सुप्रीम कोर्ट ने कानून निर्माताओं के खिलाफ सीबीआई मामलों में धीमी जांच और अभियोजन (Prosecution) में देरी पर गहरी चिंता व्यक्त की है। वहीं अदालत ने एजेंसी को त्वरित जांच और सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश जारी किए हैं। जिनमें हाई कोर्ट्स द्वारा अतिरिक्त विशेष अदालतों की स्थापना शामिल हैं।
विशेष बेंच देखे एजेंसियों की ओर से कोई ढिलाई न हो..
मुख्य जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने उच्च न्यायालयों से कहा कि लंबित मुकदमों को त्वरित निपटाने के लिए जहां भी ऐसी अतिरिक्त अदालतों का गठन करने की आवश्यकता हो, वहां विशेष अदालतें स्थापित करें और इस मुद्दे पर केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा किसी भी असहयोग से उसे सूचित कराएं। राज्य पुलिस या अभियोजन एजेंसी द्वारा सहयोग के संबंध में हाई कोर्ट द्वारा गठित विशेष बेंच यह सुनिश्चित करेगी कि इन एजेंसियों की ओर से कोई ढिलाई न हो।
यह न्याय का मज़ाक है:SC
अदालत ने मध्य प्रदेश में कानून निर्माताओं पर मुकदमा चलाने के लिए भोपाल में एक विशेष अदालत पर एमिकस क्यूरी की टिप्पणी से सहमति व्यक्त की और कहा कि यह न्याय का मज़ाक है, क्योंकि राज्य के विभिन्न हिस्सों से अभियोजन और बचाव पक्ष के लिए अदालत में पेश होना भौतिक रूप से नामुमकिन है।
पीठ ने गुरुवार को अदालत की वेबसाइट पर अपना आदेश पोस्ट किया और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा जनहित याचिका (PIL) पर पारित पूर्व आदेशों के साथ आगे के निर्देश जारी किए। याचिका में जघन्य अपराधों के दोषी जनप्रतिनिधियों पर आजीवन प्रतिबंध लगाने और उनके मामलों का शीघ्र निपटान करने की मांग की गई है। इससे पहले पीठ ने बुधवार को कहा था कि राज्यों के पास सांसदों के खिलाफ ‘दुर्भावनापूर्ण’ मामले वापस लेने का अधिकार है।
हम CBI की वर्तमान स्थिति को लेकर चिंतित हैं: SC
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, विवरण में जाए बिना, हम सीबीआई मामलों की वर्तमान स्थिति को लेकर गहराई से चिंतित हैं। हमें सॉलिसिटर जनरल ने आश्वासन देते हुए कहा है की वह एजेंसी को पर्याप्त मानव संसाधन और बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराने के लिए सीबीआई निदेशक (CBI Director) के साथ मामला उठाएंगे, ताकि लंबित जांच को जल्द से जल्द पूरा किया जा सके।
सीबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, सीबीआई की विभिन्न अदालतों में मौजूदा और पूर्व सांसदों (MLAs) से जुड़े 121 मामले लंबित हैं। जबकि मौजूदा और पूर्व विधायकों के खिलाफ 112 मामले लंबित हैं।
21 साल पहले दाखिल चार्जशीट लेकिन अभी तक लंबित…
पीठ ने इन लंबित मामलों पर चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा, ‘इस रिपोर्ट के मुताबिक, 37 मामलों की अभी भी जांच चल रही है, सबसे पुराना मामला 24 अक्टूबर 2013 को दर्ज किया गया था। विवरण से पता चलता है कि ऐसे कई मामले हैं जिनमें वर्ष 2000 में चार्जशीट दायर की गई थी। लेकिन अभी भी यह मामले आरोपियों की उपस्थिति, आरोप तय करने या अभियोजन साक्ष्य (prosecution evidence) आदि के संबंध में लंबित है।’
पीठ ने कहा, “हम निर्देश देते हैं कि प्रत्येक उच्च न्यायालय लंबित मामलों के निपटारे में तेज़ी लाने के लिए आवश्यक कदम उठाए और पिछले आदेशों द्वारा पहले से निर्धारित समय सीमा के भीतर इसे समाप्त कर दे।” पीठ ने कहा कि ” बाद में इस तर्क पर विचार करेंगे कि एक सांसद को आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद उसे संसद या राज्य विधानमंडल की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया जाना चाहिए या उसे आजीवन चुनाव लड़ने से रोक दिया जाना चाहिए।”