प्रतिबद्ध वामपंथी पत्रकार एवं न्यू सोशलिस्ट इनिशिएटिव से जुड़े हुए सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष गाताड़े ने हाल में संघ के विचारक और एकात्म मानववाद के प्रणेता कहे जाने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर बहुत अध्ययन कर के एक पुस्तक लिखी है। नवनिर्मिति, वर्धा, महाराष्ट्र द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का नाम है ”भाजपा के गांधी”। लेखक की सहर्ष सहमति से मीडियाविजिल अपने पाठकों के लिए इस पुस्तक के अध्यायों की एक श्रृंखला चला रहा है। इस कड़ी में प्रस्तुत है पुस्तक की तीसरी किस्त। (संपादक)
अध्याय 3
कथा दीनदयाला !
‘‘भाजपा के दीनदयाल उपाध्याय की वही अहमियत है जो कांग्रेस के लिए मोहनदास करमचंद गांधी की है। ’’ यह राय थी आर बालाशंकर की जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र कहे जानेवाले आर्गनायजर के पूर्व सम्पादक हैं और इन दिनों भाजपा की केन्द्रीय कमेटी के सदस्य के तौर पर प्रशिक्षण महा अभियान को देख रहे हैं।”(The Indian Express,; September 24, 2016).
दीनदयाल उपाध्याय – जो भारतीय जनसंघ की स्थापना के साथ से उससे सम्बद्ध रहे हैं, जो भाजपा का पूर्ववर्ती संगठन है – जिन्होंने अपने सामाजिक-राजनीतिक जीवन की शुरुआत संघ के एक प्रचारक के तौर पर की थी, उनकी जन्मशताब्दी के आयोजन ने हिन्दुत्व ब्रिगेड के संगठनों को यह अवसर प्रदान किया कि उनकी ‘‘महानायक’’ जैसी छवि प्रोजेक्ट की जाए।
याद करें कि दीनदयाल उपाध्याय के जन्मशती समारोह का उद्घाटन पिछले साल प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी ने खुद किया था जिन्होंने पन्द्रह खंडों में बंटी दीनदयाल उपाध्याय के लेखन एवं भाषणों की संकलित रचनाओं का विमोचन भी उस वक्त़ किया था। कुछ हजार रुपए में बिकनेवाली इन्हीं रचनाओं को अब भाजपाशासित विभिन्न राज्यों को भेजा जा रहा है ताकि उन्हें सरकारी स्कूलों में रखा जा सके। /देखें परिशिष्ट/ कोझिकोड, केरल में भाजपा की राष्ट्रीय परिषद की बैठक को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने दीनदयाल उपाध्याय की भूरि-भूरि प्रशंसा की, उन्हें ‘आधुनिक भारत के निर्माताओं’ की श्रेणी में शुमार किया था / देखें परिशिष्ट/। प्रधानमंत्राी मोदी ने उपाध्याय को उद्धृत करते हुए कहा था:
पंडित उपाध्याय ने कहा था कि मुसलमानों को पुरस्कृत मत करो, उनका तिरस्कार मत करो, उनका संस्कार करोे। मुसलमानों के साथ इस तरह का व्यवहार मत करो कि वह वोट की मंडी का माल है या घृणा की वस्तु हैं, उन्हें अपना समझो।
बीते इस साल में उनकी याद में क्विज आयोजित किए गए, योजनाओं को नए सिरे से शुरू किया गया या पहले से चली आ रही योजनाओं के साथ उनके नाम को चस्पा किया गया, उनके नाम पर सड़कों का नामकरण हुआ, रेलवे स्टेशनों के साथ उनके नाम जोड़ दिए गए / और इस तरह सूबा यूपी में दो स्टेशनों का जो नया नामकरण हुआ उनमें दीनदयाल नाम जोड़ा गया (https://www.outlookindia.com/website/story/is-bjp-short-of-names-for-renaming-exercise-15-alternatives-for-deen-dayal-upadh/299245] http://www.amarujala.com/uttar-pradesh/agra/now-farah-railway-station-is-named-after-deendayal-upadhyay / गौरतलब था कि राजस्थान सरकार ने अपने चुने हुए प्रतिनिधियों को यह आदेश दिया कि वह आधिकारिक पत्र व्यवहार के लिए प्रयुक्त पत्रों पर दीनदयाल उपाध्याय की छवि को लोगो अवश्य अंकित करा लें। असम सरकार ने तो इस दिशा में एक कदम आगे बढ़ने की सोची थी जब उसने तय किया था कि राज्य में खुलनेवाले नए बीस मॉडल कालेजों का नामकरण दीनदयाल के नाम से किया जाए। मगर इस प्रस्ताव का इतना जबरदस्त विरोध हुआ कि उसने चुपचाप अपने कदम पीछे खींच लिए।
