डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी – 4
पिछले दिनों एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में डॉ.आंबेडकर को महात्मा गाँधी के बाद सबसे महान भारतीय चुना गया। भारत के लोकतंत्र को एक आधुनिक सांविधानिक स्वरूप देने में डॉ.आंबेडकर का योगदान अब एक स्थापित तथ्य है जिसे शायद ही कोई चुनौती दे सकता है। डॉ.आंबेडकर को मिले इस मुकाम के पीछे एक लंबी जद्दोजहद है। ऐसे में, यह देखना दिलचस्प होगा कि डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की शुरुआत में उन्हें लेकर कैसी बातें हो रही थीं। हम इस सिलसिले में हम महत्वपूर्ण स्रोतग्रंथ ‘डॉ.अांबेडकर और अछूत आंदोलन ‘ का हिंदी अनुवाद पेश कर रहे हैं। इसमें डॉ.अंबेडकर को लेकर ख़ुफ़िया और अख़बारों की रपटों को सम्मलित किया गया है। मीडिया विजिल के लिए यह महत्वपूर्ण अनुवाद प्रख्यात लेखक और समाजशास्त्री कँवल भारती कर रहे हैं जो इस वेबसाइट के सलाहकार मंडल के सम्मानित सदस्य भी हैं। प्रस्तुत है इस साप्ताहिक शृंखला की चौथी कड़ी – सम्पादक
31.
न्याय की जीत
महाद तालाब अछूतों के लिए खुला
(डी. वी. प्रधान)
(दि बाम्बे क्रानिकल, 2 मार्च 1928)
गत मार्च में जब डा. आंबेडकर ने महाद के चावदार तालाब पर अछूतों का नेतृत्व किया था, तो तालाब के ‘अपवित्रीकरण’ से सवर्ण हिन्दुओं के रूढ़िवादी वर्ग की नींद, भूख सब उड़ गई थी और जब वे तालाब से अपने घरों को लौट रहे थे, तो रूढ़िवादियों ने पूरी निर्दयता से असहाय अछूतों को मारा-पीटा था। तुरन्त बाद उपद्रवियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरु हुई और शान्ति भंग करने के लिए वे दण्डित किए गए। यह सारा उपद्रव धर्म के उन तथाकथित ठेकेदारों ने किया, जो अछूतों को तालाब के पास पर आने का विरोध कर रहे थे और रूढ़िवादी अखबार उनका मनोबल बढ़ा रहे थे। अछूतों ने अपने मानवीय अधिकार को पाने के लिए गत दिसम्बर में सत्याग्रह आरम्भ किया था, जिसमें दस हजार लोगों ने भाग लिया था। उसी सत्याग्रह में सर्वसम्मति से तालाब की ओर कूच करने का प्रस्ताव पास हुआ था। किन्तु उस समय रूढ़िवादी सवर्ण हिन्दुओं ने, इस प्रस्ताव की भनक लगते ही महाद की सब-जज की अदालत से इस आधार पर अछूतों के विरुद्ध रोक हासिल कर ली थी कि चावदार तालाब सवर्ण जाति के मि.चावधारी की निजी सम्पत्ति है। सक्षम अधिकारी से इस राहत को प्राप्त करते हुए सवर्ण हिन्दुओं ने सोचा था कि उन्होंने सरकार और अछूतों के खर्च पर प्रभुत्व हासिल कर लिया था। डा. तुरन्त ही उस पूरे खेल को समझ गए थे, पर उन्होंने अदालत का फैसला आने तक सत्याग्रह स्थगित कर दिया था। 23 फरवरी 1928 को मुकदमे की सुनवाई महाद के सब-जज मि. वैद्य की अदालत में शुरु हुई। डा. आंबेडकर ने अपनी तार्किक बहस से न केवल अन्तरिम अस्थाई रोक को निरस्त करवाया, बल्कि वे जज को यह समझाने में भी सफल रहे कि तालाब सार्वजनिक है, और अछूतों को उसका उपयोग करने का हक है। चूॅंकि प्रतिबन्ध हटा दिया गया है, इसलिए तालाब अब सम्पूर्ण जनता के लिए खुल गया है, जैसाकि बम्बई विधान परिषद ने प्रस्ताव पास किया था।
