पिछले दिनों एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में डॉ.आंबेडकर को महात्मा गाँधी के बाद सबसे महान भारतीय चुना गया। भारत के लोकतंत्र को एक आधुनिक सांविधानिक स्वरूप देने में डॉ.आंबेडकर का योगदान अब एक स्थापित तथ्य है जिसे शायद ही कोई चुनौती दे सकता है। डॉ.आंबेडकर को मिले इस मुकाम के पीछे एक लंबी जद्दोजहद है। ऐसे में, यह देखना दिलचस्प होगा कि डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की शुरुआत में उन्हें लेकर कैसी बातें हो रही थीं। हम इस सिलसिले में हम महत्वपूर्ण स्रोतग्रंथ ‘डॉ.अांबेडकर और अछूत आंदोलन ‘ का हिंदी अनुवाद पेश कर रहे हैं। इसमें डॉ.अंबेडकर को लेकर ख़ुफ़िया और अख़बारों की रपटों को सम्मलित किया गया है। मीडिया विजिल के लिए यह महत्वपूर्ण अनुवाद प्रख्यात लेखक और समाजशास्त्री कँवल भारती कर रहे हैं जो इस वेबसाइट के सलाहकार मंडल के सम्मानित सदस्य भी हैं। प्रस्तुत है इस साप्ताहिक शृंखला की दूसरी कड़ी – सम्पादक
स्रोत सामग्री: डा. बाबासाहेब आंबेडकर और अछूत आन्दोलन
11.
नीचे: ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’, परेल की कार्यकारिणी परिषद के अध्यक्ष डा. बी. आर. आंबेडकर, बार-एट-लॉ, का पत्र संख्या एफ. 5. गगअपध् एम. एस., दिनाँक 28 फरवरी 1926 प्रस्तुत है।
गोपनीय
संख्या एस. डी. 305
गृह विभाग, (विशेष)
बम्बई, 5 मार्च 1926
प्रतिलिपि पुलिस आयुक्त, बम्बई को इस आग्रह से अग्रसारित कि वह ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ के स्तर के बारे में तुरन्त रिपोर्ट करें और यह भी स्पष्ट करें कि क्या ‘सभा’ को आने वाले वायसराय का स्वागत करने के लिए अनुमति देने के लिए उसका पर्याप्त स्तर है ? रिपोर्ट पुलिस आयुक्त की राय के साथ महामहिम गवर्नर के निजी सचिव को सीधे भेजी जाए। प्रतिलिपि इस विभाग को भेजी जा रही है।
(ह.)……………………………….
कृते, सचिव, बम्बई सरकार
गृह विभाग, (विशेष)
बहिष्कृत हितकारिणी सभा
(दलित वर्गों के उत्थान की संस्था)
संख्या एफ. 5. गगअपध् एम. एस.,
दामोदर हाल, परेल, बम्बई-12
28 फरवरी 1926
प्रेषक,
डा. बी. आर. आंबेडकर, बार-एट-लॉ
अध्यक्ष, कार्यकारिणी परिषद, बहिष्कृत हितकारिणी सभा,
परेल
सेवा में,
निजी सचिव,
महामहिम गवर्नर,
बम्बई।
महोदय,
मुझे सविनय सूचित करना है कि ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’, परेल की कार्यकारिणी परिषद ने 2 अप्रेल 1926 को दलित वर्गों की ओर से वायसराय के बम्बई आगमन पर उनका स्वागत करने का प्रस्ताव पारित किया है।
अतः कृपया इस सम्बन्ध में यथा सम्भव शीघ्र प्रक्रिया से अवगत कराने का कष्ट करें।
आपका सदैव विश्वासपात्र
ह…………………………………..
बी. आर. आंबेडकर,
अध्यक्ष
कार्यकारिणी परिषद, बी. एच. एस., बम्बई
12.
