देश के कई राज्यों में जब कोरोना के कारण मौत के मामलों को छिपाने के आरोप हैं और यह भी इतना लचर कि जिस राज्य में सब कुछ ठीक होने का दावा किया गया उसकी लाशें नदी में राज्य का सीमा पार करने के बाद नजर आईं और बाद में नदी के किनारे छिपाई हुई नजर आईं तो बताया गया कि यह तो परंपरा है। पहले भी ऐसा होता था। और सबसे विकसित राज्य में जारी किए गए मृत्यु प्रमाण पत्र की संख्या से मौत छिपाने की सत्यता का पता चल गया। ऐसे समय में केरल ऐसा राज्य है जहां मौत के मामले ज्यादा नहीं हुए और तिरुवनंतपुरम अकेला ऐसा शहर है जहां 2020 में मरने वालों की संख्या कम हुई और 2021 में 1196 मौतें ज्यादा हुईं।
द हिन्दू ने आज इसपर एक विस्तृत खबर छापी है। इंडियन एक्सप्रेस में भी आज तिरुवनंतपुरम की खबर पहले पन्ने पर एंकर है। इसके अनुसार 20 साल पहले जिस जमीन पर कोका कोला का प्लांट लगाने को लेकर आंदोलन हुआ था वहां अब 600 बेड का कोविड अस्पताल है। कहने का मतलब यह है कि केरल की तारीफ हो रही है और डबल इंजन वाले राज्यों का सच सामने आ रहा है। मैं ऐसा सिर्फ केरल की तारीफ वाली खबरों के दम पर नहीं कह रहा हूं, “बैंक से कर्ज लेकर भागने वालों से 40 प्रतिशत राशि वसूल हो गई” जैसा प्रचारात्मक शीर्षक नहीं लगना भी बताता है कि राजा का बाजा बजाने वालों ने शोर कुछ कम किया है। हालांकि, यह स्थिति उत्तर प्रदेश चुनाव के लिहाज से खास है जिसके बारे में कहा जा रहा है कि भाजपा ही भाजपा से लड़ रही है। यह भी संभव है कि मीडिया का भ्रम मोदी सरकार से टूटा हो, पर मैं इतनी जल्दी खुशफहमी नहीं पालता।
इसके अलावा, आज अखबारों की लीड से लगता है कि खबरों की कमी थी। सभी अखबारों में लीड अलग है और जो एक अखबार में है लीड है वह दूसरे में पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम भी नहीं है। हालांकि, कश्मीर में चुनाव की कवायद के साथ कश्मीरी नेताओं से प्रधानमंत्री की मुलाकात की खबर इंडियन एक्सप्रेस में लीड है जो टाइम्स ऑफ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स में सिंगल कॉलम है। लेकिन पश्चिम बंगाल में उपचुनाव से संबंधित एक खबर द हिन्दू में पहले पन्ने पर है जो दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। कश्मीर में चुनाव निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है लेकिन उसकी राजनीति पश्चिम बंगाल चुनाव की राजनीति से अलग है। मुझे लगता है पश्चिम बंगाल की राजनीति में लोगों की दिलचस्पी कश्मीर चुनाव के मुकाबले ज्यादा होगी। तो आइए, बंगाल के उपचुनाव की खबर कैसे छपी है वह बताऊं।
द हिन्दू में पहले पन्ने दो कॉलम की एक खबर का शीर्षक है, “केंद्र सरकार अलपन के खिलाफ जबरदस्त ताकत लगा रही है : ममता।” उपशीर्षक है, “मुख्यमंत्री ने जुर्माने की कार्यवाही के कदम की निन्दा की।”इस खबर के साथ सिंगल कॉलम की दो खबरें हैं, “राज्यपाल मेरे कार्यक्षेत्र में दखल दे रहे हैं : विधानसभा अध्यक्ष (पश्चिम बंगाल)।” दूसरी खबर का शीर्षक है, पश्चिम बंगाल में उपचुनाव। ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग पर व्यंग करते हुए कहा है कि राज्य में उपचुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग प्रधानमंत्री की सहमति का इंतजार कर रहा होगा। वैसे तो चुनाव आयोग द्वारा प्रधान मंत्री (सेवक / चौकीदार) की सहमति का इंतजार करना अटपटा नहीं लगता है लेकिन यह खबर दिल्ली के अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है तो समझ में आना चाहिए कि क्यों नहीं है।
