मीडियाविजिल प्रतिनिधि / मुंबई
क्या बिना कैमरे के कोई फोटो पत्रकार अपना काम कर सकता है? भारत सरकार मानती है कि हां, ऐसा मुमकिन है। इसकी तसदीक़ शनिवार को मुंबई में इंदिरा डॉकयार्ड पर हुई जब दिल्ली और अन्य स्थानों से वहां एक आयोजन में आमंत्रित पत्रकारों को कैमरे लेकर भीतर नहीं जाने दिया गया। दो दिन पहले भी सात छाया पत्रकारों को कैमरों समेत सुरक्षा का हवाला देकर वापस भेज दिया गया था। डॉकयार्ड की सुरक्षा संभालने वालों का तर्क था कि जब मोबाइल में ही कैमरा आ गया है, तो कैमरे की क्या ज़रूरत!
पर्यावरण से जुड़े मामलों पर काम करने वाली दुनिया की अहम संस्था ग्रीनपीस ने मुंबई में तीन दिनों का एक आयोजन रखा था। यह आयोजन डॉकयार्ड यानी सरकारी बंदरगाह के भीतर था क्योंकि इसे ग्रीनपीस के प्रचारक जहाज़ ‘रेनबो वॉरियर’ के आगमन के बहाने रखा गया था। यह जहाज इस श्रृंखला का तीसरा जहाज है जो दुनिया भर में समुंदर में घूम-घूम कर जलवायु परिवर्तन व अन्य मसलों पर प्रचार अभियान चलाने के काम आता है।
इसी जहाज को कवर करने के लिए दिल्ली, पटना व अन्य स्थानों से कुछ पत्रकार बुलाए गए थे। दिलचस्प यह है कि आयोजनों में एक फोटोग्राफी प्रशिक्षण सत्र भी शामिल था, जिसे केवल इसलिए रद्द करना पड़ गया क्योंकि पोर्ट की सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाले अधिकारियों ने भीतर कैमरा लेकर किसी को नहीं जाने दिया। जिसे सिखाना था जब वो ही कैमरा नहीं ले जा सका, तो सत्र रद्द कर दिया गया।
शनिवार 28 अक्टूबर को हुए आयोजन में कुछ नामचीन लोग जहाज पर आए थे। इनमें फिल्मकार आनंद पटवर्द्धन, विज्ञापन निर्माता प्रहलाद कक्कड़, अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर और अभिनेत्री रवीना टंडन जैसे लोग शामिल थे। दिलचस्प बात यह थी कि दर्जनों पत्रकारों की मौजूदगी में कैमरे एक सिरे से नदारद थे। मजबूरी में पत्रकारों को अपने मोबाइल फोन से ही काम चलाना पड़ा(, हालांकि यह समझना कोई मुश्किल काम नहीं है कि कैमरे की गुणवत्ता अखबार आदि में प्रकाशन के लायक नहीं होती है।
ग्रीनपीस के अधिकारी 27 अक्टूबर की देर रात तक पोर्ट के सुरक्षा अधिकारियों से संवाद में रहे लेकिन इंटेलिजेंस ने सुरक्षा का हवाला देकर कैमरे ले जाने से मना कर दिया। इंटेलिजेंस का कहना था कि फोटो ही खींचनी है तो मोबाइल से काम चलाया जा सकता है।
ध्यान रहे कि ग्रीनपीस नामक संस्था को लेकर पिछले दिनों काफी विवाद रहा है। सरकार ने जिन एनजीओ के विदेशी अनुदान खातों पर रोक लगाई थी, उनमें ग्रीनपीस इंडिया भी एक है। सरकार लगातार इन संस्थानों को राष्ट्रविरोधी बताती रही है। ऐसे में इसके आयोजन में गए पत्रकारों को कैमरा सहित भीतर जाने देने से रोकने पर इंटेलिजेंस का दिया हवाला स्वाभाविक लेकिन मूर्खतापूर्ण जान पड़ता है।
कल को अगर सुरक्षा का हवाला देकर किसी आयोजन में आमंत्रित पत्रकारों को कलम लेकर न जाने दिया जाए, क्या तब भी पत्रकार चुप बैठे रहेंगे?