क्या सरकार सुप्रीम कोर्ट में झूठ बोल सकती है? वह भी हलफ़नामा देकर? पूर्व केंद्रीय मंत्री सैफ़ुद्दीन सोज़ की नज़रबंदी को लेकर मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट ने जो हलफ़नामा दिया है, उसके बाद ये सवाल आम हैं। सोज़ का एक वीडियो वायरल है जिसमें कश्मीर में उनके घर के अंदर मौजूद सुरक्षाकर्मी उन्हें पत्रकारों से बात करने से रोक रहे हैं। वे किसी तरह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में झूठ बोला है कि वे नज़रबंद नहीं है। लेकिन सुरक्षाकर्मी उन्हें चहारदीवारी से नीचे घसीट लेते हैं और पत्रकारों को चले जाने को कहते हैं। सोज़ की याचिका के जवाब में केंद्र सरकार ने हलफ़नामा देकर सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि उन्हें गिरफ़्तार नहीं किया गया है। कोर्ट ने इसे मान भी लिया। यह वीडियो सरकार के झूठ की मुनादी है। ऊपर की तस्वीर में द टेलीग्राफ सीधे ‘झूठा’ क़रार देने का साहस कर रहा है।
सोज़ कश्मीर के उन नेताओं में रहे हैं जो हर हाल में भारतीय तिरंग और संविधान के साथ चले हैं। लेकिन मोदी सरकार की कश्मीर नीति में उन्हें भी ख़तरनाक माना जा रहा है। अनुच्छेद 370 हटाने के बाद स्थिति सामान्य करने के सरकार के ऐलान का क्या हश्र हुआ, वह सबके सामे है, लेकिन सरका सामान्य कानूनी प्रावधानों को भुला रही है यह तो स्थिति को और ख़राब ही करेगा। हर तरफ़ इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं।
मोदीशाह जी शर्म करो। किस प्रकार का व्यवहार उस व्यक्ति के साथ आपकी पुलिस कर रही है जिसने सदैव भारतीय संविधान का सम्मान करते हुए जीवन जिया है। केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय को झूठ बोल कर गुमराह करने की आदत बना रखी है। https://t.co/1JOS94hyJU
— digvijaya singh (@digvijaya_28) July 31, 2020
Video footage, TV headlines and now page one of the newspapers. Saifuddin Soz’s detention becomes a big story. Many other leaders in Kashmir detained in the same way, petitions pending in High Court. Will the SC take suo moto notice of this? pic.twitter.com/i4jwvLHOc6
— Nidhi Razdan (@Nidhi) July 31, 2020
लेकिन एक बड़ा सवाल और है। सैफुद्दीन सोज़ की पत्नी की याचिका पर सरकार के जवाब को सुप्रीम कोर्ट ने मान क्यों लिया। अगर सोज़ की पत्नी कोई उलट बात कह रही हैं तो जाँच की क़ानूनी प्रक्रिया क्यों नहीं शुरू की गयी। क्या सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की आँख में धूल झोंका या फिर सुप्रीम कोर्ट ने ही आँख मूँद रखी है।
कहीं ये सर्वोच्च अदालत के गुंबद से सत्य के कबूतरों के उड़ जाने का संकेत तो नहीं?