पहला पन्ना: ऑक्सीजन से जुड़ी जानकारी नहीं दे रही सरकार और अख़बारों ने नहीं दी ख़बर 


सौरव दास ने आरटीआई अधिनियम के तहत जानकारी मांगी थी कि ऑक्सीजन की उपसमिति की बैठकें कब हुईं, इन बैठकों का एजेंडा क्या रहा? मिनट्स और ऑक्सीजन के भंडारण और इसकी सप्लाई का ब्योरा भी मांगा गया था। आप जानते हैं कि अप्रैल-मई में मेडिकल ऑक्सीजन की कमी की वजह से देशभर के कोविड-19 के मरीज और उनके तीमारदार परेशान रहे पूरी सूचना होने के बावजूद अकेले दिल्ली के दो अस्पतालों में 40 से अधिक मरीजों की मौत ऑक्सीजन की कमी से मौत हुई थी। फिर भी केंद्र सरकार ने कहा था कि उसके पास ऑक्सीजन की कमी के कारण लोगों की मौत की कोई ख़बर नहीं है। 


संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


आज के सभी अखबार खेलमय हैं और द टेलीग्राफ ने भी स्वर्ण पदक विजेता नीरज चोपड़ा की तस्वीर लगभग आधे पन्ने में छापकर दूसरी खबरों को सिंगल कॉलम में छापा है। ऐसे में पहले पन्ने पर खबरें ही नहीं हैं जिनकी चर्चा की जाए। द हिन्दू में एक खबर जरूर है जिसकी चर्चा की जानी चाहिए। द टेलीग्राफ में कल यह खबर लीड थी और आज द हिन्दू में खेल की खबरों के साथ सेकेंड लीड है। खबर चौंकाने वाली है और बताती है कि मनमोहन सिंह को मौनमोहन सिंह कहने वाले नरेन्द्र मोदी कैसे छिपेन्द्र मोदी हैं। आप जानते हैं कि देश को आरटीआई कानून कांग्रेस पार्टी की देन है और नरेन्द्र मोदी सत्ता में आने से पहले पारदर्शिता की चाहे जितनी बात करते हों, आरटीआई कानून का पालन अपनी डिग्री तक में नहीं करवा पाए। हालांकि, वह उनका निजी मामला भी हो तो सरकारी कामों में भी पारदर्शिता की भारी कमी है और पीएम केयर्स तक को आरटीआई के दायरे से बाहर बता दिया गया है। यह सब तब हो रहा है जब सरकार प्रचार में अरबों रुपए लुटा रही है और जो बताना चाहती है उसपर करोड़ों फूंक देती है लेकिन सामान्य सूचनाएं भी नहीं देती है और जवाब सफेद झूठ होता है। 

नया मामला आक्सीजन प्रबंध की सरकार की बहुप्रचारित योजना से संबंधित है। द टेलीग्राफ की खबर के अनुसार, आरटीआई, कार्यकर्ता सौरव दास ने इस संबंध में सूचना मांगी थी। जून में सरकार ने सूचना नहीं देने का कारण कुछ और बताया था, अब कुछ और बता रही है। सौरव दास ने आरटीआई अधिनियम के तहत जानकारी मांगी थी कि ऑक्सीजन की उपसमिति की बैठकें कब हुईं, इन बैठकों का एजेंडा क्या रहा? मिनट्स और ऑक्सीजन के भंडारण और इसकी सप्लाई का ब्योरा भी मांगा गया था। आप जानते हैं कि अप्रैल-मई में मेडिकल ऑक्सीजन की कमी की वजह से देशभर के कोविड-19 के मरीज और उनके तीमारदार परेशान रहे पूरी सूचना होने के बावजूद अकेले दिल्ली के दो अस्पतालों में 40 से अधिक मरीजों की मौत ऑक्सीजन की कमी से मौत हुई थी। फिर भी केंद्र सरकार ने कहा था कि उसके पास ऑक्सीजन की कमी के कारण लोगों की मौत की कोई ख़बर नहीं है। 

इसका कारण और आधार चाहे जो रहा हो सरकार की खूब फजीहत हुई क्योंकि सरकार ने ऑक्सीजन प्रबंध का खूब प्रचार किया था। आरटीआई के तहत सूचना देने से इनकार करने पर केंद्रीय सूचना आयोग ने केंद्र सरकार के फैसले को अनुचित ठहराया था। दरअसल, केंद्र सरकार ने कहा था कि यह जानकारी साझा करना राष्ट्रहित के लिए खतरा हो जाएगा जबकि सीआईसी ने केंद्र सरकार के इस फैसले को अनुचित कहा था। सीआईसी ने केंद्र सरकार से 10 दिनों के भीतर मेडिकल ऑक्सीजन से जुड़ी अधिकार प्राप्त समूह की उपसमिति के आंकड़ें जारी करने के लिए कहा था। खबर है कि, केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) के तहत उपसमिति को मेडिकल ऑक्सीजन के प्रबंधन का काम सौंपा गया था। दूसरी ओर, मुख्य प्रचारक की भूमिका में तबके रेल मंत्री पीयूष गोयल थे। 