हिन्दुत्व की विचारदृष्टि: चन्द झलकियां
..इन प्रश्नों पर गौर करें जिनका उल्लेख भाजपा द्वारा प्रकाशित उस पुस्तिका में किया गया है, जो एक तरह से छात्रों को सामान्य ज्ञान परीक्षा के लिए तैयार करने के लिए बनायी गयी थी जिसका आयोजन दीनदयाल उपाध्याय की जन्मशती के बहाने किया गया था। इसके लिए 2 लाख पार्टी कार्यकर्ताओं को तैयार किया गया था, जो इस परीक्षा का संचालन करें ‘‘ताकि आनेवाली पीढ़ियां इतिहास में हुई शख्सियतों के बारे में जान सकें जिनके बारे में लोगों को अभी तक नहीं बताया गया है।’’ (http://indianexpress.com/article/india/deendayal-upadhyaya-centenary-bjp-hands-students-booklets-to-prep-for-exam-on-rss-schemes-of-modi-yogi-govts-4778173/) देख सकते हैं कि शिक्षित युवाओं को देश के महान विचारकों के बारे में बताने की इस जल्दबाजी में पुस्तिका में गांधी और नेहरू का जिक्र तक नहीं मिलता।
किसने कहा कि भारत एक हिन्दु राष्ट है ?
उत्तर: डा केशव बलिराम हेडगेवार
शिकागो की धर्मसभा में स्वामी विवेकानन्द ने किस धर्म की हिमायत की ?
उत्तर: हिन्दुत्व
महाराजा सुहेलदेव ने किस मुस्लिम आक्रांता को गाजर मूली की तरह काट दिया था ?
उत्तरः सय्यद सालार मसूद गाज़ी
रामजन्मभूमि कहां है ?
उत्तर: अयोध्या
हरिजनों को लेकर गांधी और कांग्रेस के दावों को चुनौती देने के लिए डा अंबेडकर ने किस किताब की रचना की थी ?
उत्तर: कांग्रेस और गांधी ने
पूर्वाग्रहों से भरे यह प्रश्न ‘‘सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता 2017’’ नामक 70 पेजी उस पुस्तिका का हिस्सा है जिन्हें उत्तर प्रदेश के स्कूलों में वितरित किया गया है।
डा अम्बेडकर को लेकर उठाए गए प्रश्न का सही जवाब है ‘‘अछूतों के लिए कांग्रेस और गांधी ने क्या किया’। वैसे उन्होंने ‘रिडल्स इन हिन्दुइज्म’ और ‘जातिभेद का विनाश’ नामक किताबें भी लिखीं, मगर इनको लेकर प्रश्न से भाजपा का कोई हित नहीं सधता। विवेकानन्द ने हिन्दू धर्म के बारे में बात रखी न कि उसके राजनीतिक प्रगटीकरण हिन्दुत्व के बारे में, मगर इस पुस्तिका को प्रकाशित करने के पीछे का उद्देश्य चूक होना कत्तई नहीं था।
(https://thewire.in/163836/bjp-distributes-booklets-to-up-students-on-modi-yogi-government-schemes/)
हुकूमत द्वारा दीनदयाल उपाध्याय को राष्ट्रीय स्तर पर विमर्श के केन्द्र में स्थापित करने की इस कवायद का प्रतिबिम्बन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द द्वारा 71वें स्वाधीनता दिवस के अवसर पर दिए भाषण में भी दिखाई दिया जब उन्होंने ‘‘एक ऐसा दयालु और समतामूलक समाज निर्माण का आवाहन किया जो जेण्डर या धार्मिक पृष्ठभूमि के आधार पर भेदभाव न करता हो’’ और साथ ही उन्होंने संघ के विचारक दीनदयाल उपाध्याय की ‘‘एकात्म मानवतावाद’’ की अवधारणा की दुहाई भी दी।