द हिन्दू में पहले पन्ने पर एक और खबर है, “संसदीय समिति की बैठक में भाजपा सांसदों ने वैक्सीन पर बैठक में विरोध किया। खबर के अनुसार, विज्ञान व टेक्नालॉजी की संसद की स्थायी समिति की बैठक में कोविड-19 के लिए टीके के विकास और जेनेटिक सीक्वेंसिंग ऑफ कोरोना वायरस एंड इट्स वैरीयंट्स पर चर्चा में भाजपा नेताओं ने हंगामा किया और दावा किया कि इन विषयों में कोई भी चर्चा वैज्ञानिक समुदाय का मनोबल कमजोर करेगी। समिति के अध्यक्ष और कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने जब बैठक स्थगित करने से मना कर दिया तो भाजपा सदस्य वॉक आउट कर गए। उनका तर्क है कि यह वैक्सीन यानी टीके के विकास पर चर्चा का सही समय नहीं है। खबर में लिखा नहीं है पर वे शायद यह कहना चाहते थे कि देश को वह मान लेना चाहिए जो दावा किया जा रहा है।
टाइम्स ऑफ इंडिया में आज इस्लामाबाद में ब्लास्ट की खबर पहले पन्ने पर लीड है और उससे पहले के अधपन्ने की लीड है, सोशल मीडिया कंपनियां शिकायत मिलने के 24 घंटे के अंदर फर्जी खाते बंद करेंगी। अगर ऐसा है तो मुझे लगता है कि सभी मंत्रियों और व्यस्त सेलीब्रिटी के खाते बंद हो जाने चाहिए जिनके बारे में पता है कि उनका खाता कोई और चलाता है। या कम से कम किसी और को चलाने देने से भी रोका जाना चाहिए। नाम किसी का तथा खाता कोई और चलाए यह गलत है तो हर मामले में होना चाहिए। एक पोस्ट या एक ट्वीट के मामले में भी। लेकिन खबर से इस बारे में कुछ पता नहीं चलता है। खबर में बताया गया है कि यह निर्देश केंद्र सरकार के नए आईटी नियम का भाग है। मुझे लगता है कि इस आदेश को समान रूप से हरेक खाते पर लागू किया जाना चाहिए और सरकारी धन से वेतन लेने वालों को मनोरंजन या राजनीति या ज्ञान बांटने के लिए सोशल मीडिया हैंडल का उपयोग करने से रोका जाना चाहिए। कॉरपोरेट में ऐसा नियम है भी।
हिन्दुस्तान टाइम्स में आज पहले पन्ने पर खबर है कि केंद्र सरकार ने राशन की होम डिलीवरी की दिल्ली सरकार की योजना को रद्द कर दिया है जबकि दिल्ली सरकार ने सहमति मांगी ही नहीं थी। यह जनहित के एक फैसले को रोकने की भाजपा सरकार की कोशिशों का अच्छा और दिलचस्प मामला है पर दिल्ली के अखबार इसे कायदे से पहले पन्ने पर फॉलो नहीं कर रहे हैं। आज भी यह खबर सिर्फ हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम से ज्यादा जगह प्राप्त कर पाई है। द हिन्दू में आज एक खबर लीड है। इसके मुताबिक प्रवर्तन निदेशालय ने बैंकों को 8441 करोड़ रुपए की राशि वापस दी। यह विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चोकसी द्वारा कर्ज लेकर कथित रूप से भाग जाने के बाद की गई कार्रवाई का प्रचार है। पर हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है, टाइम्स ऑफ इंडिया में अधपन्ने पर सिंगल कॉलम में है, इंडियन एक्सप्रेस में सेकेंड लीड है और द टेलीग्राफ में बिजनेस पन्ने पर है। यह मैं इसलिए बता रहा हूं कि पहले कई बार सभी अखबारों में एक जैसी खबर को एक जैसा ट्रीटमेंट मिलता रहा है और लगता था कि एक ही व्यक्ति का बनाया हुआ हो या एक ही स्कूल में पढ़े लोग सभी अखबारों का पहला पन्ना बनाते हों। अब यह स्थिति बदलती लग रही है।
आप जानते हैं कि दिल्ली पुलिस कुछ मामलों में कितनी तेजी से कार्रवाई करती रही है। बैंगलोर से दिशा रवि की गिरफ्तारी हो या ट्वीटर के मुखिया से पूछताछ के लिए बैंगलोर पहुंचने का मामला हो। आज तो द टेलीग्राफ ने यह भी बताया है हाल में जमानत पर छूटे छात्रों को 19,000 पन्नों की चार्जशीट आधुनिक तरीके से पेन ड्राइव में दी गई थी ताकि वे जेल में पढ़ न सकें जबकि पुलिस के पास थानों में गाड़ियां तक नहीं होती हैं। कई बार ढंग की या पर्याप्त कुर्सियां भी नहीं होती हैं। ऐसी ही एक कहानी हरिद्वार में कुंभ के दौरान फर्जी टेस्ट के आरोपों की जांच से जुड़ी है। इसके अनुसार 98,000 फोन नंबर की जांच करके इस मामले की तह में पहुंचने के लिए आठ अधिकारी रोज 450 नंबर पर कॉल कर रहे हैं। अधिकारी रोज करीब 3500 नंबर पर कॉल कर पाए हैं। और अभी तक 25,000 पर कॉल की जा चुकी है और इस तरह अभी लक्ष्य का एक चौथाई काम ही हुआ है।