संख्या एच/3447
महोदय,
कृपया पत्र संख्या एस. डी. 305, दिनाँक 5 मार्च 1926 का सन्दर्भ लें, जिसके द्वारा ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’, के स्तर के सम्बन्ध में आख्या माँगी गई है। इस सम्बन्ध में मुझे निम्नलिखित निवेदन करना है-
‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’, 1920 में अस्तित्व में आई थी, जो समाप्त हो गई है। बम्बई में इसका आरम्भ डा. भीमराव आंबेडकर द्वारा 1924 में किया गया था, जो अब इस संस्था के अध्यक्ष हैं। इस संस्था का उद्देश्य बम्बई के महारों, चम्भारों और ढेड़ों का उत्थान करना है। ‘सभा’ के अन्य पदाधिकारियों में कुछ प्रभावशाली व्यक्ति ये हैं:
1- सीताराम नामदेव शिवतारकर, सचिव, जो दलित वर्गों के म्यूनिसिपल मराठी स्कूल में प्रधानाध्यापक हैं। 2- महादेव आबाजी काम्बले, जो पोयवाड़ी, परेल में फोइनिक्स प्रिन्टिंग प्रेस के मालिक हैं। वास्तव में इनमें बम्बई के महारों और चम्भारों को प्रभावित करने वाले मुख्य व्यक्ति डा. भीमराव आंबेडकर ही हैं, जो बहुत विद्वान व्यक्ति हैं और जो पहले बड़ोदा राज्य के छात्र (स्कॉलर) थे, लेकिन अब बम्बई हाईकोर्ट में वकालत कर रहे हैं। वे पीएच.डी., एम. एससी. और बम्बई विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के परीक्षक हैं।
‘सभा’ की अब तक कोई नियमित सदस्यता नहीं है। डा. आंबेडकर के प्रभाव से लगभग 4,000 रुपए का दान दलित वर्गों के लिए छात्रावास चलाने के वास्ते शोलापुर में मिला था। संस्था के पास यहाँ अपना कोई स्थायी फण्ड नहीं है। जरूरत के अनुसार संस्था कभी भी महारों और चम्भारों में से दो से तीन सौ लोगों को जनरल मीटिंग के लिए इकट्ठा कर लेती है।
समग्रता, संस्था की इसके सिवा कोई महत्ता नहीं है कि इसके अध्यक्ष डा. आंबेडकर हैं, जो एक प्रभावशाली व्यक्ति हैं।
उल्लेखनीय है कि हाल में महारों और चम्भारों का एक शिष्टमण्डल क्रिकेटर पी.विथाल के नेतृत्व में बम्बई के गवर्नर से मिला था। किन्तु यह भेंट इस संस्था की ओर से बिल्कुल नहीं हुई थी। अलबत्ता महारों और चम्भारों के हित में स्वगात-भाषण का मसौदा इसके अध्यक्ष डा. आंबेडकर ने ही लिखा था, क्योंकि पी. विथाल इसी समुदाय से आते हैं।
डी. सी. पी., विशेष शाखा
(ह…)
9 मार्च 1926
वायसराय को प्रस्तुत भाषण बहुत अच्छा नहीं है।
(ह…)
9 मार्च 1926
13.
संख्या एच/3447
पुलिस मुख्यालय,
बम्बई, 9 मार्च 1926
प्रिय केर,
डा. आंबेडकर के पत्र दिनाँक 28 फरवरी के सन्दर्भ में, जिसकी प्रतिलिपि मुझे गृह विभाग द्वारा आख्या के लिए अग्रसारित की गई है, मुझे अवगत कराना है कि वर्तमान ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ इसी नाम से पहले बनी संस्था का ही पुनरुत्थान है, जिसने 1920 में महामहिम गवर्नर से भेंट की थी। इसका पुनरुत्थान जुलाई 1924 में डा. आंबेडकर द्वारा हुआ था, जो इसके अध्यक्ष और इसके एकमात्र प्रतिष्ठित सदस्य हैं।
संस्था की नियमित सदस्यता न होने से इसका संगठन ढीला-ढाला है। इसका सामान्य उद्देश्य बम्बई के महारों, ढेढ़ों और चमारों का उत्थान करना है। ‘सभा’ किसी राजनीतिक आपत्ति से मुक्त है, इसलिए मेरा विचार है कि वायसराय से मिलने का यह स्तर पर्याप्त है।
आपका आज्ञाकारी
(ह…) पी. ए. केली
जे. सी. केर,,
निजी सचिव, महामहिम गवर्नर
गवर्नमेंट हाउस
प्रतिलिपि सचिव, बम्बई सरकार, गृह विभाग, विशेष को उनके पृष्ठाॅंकन संख्या एस. डी., 305, दिनाँक 5 मार्च 1926 के सन्दर्भ में सादर अग्रसारित।
(ह…) पुलिस आयुक्त
14.