सत्याग्रह पुनः होगा
अभी, रविवार 26 फरवरी को बम्बई में लगभग 2000 लोगों की एक जनसभा हुई, जिसमें महाद में पुनः सत्याग्रह आरम्भ करने का प्रस्ताव पारित किया गया। सत्याग्रह की तारीख समिति की बैठक में तय होने पर बाद में घोषित की जाएगी।
जो लोग देश के इस भाग में डा. आंबेडकर के नेतृत्व में चलने वाले अछूत आन्दोलन में दिलचस्पी ले रहे हैं और उसका अध्ययन कर रहे हैं, वे यह बहुत ही साफ तौर पर कह सकते हैं कि वह अपने स्वरूप में विश्वव्यापी आन्दोलन है। सम्पूर्ण जनता के लिए तालाब को खोला जाना आसान नहीं है, बल्कि इस प्रकार का विविध गतिविधियों वाला आन्दोलन अपने नागरिक अधिकारों को पाने के लिए राष्ट्रीय आन्दोलन के क्रमविकास का मार्ग प्रशस्त करता है। यह केवल डा. आंबेडकर ही हैं, जिन्होंने अभी हाल में अछूतों के लिए खादी केन्द्र खोलने की अपनी इच्छा व्यक्त करके महात्माजी के महान रचनात्मक कार्यक्रम की सहायता की है और खद्दर और सत्याग्रह के साथ आन्दोलन अवश्य ही सफल होगा।
एक शब्द अपने मित्रों के लिए। जैसा कि हर अच्छे आन्दोलन को अनेक बाधाओं से गुजरना होता है, इस सत्याग्रह में भी बाधाएॅं आईं, हमें दोस्ताना दुश्मन और खुले दुश्मन दोनों मिले, जिनमें पहले वाले ज्यादा खतरनाक थे, पर उन्होंने जो भी बाधाएॅं हमारे मार्ग में पैदा कीं, हमने उन सबका सामना किया और अन्त में हमारी जीत हुई। मै अपने साथियों से कहना चाहता हूॅं कि दोस्तों और दुश्मनों से मिलीं बाधाओं का सामना करने में उन्हें किसी भी परिस्थिति में हिम्मत, धीरता और दृढ़ता नहीं खोनी चाहिए, बल्कि पूरी नम्रता से शान्तिपूर्वक और अहिंसक तरीके से सफलता मिलने तक अपना आन्दोलन जारी रखना चाहिए।
ईश्वर सवर्ण हिन्दुओं को मेरे दुख को समझने की शक्ति और सद्बुद्धि दे!
32.
महाद में अन्तरिम रोक हटी
चावदार तालाब निजी सम्पत्ति नहीं, सत्याग्रह फिर होगा,
जज ने रोक लगाने के अपने आदेश पर दुख व्यक्त किया,
(दि बाम्बे क्रानिकल, 3 मार्च 1928)
‘मेरे द्वारा प्रतिवादी अछूतों के विरुद्ध लगाए गए रोक के आदेश पर, जिससे उन्हें अनेक कठिनाइयों और परेशानियों का सामना करना पड़ा, खेद प्रकट किए बगैर मैं इस निर्णय को पूर्ण नहीं कर सकता, जो यद्यपि अस्थाई था, पर अत्यन्त क्रूर और अन्यायपूर्ण सामाजिक दुव्र्यवहार के बीच रहने वाले उस समुदाय के साथ एक और अन्याय भी था। मैं अपने द्वारा जारी किए गए रोक के आदेश को निरस्त करता हूॅं।’ सब-जज ने डा. आंबेडकर और अन्य के खिलाफ लगाए गए रोक आदेश को समाप्त करने हुए ये शब्द कहे।
