ज़रा स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मशहूर सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता-नेता योगेंद्र यादव का अफ़सोस से भरा ये ट्वीट देखिये। उन्होंने ऑल्ट न्यूज़, फैक्ट चेक इंडिया और मीडिया विजिल से आग्रह किया कि झूठ के इस लेटेस्ट संस्करण की जाँच की जाये। झूठ ये कि योगेंद्र यादव ने कहा कि ‘मुसलमान लोकतांत्रिक रास्ते से परे जाकर लड़ने के लिए तैयार हों।’
झूठ के इस लेटेस्ट संस्करण को क्या @AltNews @FactCheckIndia @mediavigilindia देखेंगे? pic.twitter.com/Fzfx9FdS9U
— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) September 17, 2020
अपनी अतिशय मृदुभाषिता के लिए ‘बदनाम’ योगेंद्र यादव इस ख़बर के ज़रिये देश के दुश्मन साबित किये जा रहे हैं जो मुसलमानों को गैरलोकतांत्रिक (यानी हिंसक) आंदोलन के लिए बरगला रहा है। क्या सचमुच योगेंद्र ने ऐसा कहा? ये ख़बर जिस क्रियेटली वेबसाइट में छपी है, उसमें बताया गया है कि ऐसा उन्होंने द प्रिंट में छपे एक लेख में कहा है। हमने पढ़ा तो पता चला कि इस वेबसाइट ने अर्थ का अनर्थ कर दिया है। योगेंद्र यादव ने उमर ख़ालिद को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में पेश किया है जो मुस्लिम कट्टरपंथ की राह को नकार कर भारत के लोकतांत्रिक मिज़ाज के साथ तालमेल बिठाते हुए आंदोलनरत है। वह वामपंथी है, लेकिन अपनी मुस्लिम पहचान को त्यागने की जगह उसी ज़मीन पर खड़ा होकर संवैधानिक तरीके से प्रतिवाद का हिस्सा बना हुआ है। योगेंद्र यादव के लेख का आख़िरी पैरा हिंदी में कुछ यूँ है-
” हो सकता है, उमर खालिद की गिरफ्तारी उसके लिए व्यक्तिगत त्रासदी ना हो। जैसा कि लोकमान्य तिलक ने कहा था, शायद सच यही हो कि आजाद रहने के बजाए जेल की कोठरियों में बंद होने से उसकी आवाज़ ज्यादा गूंजे। ऐसा हो सकता है की वह इस कैद के चलते देश का नायक बनकर उभरे, जिसका वो हकदार भी है। लेकिन, त्रासदी ये है कि उमर खालिद की गिरफ्तारी से भारतीय मुसलमानों की एक पूरी युवा पीढ़ी के लिए गरिमामय और लोकतांत्रिक तरीके से अपनी आवाज उठाने का दरवाजा मानो बंद हो गया है। दरअसल यह त्रासदी उमर खालिद के साथ नहीं, भारत के स्वधर्म के साथ घटित हुई है।”
यानी, उमर ख़ालिद की गिरफ़्तारी को योगेंद्र यादव एक त्रासदी बता रहे हैं जो दरअसल, भारत के स्वधर्म के साथ घटित हुई है। यह लोकतांत्रिक तरीक़ों से प्रतिवाद करने का रास्ता बंद करने की पीड़ा जताता है। पर क्रियेटली वेबसाइट में इसका अनुवाद होता है कि ‘लोकतांत्रिक तरीकों को छोड़कर मुसलमान लड़ाई लड़ें।’ यहीं वह साज़िश समझ आती है जो योगेंद्र यादव सहित उन तमाम बुद्धिजीवियों के ख़िलाफ़ मोदी राज में भरपूर हो रही है जो सरकार की नीतियों पर सवाल उठा रहे हैं। इस साज़िश का सिर कहाँ है, ये समझना मुश्किल नहीं है। इन दिनों अपने बयानों के दम पर बीजेपी के आकाश में सितारा बन कर झिलमिला रहे कपिल मिश्र ने वेबसाइट की इस तथाकथित ख़बर को यूँ ही ट्वीट नहीं किया। यह भी संयोग नहीं कि वेबसाइट ने इस ख़बर के साथ योगेंद्र यादव की वह तस्वीर छापी है जिसमें उनके मुँह पर कालिख पुती है।
मुसलमानों को अब लोकतंत्रिक तरीके छोड़ कर लड़ने की तैयारी करनी होगी : योगेंद्र यादव
via @KreatelyMediahttps://t.co/LjxdQLWqeo— Kapil Mishra (@KapilMishra_IND) September 16, 2020
यह वेबसाइट हाल ही में बनी लगती है। उसमें इसका संचालन करने वालों के बारे में जानकारी नहीं है, पर कपिल मिश्र इसकी ख़बर को ट्वीट करके वैधता दे रहे हैं तो समझा जा सकता है कि उन्हें इसकी प्रामाणिकता का पता होगा। क्रियेटली को बताना चाहिए कि उसने ऐसा गलत अनुवाद क्यों किया या फिर इसे योगेंद्र यादव को निशाना बनाने की साज़िश समझा जाये। पिछले दिनों दिल्ली दंगों को लेकर दायर पुलिस की पूरक चार्जशीट में भी योगेंद्र यादव समेत कई बुद्धिजीवियों को लपेटने की कोशिश हुई थी जिस पर तीखी प्रतिक्रिया देखकर पुलिस ने सफाई दी थी। पर ऐसा लगता है कि यह ‘टार्गेट’ किसी भी क़ीमत पर हासिल किया जाना है।
ऐसी तमाम कहानियाँ सुनी जाती हैं कि किसी सुदूर इलाके में किसी महिला की घेरकर या पत्थर मारकर हत्या कर दी गयी। उसके पहले उसे डायन कहकर प्रचारित किया जाता है। पोस्ट ट्रुथ के दौर में मीडिया का एक हिस्सा इसी काम में लगा है। वह सरकार विरोधियों को देशद्रोही कहकर प्रचारित करता है। इससे जुड़ी ख़बरों को ट्वीट और रीट्वीट सत्ता पक्ष के लोग करते हैं ताकि किसी को संदेह न रह जाये। फिर कोई सिरफिरा किसी के मुंह पर कालिख पोत दे या जान से मार दे तो किसका दोष?
सबकुछ पुलिस ही नहीं करेगी!
कवि राजेश जोशी ने इसी दौर के लिए लिखा था-
जो इस पागलपन में शामिल नहीं होंगे
मारे जाएंगे
कटघरे में खड़े कर दिए जाएंगे, जो विरोध में बोलेंगे
जो सच-सच बोलेंगे, मारे जाएंगे
सबसे बड़ा अपराध है इस समय
निहत्थे और निरपराध होना
जो अपराधी नहीं होंगे, मारे जाएंगे..।