आज एक ऐसी खबर जो सिर्फ द टेलीग्राफ में पहले पन्ने पर है। हालांकि, द टेलीग्राफ में ऐसी खबरें अक्सर होती हैं और अपने इस कॉलम में मैं इससे बचने की कोशिश करूंगा लेकिन आज इसपर चर्चा यह बताने के लिए कि कोविड के मामले में मीडिया दरअसल कर क्या रहा है। आज कोविड पर पांचों अखबारों में पहले पन्ने पर खबर है। इनमें टेलीग्राफ की खबर सबसे अलग है। इससे पता चलता है कि कोविड की खबर के मामले में अखबार क्या खेल कर रहे हैं। बीमारी फैल रही, फिर से बढ़ रही है – के बीच एक कथित दवा या दावे का प्रचार। दवा वही है, दावा उसी का है, जिसने पहले भी मिलता-जुलता दावा किया था और तब आयुष मंत्रालय ने उसका खंडन कर दिया था। हो सकता है यह खबर पहले छपी हो या अंदर के पन्ने पर हो लेकिन मेरा मानना है कि द टेलीग्राफ ने पूरे खेल का जो पक्ष पहले पन्ने पर बताया है वह मीडिया बताता ही नहीं है या पचा लेता है।
आपको याद होगा कि पिछले साल जून में बाबा रामदेव की कंपनी ने कोरोना की दवा (भाषा और शब्द चाहे जो रहे हैं) तैयार करने का दावा किया था और फिर सरकार के आयुष मंत्रालय ने उसका खंडन कर दिया था। तब पीआईबी की विज्ञप्ति में कहा गया था, आयुष मंत्रालय ने पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड, हरिद्वार (उत्तराखंड) के द्वारा कोविड-19 के उपचार के लिए विकसित आयुर्वेदिक दवाइयों के बारे में हाल में मीडिया में आए समाचारों का संज्ञान लिया है। उल्लिखित वैज्ञानिक अध्ययन के दावे के तथ्यों और विवरण के बारे में मंत्रालय को कोई जानकारी नहीं है।
संबंधित आयुर्वेदिक दवा विनिर्माता कंपनी ने बताया है कि आयुर्वेदिक औषधियों सहित दवाओं के ऐसे विज्ञापन औषधि एवं जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 के प्रावधानों और उसके नियमों तथा कोविड महामारी के क्रम में केन्द्र सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अंतर्गत विनियमित हैं। मंत्रालय ने 21 अप्रैल, 2020 को जारी राजपत्र अधिसूचना संख्या एल11011/8/2020/एएस भी जारी की गई थी, जिसमें आयुष हस्तक्षेप/औषधियों के साथ कोविड-19 पर किए जाने वाले शोध अध्ययन की आवश्यकताओं और उसके तरीकों के बारे में बताया गया था।
उपरोक्त समाचार के तत्थों और दावों के सत्यापन के प्रति मंत्रालय को सूचित किए जाने के क्रम में पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड से उन दवाओं के नाम और संयोजन; स्थानों/ अस्पताल जहां कोविड-19 के लिए शोध कराया गया; प्रोटोकॉल, नमूना आकार, संस्थागत आचार समिति की मंजूरी, सीटीआरआई पंजीकरण और शोध के नतीजे के विवरण उपलब्ध कराने तथा इस मसले की विधिवत जांच पूरी होने तक ऐसे दावों के विज्ञापन/प्रचार को बंद करने के लिए कहा गया है। मंत्रालय ने उत्तराखंड सरकार के संबंधित राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण से भी लाइसेंस की प्रतियां और आयुर्वेदिक दवाओं की उत्पाद स्वीकृति का विवरण उपलब्ध कराने के लिए कहा है, जिसके कोविड-19 के उपचार में कारगर होने का दावा किया जा रहा है।
ऊपर मैंने सरकारी विज्ञप्ति को कॉपी पेस्ट भर किया है। यह बताने के लिए कि दवाइयों के निर्माण से संबंधित कुछ औपचारिकताएं होती हैं जो कोविड के टीके के मामले में भी लागू होती होंगी लेकिन कितनी-कैसे हुई आप जानते या दावों पर भरोसा करने से पहले आपको पता करना चाहिए हैं। उन विनिर्माताओं को क्यों छूट दी गई, मैं नहीं जानता और वह मेरी चिन्ता का विषय भी नहीं है लेकिन उससे संबंधित खबरें नहीं छपीं या प्रमुखता से नहीं छपीं इसका दावा मैं कर सकता हूं। अब नया मामला यह है कि बाबा रामदेव की कोरोनिल को विश्व स्वास्थ्य संगठन से मंजूरी मिलने का दावा किया जा रहा है और पूरे प्रचार के बाद अल्ट न्यूज ने कहा है, “पतंजलि की कोरोनिल को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की न कोई मंज़ूरी मिली और न ही कोई सर्टिफ़िकेट मिला है”। (नीचे के लिंक पर क्लिक करें।)
पतंजलि की कोरोनिल को WHO की न कोई मंज़ूरी मिली और न ही कोई सर्टिफ़िकेट मिला है।