उल्लेखनीय है कि डा. आंबेडकर और अन्य को, महाद में चावदार तालाब से पानी लेने के लिए सत्याग्रह करने से महाद के सब-जज मि. जी. वी. वैद्य ने पाण्डुरंग रघुनाथ धारप की अपील पर, जिसमें तालाब के निजी सम्पत्ति होने का दावा किया गया था, अन्तरिम निषेधादेश पारित करके रोक दिया था। पता चला है कि डा. आंबेडकर और उनके साथियों तथा अनेक सवर्ण हिन्दुओं ने भी सत्याग्रह पुनः आरम्भ करने का निश्चय किया है। वे सम्भवतः तीन सप्ताह बाद हिन्दू नव वर्ष के दिन सत्याग्रह आरम्भ कर सकते हैं, क्योंकि अदालत ने इस आधार पर रोक के आदेश को निरस्त कर दिया है कि तालाब सरकारी नगरपालिका की सम्पत्ति है।
रोक क्यों लगी थी
23 फरवरी के अपने निर्णय में सब-जज ने माना है- ‘जो रोक आदेश पारित किया गया था, वह वादी के इस दावे पर आधारित था कि तालाब एक निजी सम्पत्ति है। पर, अब मुझे प्रतिवादियों द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्ष्य पर विचार करना था कि रोक को जारी रखना है या नहीं? मेरे विचार में, रोक की धारणा, प्रतिवादियों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य से, खण्डित हो जाती है।’
साक्ष्य का परीक्षण करते हुए सब-जज ने राजस्व अभिलेखों और कुछ अन्य दस्तावेजों, जैसे तालाब के विशेष उपयोग के लिए नगरपालिका को लिखी गईं लोगों की अर्जियों पर विचार करने के उपरान्त यह पाया कि ‘ये सारे यह दस्तावेज साबित करते हैं कि दावे में जिस चावदार तालाब का उल्लेख है, वह नगरपालिका को दी गई सरकारी सम्पत्ति है और वादी गण का यह दावा गलत है कि व्यक्ति विशेष की निजी सम्पत्ति है।’
निर्णायक साक्ष्य
जज आगे कहते हैं- ‘इस धारणा को कि तालाब सरकारी सम्पत्ति है, तब और बल मिला, जब तालाब के तटबन्ध में पत्थर की दो उत्कीर्ण पट्टिकाएॅं मिलीं। प्रतिवादी के दरख्वास्त पर, अदालत तथा दोनों पक्षकारों की मौजूदगी में पट्टिकाओं के निरीक्षण के लिए एक कमिश्नर की नियुक्ति की गई। यह निरीक्षण वादी पक्ष से सर्वश्री जोशी और साठे तथा प्रतिवादी पक्ष से मि. वैद्य की मौजूदगी में किया गया। पट्टिका संख्या 2 पर स्पष्ट शब्दों में मराठी में ‘नगरपालिका महाद 1899’ खुदा हुआ था, किन्तु पट्टिका संख्या 1 पर कुछ शब्द स्पष्ट दिख रहे थे, जबकि दूसरे शब्दों के साथ किसी व्यक्ति द्वारा छेड़छाड़ की गई थी और वह छेड़छाड़ बिल्कुल नई लग रही थी।’
कमजोर वाद
‘इस साक्ष्य के विरुद्ध वादी गण ने धारप परिवार के बॅंटवारे का अभिलेख (एक्स. 45) प्रस्तुत किया। उपर्युक्त सभी साक्ष्यों के होते हुए केवल यह कहना कि वर्षों पहले, धारप परिवार के कुछ सदस्यों के बीच बॅंटवारा होने से उनके मकान के सामने का तटबन्ध क्षतिग्रस्त हो गया था, ज्यादा महत्व नहीं रखता है और न नगरपालिका द्वारा उनके द्वारा बनाए गए तटबन्ध की मरम्मत के लिए दिया गया यह नोटिस एक्स. संख्या 44 महत्व रखता है कि वे जीर्णशीर्ण अवस्था में थे और तालाब का पानी गन्दा कर रहे थे। इस साक्ष्य से अब तालाब पर वादीगण के अधिकार को स्वीकार करने का कोई आधार नहीं बनता है।
