शुक्रवार को देश की एक प्रतिष्ठित न्यूज़ एजेंसी से आई ख़बर ने चीन-भारत विवाद में एक बार फिर रहस्य और सवालों को गहरा दिया है। इस ख़बर के मुताबिक (जो तमाम मीडिया में भी प्रकाशित हुई है) चीन ने भारत के 10 सैन्यकर्मी, शुक्रवार को रिहा किए हैं। सबसे पहली बात ये कि ये इसलिए एक बड़ी घटना मानी जानी चाहिए, क्योंकि अगर ये सच है तो – 1962 के बाद से पहली बार, चीन ने भारतीय सैनिक बंदी बनाए। ये अपने आप में न केवल एक गंभीर मामला है, रणनीतिक रूप से भी ये सैनिकों के मनोबल को गिराने वाली घटना है।
पूरा मामला क्या है?
इस ख़बर को लेकर मीडिया विजिल के सूत्रों से जो जानकारी हमको मिली है, उसके मुताबिक 10 सैन्यकर्मी सोमवार की रात – गलवान वैली के पर्वतीय इलाकों में देर रात तक चली हिंसक झड़प के दौरान चीनी सैनिकों द्वारा बंदी बना लिए गए थे। तीन के साथ मई की शुरुआत में ही शुरु हुए सीमा विवाद को लेकर, पिछले कुछ दिन से चल रही बातचीत के दौरान हुई हिंसा के बाद ही इन सैनिकों को लेकर भी लंबी बातचीत चली। ये बातचीत मंगलवार को तब शुरु हुई, जब सोमवार की रात गंभीर हिंसक झड़प हुई – जिसमें 20 भारतीय सैन्यकर्मी शहीद हुए। मंगलवार और फिर गुरुवार को भारत की ओर से, मेजर जनरल अभिजीत बापट की चीनी समकक्ष के साथ गहन और लंबी बैठकों के बाद – चीनी सेना ने हमारे सैन्यकर्मियों को रिहा कर दिया है। ये सभी सैन्यकर्मी सोमवार की रात को ही बंदी बनाए गए थे।
मिसिंग इन एक्शन??
ऐसा नहीं है कि इन जवानों को लेकर, पहले सवाल नहीं उठे थे। शुरुआती ख़बरों में ही कहा जा रहा था कि इस हिंसक झड़प में सेना के 34 जवान लापता हैं। कई ख़बरों में, इनको ‘मिसिंग इन एक्शन’ बताया गया था। द टेलीग्राफ, लंदन के भारत संवाददाता – जो वॉलेन ने दावा किया कि 34 भारतीय जवान, लापता हैं।
Latest update – A senior and trusted Indian Army source has told us 34 Indian soldiers are also missing https://t.co/gCIFtim8xk
— Joe Wallen (@joerwallen) June 16, 2020
दिलचस्प ये है कि ये ट्वीट, जो वॉलेन ने मंगलवार को किया था। उस समय तक 20 जवानों की शहादत की ख़बर नहीं आई थी। इसके बाद, 13-34 जवानों के गायब होने की ख़बर – तमाम जगह तैरती रही। बुधवार को, 20 जवानों के शहीद होने की ख़बर के बाद भी इस का खंडन नहीं किया गया। यानी कि सेना या सरकार किसी ने भी इस बारे में न तो कोई हामी भरी और न ही इसका खंडन किया। ग़ौरतलब है कि मंगलवार की वार्ता के बाद तक, इन सैनिकों की रिहाई पर कोई फैसला नहीं हो सका था।
‘नो इंडियन ट्रूप्स मिसिंग इन एक्शन’
लेकिन बुधवार को प्रकाशित हुए, न्यूयॉर्क टाइम्स के लेख के जवाब में गुरुवार को पहले आर्मी और फिर विदेश मंत्रालय की प्रेस ब्रीफिंग में जाकर, इस ख़बर का औपचारिक तौर पर खंडन किया गया। आर्मी की ओर से इस लेख के जवाह में कहा गया, “हम साफ करना चाहते हैं कि कोई भी भारतीय सैनिक लापता नहीं है।(It is clarified that there are no Indian troops missing in action)” इसके बाद, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने ये ही बात दोहराते हुए कहा, “सेना दोपहर में ही ये साफ कर चुकी है कि इस घटना में कोई भी भारतीय सैन्यकर्मी लापता नहीं है।”
ये संयोग ही है कि भारतीय और चीनी सेना के बीच की, इन सैनिको की रिहाई की वार्ता भी गुरुवार को ही समाप्त हुई थी।
जो जवान ‘लापता नहीं थे’, वे लौट आए हैं?