दूसरी तरफ दिल्ली पुलिस दिल्ली दंगे की जांच में कैसे काम कर रही है इसका उदाहरण द टेलीग्राफ ने अपनी खबर से दिया है। आज द टेलीग्राफ की लीड खबर यही है और इसका शीर्षक है, शहंशाह की तरह काम कर रही है दिल्ली पुलिस। यह खबर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मदन बी लोकुर से बातचीत पर आधारित है। इसमें उन्होंने कहा है कि गए साल 24 मई को दंवांगना को वर्चुअल कोर्ट रूम से जिस ढंग से गिरफ्तार किया गया वह भारतीय न्यायिक इतिहास में सुना नहीं गया था। (और भारतीय मीडिया ने हमें एक साल तक नहीं बताया, या मुझे पता नहीं चलने दिया)। आर बालाजी ने अपनी इस खबर में लिखा है, इस स्थिति की विसंगति पर जोर देने के लिए उन्होंने हिन्दी फिल्म शहंशाह का उदाहरण दिया और कहा कि वही एक अपवाद है जब विलेन को अदालत के अंदर दुर्घटनावश फांसी लग जाती है। इसी में न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा है कि अभियुक्तों को 19,000 पेज के चार्ज शीट की कॉपी पेनड्राइव में दी गई।
टेलीग्राफ की पहले पन्ने की दूसरी खबर है, ऐसे मौकों पर तो मैं भी नहीं हंसता। इसमें बताया गया है कि अपने चुटकुलों से सत्ता में बैठे लोगों का मजाक उड़ाने वाले कुणाल कामरा ने हंसना छोड़ दिया है। कामरा ने न्यूयॉर्क टाइम्स में वीडियो गेस्ट एस्से में अपनी बात कही है और द टेलीग्राफ ने उसके अंश का उल्लेख किया है जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ हो तो देश के अखबारों में नहीं के बराबर छपता है। इसमें कामरा ने कहा है कि प्रधानमंत्री खुलेआम झूठे बोलते हैं और यह ऐसा मौका है कि मैंने एक स्टैंडअप कॉमेडियन होते हुए भी हंसना छोड़ दिया है। अन्य खास बाते हैं,
- हमारे (देश के नागरिक) बिलावजह मर रहे हैं। हमारी सरकार के हाथ खून से रंगे हैं।
- दुनिया का कोई भी नेता मोदी से मुकाबला नहीं कर सकता है …. और बच्चू वो अभिनय भी कर सकते हैं।
- इसलिए जनवरी में मोदी ने जब एलान किया कि कोविड खत्म हो गया है तो एक छोटी सी समस्या थी, कोविड उनका आदेश मानना भूल गया।
- मई में मोदी खुशी-खुशी सुपर स्प्रेडर पश्चिम बंगाल की चुनावी रैलियों में शामिल हुए थे।
- इनकारवाद हर जगह है, खासकर शिखर पर
- इन सबसे ऊपर, मोदी ने टीकों की शुरुआत में ही गड़बड़ कर दी। यह विडंबना है क्योंकि अनुमान लगाइये कि दुनिया का 60 प्रतिशत टीका कौन बनाता है …
- हम झूठ और परम झूठ में जी रहे हैं। पर हमारी सरकार आलोचकों पर हमला करने के ही क्षेत्र में उस्ताद है।
- मैं भी एक कॉमडियन के रूप में इस असंगति को व्यंग बनाने के लिए संघर्ष कर रहा हूं।
आज पांच अखबारों के पहले पन्ने की इन सभी खबरों से अलग, एक और खबर द टेलीग्राफ में है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के समसेरगंज की इस खबर में बताया गया है कि 40 साल के साधन सिन्हा ने मोटरसाइकिल के लिए कर्ज लिया था जिसकी 3400 रुपए की किस्त जाती थी। दो महीने की किस्त 6800 रुपए बकाया होने पर निजी फाइनेंस कंपनी के एजेंट उसके घर के बाहर बैठ गए और कह दिया कि वे पैसे लिए बिना नहीं जाएंगे। इससे परेशान या अपमानित होकर सिन्हा ने आत्महत्या कर ली। उसके दो बच्चे 18 और 15 साल के हैं। पिता के बिना ये बच्चे आगे की पढ़ाई कैसे करेंगे और कैसे नागरिक बनेंगे – यह सवाल देश समाज के समक्ष होना चाहिए पर यह या ऐसी खबरें ही नहीं छपती है। यह अलग बात है कि सरकार के पास पैसे ही नहीं हैं और उसकी प्राथमिकता सेंट्रल विस्टा है जिसे देश की आबादी का समर्थन है और विरोध करने वालों को एक केंद्रीय मंत्री पढ़े लिखे मूर्ख कह चुके हैं।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।