कोई पक्षपात नहीं
‘अपने गुण पर मुकदमे का अन्तिम निर्णय जो भी हो, मैं वर्तमान प्रगति से, पूरी तरह सन्तुष्ट हूॅं, कि चावदार तालाब सरकारी सम्पत्ति है न कि व्यक्ति विशेष की निजी सम्पत्ति, जैसाकि वादीगण ने दावा किया है। तब सवाल है कि क्या वादीगण का प्रतिवादीगण को तालाब का उपयोग न करने देने का अधिकार है? स्पष्ट रूप से इसका उत्तर ‘न’ है। ऐसी सम्पत्ति के मामले में किसी विशेष समुदाय का पक्ष नहीं लिया जा सकता। अतः प्रतिवादीगण को भी तालाब का उपयोग करने का उतना ही हक है, जितना कि वादीगण को है। इसलिए क्षति-पूर्ति का कोई सवाल पैदा नहीं होता है। ऐसी स्थिति में, जब चावदार तालाब नगरपालिका की सम्पत्ति है, और प्रतिवादीगण को भी उसके इस्तेमाल करने का उतना ही हक है, जितना कि प्रतिवादीगण को है, तो इस अधिकार को पाने का उनका काम वादीगण के नुकसान का कारण नहीं माना जा सकता है।
वादीगण के वकील के कमजोर तर्क
वादीगण के विद्वान वकील मि. वीरकर का तर्क था कि उनकी अपनी स्वीकृति पर, दावे में प्रतिवादीगण को तालाब का उपयोग करने की बात नहीं है। किन्तु, जब एक बार यह साबित हो गया कि तालाब निजी सम्पत्ति नहीं है, बल्कि जनता की सम्पत्ति है और वह जनता के सभी लोगों के लिए खुला है, तो इस आधार पर कि प्रतिवादीगण ने एक लम्बे समय तक तालाब का उपयोग नहीं किया है, उनके अधिकार को किसी भी तरह कम नहीं किया जा सकता। मेरे समक्ष जो साक्ष्य प्रस्तुत किया गया, उससे मैं सन्तुष्ट हूॅं कि दावे में जो तालाब है, वह वादीगण की निजी सम्पत्ति नहीं है, वरन् वह सरकारी नगरपालिका की सम्पत्ति है और प्रतिवादीगण को उसका उपयोग करने का उतना ही हक है, जितना वादीगण को है और इसमें किसी का भी हस्तक्षेप अवैधानिक होगा।
‘मेरे द्वारा प्रतिवादी अछूतों के विरुद्ध लगाए गए रोक के आदेश पर, जिससे उन्हें अनेक कठिनाइयों और परेशानियों का सामना करना पड़ा, खेद प्रकट किए बगैर मैं इस निर्णय को पूर्ण नहीं कर सकता, जो यद्यपि अस्थाई था, पर अत्यन्त क्रूर और अन्यायपूर्ण सामाजिक दुव्र्यवहार के बीच रहने वाले उस समुदाय के साथ एक और अन्याय भी था। मैं अपने द्वारा जारी किए गए रोक के आदेश को निरस्त करता हूॅं।’
33.
महाद में सत्याग्रह
(बम्बई सिटी, विशेष शाखा, 2मार्च)
दलित वर्गों की एक जनसभा 26 फरवरी को दामोदर ठाकरसे हाल में सम्पन्न हुई, जिसकी अध्यक्षता जी. एन. सहस्रबुद्धे ने की। मुख्य वक्ता डा. बी. आर.आंबेडकर ने कहा कि चूॅंकि महाद के सब-जज ने उनके विरुद्ध लगाई गई रोक को खत्म कर दिया है, इसलिए अब बम्बई की सत्याग्रह समिति सत्याग्रह पुनः आरम्भ करने के सम्बन्ध में विचार करेगी।
ह……
2 मार्च
34.