बहिष्कृत हितकारिणी सभा
सभा के कार्यों का सर्वे
(दि बोम्बे क्रॉनिकल, 29 अप्रेल 1926)
दलित वर्गों के उत्थान हेतु गठित संस्था ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ की सामान्य बैठक इसी 18 को दामादर ठाकरसे हाल, परेल, बम्बई में हुई थी, जो इसका मुख्यालय भी है। इसके वर्ष 1925 के कार्यों की रिपोर्ट बताती है कि उसका कार्य त्रिगुणी है। दलित वर्गों की शिक्षा के मामले में यह संस्था शोलापुर के निकट दलित वर्गों के 15 छात्रों के लिए एक छात्रावास चला रही है, जिसका कुल खर्चा रु. 2,669-0-आना और 8 पाई है। इसमें छात्रों की आवासीय व्यवस्था निशुल्क है। अपने जन्म के पहले वर्ष में संस्था दलित वर्गों के सांस्कृतिक और आर्थिक उत्थान के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर सकी थी। किन्तु उसने ‘वतनदारी’ मामले में उनके दुखों के निवारण के लिए नासिक के महारों की सहायता की थी। इस वर्ष की उसकी वित्तीय रिपोर्ट में आय रु. 3,169-1-0 तथा व्यय रु. 2,918-13-6 है।
कार्य विवरण
‘सभा’ ने इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट चाल, बायकुल्ला में दलित वर्गों के लिए एक पुस्तकालय तथा वाचनालय खोला है। उसने परेल के निकट दलित वर्गों के युवकों के लिए एक हॉकी-क्लब भी गठित किया है। दलित वर्गों के विद्यार्थियों के लिए एक महत्वपूर्ण संगठन ‘बहिष्कृत विद्यार्थी सम्मेलन’ का गठन भी ‘सभा’ के द्वारा किया गया है। दलित छात्रों के बीच भ्रातृत्व कायम करने के लिए ‘सम्मेलन’ की ओर से ‘विद्या विलास’ नाम से एक मराठी मासिक भी निकाला जा रहा है, जिसमें दलित वर्गों के छात्र रचनात्मक योगदान करते हैं। आर्थिक क्षेत्र में ‘सभा’ ने दलित वर्गों के लिए तीन सहकारी ऋण-समितियाँ स्थापित की हैं। वर्ष 1926 के लिए ‘सभा’ के कार्यक्रम का अनुमानित व्यय रु. 25,000 से 30,000 तक पहुँच सकता है।
-ए. पी.
निजी सचिव, गवर्नर कार्यालय दलित वर्ग संस्था के स्मरण-पत्र का अवलोकन करें।
पी. पी. प्रकरण संख्या 34/6, वर्ष 1926 नीचे प्रस्तुत है-
कृपया ‘डी’ सिलिप पर महामहिम के शिष्टमण्डल को दिए गए प्रत्युत्तर में ‘ए’ चिन्हित अंश पर विशेष ध्यान दें।
(ह…) एम. सी. बी.
इस पत्र में दो अनुरोध हैं-
1- यह कि संस्था के केन्द्रीय संगठन होने की वजह से दलित वर्गों से सम्बन्धित सभी मामलों में सरकार को विचार करना है।
2- यह कि महामहिम संस्था के ऑनरेरी संरक्षक हो सकते हैं?
ये अनुरोध मुख्य सचिव को उनकी सलाह के लिए अग्रसारित किए जा सकते हैं।
(ह…) जे. सी. के.
1 जुलाई
15.
सी.एस.,आर.डी. को यू.ओ.
