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आप एक सरकारी मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर हैं, नर्स हैं, वॉर्ड ब्वॉय हैं, क्लर्क हैं या किसी और पद पर काम कर रहे हैं और आपको कोविड के लक्षण महसूस होते हैं..लेकिन आपको अगर अपना टेस्ट कराने की इजाज़त न हो, तो आप इसे कैसे देखेंगे? मध्य प्रदेश के जबलपुर का नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज शायद अपने आप को एक अलग देश मानता है और अपने स्टाफ को एक अलग देश…इसलिए भारत के संविधान में नागरिकों को प्रदत्त मौलिक अधिकार वहां के स्टाफ पर लागू नहीं होते हैं। इस अस्पताल ने एक आधिकारिक आदेश जारी कर के, अपने डॉक्टर्स के साथ बाकी सारे स्टाफ के भी कोविड के लक्षण सामने आने के बाद भी, उनके टेस्ट करने पर प्रतिबंध लगा दिया है।
आपको ये पढ़कर अजीब लग रहा होगा, लेकिन दरअसल इस अस्पताल में ऐसा ही किया है। वो भी ऐसे वक़्त में, जब लगातार कोविड की दूसरी लहर का कहर, बढ़ता जा रहा है और सबसे ज़्यादा ख़तरा इन फ्रंट लाइन वॉरियर्स पर ही है। लेकिन फ्रंट लाइन वॉरियर्स की चिंता, हमारे निज़ाम को केवल सरकारी विज्ञापन-बयानों और भाषणों में ही है। जबलपुर के इस अस्पताल से हमारे पास ये भी ख़बर है कि यहां रेज़ीडेंट डॉक्टर्स में ऐसे कई कर्मचारी हैं, जिनको वैक्सीन के दोनों शॉट्स काफी पहले ही लगने के बाद भी, दोबारा कोविड-19 संक्रमण हुआ। मेडिकल स्टाफ को संक्रमण के ये मामले लगातार बढ़ने लगे और उसके बाद अस्पताल में स्टाफ की कमी से लड़ने के लिए अस्पताल प्रशासन ने ये नायाब जानलेवा तरीका निकाला है।
इस अस्पताल में ये ख़बर लिखे जाने तक कुछ अन्य मेडिकल स्टाफ भी कोविड 19 की चपेट में आ चुके हैं।
ख़तरे बेहद डरावने हैं
जबलपुर मेडिकल कॉलेड में स्टाफ को न केवल टेस्ट कराने से प्रतिबंधित कर दिया गया है बल्कि उनका टेस्ट तभी हो सकता है, जब उनको अस्पताल का परामर्शदाता टेस्ट लिख कर देगा। यानी कि तब तक, अगर किसी डॉक्टर, पैरामेडिकल या बाकी स्टाफ को कोविड हुआ भी, तो उसका टेस्ट नहीं होगा और वह कोविड संक्रमण के साथ काम करता रहेगा। इसके ख़तरे इतने भयावह हैं कि उनको समझा जाए, तो रातों की नींद गायब हो सकती है।
- अस्पताल के डॉक्टर्स अलग-अलग विभागों में चिकित्सा करते हैं, जिनमें कैंसर का इलाज करने वाला ओंकोलॉजी, ओंकोसर्जरी, न्यूरोसर्जरी, पीडियाट्रिक सर्जरी, नेफ्रोलॉजी विभाग शामिल हैं। इन विभागों में गंभीर रूप से बीमार मरीज़ अपना इलाज करवाते हैं। जो कि काफी संवेदनशील स्थिति में होते हैं और मेडिक-पैरामेडिकल स्टाफ के ज़रिए, इन तक कोविड का संक्रमण पहुंच कर-इनकी बीमारी के साथ और ज़्यादा घातक हो सकता है।
- यही नहीं, ये स्टाफ आपस में एक-दूसरे को भी संक्रमित कर सकते हैं और अस्पताल के अंदर एक तरह का छोटा कम्युनिटी स्प्रेड खड़ा हो जाएगा।
- ये स्टाफ, अपने घर से लेकर बाज़ार तक जाएगा और इस संक्रमण को कई जगह फैला सकता है।
- अगर किसी को वाकई कोविड संक्रमण है और उसका टेस्ट, कई दिन बाद होता है तो उसकी स्थिति बिगड़ ही नहीं सकती है बल्कि उसकी जान पर भी ख़तरा हो सकता है।
क्या जबलपुर का ये मेडिकल कॉलेज, भारत के संविधान से ऊपर है?
भारत का संविधान न केवल अपने हर नागरिक को, स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार देता है बल्कि जीवन का अधिकार भी इसमें शामिल है। और ऐसे में, जबलपुर मेडिकल कॉलेज का ये आदेश सीधे तौर पर ऐसे बर्ताव करता है जैसे कि यहां का स्टाफ, भारत का नागरिक ही नहीं है या उसके नागरिक अधिकार भंग हो गए हैं कि वह केवल अपनी कोविड टेस्टिंग भी लक्षणों के आने पर भी नहीं करा सकता है। यानी कि ये जांच टाली जाने गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं। साथ ही अगर ये सच है, तो ये आदेश नागरिक अधिकारों का उल्लंघन भी है।