा करार दिया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि राहुल गांधी को उन मज़दूरों का सामान उठा कर, उनके साथ चलना चाहिए था। अब शनिवार को राहुल गांधी ने मजदूरों के साथ हुई मुलाकात की डॉक्यूमेंट्री अपने यूट्यूब चैनल पर जारी की है। इसमें राहुल गांधी की उन मज़दूरों से बातचीत है और साथ ही उनको उनके गांव तक पहुंचने में राहुल गांधी द्वारा की गई मदद की तस्वीरें।
राहुल गांधी और मजदूरों के बीच हुई बातचीत मीडियाविजिल आपके लिए लेकर आया है। ताकि आप उन मजदूरों की पीड़ा समझ सकें। इस डॉक्यूमेंट्री में मजदूरों की समस्याओं और उनके सवालों की झलक है। सड़क किनारे बैठे राहुल गांधी ने मजदूरों से कई सवाल पूछे। मजदूरों के जवाब केंद्र और राज्य सरकारों की मजदूरों की मदद के दावों को कमज़ोर करते दिख रहे हैं।
15 मिनट 57 सेकंड की डॉक्यूमेंट्री की शुरुआत में पैदल सड़क पर चलते, ट्रेन की पटरियों पर चलते, बैलगाड़ी और साइकिल पर सैकड़ों-हजारों किलोमीटर का रास्ता तय करते मजदूर दिखाई देते हैं। अपने घर जाते मजदूर बताते हैं कि हम बहुत परेशान हैं, जहां भी जा रहे हैं पुलिस वाले डंडे मार रहे हैं। एक आदमी जिसके सर से खून निकल रहा है, वो पुलिस की क्रूरता बयां करते-करते रोने लगता है। इसके बाद राहुल गांधी की आवाज़ में वॉयस ओवर सुनाई देता है, “कोरोना ने बहुत लोगों को चोट पहुंचाई, बहुत लोगों को दर्द हुआ, दुख हुआ मगर सबसे अधिक दुख हमारे मजदूर भाईयों को हुआ। ये मजदूर भूखे और प्यासे चले, इन्हें डराया गया, मारा गया, धमकाया गया लेकिन अपने घर की तरफ़ चलते रहे। इन्हीं मजदूरों के डर, इनके भविष्य और इनकी आशाओं की एक झलक दिखाना चाहता हूँ।”
डॉक्यूमेंट्री में हुई बातचीत की शुरुआत में एक महिला बताती है कि बड़े आदमी जो हैं उन्हें कोई दिक्कत नहीं है दिक्कत तो हमें है, तीन दिन से भूखे हैं हम, बच्चा भी भूखा है। महिला की बातों से पता चलता है कि अचानक किये गए लॉकडाउन ने मजदूरों को ऐसे हाल में छोड़ दिया है। जिसके आगे सिर्फ़ अंधेरा नज़र आता है। वापस अपने घर जाने के सवाल पर मजदूरों का कहना है कि पहला लॉकडाउन हुआ फिर दूसरा अब तीसरा और चौथा आने वाला है। पांचवा और छठवां भी आ सकता है, कुछ पता नहीं।
राहुल गांधी के 2-3 महीने में घर से वापस आने के सवाल पर मजदूर कहते हैं कि अभी कुछ पता नहीं, कुछ सोचा नहीं है। जान बची तो लाखों पाये। बस जान बचाने के लिए घर जा रहे हैं। कई मजदूर तो अपना बहुत सा सामान अपने किराये के घर में छोड़ कर आ गए हैं। मजदूरों में उस सामान को वापस पाने की कोई हसरत नहीं है।
सड़क किनारे बैठे मजदूर ये भी बताते हैं कि हरियाणा में पुलिस वाले तो पुलिस वाले-वहां के लोकल लोग भी हमें मारते थे। पुलिस सिर्फ़ दो समय आती थी बाकि समय हरियाणा में जहां हम रहते थे, वहां के लोकल हमें बाहर का जानकर डंडों से मारते थे।
मजदूरों ने शहर के लोगों के थाली और ताली बजाने के ढोंग का सच सामने रखते हुए बताया कि जब तक हम काम करते थे हमारी इज्ज़त थी। उसके बाद कोई इज्ज़त नहीं। एक महिला वीडियो में रोने की हालत में कहती है बस हमें घर पहुंचा दो। हम वापस वहां (जहां काम करती थीं) नहीं जाएंगे, चाहे मर जाएंगे।