जहाँ तक इन प्रपत्रों में उपलब्ध सूचनाओं का सम्बन्ध है, कोई भी उनसे यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि ‘सभा’ के रूप में दलित वर्गों के केन्द्रीय संगठन होने का दावा कितना सही है।
संस्था का एक भी मुख्य कार्यकारी अधिकारी दलित वर्गों का सदस्य प्रतीत नहीं होता है। उसकी 1925 की रिपोर्ट जिन गतिविधियों को दर्शाती है, उस वर्ष में वे वहीं तक सीमित हैं। हालांकि उसके फण्ड और कार्य मामूली हैं, फिर भी उसकी आकांक्षाएँ अपनी गतिविधियों को बढ़ाने वाली प्रतीत होती हैं। सम्भव है कि उनकी आकांक्षाएँ समय पर कार्य में परिणित हो जाएँ। किन्तु, वर्तमान में उसका यह दावा कि ‘सभा’ दलित वर्गों के हितों से सम्बन्धित सभी प्रश्नों पर विचार करने की योग्यता रखती है, ज्यादा सही नहीं लगता है।
सम्भवतः बम्बई के दलित वर्गों के हितों के मामले में इस संस्था से विचार-विमर्श करना अनुपयुक्त नहीं होगा। किन्तु संस्था को दिए गए समर्थन और उसके विस्तार से यह एक सक्रिय संस्था है, जो पुलिस आयुक्त को भेजे गए पत्र से जानकारी में आया है।
इस दृष्टि से यह इस बात को समझने में भी सहायक हो सकता है कि महामहिम को ‘सभा’ का अवैतनिक संरक्षक होना चाहिए।
(ह.)…सी. डब्लू. ए. टी.
24 जुलाई
सचिव, जी.डी.
पुलिस आयुक्त, बम्बई को प्रेषित यू. ओ. आर., दिनाॅंक 26 जुलाई 1926, गवर्नर के निजी सचिव की पत्रावली संख्या 34/6 सहित।
16.
सामान्य विभाग से प्राप्त पत्र दिनाँक 26 जुलाई 1926,
जो 27 जुलाइ्र को पढ़ा गया।
सी. आई. डी.
27 जुलाई 1926
1- क्या सभा का संविधान बना है? यदि हाँ, तो उसकी एक प्रति प्रस्तुत करें।
2- सभा में दलित वर्गों के कितने पदाधिकारी हैं?
3- कितना चन्दा और सदस्यता है?
4- कृपया क्लार्क रोड पर उसका पुस्तकालय देखें और रिपोर्ट दें कि उसमें कितना और किस तरह का साहित्य है, जिसका उपयोग दलित वर्गों के लोग करते हैं? इसमें सभी लोग आ सकते हैं या यह सिर्फ ‘सभा’ के सदस्यों के लिए है?
5- क्या ‘सभा’ ने मौजूदा वर्ष के लिए कोई कार्यक्रम बनाया है?
(ह….)
17.
महोदय,
कृपया सामान्य विभाग के यू. ओ. आर. संख्या दिनाँक 26 जुलाई 1926 और का उस पर जिला पुलिस आयुक्त के निर्देशों का सन्दर्भ ग्रहण करें। इस सम्बन्ध में आपकी सेवा में मुझे निम्नलिखित आख्या प्रस्तुत करनी है-
1- ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ का संविधान मुद्रित पुस्तिका के रूप में मौजूद है। उसकी प्रति संलग्न है।
2- अध्यक्ष और छह उपाध्यक्ष (वार्षिक रिपोर्ट में पताका ‘बी’ पर देखें) दलित वर्गों के सदस्य नहीं हैं। किन्तु प्रबन्ध कार्यकारिणी के अध्यक्ष डा. आंबेडकर दलित वर्ग से हैं।
3- चन्दा इस प्रकार है-
श्रेणी ए प्रतिवर्ष रु. 25 या उससे अधिक
श्रेणी बी प्रतिवर्ष रु. 10 या उससे अधिक
श्रेणी सी प्रतिवर्ष रु. 5 या उससे अधिक
श्रेणी डी प्रतिवर्ष रु. 3 या उससे अधिक
श्रेणी ई प्रतिवर्ष रु. 1 या उससे अधिक
अधिकांश सदस्य श्रेणी ‘ई’ के हैं, जिनकी संख्या लगभग 200 है। लगभग दस सहयोगी ( वेबपंजम) सदस्य हैं, जिन्होंने दलित वर्गों के कल्याण के लिए 200 रुपए दिए हैं। वे ठेकेदार वर्ग से हैं, परन्तु दलित वर्ग के सदस्य नहीं हैं।