‘‘नए भारत को चाहिए उस एकात्म मानववादी तत्व को शामिल करना जो हमारे डीएनए का हिस्सा है और जिसने हमारे मुल्क और हमारी सभ्यता को परिभाषित किया है’’ – स्वतंत्रता दिवस की पूर्वसंध्या पर दिए अपने भाषण में कोविन्द ने कहा, जो इस संदर्भ में अधिक अहमियत धारण करता हैं क्योंकि साम्प्रदायिकता की बढ़ती घटनाओं को लेकर मोदी सरकार पर हमले तेज हुए हैं। यह पहला मौका रहा है जब ‘‘एकात्म मानववाद” की बात, जो भाजपा का सिद्धान्त है, उसका राष्ट्रपति के भाषण में उल्लेख हुआ है। यह इसी का संकेत है कि किस तरह आज संघ का वर्चस्व बना हुआ है।
प्रश्न उठता है कि क्या दीनदयाल उपाध्याय – जिन्होंने अपने राजनीतिक-सामाजिक जीवन की शुरुआत संघ के कार्यकर्ता के तौर पर 1937 में की और जो जल्द ही संघ के तत्कालीन सुप्रीमो गोलवलकर के करीबी बने, वह क्या वाकई इतनी बड़ी शख्सियत थे – जैसा कि उनके अनुयायी समझते हैं या वह संघ के तमाम प्रचारकों की तरह ही थे, उसी किस्म के संकीर्ण विश्वदृष्टिकोणवाले और पूर्वाग्रहों से भरे मानसवाले और ज्ञान तथा सूचनाओं के मामले में उसी तरह के कूपमंडूक! हां, उनकी खासियत शायद यह थी कि भारतीय राजनीति के तत्कालीन हालात के मददेनज़र जब हिन्दुत्व की सियासत हाशिये पर थी, उन्होंने हिन्दुत्व की बहुसंख्यकवादी विचारधारा को ऊपरी तौर पर समय के हिसाब से ढालने की कोशिश की।
क्या वह हिन्दुत्व की कतारों के ‘विद्रोहियों’ में शुमार थे जो अपने संगठन की एक ही सांचे में ढालने का विरोध करते थे और चाहते थे कि उसे हिन्दुत्व से ‘‘भारतीयत्व’’ की दिशा में संक्रमण करना चाहिए या इस बात के प्रति सचेत थे कि अगर हिन्दुत्व के विचार को लोकप्रिय बनाना है तो उसे ‘‘समावेशी दिखना’’ भी पड़ेगा। शायद वह इस बात के प्रति भी सचेत थे कि आज़ादी के दिनों के ऐतिहासिक संघर्षों के दौर में संघ के दूर रहने का मामला अभी लोगों के दिलोदिमाग पर ताज़ा है या महात्मा गांधी की हत्या में हिन्दुत्व बहुसंख्यकवादी जमातों की भूमिका अभीभी लोगों के जेहन में कायम है और अब शायद समय आ गया है कि लोग एक ऐसी नयी जुबां में बोले गोया जो लोगों के प्रति अधिक सरोकार रखते हों।
निःस्सन्देह उनके मूल्यांकन में एक उलझन इस वजह से भी उपस्थित होती है कि उनका देहांत काफी कम उम्र में हुआ। / मौत के समय वह 52 वर्ष के थे/ एक ट्रेन यात्रा में वाराणसी के पास स्थित मुगलसराय में वह रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत पाए गए, और उनकी लाश कुछ घंटों तक वहीं पड़ी रही। उनकी मौत को लेकर एक विवाद यह भी चलता रहता है कि उन्हें किसने मारा। उनके एक पूर्व साथी बलराज मधोक – जो उनके असामयिक इन्तक़ाल के बाद भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष बने थे, अलबत्ता संघ के नियंत्रण से स्वायत्त होने की कोशिश में बाद में हटा दिए गए थे – के मुताबिक वह ‘‘परिवार’’ की आंतरिक राजनीति का शिकार हुए। अपनी आत्मकथा में वह साफ लिखते हैं कि उनके अपने लोगों द्वारा रची साजिश में ही वह मारे गए। अपनी इस आत्मकथा ‘‘जिन्दगी का सफर – 3ः दीनदयाल उपाध्याय की हत्या से इंदिरा गांधी की हत्या तक’’ /दिनमान प्रकाशन, दिल्ली, पेज 22-23/ में वह लिखते हैं कि:
‘दीनदयाल की हत्या के पीछे न कम्युनिस्टों का हाथ था, न हीं किसी चोर का हाथ था… उन्हें अपने लोगों द्वारा भेजे गए हत्यारे ने ही मारा।…उनकी हत्या भाड़े के हत्यारे ने की। मगर उनकी हत्या के साजिशकर्ता स्वार्थी एवं मतलबी किस्म के संघ-जनसंघ के ऐसे नेता थे…’’
[Balraj Madhok, Zindagi Ka Safar—3:Deen Dayal Upadhyay Ki Hatya Se Indira Gandhi Ki Hatya Tak, Dinman Prakashan, Delhi, 22, 23.]