समान मानव अधिकार
(दि इण्डियन नेशनल हेराल्ड, 6मार्च 1928)
महाद के सब-जज द्वारा डा. आंबेडकर और दलित वर्गों के अन्य नेताओं के विरुद्ध लगाई गई रोक को हटाए जाने के बाद यह तय है कि महाद के जनता-तालाब से पानी लेने के अपने नागरिक अधिकार को पाने के लिए वे पुनः सत्याग्रह जरूर करेंगे। जब गत अप्रेल में दलित वर्गों के सदस्यों ने सम्मेलन करके तालाब तक जाने का प्रयास किया था, तो सवर्ण हिन्दुओं ने उनके साथ अभद्र व्यवहार किया था, जिसमें कुछ चमार घायल हो गए थे। तब उन सवर्ण हिन्दुओं ने जिला कलेक्टर से धारा 144 सीआर. पी. सी. के अन्तर्गत पहले से चली आ रही परम्परा को बनाए रखने के लिए इस आधार पर रोक लगाने की माॅंग की कि तालाब से अछूतों के पानी लेने का प्रयास करने से शान्ति-व्यवस्था को खतरा पैदा हो सकता है।
किन्तु कलेक्टर ने कोई कार्यवाही करने से मना कर दिया। तब वे सब-जज की अदालत में गए और वहाॅं से अछूतों के विरुद्ध अस्थाई निषेधाज्ञा प्राप्त करने में सफल हो गए। परिणामतः, सवर्ण हिन्दुओं के पक्ष में अछूतों के अपेक्षित सत्याग्रह और तालाब से पानी लेने के उनके कूच करने पर रोक लग गई थी। किन्तु अब सब-जज ने उस रोक को खत्म कर दिया है, और साक्ष्य से सन्तुष्ट होकर घोषणा की है, ‘अछूतों के अधिकार के मामले में कोई भी हस्तक्षेप अवैधानिक होगा।’ यह बात अब हर एक को स्वीकार करनी होगी कि तथाकथित उच्च जातियों को जनता के किसी भी सदस्य को तालाब से पानी लेने से रोकने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है, क्योंकि वह निजी सम्पत्ति नहीं है और यह बात उन सभी को, जो जातीय पूर्वाग्रह में अन्धे नहीं हैं, जान लेना चाहिए कि वह नगरपालिका का तालाब है। यदि स्थानीय नगरपालिका अधिकारियों को इस मामले में कोई सन्देह है, तो वे सितम्बर 1926 में बम्बई विधान परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव का पालन करें, जिसमें यही कहा गया है कि सभी नगरपालिका के तालाब, कुएॅं और धर्मशालाएॅं बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों के उपयोग के लिए खोले जायेंगे। यह कल्पना से परे है कि किसी समुदाय को अपनी जातीय ‘उच्चता-बोध’ के कारण, जनता के धन से उपलब्ध सुविधाओं का उपभोग करने से दूसरे समुदाय को रोकने का अधिकार होना चाहिए। ऐसा उच्चता-बोध, न केवल उत्पीड़ित और दलित वर्गों के हित में, बल्कि स्वयं तथाकथित उच्च वर्गों के हित में भी हानिकारक होगा। अपने ही जैसे लोगों के साथ असमानता और अन्याय का यह व्यवहार उच्च जातियों के लिए बहुत ही घातक परिणाम वाला हो सकता है, क्योंकि दलित वर्गों को देर-सवेर उनके अधिकार मिलने ही हैं, इसलिए अब उन्हें रोकना अनुचित होगा और उनकी उत्तेजित भावनाएॅं उन पर अत्याचार करने वालों का तख्ता पलट कर सकती हैं।
अगर आप दलित वर्गों की सहानुभूति खो देंगे, तो वह राष्ट्रीय आन्दोलन के विरुद्ध भी पर्याप्त चेतावनी होगी, जो वर्तमान में दयनीय स्थिति में चल रहा है। अतः जब डा. आंबेडकर और उनके साथी जनता के उस तालाब से पानी लेने के अपने अधिकार को पाने के लिए महाद जाएॅं, तो हम आशा करें कि न सिर्फ वहाॅं उनका कोई विरोध नहीं करेगा, बल्कि सवर्ण हिन्दुओं द्वारा उनका हार्दिक स्वागत भी किया जाएगा। इससे वे उनके उन जख्मों को ठीक कर सकंेगे, जो बहुत ही क्रूरता से उन्होंने दलित वर्गों को दिए हैं।
35.