4- क्लार्क रोड पर पुस्तकालय अभी 4 महीने पहले ही एक छोटे से किराए के कमरे में खोला गया है। इसका किराया रु. 7-3-0 है और यह बम्बई इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट की चाल में दूसरी मन्जिल पर है। कमरा बहुत गन्दा है, जिसमें एक टूटी हुई बेंच, एक टूटी हुई आलमारी, जिसमें कोई पुस्तक नहीं है, एक मेज और एक कुरसी है। मेज पर कुछ पुराने अखबार रखे हैं, जो खस्ता स्थिति में हैं। उनके पास कुल 64 पुस्तकें हैं, जो अधिकांश मराठी में हैं। उनमें से कुछ किताबें सदस्यों को निर्गत की गई हैं और शेष किताबें ‘समाज सेवा लीग’ के दो सन्दूकों में रखी गई हैं।
समाज सेवा लीग ने स्टील के दो सन्दूकों की आपूर्ति की है, जिनमें प्रत्येक में सौ-सौ किताबें हैं। पुस्तकालय में अधिकतर किताबें सामाजिक और धार्मिक विषयों की हैं, पर मराठी में कुछ किताबें ‘स्वराज’ (राजनीतिक) पर भी हैं। दलित वर्गों के औसतन 10-12 सदस्य रोज ही पुस्तकालय में आते हैं। यह सभी के लिए खुला है, पर सामान्यतः दलित वर्ग के पुस्तकालय में गैर दलित वर्ग के लोग नहीं आते हैं। संक्षेप में यदि कोई बाहरी व्यक्ति पुस्तकालय में आता भी है, तो जब तक उसे बताया नहीं जाएगा, वह जान ही नहीं पाएगा कि यह पुस्तकालय है।
5- अभी उसका कोई उल्लेखनीय कार्यक्रम नहीं बना है। एक छात्र ने एक पूरा लघु पत्र लिख डाला है और उसे अन्य छात्रों में बाँटा गया है।
‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ का पंजीकरण 1 अप्रेल 1926 को हुआ था।
(ह….)
डी. सी. पी., विशेष शाखा
18.
9 अगस्त
ससम्मान प्रस्तुत,
2- महामहिम राज्यपाल के निजी सचिव को संबोधित मेरा पत्र संख्या एच-3447, दिनाँक 9 मार्च 1926, ‘सभा’ द्वारा लार्ड इरविन के आगमन पर उनसे भेंट करने की अनुमति माँगे जाने जाने के विषय में है।
3- संविधान के नियमों की प्रति संलग्न है। सभा की अनुमानित सदस्य-संख्या 200 है, जिनमें लगभग 10 को छोड़कर सभी श्रेणी ’ई’ के सदस्य हैं। तथाकथित पुस्तकालय क्लार्क रोड पर इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट चाल में दूसरी मन्जिल के कमरे में स्थित है। उसमें जो पुस्तकें हैं, उनकी आपूर्ति मुख्यतया समाज सेवा लीग ने की है। कुछ अखबार भी बाते हैं और औसतन 10 या 12 लोगों की यहाँ रोज उपस्थिति होती है। यह पुस्तकालय हरेक व्यक्ति के लिए खुला है, पर विशेष रूप से इसका उपयोग दलित वर्ग के लोग ही करते हैं। व्यावहारिक रूप से सभा की कोई अन्य गतिविधि नहीं है।
4- इस प्रकार, यद्यपि यह पूरी तरह आपत्तिजनक नहीं है, पर फिर भी यह एक प्रतिनिधि संस्था होने का दावा नहीं कर सकती। लेकिन इस समय इसके सिवा कोई दूसरी योग्य संस्था दलित वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाली नहीं है। अतः दलित वर्गों की दृष्टि से इस पर विचार करना आपत्तिजनक नहीं होगा।
5- प्रबन्ध कारिणी परिषद में सभी पदाधिकारी दलित वर्गों के सदस्य हैं।
(ह.) पुलिस आयुक्त
यू. ओ. आर. संख्या एच-3447, दिनाँक 11 अगस्त 1926
19.