डॉक्यूमेंट्री में 6 मिनट 59 सेकंड पर राहुल गांधी सड़क किनारे बैठे मजदूरों से पूछते हैं कि एक बार जब ये 3-4 महीने में सब ख़त्म हो जाएगा तब आप वापस शहर आओगे ? इसके जवाब में बायीं तरफ़ बैठी महिला कहती है कि जब तक मोदी की सरकार रहेगी तब तक नहीं, रात में कह देंगे सब कुछ बंद तो सब बंद, गरीब आदमी के बारे में नहीं सोचते वो। एक आदमी उस महिला की बात काटते हुए कहता है कि नोटबंदी में भी ऐसा ही हुआ था। रात में कहा गया 500 और 1000 के नोट बंद तो बंद। उस समय भी गरीब ही परेशान हुआ।
सरकार के भोजन दिए जाने राशन बांटे जाने के दावों के जवाब में एक मजदूर बताता है कि हमें ये कोरोना वाली बीमारी नहीं सता रही बल्कि पेट की बीमारी सता रही है। जो हम भूखे-प्यासे मर रहे हैं। हमारे लिए भूख की बीमारी ज्यादा बड़ी है। राहुल गांधी सवाल करते हैं कि अगर सरकार आपकी मदद करे तो क्या किया जाए ? क्या करना चाहिए आप लोगों के लिए ? मजदूर कहते हैं हमें रोजगार चाहिए ताकि खा-कमा सकें।
मजदूरों का ये जवाब, वर्तमान सरकार के देश को आत्मनिर्भर बनाने की घोषणा से पहले ही उनके आत्मनिर्भर होने की पुष्टि करता है।
मजदूरों का कहना है कि सरकार का कोई भरोसा नहीं है, एक दिन कह के लॉकडाउन आगे बढ़ा दिया। एक बार में बताना चाहिए था कि इतने दिन का लॉकडाउन होगा, चाहे 40 दिन का ही होता लेकिन एक बार में होना चाहिए था।
मजदूर अपने आप ही शहरों की असलियत बताते हैं कि अगर हम किराया देंगे तो हमारी इज्ज़त है और अगर नहीं दे पाएंगे तो कोई इज्ज़त नहीं है। चाहे महिला हो या जेंट्स, किसी की कोई इज्ज़त नहीं है। मकान मालिकों को किराया चाहिए। जब हमारे पास काम ही नहीं है तो हम कैसे किराया देंगे ?
राहुल गांधी के बच्चों को पैदल लेकर चलने के सवाल पर मजदूर बताते हैं कि 2-3 किलोमीटर चल कर हम आराम करते हैं। पुलिस डंडा मारती है लेकिन चलना तो है ही। थक कर आराम करते हैं फ़िर चलते हैं। वीडियो में 11 मिनट 11 सेकंड पर एक महिला बताती है कि कुछ भी होगा तो आम जनता को ही भुगतना पड़ता है बड़े लोगों को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। गरीब लोगों की मिटटी-पलीद है।
सरकार के फ्री ट्रेन चलाने की बात पर लड़खड़ाती आवाज़ में एक महिला ने बताया कि हमें कहा गया कि 3000 का रिजर्वेशन है, हमारे पास 3 रुपए नहीं है 3000 कहां से देंगे ? साथ ही सरकार के 500 रुपए की मदद वाले सवाल पर मजदूरों का कहना है कि पहली बात तो हमारे पास 500 रुपया आया नहीं। आया होता तो लोग बताते, कुछ लोगों को दे दिया होगा, सबको नहीं दिया। लेकिन 500 रुपए में क्या होता है ? एक दिन सब्ज़ी भी नहीं आती है। महीने का 8 हज़ार तक का खर्चा है, 2500 रुपए तो कमरे का ही किराया है।
वहां बैठी महिलाएं और अन्य मजदूर राहुल गांधी से कहते हैं कि बस हमें झांसी पहुंचा दो, हमारे घर पहुंचा दो, बहुत मेहरबानी होगी। इसके जवाब में राहुल गांधी उन सबको घर भेजने का आश्वासन देते हैं।
आपको बता दें कि सड़क किनारे बैठे सभी मजदूर राहुल गांधी से मुलाकात के बाद दिल्ली से झांसी का सफ़र पैदल न चल कर गाड़ी में तय करते हैं। उनकी आंखो में घर पहुंचने की ख़ुशी साफ़ देखी जा सकती है।
वीडियो के अंत में सरकार से 13 करोड़ मजदूरों को 7500 रुपए कैश ट्रांसफ़र की बात भी स्क्रीन पर आती है। ये दरअसल राहुल गांधी की ड्रीम योजना का हिस्सा है, जिसे कांग्रेस न्याय योजना के नाम से प्रचारित करती रही है। इस योजना का मक़सद, गरीब के हाथ में एक न्यूनतम आय पहुंचाना है। हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार ने किसानों के बैंक खातों में हर महीने 7,500 रुपए पहुंचाने की ये योजना शुरु की है।
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