जाति का विनाश हो
बम्बई में सर्व जाति-भोज
(दि इण्डियन नेशनल हेराल्ड, 15 मार्च 1928)
इसी 5 मार्च को ‘सताज-समता-संघ’ के तत्वावधान में एक सर्व जाति भोज का आयोजन दामोदर ठाकरसे हाल में सम्पन्न हुआ। तथाकथित 50 अछूतों के सहित विभिन्न जातियों के लगभग 150 लोगों ने इस भोज में भाग लिया। ‘ब्राह्मण ब्राह्मेतर’ के सम्पादक और संघ के उपाध्यक्ष श्री डी. वी. नायक ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि संघ ने यह भोज जाति के अवरोधकों को खत्म करने के लिए आयोजित किया है, जो सामान्यताः भारतीय राष्ट्र को और विशेष रूप से हिन्दू समाज को विखण्डित करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि केवल रोटी-बेटी का व्यवहार ही जातिव्यवस्था की बुराइयों को दूर करेगा और समानता पर आधारित नए समाज का निर्माण करेगा। उन्होंने कहा कि यहाॅं सब लोग ‘आपद धर्म’ के कारण एकत्र नहीं हुए हैं, बल्कि उस कठोर व्यवस्था की असहनीय जंजीरों को तोड़ने के लिए एक निश्चित उद्देश्य और सम्पूर्ण ज्ञान तथा संकल्प के साथ एकत्र हुए हैं, जो मनुष्य-मनुष्य के बीच प्रेम और भ्रातृत्व को अमान्य तथा रोकता है।
उन्होंने आश्वस्त किया कि ‘संघ’ के विद्वान अध्यक्ष डा. आंबेडकर के योग्य निर्देशन में संघ उन लोगों का हमेशा स्वागत और सहायता करेगा, जो पूरे उत्साह से, अपने आप को रूढ़ियों से तथा राष्ट्र को मौजूदा अमानवीय जातिमूलक समाज से मुक्त करने के लिए आगे आएॅंगे।
श्री ए. बी. कोल्हाटकर, सम्पादक ‘सन्देश’ ने संघ के कार्य की प्रशंसा करते हुए ऐसे समारोहों के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हिन्दू समाज रेत की घड़ी जैसा है, जहाॅं ब्राह्मण ही अब तक बड़ी सूई है, पर अब समय आ गया है, जब उन्हें अपने से निम्न जातियों, विशेषकर तथाकथित अछूतों के लिए भी जगह देनी चाहिए। उन्होंने यह भी विश्वास व्यक्त किया था कि यदि सभी मौजूदा राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक दुव्र्यवहार खत्म हो जाएॅं, इन तथाकथित अछूतों में भी एक नया शिवाजी जन्म ले सकता है।
बम्बई महाराष्ट्र युवा मण्डल के सचिव श्री वी. के. कार्निक ने अपनी संस्था द्वारा पारित इस प्रस्ताव की ओर ध्यान आकर्षित कराया, जिसका उद्देश्य अन्तरजातीय भोज तथा अन्तरजातीय विवाह को प्रोत्साहित करके अन्यायपूर्ण जातिव्यवस्था और धर्म-आधारित भेदभाव को समाप्त करना है साथ ही उन्होंने वादा किया कि मण्डल सदैव ही राष्ट्रीय महत्व के इस कार्य में संघ का हृदय से स्वागत करेगा।
श्री एम. आर. मेनन ने कहा कि वह यहाॅं डा. आंबेडकर को उनके नेक कार्य में सफलता की शुभ कामना देने के लिए आए हैं, जिन्होंने महाद में सार्वजनिक तालाब से पानी लेने के तथाकथित अछूतों के मूल मानव अधिकार को प्राप्त करने का बीड़ा उठाया है।
36.
महाद में अछूतों के सत्याग्रह पर पुनः रोक
जिला थाना कोर्ट में अपील
(दि इण्डियन नेशनल हेराल्ड, 22 मार्च 1928)
थाना, 30 मार्च
आज थाना जनपद के जज श्री बी. एन. सांजन ने पाण्डुरंग वामन धारप तथा अन्य द्वारा महाद के सब-जज श्री वैद्य के निर्णय के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई करते हुए महाद में चावदार तालाब से पानी लेने के लिए शुरु होने वाले अछूतों के सत्याग्रह पर पुनः रोक लगा दी है।
37.
(बाम्बे सीक्रेट एबस्ट्रेक्ट, 17 मार्च 1928, पैरा 309)
कोलाबा, 3 मार्च- ‘बाम्बे क्रानिकल’ के 2 मार्च के अंक में यह समाचार प्रकाशित हुआ है- ‘रविवार, 26 फरवरी को बम्बई में एक जनसभा हुई, जिसमें 2000 लोगों ने भाग लिया। जनसभा में महाद में पुनः सत्याग्रह आरम्भ करने करा प्रस्ताव पास किया गया। ‘सत्याग्रह समिति’ की शीघ्र ही बैठक होने वाली है, जिसमें सही तारीख की घोषणा की जाएगी।’
38.