महाद में दलित वर्ग: अत्याचारों के विरुद्ध बम्बई के अछूतों का विद्रोह
(बोम्बे सीक्रेट ऐब्स्टैक्ट, 16 जुलाई 1927)
571, बम्बई सिटी स्पेशल ब्रांच, 4 जुलाई- महाद क्षेत्र के अछूतों पर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध विरोध-प्रदर्शन के लिए बहिष्कृत हितकारिणी सभा के तत्वावधान में एक जन-सभा 3 जुलाई की शाम को कावसजी जहाँगीर हाल में हुई। इस जन-सभा में लगभग 1000 लोगों ने भाग लिया था, जिसकी अध्यक्षता डा. भीमराव रामजी आंबेडकर ने की थी।
जन-सभा में जिन लोगों ने भाषण दिए, उनमें अध्यक्ष के अतिरिक्त रागोबा नारायन वनमाली, महादेव आबाजी कामली, सीताराम नामदेव शिवतारकर, निर्मल लिंबाजी गंगावने, गीतानन्द ब्रह्मचारी और सामन्त नानजी मारवाड़ी थे, जिन्होंने उच्च जातियों द्वारा अछूतों पर किए गए अत्याचारों का विरोध किया। उन्होंने अत्याचारों के विरुद्ध शान्तिपूर्ण आन्दोलन करने का निर्णय किया है। इसके लिए वे दीवाली की छुट्टियों के बाद पहले महाद में सम्मेलन करेंगे और उसके बाद वे नागरिक के रूप में अपने अधिकार प्राप्त करने के लिए सत्याग्रह करेंगे। इससे सम्बन्धित एक प्रस्ताव जन-सभा में पारित किया गया है।
एक दूसरा प्रस्ताव उन्होंने यह पारित किया है सरकार दलित वर्गों के दुखों के निवारण के लिए एक पृथक विभाग स्थापित करे, जैसाकि उसने मद्रास में किया है।
वक्ताओं द्वारा जनता से चन्दा देने की अपील की गई, जिसमें लगभग 350 रु. एकत्र हुए। महाद में शुरु होने वाले सत्याग्रह में एक दर्जन लोगों ने स्वयंसेवक बनने के लिए स्वेच्छा से अपने नाम लिखवाए।
20.
वतन एक्ट में परिवर्तन के लिए डा. आंबेडकर का बिल
बम्बई महारों का समर्थन
(दि बाम्बे क्रॉनिकल, 8 नवम्बर 1927)
इस तथ्य को दृष्टि में रखते हुए कि बम्बई के महारों के बीच कुछ शरारती व्यापारी डा. बी. आर. आंबेडकर, एम. एल. सी द्वारा तैयार किए गए ‘बम्बई वतन एक्ट’ संशोधन बिल के सम्बन्ध में दुष्प्रचार कर रहे हैं, बम्बई के महारों की एक सभा मि.एस.के.बोले, जे. पी., एम. एल. सी. की अध्यक्षता में गत शनिवार की रात्रि में रिपोन रोड पर लोखण्डी चाल में हुई। इस सभा में तीन हजार से भी ज्यादा महारों ने भाग लिया था, जिसमें मि. निकालजे भी शामिल हुए थे। पूरी सभा में जोरदार उत्साह था।
किन्तु, सभा में वही लोग बिल का समर्थन करने के लिए आगे आए, जिनके नाम से डा. आंबेडकर के बिल के विरोध में पर्चा जारी हुआ था। प्रस्तावकों ने भी यह बताने के लिए पर्चा जारी किया कि किस तरह निहित स्वार्थियों ने झूठ बोलकर उनके हस्ताक्षर प्राप्त किए थे। इस सभा में, जो आधी रात तक चली, विरोधियों की चाल का पर्दाफाश हो गया। बिल में किए गए परिवर्तन के सम्बन्ध में डा. आंबेडकर के विचार सुनने और सवाल-जवाब के बाद निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किया गया-
‘बम्बई महारों की यह सभा डा. आंबेडकर, एम. एल. सी., द्वारा तैयार किए गए ‘वतन संशोधन बिल’ पर उनकी सफाई सुनने के बाद कि यह बिल पूरी तरह ‘वतनदार महारों की स्थिति में सुधार लाने वाला है, उनसे पूरी तरह सन्तुष्ट होकर सहर्ष ही उनके बिल का समर्थन करती है।’
बिल के समर्थन का प्रस्ताव मि. तुलसीराम येशुजी फुलपगार ने प्रस्तुत किया, जिसका अनुमोदन सर्वश्री रामचन्द्र आदंगले, विथू कोंडाजी, महाडू घोडेकर वाघमारे तथा वीथल सखाराम कास्बे ने किया।
पिछली कड़ी– डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी-1
कँवल भारती : महत्वपूर्ण राजनीतिक-सामाजिक चिंतक, पत्रकारिता से लेखन की शुरुआत, दलित विषयों पर तीखी टिप्पणियों के लिए ख्यात, कई पुस्तकें प्रकाशित। चर्चित स्तंभकार।