द टेलीग्राफ की आज की लीड के शीर्षक का हिन्दी अनुवाद होगा, “सरकार ने जो ‘सपना’ साझा किया वह विज्ञान के लिए खान है।” इसके साथ बाबा रामदेव और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन की तस्वीर है। हर्षवर्धन के हाथ में, मुंह के आगे माइक है यानी वे बोल रहे होंगे पर मास्क पहने हुए हैं और बाबा रामदेव हाथ जोड़े हुए दांत दिखा रहे हैं, मास्क नहीं लगया है। इससे आप समझ सकते हैं कि मास्क लगाने के नियम का पालन कितनी गंभीरता से हो रहा है और शायद कुछ लोगों को छूट है। अखबार के फोटो कैप्सन से पता चलता है कि यह शुक्रवार (19 फरवरी 2020) की प्रेस कांफ्रेंस की है।
खबर में बताया गया है कि यह उस प्रेस कांफ्रेंस की है फोटो है जिसमें बाबा रामदेव ने कोविड की “डब्ल्यूएचओ प्रमाणित दवा” पेश करने का दावा किया। कहने की जरूरत नहीं है कि उस प्रेस कांफ्रेंस में क्या हुआ वह निजी कंपनी की प्रेस कांफ्रेंस में स्वास्थ्य मंत्री की उपस्थिति से बिल्कुल अलग है। और दोनों दो अलग मुद्दे हैं। बाद में स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि योग बाबा ने आयुर्वेद से संबंधित सपने साझा किए हैं। अखबार ने बताया है कि कुछ चिकित्सकों ने कहा कि इस कार्यक्रम में स्वास्थ्यमंत्री की मौजूदगी उत्पाद को एनडोर्स करने की तरह था।
बहाना वैज्ञानिक पेपर पर चर्चा हो या कुछ और, जिस योगी, कारोबारी, कंपनी के एक दावे को कुछ ही महीने पहले एक मंत्रालय ने गलत बताया हो (और कोई कार्रवाई नहीं की हो) उसी के साथ अब दूसरे मंत्री का प्रेस कांफेंस करना पिछले नुकसान की भरपाई करना नहीं है, यह कोई कैसे मान ले? जाहिर है, आम आदमी वही मानेगा जो उसे बताया जाएगा पर अखबार क्या बताते हैं वही हम देख रहे हैं। द टेलीग्राफ ने लिखा है कि इस संबंध में उसके ई-मेल का जवाब न स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिया और न पतंजलि से संपर्क हो सका। कल इतवार था। हो सकता है जवाब अब आए और अखबार ने लिखा है कि आएगा तो बताएगा, पर क्या यह खबर नहीं है? मेरे पांच अखबारों में किसी और में पहले पन्ने पर तो नहीं है।
वह भी तब जब टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर खबर है, “भारत में कोविड के साप्ताहिक मामले 31% बढ़े, नवंबर की शुरुआत के बाद यह पहली वृद्धि है।” इसके साथ छोटी सी खबर है, महाराष्ट्र ने पाबंदिया लगाई, अमरावती में लॉकडाउन। द हिन्दू में खबर है, “बढ़ते मामलों के बीच केंद्र ने ज्यादा आरटी-पीसीआर जांच के आदेश दिए।” इसके साथ सिंगल कॉलम की दो छोटी खबरें हैं जिनका विस्तार अंदर है। एक का शीर्षक है, “ज्यादा लोगों को टीका लगाएं” तथा “अमरावती में लॉक डाउन।” द हिन्दू की इस खबर का उपशीर्षक है, “छह राज्यों से कहा गया निगरानी, रोकथाम बढ़ाएं।” हिन्दुस्तान टाइम्स में यह पहले पन्ने पर दो कॉलम में है और इसका शीर्षक है, राज्यों से जांच बढ़ाने के लिए कहा गया। इंडियन एक्सप्रेस में कोरोना की हालत बताने वाली खबर लीड है। इसका फ्लैग शीर्षक है, कोविड मामलों में वृद्धि। मुख्य. शीर्षक है, केंद्र ने पांच राज्यों को लिखा, उद्धव ने चेतवानी दी कि दूसरा दौर दरवाजे पर है।
इस पूरे मामले में पत्रकारिता यह होती कि आयुष मंत्रालय ने तब खंडन क्यों किया था और अब क्या कह रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि तब आयुष मंत्री (या मंत्रालय) ने जो खेल खराब किया था उसी खेल को पूरा करने के लिए अब स्वास्थ्य मंत्री लगाए गए हैं। पुराने समय में सूत्रों के हवाले से पूरा खुलासा हो जाता। पर अब सूत्रों के हवाले से फर्जी खबरें होती हैं। इसलिए यह आसान नहीं है पर मंत्री से पूछा जाए तो उनके जवाब से सब कुछ समझ में आ जाएगा। पर करेगा कौन?
इंडियन एक्सप्रेस का पहला पन्ना
जर्नलिज्म ऑफ करेज में स्वास्थ्यमंत्री से सवाल पहले पन्ने पर नहीं है। कल ही कारवां की एक रिपोर्ट से पता चला कि अखबार के लोगो से अब कलम गायब हो गया है। पुराना लोगो यह रहा।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।