संख्या 319/1928
सीआईडी
प्रेषक,
बी. सी. टेलर
पुलिस महानिरीक्षक
इन्दौर राज्य।
सेवा में,
पुलिस आयुक्त (अपराध)
बम्बई शहर, बम्बई।
दिनाॅंक: 28 मार्च 1928
महोदय,
मुझे सादर अवगत कराना है कि डा. बी. आर. आंबेडकर, एमएलसी, बार-एट-ला, जो बम्बई के दलित वर्गों के सक्रिय कार्यकर्ता हैं, इन्दौर शहर में आ चुके हैं। मैं आभारी हाऊॅंगा, यदि आप उनके चरित्र और पूर्व कार्यकलापों के बारे में मुझे जानकारी उपलब्ध कराएॅंगे।
आपकी सेवा में आपका आज्ञाकारी सेवक
ह….
(पुलिस महानिरीक्षक)
इन्दौर शहर
39.
महाद में सत्याग्रह आरम्भ करने के सम्बन्ध में
(बाम्बे सीक्रेट एबस्ट्रेक्ट, 31 मार्च 1928, पैरा 428)
पैरा 309, कोलाबा, 17 मार्च,- इस तरह की कुछ खबरें प्राप्त हुई हैं कि महाद सत्याग्रह 22 मार्च को फिर से शुरु होने वाला है; किन्तु डा. आंबेडकर ने इससे इन्कार किया है, जिनका कहना है कि वह सत्याग्रह आरम्भ करने से पहले 15 दिन का नोटिस देंगे।
40.
संख्या- 1737/एच/3447
दिनाॅंक: 4 अप्रेल 1928
सेवा में,
पुलिस महानिरीक्षक
इन्दौर राज्य।
महोदय,
आपके पत्र संख्या 319/सीआईडी, दिनाॅंक 28 मार्च 1928 के सन्दर्भ में मुझे सादर अवगत कराना है कि डा. भीमराव रामजी आंबेडकर महार जाति से हैं और ग्राम आंबेड, तालुका दापोली, जनपद रत्नगिरी के निवासी हैं। उन्होंने बम्बई विश्वविद्यालय के एलफिन्सटन कालेज से बी. ए. पास किया। वे बड़ोदा स्टेट की सेवा की है तथा 1913 में बड़ोदा स्टेट ने उन्हें अर्थशास्त्र की पढ़ाई के लिए अमेरिका भेजा था। वहाॅं से लौटकर वे 150 रुपए के वेतन पर बड़ोदा स्टेट में नियुक्त किए गए, किन्तु वेतन से असन्तुष्ट होकर उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था। उसके बाद वे कुछ समय तक ‘सिडेन्हम कालेज आफ कामर्स’ में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे, किन्तु वहाॅं से भी वे इस्तीफा देकर कानून की पढ़ाई करने और एम. एससी. की डिग्री लेने के लिए इंग्लेण्ड चले गए थे। इंग्लेण्ड से वापस आकर उन्होंने बम्बई हाईकोर्ट में वकालत आरम्भ की। 1924 में उन्होंने महारों, चमारों और ढेढ़ों के उत्थान के लिए ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ शुरु की। हाल में उन्होंने महाद के सार्वजनिक तालाब से अछूतों को पानी लेने के अधिकार दिलाने के लिए सत्याग्रह आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया है।
सादर,
ह….
पिछली कड़ियाँ–
3 .डॉ.आंबेडकर ने मनुस्मृति जलाई तो भड़का रूढ़िवादी प्रेस !
2. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी
1. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी
कँवल भारती : महत्वपूर्ण राजनीतिक-सामाजिक चिंतक, पत्रकारिता से लेखन की शुरुआत, दलित विषयों पर तीखी टिप्पणियों के लिए ख्यात, कई पुस्तकें प्रकाशित। चर्चित स्तंभकार। मीडिया विजिल के सलाहकार मंडल के सदस्य।