पीएम केयर्स फंड (PM-CARES) जो कोरोना काल के समय से चर्चा में आया। कोविड-19 जैसी महामारी या आपात स्थिति में लोगों की मदद के लिए बनाए गए। पीएम केयर्स फंड के संबंध में केंद्र सरकार की ओर से दिल्ली हाईकोर्ट में जानकारी दी गई है कि यह फंड भारत सरकार से नहीं बल्कि चैरिटेबल ट्रस्ट से जुड़ा है। PM-CARES को मार्च 2020 में एक पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट के रूप में स्थापना किया गया था। आम लोगों से लेकर बड़े-बड़े नेताओं ने इसमें डोनेशन दिया। तब से ही लगाता इसपर को लेकर सवाल उठ रहे है। अब इस मामले में प्रधानमंत्री ऑफिस (PMO) ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया है कि पीएम केयर्स फंड सरकारी नहीं है और इसमें आई हुई धनराशि भारत सरकार के खजाने में नहीं जाती है। ऐसे में इस फंड की वैधता और जनता के प्रति इसकी जवाबदेही को लेकर नए सवाल खड़े हो गए हैं।
केंद्र या राज्य सरकार का कोई नियंत्रण नहीं..
आपको बता दे की जब से यह फंड स्थापित हुआ तब से इसे स्थापित करने के उद्देश्य और इसके संचालन में पारदर्शिता की कमी को लेकर विवाद चल रहा है। ताज़ा मामला यह है कि केंद्र की तरफ से प्रधानमंत्री ऑफिस में अंडर सचिव, प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने दायर किए गए हलफनामे में कहा है कि पीएम केयर्स ट्रस्ट के कामकाज में केंद्र सरकार या राज्य सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। यह जवाब पीएम केयर्स फंड को ‘राज्य’ का घोषित करने की मांग वाली याचिका के मामले में दाखिल किया गया है।
याचिका में कहा गया..
याचिका में संविधान के आर्टिकल 12 के तहत, पीएम केयर्स फंड को संविधान के तहत ‘सरकारी’ घोषित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी, जिससे इसके कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके। यह याचिका दिल्ली हाईकोर्ट के वकील सम्यक गंगवाल ने दायर कर कोर्ट से मांग की थी कि पीएम केयर्स फंड को राज्य के तहत लाया जाए, ताकि इसकी पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके। साथ ही उन्होंने मांग की थी कि इस फंड को भी आरटीआई के दायरे में लाया जाए।
तीसरे पक्ष की जानकारी का खुलासा करने की अनुमति नहीं..
प्रधान न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति अमित बंसल की पीठ सम्यक गंगवाल की इसी याचिका पर सुनवाई कर रही थी। श्रीवास्तव ने कोर्ट में कहा कि भले ही ट्रस्ट संविधान के अनुच्छेद 12 में दी गई परिभाषा के तहत एक ‘राज्य’ या अन्य प्राधिकरण हो या सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) के प्रावधानों में परिभाषित ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ हो, तब भी सामान्य तौर पर धारा 8 (E) और (J) में निहित प्रावधान, सूचना के अधिकार के मामले में तीसरे पक्ष की जानकारी का खुलासा करने की अनुमति नहीं देता है। उन्होंने कहा, “पीएम-केयर्स फंड RTI एक्ट 2005 के सेक्शन 2(H) के तहत पब्लिक अथॉरिटी नहीं है।
पूरा ब्योरा आधिकारिक वेबसाइट पर डाला जाता है..
दिल्ली उच्च न्यायालय में स्पष्ट करते हुए प्रदीप श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया कि,”PM CARES फंड को न तो सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के दायरे में ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ के रूप में लाया जा सकता है और न ही इसे ‘राज्य’ के रूप में सूचीबद्ध किया जा सकता है। ट्रस्ट पूरी पारदर्शिता के साथ काम करता है। इसके फंड का ऑडिट एक ऑडिटर द्वारा किया जाता है। पारदर्शिता के लिए इस ट्रस्ट को मिलने वाला पैसा और उसका पूरा ब्योरा आधिकारिक वेबसाइट पर डाला जाता है.”
वेबसाइट पर कुल पांच दिनों का ही ब्योरा मौजूद..
आपको बता दें कि वेबसाइट पर सिर्फ वित्त वर्ष 2019-20 में आए योगदान की जानकारी उपलब्ध है, वह भी 27 से 31 मार्च तक यानी कुल पांच दिनों की। इन पांच दिनों में फंड को 3076 करोड़ रुपये मिले। लेकिन वेबसाइट के मुताबिक अब तक कोष से 3100 करोड़ रुपये कोविड-19 प्रबंधन से जुड़े विभिन्न कार्यों के लिए आवंटित किए जा चुके हैं। ऐसे में फंड को लेकर पूरी तस्वीर साफ नहीं है। मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति अमित बंसल की पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 27 सितंबर को तय की है। अब देखते है कि अदालत इन याचिकाओं पर क्या रुख अपनाती है।