दीनदयाल उपाध्याय की हत्या के बाद की पड़ताल पर अधिक सामग्री ए जी नूरानी के एक अन्य लेख मेें भी मिलती है। /देखें,https://thewire.in/181125/deen-dayal-upadhyaya-death-mystery/
एक अतिरिक्त कारण जिसकी वजह से उनका वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन थोड़ा चुनौतीपूर्ण हो जाता है उसका ताल्लुक उनकी रचना ‘एकात्म मानववाद’ से है जो भारतीय जनसंघ के सम्मेलन में उन्होंने दिए व्याख्यानों में पहली दफा प्रस्तुत किया गया था। इसमें पहली दफा हिन्दुत्व की अपील को विस्तारित करने की, गांधीवादी विमर्श का इस्तेमाल करने की कोशिश की गयी थी । शायद यही वजह हो कि जब संघ के मुखपत्र कहे जानेवाले ‘आर्गनायजर’ में प्रकाशित दीनदयाल उपाध्याय के कालम ‘‘पोलिटिकल डायरी’’ को जब किताब रूप में संकलित किया गया तब उसकी प्रस्तावना संपूर्णानन्द ने लिखी जो कांग्रेसी थे और कुछ समय तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्राी भी रह चुके थे। दीनदयाल को लेकर उनका कहना था:
.. ये शब्द हमारे समय के अत्यन्त महत्वपूर्ण नेताओं में से एक नेता की कल्पनाओं को अभिव्यक्त करते हैं, जो अपने देश के सर्वश्रेष्ठ हित सम्पादन के लिए अपने को अर्पित कर चुका था, जो निर्मल चरित्रवाला था और जो ऐसा नेता था, जिसके वजनदार शब्द हजारों-हजारों शिक्षित व्यक्तियों को भावाभिभूत कर देते थे।’’ /vi दीनदयाल उपाध्याय, पोलिटिकल डायरी, सुरूचि प्रकाशन, दिल्ली, नवम्बर 2014/
यह बेहतर होगा कि हम दीनदयाल उपाध्याय की सामाजिक-राजनीतिक यात्रा पर निगाह डालें और उनकी प्रमुख रचनाओं का आकलन करें ताकि हम यह समझ सकें कि ‘आधुनिक भारत के निर्माता’ की श्रेणी में उन्हें शुमार किया जाना कहां तक वाजिब है।
वैसे इस बात का संकेत पिछले साल ही दिया गया था कि दीनदयाल की जन्मशती को लेकर जारी विभिन्न आयोजन किस तरह उन्हें ‘आधुनिक भारत के निर्माताओं’ की कतार में शामिल कराने को लेकर हैं। खुद जनाब मोदी ने पिछले साल कोझिकोड की अपनी आम सभा में यह बात रेखांकित की थी। ( https://scroll.in/article/818729/why-is-br-ambedkars-stock-so-low-in-narendra-modis-books-now)
गौरतलब है कि उन्होंने दीनदयाल उपाध्याय को महात्मा गांधी और लोहिया जैसों की श्रेणी में रखा था ‘‘‘जिन्होंने विगत सदी में भारतीय राजनीतिक चिन्तन को प्रभावित किया एवं आकार दिया था।’’ उसी वक्त़ लोगों की निगाह में यह बात आयी थी कि किस तरह उन्होंने अंबेडकर का नामोल्लेख तक नहीं किया था।
(जारी)