शुक्रवार को बेहद विश्वसनीय सूत्रों के हवाले से ख़बर आई कि चीन ने बंदी बनाए गए, 10 भारतीय सैन्यकर्मियों को रिहा कर दिया है। इस ख़बर के आने के बाद – चारों ओर हड़बड़ी मच गई। सबसे पहली क़वायद ये थी कि इस ख़बर को पहले कन्फर्म किया जाए। सेना और देश की सुरक्षा से जुड़ा मामला होने के कारण कोई भी इस ख़बर को चलाने की जल्दबाज़ी नहीं करना चाहता था। यहां तक कि जिनके पास गुरुवार की रात ये ख़बर थी – वे भी नहीं। जी हां, ये ख़बर – गुरुवार की रात ही सूत्रों के ज़रिए आ चुकी थी।
दरअसल गुरुवार की दोपहर, जब सेना कह रही थी कि उसका कोई भी सैन्यकर्मी लापता नहीं है – तो वह पहले से ही इन सैनिकों की रिहाई के लिए, चीनी सेना के साथ बातचीत कर रही थी। यानी कि उसे पता था कि ये जवान, बंदी बनाए जा चुके हैं और वो इसीलिए लापता नहीं कह रही थी। इसी बयान को, बिना सच बताए – विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भी दोहरा दिया था। शाम होने तक, ये जवान रिहा कि जा चुके थे।
मामला कितना गंभीर है?
मामले की गंभीरता तो सिर्फ इस बात से ही समझी जा सकती है कि शुरुआत में न तो सेना ने और न ही सरकार ने इस ख़बर का कोई खंडन किया कि भारतीय सैनिकों की एक बड़ी संख्या लापता है। इसके बाद खंडन तो आया, लेकिन तब – जब भारतीय सैन्य अधिकारी, उन सैनिकों की रिहाई के लिए गंभीर और लंबी वार्ता में लगे हुए थे। इस खंडन में भी, महज खंडन था और शुक्रवार दिन भर, 10 सैनिकों की रिहाई की इस ख़बर के चलते रहने के बावजूद किसी तरह का औपचारिक खंडन या बयान नहीं आया है।
इस मामले की गंभीरता इस तथ्य से भी समझी जा सकती है कि इस मामले को लेकर, भारतीय सेना के अधिकारियों को चीनी सेना के साथ दो दिन वार्ता करनी पड़ी। चीन, जो कि भारत के साथ बातचीत से मामला सुलझाने का भी दावा कर रहा है – वो गुडविल संदेश के तौर पर इन सैनिकों को मंगलवार या बुधवार को भी रिहा कर सकता था। लेकिन ऐसा न होने से समझा जा सकता है कि स्थिति क्या है।
सरकार की चुप्पी?
इस मामले पर सरकार की चुप्पी का कारण, जिसलिए सवालिया है – उसीलिए प्रत्याशित भी है। एनडीए की वर्तमान सरकार, 2014 से ही लगातार – दुश्मनों को सबक सिखाने के नारे उछालती रही है। प्रधानमंत्री से गृहमंत्री तो छोड़िए, भाजपा के समर्थक भी चीन और बाकी देशों को सबक सिखाने की बातें ऐसे करते रहे हैं, जैसे भारत ही एशिया की महाशक्ति हो। ऐसे में सरकार के लिए ये चुप्पी, उसके उग्र समर्थकों के लिए अप्रत्याशित हो सकती है – लेकिन सरकार इस समय कैसे ये स्वीकार कर सकती है कि उससे इस तरह की रणनीतिक चूक हो गई है। सवाल अब देशद्रोही और देशभक्त के अलंकारों के बीच का नहीं रह गया है। सवाल, अब देश का है और नारों से न तो देश चलता है, न घर, न ही विदेश नीति और न ही सेना की बटालियन…हां, नारों से चुनाव जीता जा सकता है और सरकार चलती रह सकती है। लेकिन सरकार, केवल चलती कैसे रह सकती है? या फिर ऐसा भी होना, अब स्वीकार्य हो चला है??
मयंक सक्सेना, मीडिया विजिल की संपादकीय टीम का हिस्सा हैं। पूर्व टीवी पत्रकार हैं, वर्तमान में मुंबई में फिल्म लेखन करते हैं। लगातार सड़क पर चल रहे और अलग-अलग जगह फंसे श्रमिकों से बात कर के, उन पर स्टोरी कर रहे हैं।
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