सीआईसी के आदेश के बाद अब खबर है कि ऐसी किसी कमेटी के अस्तित्व से ही इनकार कर दिया गया है। मतलब ऑक्सीजन की कमी की सूचना दिल्ली के मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक रूप से दी थी और अब सरकार कह रही है कि जवाब में कोई समिति भी नहीं बनी। दिलचस्प यह है कि द हिन्दू ने लिखा है, हमने डीपीआईआईटी का 4 अप्रैल 2020 का आदेश देखा है जिसके अनुसार कमेटी के अध्यक्ष उस समय के सचिव गुरुप्रसार महापात्र थे और कमेटी भी थी। पैनल बनाने के आदेश में कहा गया था कि इसका मकसद, “देश में मेडिकल ऑक्सीजन और सिलेंडर के उत्पादन तथा आपूर्ति की समीक्षा करना” था। एक अधिकारी ने द हिन्दू से पैनल बनाने और उसकी बैठकें होने की बात मानी है। समिति में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रतिनिधि और एम्स के चिकित्सक भी थे। कहने की जरूरत नहीं है कि पैनल था, सरकार अब इनकार कर रही है। हालांकि सरकार की तरफ से कहा गया है कि अप्रैल 2020 में कोई समिति नहीं बनी मतलब मार्च या मई में बनी हो सकती है और यह आईटीआई से बचने का तरीका हो सकता है। पर यह तरीका है, इसे समझने की जरूरत है। लेकिन खबर अंग्रेजी अखबारों में नहीं है तो हिन्दी में क्या होगी, राम जानें।  

मतलब, स्थिति यह है कि सरकार ने पहले कहा कि वह एक सूचना राष्ट्रहित में साझा नहीं कर सकती है। सूचना आयोग ने जब इसे नहीं माना और 10 दिन में जानकारी साझा करने के लिए कहा तो सरकार ने कह दिया कि वह सूचना है ही नहीं। कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार ने ऑक्सीजन से संबंधित कई सूचनाएं जाहिर की हैं। उदाहरण के लिए एक सूचना यह रही, “लिक्विड ऑक्सीजन की ढुलाई को आसान बनाने के लिए तेल और गैस पीएसयू मदद दे रही हैं”। 11 मई 2021 की इस सूचना में कहा गया है, “भारत सरकार के पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तहत काम करने वाले सार्वजनिक क्षेत्र की तेल एवं गैस कंपनियां देश की एक जिम्मेदार कॉरपोरेट नागरिक की तरह अपने उत्तरदायित्व को निभा रही हैं। वे कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के खिलाफ राष्ट्र की लड़ाई में पूरे मनोयोग से सहायता दे रही हैं। इस क्रम में पीएसयू कंपनियां लिक्विड ऑक्सीजन की ढुलाई को और बेहतर करने की दिशा में विशेष रूप से कार्य कर रही हैं।

सरकारी प्रचार वाली इस खबर के अनुसार, अभी, 12 टैंकर और 20 आईएसओ कंटेनर हैं, जिनकी क्षमता 650 मीट्रिक टन है। इन आंकड़ों में व्यापक वृद्धि होने की संभावना है, क्योंकि इस महीने की अंत तक टैंकरों की संख्या बढ़कर 26 और आईएसओ कंटेनर की संख्या बढ़कर 117 हो जाएगी, जिनकी कुल क्षमता 2314 मीट्रिक टन होगी। 95 आईएसओ कंटेनर्स खरीदे जा रहे हैं जिनकी कुल क्षमता 1940 मीट्रिक टन होगी। 30 आईएसओ कंटेनर के लिए पहले ही आर्डर जारी किए जा चुके हैं, जिनकी क्षमता 650 मीट्रिक टन है। बाकी के आईएसओ कंटेनर्स के लिए बातचीत की प्रक्रिया जारी है। ऐसी ही एक और खबर का शीर्षक था, “भारतीय रेलवे की ‘ऑक्सीजन एक्सप्रेस’ ट्रेन की अगवानी कर नौवां राज्य बनने जा रहा है उत्तराखंड”।  

इसमें कहा गया था, “सभी बाधाओं से पार करके और नए-नए समाधान ढूंढ कर देश भर के विभिन्न राज्यों में लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन (एलएमओ) की आपूर्ति कर मरीजों को राहत पहुंचाने के लिए भारतीय रेलवे का सफर निरंतर जारी है। भारतीय रेलवे ने देश भर के विभिन्न राज्यों में अब तक 375 से भी अधिक टैंकरों में लगभग 5735 मीट्रिक टन (एमटी) एलएमओ की आपूर्ति की है। कल ऑक्सीजन एक्सप्रेस ट्रेनों ने देश भर में 755 मीट्रिक टन एलएमओ की आपूर्ति की। 90 से भी अधिक ऑक्सीजन एक्सप्रेस ट्रेनें अब तक अपना सफर पूरा कर चुकी हैं। इस विज्ञप्ति को तैयार किए जाने तक महाराष्ट्र में 293 एमटी, उत्तर प्रदेश में लगभग 1630 एमटी, मध्य प्रदेश में 340 एमटी, हरियाणा में 812 एमटी, तेलंगाना में 123 एमटी, राजस्थान में 40 एमटी, कर्नाटक में 120 एमटी और दिल्ली में 2383 एमटी से भी अधिक एलएमओ विभिन्‍न टैंकरों से उतारी जा चुकी हैं। देहरादून (उत्तराखंड) और पुणे (महाराष्ट्र) के निकट स्थित स्टेशन भी अपनी पहली ऑक्सीजन एक्सप्रेस पाने वाले हैं। सवाल उठता है कि ये जानकारियां बिना समिति के कैसे आईं और डाटा नहीं हैं तो कहां से आए और इन्हें सार्वजनिक करने से दिक्कत नहीं है तो बाकी में क्या है?  

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।